राजस्थान में कॉन्ग्रेस की सरकार पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं। एक तरफ जहाँ प्रदेश के कृषि मंत्री अपना इस्तीफा देकर और फोन स्विच ऑफ कर के नैनीताल में मंदिरों के दर्शन को निकल भागे हैं, दूसरी तरफ मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट और प्रदेश प्रभारी अविनाश पांडे दिल्ली पहुँचे, जहाँ कॉन्ग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गाँधी ने उनसे मिलने से इनकार कर दिया। कॉन्ग्रेस अभी राष्ट्रीय स्तर पर नेतृत्व संकट से जूझ रही है और राहुल गाँधी सहित गाँधी परिवार के अन्य वफादार नेता लगातार बैठक कर रहे हैं। अभी हाल ही में ख़बर आई थी कि राहुल गाँधी ने अशोक गहलोत, पी चिदंबरम और कमलनाथ जैसे नेताओं को आड़े हाथों लिया।
राहुल गाँधी ने इन तीनों नेताओं को ‘पुत्र-प्रेम’ को पार्टी से ऊपर रखने का आरोप लगाया। राहुल गाँधी का मानना था कि अगर इन नेताओं ने अपने बेटों के क्षेत्रों में सारा समय खपाने की जगह पार्टी के चुनाव प्रचार पर ध्यान दिया होता तो शायद पार्टी को इतना नुकसान नहीं होता। राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की रैलियों की पड़ताल करें तो आँकड़े भी इसकी पुष्टि करते हैं। अशोक गहलोत ने कॉन्ग्रेस के लिए बाकी 24 सीटों पर जितनी मेहनत की, उसका ढाई गुना सिर्फ़ जोधपुर सीट को दिया क्योंकि उस सीट से उनके बेटे वैभव गहलोत चुनाव लड़ रहे थे।
खतरे में कुर्सी @ashokgehlot51 की कुर्सी, राजस्थान में 130 रैलियों में से 93 सिर्फ बेटे के समर्थन में की, @RahulGandhi नाराजhttps://t.co/Mhgr9kRhcD
— ABP न्यूज़ हिंदी (@abpnewshindi) May 28, 2019
जोधपुर अशोक गहलोत की पुरानी राजनीतिक कर्मभूमि रही है। वह जोधपुर लोकसभा सीट को पाँच बार जीत चुके हैं। 1991, 1996 और 1998 लोकसभा चुनावों में उन्होंने इसी सीट से जीत की हैट्रिक लगाई थी। लेकिन, अब सब बदल गया है। रिपब्लिक टीवी की ख़बर के अनुसार, ताज़ा लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान गहलोत ने प्रदेश में कुल 130 रैलियाँ की, जिनमें से 93 रैलियाँ उन्होंने अकेले अपने बेटे वैभव के लिए कीं। अशोक गहलोत ख़ुद जोधपुर लोकसभा के अंतर्गत आने वाले सरदारपुरा विधानसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते हैं। जोधपुर लोकसभा से 5 बार जीत चुके गहलोत ने सरदारपुरा विधानसभा से भी 5 बार जीत दर्ज की है।
इसी क्षेत्र में अब तक 10 चुनाव जीत चुके गहलोत की 93 रैलियों का कोई असर नहीं हुआ और उनके ख़ुद के ही विधानसभा क्षेत्र में उनके बेटे लीड नहीं ले सके। सरदारपुरा में वैभव गहलोत लगभग 18,000 मतों से पीछे छूट गए। मुख्यमंत्री के एक ही क्षेत्र में सीमित रह जाने का खामियाजा पार्टी को उठाना पड़ा और पूरे राजस्थान में कॉन्ग्रेस का सूपड़ा साफ़ हो गया। राज्य की सत्ताधारी पार्टी का इस तरह खाता भी न खोल पाना अशोक गहलोत के प्रति लोगों के असंतोष का भी परिचायक बना।
कुल मिलाकर देखें तो मुख्यमंत्री ने 71% रैलियाँ सिर्फ़ अपने बेटे के लिए की, बाकी की 29% रैलियाँ उन्होंने जोधपुर के अलावा अन्य क्षेत्रों में की। अब जब मंत्रियों द्वारा जवाबदेही तय करने की माँग की जा रही है, गहलोत पर दबाव बढ़ना तय है। जोधपुर में भाजपा उम्मीदवार गजेन्द्र सिंह शेखावत को 788888 मत मिले, वैभव गहलोत 514448 मत पाकर क़रीब पौने 3 लाख मतों से पीछे छूट गए। शेखावत को 58.6% मत मिले जबकि वैभव को कुल मतों का 38.21% हिस्सा ही मिल पाया। कई मीडिया रिपोर्ट्स में कहा जा रहा है कि अशोक गहलोत की इस मनमानी और लापरवाही के लिए पार्टी आलाकमान उन पर इस्तीफे का दबाव बना रहा है, जिसके लिए वह तैयार नहीं हैं। यही कारण है कि राहुल उनसे नहीं मिले।