दुबई से प्रत्यर्पित, अगस्ता वेस्टलैंड वीवीआईपी चॉपर घोटाले में बिचौलिए क्रिश्चियन मिशेल ने ख़ुलासा किया कि जब से इस सौदे पर बातचीत शुरू ही हुई थी तभी से वह लगातार भारतीय लोगों के सम्पर्क में था। इस मामले में एक के बाद एक लगातार आश्चर्यजनक खुलासे हो रहे हैं। इससे पहले, यह बताया गया था कि कैसे मनमोहन सिंह के कार्यकाल में मिशेल की कैबिनेट मीटिंग, कैबिनेट कमेटी ऑन सिक्योरिटी (CCS) मीटिंग्स और तत्कालीन पीएमओ तक पहुँच थी। इकोनॉमिक टाइम्स की रिपोर्ट में अब यह सामने आया है कि उसकी जाँच एजेंसियों तक भी पहुँच थी।
एक आश्चर्यजनक रहस्योद्घाटन उसके 2009 के डिस्पैच के आधार पर किया गया है जिसे उसने अपने साथी बिचौलिए, गुइडो राल्फ हाश्के को लिखा था। 6 दिसंबर 2009 के इस डिस्पैच में, हाश्के को अगस्ता वेस्टलैंड चॉपर घोटाले के एक सह-अभियुक्त वकील गौतम खेतान से दूरी बनाने के लिए कहा था।
इसका कारण बताते हुए क्रिश्चियन मिशेल ने हाश्के को लिखा था कि खेतान ने प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के भीतर अपने ‘दोस्त’ के साथ मिलकर रियल एस्टेट फर्म एम्मार एमजीएफ़ के ख़िलाफ़ छापा मारने की कोशिश की थी। उस समय कंपनी अपना पहला इनिशियल पब्लिक ऑफर (आईपीओ) शुरू करने वाली थी। लेकिन एमजीएफ़ के लोगों को इसके बारे में पता चल गया था और उन्होंने हाश्के के लोगों को ‘गेट लॉस्ट’ कहा था।
रिपोर्ट के अनुसार, क्रिश्चियन मिशेल पर अगस्ता वेस्टलैंड घोटाले में ₹3,600 करोड़ के मनी लॉन्ड्रिंग, रिश्वतखोरी और धोखाधड़ी का आरोप है।
क्रिश्चियन मिशेल के प्रत्यर्पण के बाद चल रही जाँच में कुछ और बड़े ख़ुलासे हुए हैं। इससे पहले, यह बताया गया था कि कॉन्ग्रेस के एक वरिष्ठ नेता के बेटे ( son of a senior Congress leader) ने ‘किकबैक’ की व्यवस्था की थी। रिपोर्ट के अनुसार, मिशेल ऑफिशल सीक्रेट एक्ट के तहत आरोपित किए जा सकते हैं।
जाँच के दौरान, “श्रीमती गांधी”, “इतालवी महिला का बेटा आर” (“Mrs Gandhi”, “Italian Lady’s Son R”) और एपी (AP) (जो अहमद पटेल हो सकते हैं) जैसे गुप्त नाम भी सामने आए थे। यह भी पाया गया कि क्रिश्चियन मिशेल कई बार भारत आए थे और वे कॉन्ग्रेस शासन के दौरान भारत में राफ़ेल सौदे के ख़िलाफ़ और यूरोफाइटर सौदे के समर्थन में भी पैरवी कर रहे थे।