जिस तरह उत्तर प्रदेश के मथुरा के बरसाना और नंदगाँव की ‘लट्ठमार होली’ (लाठी के साथ होली का जश्न) दुनिया भर में प्रसिद्ध है, उसी तरह शाहजहाँपुर जिले में हर वर्ष होली के दिन खेली जाने वाली ‘जूता मार होली’ की भी एक अलग पहचान है। शाहजहाँपुर की इस होली के लिए इस बार जश्न की खास तैयारी की जा रही है।
रिपोर्ट के मुताबिक यहाँ प्रशासन ने इलाके में करीब 43 मस्जिदों को प्लास्टिक की शीट से ढक दिया है, ताकि होली के दिन यहाँ कोई अप्रिय घटना ना हो पाए। पुलिस प्रशासन पूरी मुस्तैदी से जुट गया है। आयोजकों के मुताबिक, इस बार ‘लाट साहब’ दिल्ली से आएँगे, जबकि पिछली बार ‘लाट साहब’ रामपुर से लाए गए थे। होली के दिन भैंसा गाड़ी पर निकलने वाले जुलूस में ‘लाट साहब’ मुख्य आकर्षण होते हैं।
दरअसल यहाँ शहर में लाट साहब के 2 जुलूस निकलते हैं। जहाँ बड़े लाट साहब और छोटे लाट साहब का जुलूस निकाला जाता है। जिसमें एक शख्स को लाट साहब बनाकर भैंसा गाड़ी पर बैठाया जाता है और फिर उसे जूते और झाड़ू मार कर पूरे शहर में घुमाया जाता है। इस दौरान आम लोग लाट साहब को जूते भी फेंक कर मारते हैं।
क्या होता है जूता मार होली में?
आपको बता दें कि अंग्रेजों के प्रति अपना आक्रोश प्रकट करने के लिए यहाँ एक व्यक्ति को अंग्रेज का प्रतीक लाट साहब बनाकर उसे भैंसा गाड़ी पर बिठाया जाता है और फिर जूतों और झाड़ू से पीटा जाता है। सांप्रदायिक सौहार्द ना खराब हो इसके लिए पुलिस और प्रशासन हर थाना स्तर पर पीस मीटिंग का आयोजन करता है और आपसी सहमति के बाद मस्जिदों को पूरी तरीके से ढक दिया जाता है।
फिलहाल यहाँ जूते मार होली खेलने की परंपरा दशकों पुरानी है। पुलिस अधीक्षक आनंद का कहना है कि शहर में सुरक्षा व्यवस्था बनाए रखने के लिए भारी संख्या में पैरा मिलिट्री फोर्से, पीएसी और कई जिलों की पुलिस फोर्स बुलाई गई है, जो मस्जिदों और पूरे शहर की सुरक्षा करेगी। साथ ही ड्रोन के जरिए भी जुलूस पर नजर रखी जाएगी।
दशकों पुरानी है परंपरा
शाहजहांपुर शहर की स्थापना करने वाले नवाब बहादुर खान के वंश के आखिरी शासक नवाब अब्दुल्ला खान पारिवारिक लड़ाई के चलते फर्रुखाबाद चले गए और 1729 में 21 वर्ष की आयु में वापस शाहजहाँपुर आए। वह हिंदू-मुसलमानों के बड़े प्रिय थे और इसी बीच होली का त्यौहार आ गया और तब दोनों समुदाय के लोग उनसे मिलने के लिए घर के बाहर खड़े हो गए। जब नवाब साहब बाहर आए तो लोगों ने होली खेली। बाद में उन्हें ऊँट पर बैठाकर शहर का एक चक्कर लगाया गया, इसके बाद से यह परंपरा बन गई।
1857 तक हिंदू और मुस्लिम दोनों मिलकर यहाँ होली का पर्व बड़े ही धूमधाम से मनाते थे तथा नवाब साहब को हाथी या फिर घोड़े पर बैठा कर शहर में घुमाया जाता था परंतु हिंदू और मुस्लिमों का यह सौहार्द प्यार अंग्रेजों को रास नहीं आया। इसके बाद 1858 में बरेली के सैन्य शासक खान बहादुर खान के सैन्य कमांडर मरदान अली खान ने एक टुकड़ी के साथ शाहजहाँपुर में हिंदुओं पर हमला कर दिया, जिसमें तमाम हिंदू और मुसलमान मारे गए थे। तब शहर में सांप्रदायिक तनाव हो गया।
1947 के बाद नवाब साहब के जुलूस का नाम बदल कर प्रशासन ने ‘लाट साहब’ कर दिया और तब से यह लाट साहब के नाम से जाना जाने लगा। इसी दौरान अंग्रेज यहाँ से चले गए और फिर अंग्रेजों के प्रति लोगों में जो आक्रोश था, उससे ही इस नवाब के जुलूस का रूप विकृत हो गया।