कोरोना संक्रमण से बचाव और इम्यूनिटी बढ़ाने के लिए इस समय लाखों लोग गिलोय का सेवन कर रहे हैं। इसी बीच हाल में एक रिपोर्ट सामने आई जिसने बताया कि मुंबई में सितंबर से दिसंबर 2020 के बीच कम से कम 6 ऐसे रोगी सामने आए जिनके लिवर को गिलोय के सेवन से गंभीर नुकसान पहुँचा था, लेकिन आयुष मंत्रालय ने इस भ्रामक स्टडी को खारिज कर दिया है।
यह स्टडी जर्नल ऑफ क्लिनिकल एंड एक्सपेरिमेंटल हेपेटोलॉजी में प्रकाशित हुई थी। इसका शीर्षक ‘कोविड-19 महामारी में हर्बल इम्यून बूस्टर-इंड्यूस्ड लीवर इंजरी- एक केस सीरीज’ था। इस अध्ययन को आभा नागराल, कुणाल अध्यारु, ओंकार एस रुद्र, अमित घरत और सोनल भंडारे ने लिखा था। यह अध्ययन सितंबर और दिसंबर 2020 के बीच किया गया था। इसके बाद इस साल मार्च तक और 2 जुलाई को इसे प्रकाशित किया गया।
अध्ययन में बताया गया, “हमने (लेखकों) तीव्र हेपेटाइटिस और गिलोय युक्त एक विशिष्ट फॉर्मूलेशन की मदद से हाल ही में जोखिम लेते हुए 18 वर्ष से अधिक आयु के बाहरी रोगियों और इन मरीजों को शामिल किया। हमने सीरोलॉजिकल जाँच और विल्सन रोग (अनुवांशिक बीमारी) द्वारा एक्यूट वायरल हेपेटाइटिस ए, बी, सी और ई को भी बाहर रखा। मरीजों के अल्ट्रासोनोग्राफी और यकृत बायोप्सी सहित कई प्रकार की जाँच की गई।” इसके बाद उन्होंने इस बात का दावा किया कि गिलोय के सेवन से लीवर को खतरा हो सकता है।
इस विवादास्पद अध्ययन को इंडिया टुडे और द टाइम्स ऑफ इंडिया सहित कई समाचार पोर्टलों द्वारा कवर किया गया था।
आयुष मंत्रालय ने शोध पत्र में बताई खामियाँ
अब इसी रिपोर्ट पर एक प्रेस रिलीज जारी करते हुए आयुष मंत्रालय ने कहा कि गिलोय जैसी जड़ी-बूटी को जहरीली प्रकृति का बताने से पहले, लेखकों को पौधों की सही पहचान करने की कोशिश करनी चाहिए थी, जो उन्होंने नहीं की। आयुष मंत्रालय ने अपने बयान में कहा, “इस अध्ययन में उल्लेख किया गया है कि आमतौर पर गिलोय ओई गुडुची के रूप में जानी जाने वाली जड़ी-बूटी लिनोसपोर कॉर्डिफोलिया (आईसी) के इस्तेमाल से मुंबई में छह रोगियों के लीवर फेल हो गए।”
मंत्रालय ने कहा कि गिलोय को लिवर फेल होने से जोड़ना भारत की पारंपरिक चिकित्सा प्रणाली के लिए भ्रामक और विनाशकारी दुष्प्रचार करना है, क्योंकि आयुर्वेद में जड़ी-बूटी गुडुची या गिलोय का उपयोग लंबे समय से किया जा रहा है। विभिन्न विकारों के मामले में गिलोय का प्रभाव बेहद अच्छा रहा है।
आयुष मंत्रालय के मुताबिक, “अध्ययन का विश्लेषण करने के बाद, यह भी देखा गया कि अध्ययन के लेखकों ने जड़ी-बूटी की सामग्री का विश्लेषण नहीं किया है, जिसका रोगियों द्वारा सेवन किया गया था। यह सुनिश्चित करना लेखकों की जिम्मेदारी बन जाती है कि रोगियों द्वारा ली जाने वाली जड़ी-बूटी गिलोय है कि कोई अन्य जड़ी-बूटी।” उन्होंने कहा कि वास्तव में, ऐसे कई अध्ययन हैं, जो बताते हैं कि जड़ी-बूटी की सही पहचान न करने से गलत परिणाम हो सकते हैं। एक समान दिखने वाली जड़ी-बूटी टिनोस्पोरा कॉर्डिफोलिया का लिवर पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।
Before labeling a herb, such as Giloy, with such toxic nature, authors should’ve tried to correctly identify plants following the standard guidelines, which they didn’t: Ministry of AYUSH on a study mentioning use of Giloy, resulted in liver failure in 6 patients in Mumbai pic.twitter.com/YR796mkcNY
— ANI (@ANI) July 7, 2021
मंत्रालय ने बताया कि लेखकों ने जड़ी-बूटियों की प्रजातियों की सही पहचान नहीं की। ऐसे में यह स्पष्ट नहीं है कि रोगियों ने कौन सी खुराक ली थी या उन्होंने इस जड़ी बूटी को अन्य दवाओं के साथ लिया था या नहीं। अध्ययन में रोगियों के पिछले और वर्तमान मेडिकल रिकॉर्ड को ध्यान में नहीं रखा गया है। अधूरी जानकारी पर आधारित प्रकाशन गलत सूचना के द्वार खोलेंगे और आयुर्वेद की सदियों पुरानी प्रथाओं को बदनाम करेंगे। आयुष मंत्रालय ने यह भी स्पष्ट किया है कि गिलोय और इसके सुरक्षित उपयोग पर सैकड़ों अध्ययन हैं। गिलोय आयुर्वेद में सबसे अधिक निर्धारित दवाओं में से एक है। किसी भी क्लीनिकल स्टडी में इसके इस्तेमाल से कोई भी प्रतिकूल घटना सामने नहीं आई है।
प्रेस रिलीज बताया गया है कि आयुष मंत्रालय ने जर्नल ऑफ क्लिनिकल एंड एक्सपेरिमेंटल हेपेटोलॉजी में प्रकाशित एक अध्ययन के आधार पर एक मीडिया रिपोर्ट पर ध्यान दिया है, जो कि लिवर के अध्ययन के लिए इंडियन नेशनल एसोसिएशन की एक सहकर्मी की समीक्षा की गई पत्रिका है। इस अध्ययन में उल्लेख किया गया है कि आमतौर पर गिलोय या गुडुची के रूप में जानी जाने वाली जड़ी बूटी टिनोस्पोरा कॉर्डिफोलिया (टीसी) के उपयोग से मुंबई में छह मरीजों में लिवर फेलियर का मामला देखने को मिला।