जम्मू कश्मीर में आज (29 जून 2021) सुबह भारत पाक सीमा पर तीन ड्रोन को भारतीय एजेंसियों ने खदेड़ा है। ड्रोन के जरिए आतंक फ़ैलाने की ये नई साजिश बेहद खतरनाक है। इससे पहले इसी के जरिए रविवार (27 जून 2021) को जम्मू-कश्मीर पर केंद्र की राजनीतिक पहल के 4 दिन के भीतर ही जम्मू के वायुसेना अड्डे पर ड्रोन के दो हमले हुए। इन आतंकी कार्रवाई में कोई अधिक नुकसान तो नहीं पहुँचा पर इसका मतलब ये कतई नहीं लगाया जा सकता कि ये हमले खतरनाक नहीं हैं। इस पूरे घटनाक्रम की गहरी पड़ताल बहुत ज़रूरी है।
जम्मू के वायुसेना अड्डे पर 27 जून को तड़के अचानक दो ड्रोन आए थे। इनमें प्रत्येक में कोई 2 किलो विस्फोटक पदार्थ थे, जिसे वहाँ गिराने के बाद ये चले गए। हवाई अड्डे में इनसे छोटे विस्फोट हुए। जिस जगह हमला हुआ वह भारत-पाक सीमा से बहुत दूर नहीं है। इसी तरह सोमवार और मंगलवार को भी भारत पाक सीमा के कुछ हिस्सों में ड्रोन के जरिए आतंक फ़ैलाने की नाकाम कोशिश हुई है। क्या ये नए किस्म के हमले आतंकवादियों, अलगाववादियों और इस्लामी कट्टरपंथियों व पाकिस्तान की गंभीर हताशा के परिणाम हैं? या फिर ये जम्मू कश्मीर में आतंकवाद को फिर से एक नया रंग देने की कोशिश है?
पाकिस्तान की ISI अगस्त 2019 में अनुच्छेद 370 के खात्मे के बाद से कश्मीर घाटी में अपना असर खोती जा रही है। पिछले हफ्ते बृहस्पतिवार यानी 24 जून 2021 को जम्मू-कश्मीर के राजनीतिक दलों से केंद्र की जो बातचीत हुई उससे ऐसा लगा कि राज्य का माहौल पूरी तरह बदल सकता है। जम्मू में ड्रोन से किए गए विस्फोट ये बताते हैं कि पाकिस्तान अब आतंकवाद को बढ़ावा देने के लिए कश्मीरी युवक नहीं जुटा पा रहा है। इसीलिए अब उसने मानव रहित ड्रोन के इस्तेमाल से खून-खराबा करने का जिम्मा खुद अपने हाथ में ले लिया है। ये ड्रोन कहाँ से उड़ाए गए और इसके पीछे कौन आतंकवादी संगठन है? इसकी जाँच एजेंसियों के हाथ में है। देर-सबेर वे इस साजिश का पता लगा ही लेंगी। लेकिन, आतंकवाद के इस नए और खतरनाक हथियार के अंतर्निहित कारणों का विश्लेषण बेहद ज़रूरी है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बुलावे पर 24 जून को नई दिल्ली में जम्मू कश्मीर के राजनीतिक दलों- पीडीपी, नेशनल कॉन्फ्रेंस, कॉन्ग्रेस, बीजेपी, पैंथर्स पार्टी, पीपुल्स कॉन्फ्रेंस, सीपीएम पार्टी के नुमाइंदों और केंद्र के साथ बातचीत हुई। बातचीत के बाद जो बयान आए वे काफी आशावादी लगे। इससे जो संकेत निकले वह बड़े स्पष्ट हैं। पहला, किसी भी राजनीतिक दल ने इस बातचीत का बहिष्कार नहीं किया। दूसरा, सभी पार्टियों ने प्रधानमंत्री और गृह मंत्री की इस राजनीतिक पहल का आमतौर पर स्वागत किया। तीसरा, जम्मू कश्मीर में चुनाव प्रक्रिया शुरू करने और उसमें शामिल होने में सभी ने अपनी सहमति जताई।
गुजरे जमाने की बात हुआ अनुच्छेद 370
बैठक से एक बात और भी निकली कि सभी राजनीतिक दल वहाँ चुनाव क्षेत्रों के परिसीमन की प्रक्रिया में भाग लेने के लिए भी राजी हो गए। कुल मिलाकर इस बैठक में 370 को हटाने को लेकर कोई बड़ा मुद्दा नहीं बन पाया। यानी इन राजनीतिक दलों ने यह मान लिया है कि अब अनुच्छेद 370 का समाप्त होकर जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा ख़त्म होना इतिहास की बात हो गई है। 370 का हटाया जाना अब राजनीतिक हथियार के रूप में इस्तेमाल करने की निरर्थकता को अब इन पार्टियों ने परोक्ष रूप से लगता है स्वीकार कर लिया है।
यह स्वाभाविक है कि राजनीतिक दल जब बात करेंगे तो उनमें कई मतभेद भी होंगे, लेकिन बुनियादी राजनीतिक प्रक्रिया में हिस्सा लेने की हामी भरके सभी राजनीतिक दलों ने जम्मू-कश्मीर में आगामी चुनावों के लिए एक जमीन तैयार की है। इस बैठक का सबसे सकारात्मक परिणाम यही है।
हालाँकि, कई विशेषज्ञ कह रहे हैं कि बातचीत का न्योता देकर केंद्र सरकार झुक गई है। उनका तर्क है कि अनुच्छेद 370 हटाने के बाद सरकार ने कड़ा रुख अपनाया था। वहाँ के नेताओं को गिरफ्तार भी किया गया था। प्रधानमंत्री अगर अब उन्हीं नेताओं से बातचीत कर रहे हैं तो इसका मतलब है कि उन्हें झुकना पड़ा है। हालाँकि यह तर्क समझ में नहीं आता, क्योंकि अनुच्छेद 370 हटाने के बाद राजनीतिक प्रक्रिया शुरू करने के लिए केंद्र सरकार की तत्परता को उसका झुकना कैसे बताया जा सकता है? असलियत में तो यह उसकी नीतियों की सफलता का ही द्योतक है। इस बैठक में कई पूर्व मुख्यमंत्री शामिल थे जो अनुच्छेद 370 को लेकर पहले बड़े बड़े बयान देते रहे हैं। वे ताल ठोंक कर कहते रहे हैं कि अगर अनुच्छेद 370 हटा तो वे ईंट से ईंट बजा देंगे। अनुच्छेद 370 हट गया तो वे ईंट तो क्या घाटी में एक कंकड़ भी नहीं हिला पाए।
उनका इस बैठक में आना और आगे होने वाली राजनीतिक प्रक्रिया में भाग लेने को सहमति देना बताता है कि ये नेता भी समझ चुके हैं कि अब जम्मू-कश्मीर का खास दर्ज़ा दोबारा वापस नहीं आने वाला। ये विश्लेषक भारत की इस बड़ी कूटनीतिक विजय को शायद पचा नहीं पा रहे। उन्हें लगता ही नहीं था कि जम्मू-कश्मीर से हिंसा, राजनीतिक मारामारी, आतंकवाद और विदेशी हस्तक्षेप को खत्म भी किया जा सकता है।
वैसे देखा जाए तो अनुच्छेद 370 समाप्त होने के बाद जम्मू कश्मीर में राजनीतिक प्रक्रिया का शुरू होना यह नई बात नहीं है। इससे पहले केंद्र सरकार ग्राम पंचायतों के चुनाव करवाकर यह सिद्ध कर चुकी है कि जम्मू-कश्मीर के अंदर एक नया जमीनी नेतृत्व तैयार हो रहा है। इन पंचायत चुनावों में 51.7 % से ज्यादा लोगों ने हिस्सा लिया। कुल 280 जिला पंचायत सदस्य चुने गए जिनमें 100 महिलाएँ भी चुनी गईं। वहाँ बिना हिंसा के चुनाव भी हो सकते हैं पहले ऐसा कभी सोचा नहीं गया था। इस सफलता से वहाँ राजनीतिक प्रक्रिया की शुरुआत तो हो ही चुकी थी। इसलिए चाहे वह पीडीपी हो चाहे वह नेशनल कॉन्फ्रेंस अथवा अन्य राजनीतिक दल वे समझ चुके हैं कि अगर इसमें उन्होंने हिस्सा नहीं लिया तो वह वहाँ पर अप्रासंगिक हो सकते हैं।
ध्यान देने की बात है कि अनुच्छेद 370 समाप्त होने के बाद जम्मू कश्मीर के अंदर कोई बड़ा बवाल नहीं पैदा हुआ। जो राजनीतिक नेता अनुच्छेद 370 की ओट में यह कहते थे कि उनकी लाश पर ही जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा समाप्त किया जा सकता है, उन्हें भी अब एहसास हो गया है कि अलगाववाद, हिंसा, आतंकवाद और इस्लामी कट्टरवाद की जो फसल राज्य के अंदर पिछले कई दशकों से बोई जा रही थी वह सूखने लगी है।
इन गर्मियों में कश्मीर घाटी में पत्थरबाजी का प्रायः नदारद हो जाना क्या बताता है? पाकिस्तान की तमाम कोशिशों के बावजूद वहाँ कोई बड़ा आंदोलन खड़ा नहीं हो पाने के संकेत बड़े स्पष्ट है। कुल मिलाकर वहाँ हिंसा और आतंक के मामलों में भी कमी आने का मतलब है कि जम्मू कश्मीर के लोग देश के अन्य हिस्सों की तरह जमीनी लोकतंत्र और विकास की राह देख रहे थे। जम्मू-कश्मीर के कुछ दलों और परिवारों ने वहाँ हिंसा और आतंकवाद की आड़ लेकर अपनी मठाधीशी कायम की हुई थी। हिंसा और आतंक का चक्र उन्हें खूब रास आता था। वहाँ का अवसरवादी राजनीतिक नेतृत्व इस दुश्चक्र को ढाल की तरह इस्तेमाल कर भारत सरकार और भारत की जनता को तकरीबन ब्लैकमेल करते रहे हैं।
24 जून की बैठक के संकेत बहुत साफ है यह कि अब जनता के साथ वहाँ के राजनीतिक दल भी जम्मू-कश्मीर के इस नए अध्याय में देश की ताल से ताल मिलाने को तैयार हैं। 28 जून को जम्मू के वायुसेना अड्डे पर ड्रोन के हमलों को कश्मीर घाटी में तेज़ी से चल रही इस सामान्यीकरण की प्रक्रिया से जोड़कर देखा जा सकता है। पिछले कई दशकों से चल रहा आतंकवाद, इस्लामी कट्टरवाद और अलगाववाद का घातक खेल पाकिस्तान और कुछ स्थानीय तत्वों ने मिलकर चला रखा था। इसी षड्यंत्र के तहत पाकिस्तान से हथियार और पैसा आता रहा और घाटी में कट्टरपंथी इस्लामिक सोच को पानी मिलता रहा।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने और गृह मंत्री अमित शाह ने दूरंदेशी और साहस दिखाते हुए अनुच्छेद 370 को समाप्त करने का अकल्पनीय फैसला अगस्त 2019 में लिया था। जिस तरह से पूरे देश ने उनका साथ दिया इससे अब पाकिस्तान में घोर निराशा है। पाकिस्तान सेना की आतंकवाद की फैक्ट्री के ढाँचे को इससे गहरी चोट पहुँची है। दुनिया में भी इस पर कोई खास हलचल नहीं हुई थी, क्योंकि अंतरराष्ट्रीय जनमत भी समझ गया है कि कश्मीर के नाम पाकिस्तान पर पूरी दुनिया में इस्लामी कटटरवाद और आतंकवाद को बढ़ावा दे रहा है।
पाकिस्तानी सेना, इस्लामी कट्टरवाद और आतंक की दूकान चलाने वालों का धंधा अब मंदा पड़ने लगा है। आतंक की इसी बुझती हुई आग को हवा देने की कोशिश थे जम्मू के ये ड्रोन हमले। भारत सरकार और देश के लोगों को अभी काफी समय तक सतर्क रहना होगा, ताकि इस्लामिक कट्टरपंथी विचार से प्रेरित आतंकवादी संगठन और पाकिस्तान की सेना फिर से जम्मू कश्मीर में नफरत की फसल को न बो पाए।