अपडेट: बिहार के डीजीपी की जॉंच के बाद हम सूचनाओं को अपडेट कर रहे हैं। पीड़ित पिता इस दौरान कई बार अपने बयान से मुकरे हैं। लिहाजा उनकी ओर से किए गए सांप्रदायिक दावों को हम हटा रहे हैं। हमारा मकसद किसी संप्रदाय की भावनाओं का आहत करना नहीं था। केवल पीड़ित पक्ष की बातें सामने रखना था। इस क्रम में किसी की भावनाओं को ठेस पहुॅंची हो तो हमे खेद है।
बिहार के गोपालगंज जिले में 15 वर्षीय रोहित जायसवाल की कथित हत्या के मामले में ऑपइंडिया पर एफआईआर (FIR) की गई है। हमने इस मामले में पीड़ितों के बयान को जब प्रकाशित किया, तब रोहित की मौत के करीब एक महीने हो गए थे।
पीड़ितों के साथ-साथ पुलिस का बयान भी हमने प्रकाशित किया। हमारे पास पीड़ित से लेकर पुलिस तक से बातचीत के सारे रिकॉर्डिंग हैं। थानाध्यक्ष ने रोहित के पिता राजेश जायसवाल के साथ दुर्व्यवहार किया था उसका वीडियो भी है। कई लोगों ने इस मामले में ऑपइंडिया का पक्ष जाने बिना उस पर तरह-तरह के आरोप लगा दिए।
एक मुस्लिम जब झूठ बोलता है तो वह इंटरनेशनल न्यूज़ बन जाता है। लेकिन जब उसका बयान झूठा साबित हो जाता है तो उसे प्रकाशित करने वाले मीडिया संस्थान माफ़ी भी नहीं माँगते। उन पर केस भी नहीं दर्ज होता। प्रोपेगेंडा फैलाने सिद्धार्थ वरदराजन से लेकर रवीश कुमार तक शामिल हैं, जिनकी रीच मिलियंस में हैं।
आतंकियों के हिमायती अगर कुछ झूठ लिख दें तो उनकी आलोचना तक नहीं होती। उन पर एफ़आईआर (FIR) हो भी जाए तो वो सब के सब खड़े होकर मीडिया की स्वतंत्रता का रोना रोने लगते हैं। कुछ उदाहरण देखिए, जिससे पता चलता है कि यदि किसी मुस्लिम ने कुछ कहा, चाहे वह झूठ ही क्यों न हो उसे कैसे अकाट्य बना दिया जाता है।
तबरेज अंसारी के मामले में दावा किया गया कि उसे ‘जय श्री राम’ बोलने को मजबूर किया गया और भीड़ द्वारा मार डाला गया। ऐसी कई ख़बरें लगातार चलती रहीं।
ऐसी ही एक ख़बर गुरुग्राम से आई थी, जहाँ एक मुस्लिम व्यक्ति ने दावा किया कि उसकी टोपी फेंक दी गई और उसे ‘जय श्री राम’ बोलने को मजबूर करते हुए मारा-पीटा गया। ‘द हिन्दू’ और ‘द वायर’ जैसे मीडिया संस्थानों ने इस ख़बर को अपनी वेबसाइट पर जगह दी। बाद में पता चला कि उसने किसी के सिखाने पर ऐसी बातें कहीं और सीसीटीवी फुटेज से भी साबित हुआ कि उसके आरोप झूठे थे। किसी ने माफ़ी तक नहीं माँगी।
करीमनगर में एक मुस्लिम व्यक्ति ने हिन्दुओं द्वारा मारपीट का आरोप लगाया, जो बाद में सांप्रदायिक नहीं निकला। उन्नाव में क्रिकेट को लेकर बच्चों में हुए झगड़े को ‘जय श्री राम’ से जोड़ा गया। बागपत में एक मौलवी ने ‘जय श्री राम’ बोलने के लिए दाढ़ी नोचे जाने का आरोप लगाया, जो झूठी निकली। एक व्यक्ति की महाराष्ट्र में हिन्दू परिवार ने ही मदद की और बाद में उसने ग़लत आरोप लगा दिए। क्या ये हिन्दूफोबिया नहीं है?
चंदौली में एक मुस्लिम लड़के को ‘जय श्री राम’ न बोले जाने पर आग लगा देने की ख़बर आई लेकिन पुलिस ने पाया कि ये आरोप सही नहीं है।
लल्लनटॉप ने भी इस घटना का फैक्ट-चेक किया था। उसने अपने फैक्ट-चेक में सोशल मीडिया पर वायरल होने की बात कही। कानपुर में एक ऑटो ड्राइवर ने आपसी विवाद को ‘जय श्री राम’ से जोड़ दिया। ऐसी कई घटनाएँ हैं। इन प्रोपेगेंडा पोर्टलों ने ऐसी ख़बरों को सांप्रदायिक बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। क्या इन सभी में से किसी पर एफआईआर हुई?
रोहित जायसवाल मामले में हमने पीड़ित पिता के बयान को प्रकाशित किया, ग्रामीणों से बात की, पुलिस का बयान जनता तक पहुँचाया और ख़ुद से रिपोर्ट को कोई एंगल नहीं दिया। लेकिन फिर भी एफआईआर दर्ज की गई।
ऑपइंडिया ने अपनी तरफ से कुछ भी क्लेम नहीं किया। सारी खबरें पीड़ित पिता के बयानों के आधार पर बनाई गई।
इस मामले में पुलिस ने पहले कहा था कि 5 आरोपितों को जेल भेज कर त्वरित कार्रवाई की जा चुकी है। पिता राजेश जायसवाल ने भी कहा था कि उनलोगों की किसी से कोई दुश्मनी नहीं थी। हमने राजेश से बातचीत की रिकॉर्डिंग भी जारी की थी।