आज माननीय उच्चतम न्यायालय ने प्रशांत कनौजिया को तुरंत जमानत पर रिहा करने का आदेश दिया। कोर्ट ने कहा, “हम उसके (कनौजिया की) ट्वीट की सराहना नहीं करते हैं लेकिन उसे (कनौजिया को) सलाखों के पीछे नहीं डाला जा सकता।”
बता दें कि पत्रकार प्रशांत कनौजिया को उनके एक ट्वीट के मामले में गिरफ्तार किया गया था जिसमें एक वीडियो है। वीडियो में एक महिला उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के बारे में आपत्तिजनक बातें कह रही थी। इसी ट्वीट को पुलिस ने मुख्यमंत्री की छवि खराब करने वाला माना और प्रशांत कनौजिया को गिरफ्तार कर लिया।
हालाँकि उत्तर प्रदेश सरकार की तरफ से कोर्ट में प्रस्तुत हुए अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल विक्रमजीत बनर्जी ने यह दलील दी कि कनौजिया को इसलिए गिरफ्तार किया गया ताकि यह एक उदाहरण बन सके और भविष्य में ऐसी घटना दोबारा न हो। लेकिन कोर्ट ने इस दलील को ख़ारिज कर दिया। कोर्ट ने कहा कि अनुच्छेद 19 और 21 के अंतर्गत मौलिक अधिकारों से समझौता नहीं हो सकता।
जहाँ एक ओर उच्चतम न्यायालय ने पत्रकार प्रशांत कनौजिया को आपत्तिजनक ट्वीट करने के मामले में तुरंत जमानत दे दी वहीं दूसरी तरफ एक दूसरे लेकिन मिलते-जुलते मामले में एक वर्ष पहले मद्रास उच्च न्यायालय ने भाजपा नेता एस वी शेखर को अग्रिम जमानत देने से मना कर दिया था।
दरअसल शेखर ने अपने फेसबुक अकॉउंट पर एक पोस्ट शेयर की थी जिसमें महिला पत्रकारों को लेकर आपत्तिजनक टिप्पणी की गई थी। हालाँकि शेखर ने अदालत में यह दलील दी थी कि वह पोस्ट उन्होंने बिना पढ़े ही शेयर की थी। लेकिन उनकी इस दलील को कोर्ट ने नहीं माना था और कहा कि पोस्ट को शेयर करना उसका समर्थन करने जैसा है।
यहाँ दो अदालतों के दो जजमेंट सामने हैं जिनमें एक ही जैसा मामला है लेकिन इसे न्याय व्यवस्था की विडंबना ही कहा जाएगा कि एक मामले में एक पत्रकार सब कुछ जानते हुए एक नेता और मुख्यमंत्री के खिलाफ आपत्तिजनक पोस्ट ट्वीट करता है जिसपर उसे उच्चतम न्यायालय से जमानत मिल जाती है। लेकिन उच्च न्यायालय एक नेता को पत्रकारों के खिलाफ अनजाने में शेयर किए गए एक पोस्ट के लिए जमानत देने से मना कर देता है।
मजेदार बात यह भी है कि एक साल पहले आए मद्रास उच्च न्यायालय के फैसले में न्यायालय ने कहा था कि सोशल मीडिया पर फॉरवर्ड किया गया कोई मेसेज या पोस्ट उसका समर्थन करने जैसा है। लेकिन एक साल बाद माननीय उच्चतम न्यायालय ने अपने फैसले में इस पक्ष को नजरअंदाज कर दिया।
Justice Banerjee on
— rishabh (@pint_f_gluttony) June 11, 2019
Pic 1: ODD DAY : Priyanka Sharma's meme on Mamata
Pic 2: EVEN DAY :Prashant Kanojia's Fake News on Yogi.
Duplicity of the court knows no bound right ?#PrashantKanojia #SupremeCourt pic.twitter.com/mERsep6kh1
नेताओं पर आपत्तिजनक ट्वीट करने की बात की जाए तो कुछ दिन पहले ऐसे ही मामले में प्रियंका शर्मा को बंगाल पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया था जब शर्मा ने ममता बनर्जी का मीम (meme) शेयर किया था। उस समय कोर्ट ने कहा था कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता से समझौता नहीं किया जा सकता लेकिन यह किसी दूसरे व्यक्ति के अधिकारों से नहीं टकराना चाहिए।