उत्तराखंड के चमोली जिले में ग्लेशियर फटने से तबाही नज़र आ रहा है। धौलीगंगा और अलकनंदा उफ़ान पर हैं। रिपोर्ट्स के मुताबिक़ पानी की तेज धार में 100- 150 लोग बह गए हैं। ग्लेशियर फटने की इस घटना ने 2013 के दौरान केदारनाथ में आई प्रलय की भयावह स्मृतियाँ ताज़ा कर दी हैं। ‘केदारनाथ त्रासदी’ का ज़िक्र छेड़ देने भर से सालों पुराना खौफ़नाक मंज़र लोगों में सिहरन पैदा कर देता है।
देवभूमि उत्तराखंड में 16 जून 2013 को आई प्रलय ने अकल्पनीय विध्वंस किया। बारिश 15 जून से ही शुरू हो गई थी। लेकिन इस बात की कल्पना शायद ही किसी ने की थी कि इस बारिश का परिणाम कितना विकराल हो सकता है। 16 और 17 जून की बारिश, बाढ़ और भूस्खलन ने इतनी तबाही मचाई कि लगभग 4400 से अधिक लोगों की मौत हो गई। हज़ार लोगों की लाशें अलग-अलग क्षेत्रों में मिली। 18 जून को मौसम साफ़ होने पर पूरा केदारनाथ तबाह हो चुका था। हर कोने में सिर्फ लाशें नज़र आ रही थीं। पत्थरों में फँसी लाशें, जिनमें कई पहचानी गई और कुछ नहीं। यह त्रासदी आज भी लोगों के ज़ेहन में दहशत पैदा करती है।
यूँ तो इस त्रासदी की अनगिनत कहानियाँ हैं, जिनमें कुछ प्रलय के साथ बह गई और कुछ हम तक पहुँच पाई।
केदारनाथ के नज़दीक रहने वाले एक प्रत्यक्षदर्शी का कहना था, “मैंने अपने आँखों के सामने 60 लाशों को तैरते हुए देखा। इसके अलावा लगभग 200 ऐसे लोग हैं जिन्हें मैं जानता हूँ कि लेकिन उनका कभी कोई पता नहीं चल पाया।” ऐसा ही तबाही का दृश्य नज़र आया था हेमकुंड साहिब में जहाँ से लौटी सुखप्रीत ने प्राकृतिक आपदा के भयावह नज़ारे का वर्णन किया था। उनका कहना था कि उनकी आँखों के सामने 50 यात्री नदी में बह गए थे।
लाशों का एक भयावह किस्सा मिलता है पत्रकार मंजीत नेगी की किताब ‘केदारनाथ से साक्षात्कार’ में। यह घटना उस समय की है जब आपदा प्रबंधन का कार्य काफी गति पकड़ चुका था, रुद्रप्रयाग के तत्कालीन एडीएम भी इस काम में लगे हुए थे। सरस्वती और मंदाकिनी नदी पर बने ब्रिज को पार करते हुए समय उनका पैर फिसला और वह नदी में गिर गए। बहाव इतना तेज़ था कि कुछ ही देर में वह सभी की नज़रों से ओझल हो गए, कई घंटों की खोजबीन बावजूद उनका कोई सुराग नहीं मिला। पूरे सरकारी महकमे में हड़कंप मच गया, सवाल उठने लगे कि सरकार अपने मुलाज़िम को नहीं बचा पा रही है तो आम जनता को कैसे सुरक्षित रखेगी।
अधिकारियों ने उनका शव खोजने के लिए एक हल निकाला, डूबने वाले अधिकारी का वजन लगभग 95 किलो था। लिहाज़ा 95 किलो की तीन मैनीक्यून तैयार कराई गई। 10-10 मिनट के अंतर पर तीनों मैनीक्यून वहीं से बहाई गई जहाँ से वह डूबे थे। खोजबीन शुरू हुई, पहली मैनीक्यून का पता ही नहीं चला! दूसरी के कुछ टुकड़े मिले और तीसरी जिस हालत में और जहाँ मिली उसे देख कर सभी स्तब्ध रह गए। नदी के जिस छोर पर तीसरी मैनीक्यून मिली वहाँ लगभग 150 से 200 लाशें पड़ी हुई थीं। नग्न, अर्धनग्न और सड़ी-गली लाशें! यह घटना केदारनाथ त्रासदी के आकार और प्रभाव की तस्वीर साफ़ करने के लिए बहुत थी। ये सिर्फ एक घटना है, न जाने कितनी कहानियाँ अभी तक हमने सुनी ही नहीं।