स्वघोषित ‘फैक्ट-चेकर’ प्रतीक सिन्हा आजकल इतने रौले में हैं कि वह झूठ ही नहीं, सामान्य से सच का भी फैक्ट-चेक करने लगे हैं। सच को भी ऐसे ‘रहस्यात्मक’ अंदाज में ट्वीट करते हैं जैसे कोई बहुत बड़ा ‘खुलासा’ कर रहे हों। मोदी के न्यूज़ नेशन को दिए इंटरव्यू पर भी उन्होंने यही ‘कला’ आजमाने की कोशिश की। बिना कोई सीधा दावा या हमला किए ऐसे दिखाया मानो इंटरव्यू में सवाल पहले से तय होना कोई दबा-छुपा गुप्त रहस्य था, कोई केजीबी-सीआईए की साजिश थी, जिसका उन्होंने पर्दाफ़ाश कर दिया।
PM Modi is asked to recite a recent poetry of his in the @NewsNationTV intvw. He asks for HIS file which is duly handed over, and he starts fiddling with a bunch of papers. The paper on which there’s a printed copy of a poetry also has a printed question on the top.
— Pratik Sinha (@free_thinker) May 13, 2019
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A few seconds ago, the anchor had asked the following question as seen in the video below.
— Pratik Sinha (@free_thinker) May 13, 2019
“में कवी नरेंद्र मोदी से जानना चाहता हूँ की क्या आपने पिछले पांच सालों में कुछ लिखा है?”
(I want to know from poet Narendra Modi if he’s written anything in the past five years?)
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The part question that is visible in the papers held by PM @narendramodi matches word-to-word to the question asked by the anchor Deepak Chaursaia.
— Pratik Sinha (@free_thinker) May 13, 2019
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Here’s a slowed down version of the video (sans audio) in which PM @narendramodi is flipping through the papers which were present in HIS file. pic.twitter.com/deg3JWksFz
— Pratik Sinha (@free_thinker) May 13, 2019
पत्रकारिता के समुदाय विशेष ने भी सामान्य ज्ञान को “ब्रेकिंग न्यूज़” बनाने में देर नहीं लगाई।
पर (प्रतीक सिन्हा और स्क्रॉल के) दुर्भाग्य से कुछ लोगों को आज भी याद है कि पत्रकारिता का असली स्वरूप क्या है। तो आदरणीय(?) प्रतीक सिन्हा जी, इंटरव्यू ऐसे ही होता है- यही नियम है इंटरव्यू का कि कोई भी औड़म-बौड़म सवाल झटके में नहीं पूछा जा सकता। इंटरव्यू में सवाल पहले से ही बताए जाते हैं, ताकि जिसका इंटरव्यू हो रहा है उसे अपने जवाब के लिए विस्तृत दस्तावेज, तथ्य आदि जुटाने का मौका मिल सके।
इंटरव्यू और प्रेस कॉन्फ्रेंस में अंतर
इंटरव्यू यानी साक्षात्कार लेने के लिए जब पत्रकारिता से ग्रेजुएशन कर रहा कोई छात्र अपने प्रिंसिपल के पास भी जाता है तो पहले से सवाल उसे बता देने होते हैं। साक्षात्कार का यही सामान्य शिष्टाचार भी होता है, और मान्य प्रणाली भी। अतः आप “अरे, देखो, मोदी के पास सवालों की लिस्ट पहले से थी” दिखाकर कोई नई बात नहीं बता रहे, बल्कि बड़े सधे तरीके से फेक न्यूज़ फैला रहे हैं, वह भी बिना खुद कोई झूठ बोले। जिन आम लोगों को पत्रकारिता के गहरे डिटेल्स नहीं पता, आप उन्हें बरगलाना चाहते थे। उन्हें ऐसा महसूस कराना चाहते हैं कि मोदी को सवाल पहले से मिले होना कोई नई या अनोखी (और गलत) बात हो गई, जबकि यही पत्रकारिता का दस्तूर है।
इंटरव्यू के पहले इंटरव्यू में किन-किन चीजों पर बात होगी, इसकी मोटी-मोटी रूपरेखा तैयार कर ली जाती है। प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री जैसे लोग, जिनका एक शब्द भी इधर-उधर होना मुसीबत कर सकता है, आम तौर पर सवालों की सूची पहले से ही ले लेते हैं। ऐसा इसलिए किया जाता है ताकि जिसका इंटरव्यू लिया जा रहा है उसे अपने जवाब के पक्ष में दस्तावेज, आँकड़े आदि जुटाने का समय मिल सके। फॉलो-अप सवाल भी जवाब में आए आँकड़ों/दस्तावेज के इर्द-गिर्द या फिर उनका सीधा खंडन करते हुए आँकड़े/दस्तावेज को केंद्र में रखकर ही होते हैं।
इसके अलावा उनके कार्यालय द्वारा हर सवाल की पड़ताल होती है- देखा जाता है कि कुछ ऐसा तो नहीं जिसे बिना संदर्भ के कहीं चिपका दिया जाए तो जनसामान्य के लिए ही समस्या खड़ी हो जाए। यहाँ तक कि राहुल गाँधी के एनडीटीवी को दिए गए दोनों (हिंदी और अंग्रेजी) ‘औचक’ इंटरव्यू के लिए भी एक मोटी रूपरेखा पहले से दी गई होगी।
इतने सब के बाद भी अंतिम इंटरव्यू प्रकाशित/प्रसारित होने के पहले जिसका इंटरव्यू हुआ है, उसे या उसके कार्यालय को अंतिम जाँच के लिए भेजा जाता है। वहाँ इस बात को चेक किया जाता है कि कहीं इंटरव्यू में कोई घालमेल, कुछ आगे-पीछे करना या कोई दुर्भावनापूर्ण एडिटिंग तो नहीं हुई है। याद करिए बाबा रामदेव का एनडीटीवी को ही दिया हुआ इंटरव्यू। अगर रामदेव ने उसे खुद चुपचाप रिकॉर्ड न कर लिया होता तो एनडीटीवी ने सब आगे-पीछे करके बाबा के शब्दों से ही फेक न्यूज़ चला दी थी।
यह पत्रकारिता की मानक पद्धति है- स्टैंडर्ड प्रोसीजर। और इसे ‘फिक्सिंग’ वही मान सकता है जो या तो पत्रकारिता के बारे में काला अक्षर भैंस बराबर हो, या जानबूझकर बना ‘बकलोल’।
लगे हाथ आपको प्रेस कॉन्फ्रेंस के बारे में भी बता देते हैं, जिसका आप इंटरव्यू के साथ घालमेल कर रहे थे। तो जनाब! ऐसा है कि प्रेस कॉन्फ्रेंस में भी पत्रकार झटके में सवाल तो पूछ सकता है लेकिन उसके भी अपने कुछ कायदे-कानून होते हैं। जैसे सवाल पहले कौन पूछेगा, कौन-कौन सवाल पूछेगा यह प्रेस कॉन्फ्रेंस कर रहे व्यक्ति का सहायक ही तय करता है, खुद से “पहले मैं, पहले मैं” नहीं करते। इसी तरह प्रेस कॉन्फ्रेंस अगर अंडे के आयात-निर्यात पर हो रही हो तो आप “वॉट अबाउट 2002”, “इनटॉलेरेंस”, “बालाकोट का सबूत क्या है?” नहीं पूछ सकते। वहाँ आपको अंडे के व्यापार से संबंधित सवाल ही पूछ सकते हैं। आपके जैसे पत्रकार तुर्रे खाँ बनने के लिए शायद पूछ भी लें उट-पटांग लेकिन जवाब नहीं मिलेगा, इसकी गारंटी है।
अगर ‘छुपाना’ होता तो कैमरे के सामने मोदी क्यों माँगते ‘फाइल’
चलिए, पत्रकारिता के कायदे वगैरह साइड में कर दीजिए, कॉमन सेंस की बात करते हैं। अगर मोदी कोई ‘गुनाह’ कर रहे होते, उनको सवाल पहले से मालूम होने की बात को ‘छुपाना’ ही होता तो क्या वे कैमरे पर फाइल माँगते? फिर इसके अलावा उनके कविता लेकर चलने का तुक क्या था? मोदी क्या कोई कुमार विश्वास जैसे फुलटाइम कवि, पार्टटाइम नेता हैं, जो अपनी कविताओं की डायरी लेकर चलते? या वाजपेयी जैसे कविता के लिए मशहूर नेता, जो पता होता कि सामने वाला एक कविता तो पूछ ही देगा? उनका कविता वाली फाइल कैमरे पर माँगना ही अपने आप में यह बता सकता है कि उन्हें सवाल पता होने की बात छिपानी नहीं थी।
‘सवाल फिक्स थे’ से ‘Scripted interview’ तक का सफर: तथ्य-आधारित फेक न्यूज़
मशहूर गणितज्ञ, लेखक और राजनीतिक टिप्पणीकार नासिम निकोलस तालेब ने एक बार पत्रकारों के ही संदर्भ में कहा था, “The Facts are True, the News is Fake” (तथ्य सही हैं पर खबर झूठी है)। पत्रकारिता का समुदाय विशेष आज इसे ही चरितार्थ कर रहा है। पहले प्रतीक सिन्हा ने पत्रकारिता के सामान्य-से तथ्य और आम चलन को मोदी के लिए बनाया गया कोई अपवाद दिखाने की कोशिश की, और उसके ऊपर एनडीटीवी की पत्रकार झूठ की चाशनी पोतकर सीधे-सीधे फेक न्यूज़ बना देती हैं। यह और बात है कि ‘बेचारी’ समोसा पत्रकारिता के लिए आज बहुत फेमस हो गईं।
मित्रों, ‘scripted interview’ क्या होता है जानने के लिए ये पढ़ें ?thread? https://t.co/bUyhnfKjJE
— Kadambini Sharma (@SharmaKadambini) May 13, 2019
क्या एक पत्रकार ने भी उन्हें कहा कि इतनी बार CM रहे, 5 साल PMरहे, स्क्रिप्ट की ज़रूरत नहीं इंटरव्यू के लिए।
— Kadambini Sharma (@SharmaKadambini) May 13, 2019
नहीं।
सिर्फ टिक मार्क कर रहे हैं
‘स्क्रिप्टेड इंटरव्यू’ का मतलब होता है सिर्फ सवाल ही तय नहीं हो बल्कि सवाल पूछने वाले ने ही जवाब भी बनाकर दिया हो – अपनी लॉबी, अपने मालिक के अनुसार। यह व्यावसायिक कदाचार होता है। पीएम को भूल जाइए, क्या अपने साथी पत्रकारों पर कदाचार जैसा संगीन आरोप लगाने के लिए सबूत है कोई कादम्बिनी शर्मा के पास? कोई सबूत है कि दीपक चौरसिया ने सवालों के जवाब भी भेजे, और मोदी को ‘ये वाली’ कविता भी भेजी कैमरे पर पढ़ने के लिए? अगर दीपक चौरसिया या न्यूज़ नेशन मानहानि का दावा कर दें तो ‘स्क्रिप्टेड’ शब्द कादम्बिनी शर्मा को भारी पड़ेगा…