राजनीति वो चीज है, जो दोस्त को दुश्मन और दुश्मन को दोस्त बना देती है। कभी-कभी ये प्रतिद्वंद्वी को दोस्त, फिर उस दोस्त को दुश्मन, इसके बाद उस दुश्मन को दोस्त और फिर दोस्त को प्रतिद्वंद्वी बना देती है। कुछ ऐसा ही उदाहरण ‘गेस्ट हाउस कांड’ है है। उत्तर प्रदेश में सपा-बसपा ने कभी मिल कर सरकार बनाई थी और इस कांड के कारण दोनों दुश्मन बन गए। ‘मोदी लहर’ को थमने के लिए ढाई दशक बाद फिर दोस्त बने, लेकिन सफलता न मिलने के कारण वापस अलग हो गए।
ऐसे में आपके लिए ये जानना ज़रूरी है कि ये ‘गेस्ट हाउस कांड’ है क्या। आज इस घटना को भले 27 वर्ष हो गए, लेकिन उत्तर प्रदेश की राजनीति का ये अध्याय कभी पुराना होने का नाम नहीं लेता। अप्रैल 2019 में लोकसभा चुनावों के लिए पचार-प्रसार जोरों पर था, तब सपा संस्थापक मुलायम सिंह यादव और बसपा सुप्रीमो मायावती का मैनपुरी में एक मंच पर आकर एक-दूसरे की प्रशंसा करना एक बड़ी खबर बन गई, क्योंकि 90 के दशक के मध्य की वो घटना लोगों के जेहन में अब भी हैं।
2 जून, 1995: क्या है ‘गेस्ट हाउस कांड’ और मायावती के साथ क्या हुआ था
90 के दशक का शुरुआत वो समय था जब राम मंदिर के लिए आंदोलन अपने चरम पर था और उत्तर प्रदेश की राजनीति में भाजपा ने शीर्ष स्थान बनाया हुआ था। 1993 में भाजपा को रोकने के लिए मुलायम सिंह यादव की सपा और कांशीराम की बसपा ने गठजोड़ किया। तब ‘मिले मुलायम कांशीराम, हवा में उड़ गए जय श्री राम’ वाला नारा भी इन दोनों दलों ने उछाला था। उत्तराखंड तब उत्तर प्रदेश से कट कर अलग नहीं हुआ था और सीटों की संख्या 422 हुआ करती थीं।
जहाँ सपा ने 256 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे, बसपा ने 164 सीटें अपने हिस्से में पाई। चुनाव में इस गठबंधन की जीत हुई। कहा जाता है कि मुख्यमंत्री पद के लिए दोनों दलों के बीच ढाई-ढाई साल की सहमति बनी थी। विधानसभा में सपा को 109 और बसपा को 67 सीटें मिली थीं, ऐसे में पहले मुलायम सिंह यादव मुख्यमंत्री बने। लेकिन, मनमुटाव के कारण 2 जून, 1995 को बसपा ने समर्थन वापसी की घोषणा कर दी, जिससे मुलायम सिंह यादव की सरकार गिर गई।
लखनऊ के मीराबाई मार्ग स्थित स्टेट गेस्ट हाउस का कमरा नंबर 1 उस समय मायावती का ठिकाना था। सरकार का अल्पमत में आना सपा वालों को रास नहीं आया और पार्टी के विधायक अपने कार्यकर्ताओं के साथ मायावती जहाँ ठहरी थीं, वहाँ कूच कर गए। कमरे में बैठ कर अपने विधायकों के साथ बैठक कर रहीं मायावती को घेर लिया गया और उन पर हमला कर दिया गया। दोपहर के तीन बजते-बजते समाजवादी पार्टी के नेताओं ने वहाँ अपना कब्ज़ा जमा लिया था।
समाजवादी पार्टी के नेता चिल्ला-चिल्ला कर मायावती को गालियाँ बक रहे थे। बसपा विधायकों ने उन्हें रोकने की कोशिश की तो उन पर ही लात-घुसे बरसने लगे। 5 बसपा विधयकों को घसीटते हुए गाड़ी से मुख्यमंत्री आवास ले जाया गया। मारपीट कर कइयों से कोरे कागज पर ही हस्ताक्षर करा लिया गया। रात भर उन्हें बंदी बना कर रखा गया। वरिष्ठ बसपा नेता आरके चौधरी के साथ मारपीट हुई। वो किसी तरह कमरे में बंद हुए। कुछेक पुलिसकर्मियों को छोड़ दें तो पूरा पुलिस-प्रशासन सपा के साथ था।
अतिथि गृह की बिजली-पानी की सप्लाई काट दी गई थी और तत्कालीन लखनऊ एसएसपी आराम से सिगरेट फूँक रहे थे। मुख्यमंत्री कार्यालय की धमकी थी कि बल प्रयोग न किया जाए। जिला मजिस्ट्रेट ने इसके खिलाफ विरोध जताया तो आधी रात में उनका तबादला कर दिया गया। यही वो घटना थी, जिसने मायावती और मुलायम सिंह यादव को जानी दुश्मन बना दिया था। भाजपा और केंद्र सरकार के हस्तक्षेप से मामला शांत हुआ। मायावती और उनके साथी नेता कमरे से बाहर निकले को तैयार नहीं थे, ऐसे में उन्हें बार-बार यकीन दिलाना पड़ा कि अब खतरा टल गया है।
भाजपा विधायक ब्रह्मदत्त द्विवेदी: एक संघी ने जान पर खेल कर दलित महिला को गुंडों से बचाया
आज दलितों की बात करने वाली समाजवादी पार्टी तब एक दलित नेता पर हमले को लेकर चुप रहती है। सपा के गुंडों ने मायावती के साथ मारपीट की और उनके कपड़े तक फाड़ डाले। एक महिला की आबरू से खुलेआम खिलवाड़ किया गया। मायावती को एक कमरे में बंद कर दिया गया था। ऐसे में उस उन्मादी भीड़ के बीच भाजपा के विधायक और RSS से जुड़े रहे ब्रह्मदत्त द्विवेदी ने अपने बहादुरी का प्रदर्शन किया और वहाँ पहुँच कर मायावती को गुंडों से बचाया।
दबंग नेता की छवि वाले ब्रह्मदत्त द्विवेदी ने सपा के नेताओं और कार्यकर्ताओं को पीछे हटने के लिए मजबूर कर दिया। इसी घटना के बाद से मायावती उन्हें अपना भाई मानने लगी थीं और उनके खिलाफ कभी बसपा ने अपने उम्मीदवार नहीं खड़ा किए। ब्रह्मदत्त द्विवेदी चूँकि प्रशिक्षित संघी थे, उन्हें लाठी चलाना और लड़ाई की कलाबाजियाँ भी बखूबी आती थीं, जिनका उन्होंने सही समय पर इस्तेमाल किया – अपनी जान पर खेल कर। हमेशा भाजपा के खिलाफ रहीं मायावती ने ब्रह्मदत्त द्विवेदी के लिए चुनाव प्रचार तक किया
ये भी जानने लायक है कि ब्रह्मदत्त द्विवेदी की 10 फरवरी, 1997 को हत्या कर दी गई थी। इस हत्याकांड में गैंगस्टर संजीव माहेश्वरी और सपा के पूर्व विधायक विजय सिंह का नाम सामने आया था। दोनों को उम्रकैद की सज़ा सुनाई गई। हालाँकि, निचली अदालतों से चलते-चलते ये मामला अब सुप्रीम कोर्ट में लंबित है। मायावती इस हत्याकांड के बाद फूट-फूट कर रोई थीं। 1977 और 1985 में फर्रुखाबाद विधानसभा से जीत दर्ज करने वाले द्विवेदी ने 1991, 1993 और 1996 में वहाँ से हैट्रिक भी लगाई थी।
उस हत्याकांड में उनके अंगरक्षक ब्रजकिशोर तिवारी की भी जान चली गई थी। उनकी हत्या के बाद भाजपा ने उनकी पत्नी प्रभा द्विवेदी को फर्रुखाबाद से उम्मीदवार बनाया था। तब मायावती ने ब्रह्मदत्त द्विवेदी को ‘शहीद’ बताते हुए उनके लिए लोगों से वोट डालने की अपील की थी। 2017 में भाजपा ने उनके बेटे मेजर सुनील दत्त त्रिवेदी को टिकट दिया और वो यहाँ से जीत कर विधायक बने। ब्रह्मदत्त राम मंदिर आंदोलन में भी सक्रिय थे और 1971 में वार्ड संख्या 6 से सभासद चुने जाने के बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़ कर नहीं देखा।
गेस्ट हाउस कांड के 24 वर्षों बाद फिर एक हो गए थे मायावती और मुलायम सिंह यादव
इस मामले में लखनऊ के हजरतगंज पुलिस थाने में मुलायम सिंह यादव, शिवपाल सिंह यादव, सपा के वरिष्ठ नेता धनीराम वर्मा, मोहम्मद आजम खान और बेनी प्रसाद वर्मा जैसों के खिलाफ 3 मुक़दमे दर्ज किए गए थे। फोटोग्राफर्स की कई तस्वीरें बतौर सबूत पेश की गईं। CB-CID ने इस मामले की जाँच अपने हाथ में ली। सरकारें बदलती रहीं और ये मुकदमा लम्बा खिंचता रहा। लेकिन, 2019 में ‘मोदी लहर’ को रोकने के लिए जब दोनों नेता साथ आए तो मायावती ने ये मुक़दमे वापस ले लिए थे।
हालाँकि, इसके बावजूद 2019 के लोकसभा चुनाव में दोनों दलों को अच्छे परिणाम नहीं मिले। हाँ, बसपा ज़रूर 2014 के शून्य से 10 पर पहुँच गई। लेकिन, सपा 5 की 5 पर ही अटकी रह गई। भाजपा ने फिर से फिर से 62 सीटें अपने नाम कर ली। परिणाम ये हुआ कि सपा-बसपा का गठबंधन, जिसे राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी ‘बुआ-बबुआ’ भी कहते हैं, टूट गई। अक्टूबर 2020 में ‘बबुआ’ ने ‘बुआ’ को धोखा देते हुए बसपा के 7 विधायकों को तोड़ कर अपनी पार्टी में मिला लिया।
1995: Mayawati was in guest house when SP workers’ mob marched in, vandalised room, said casteist-sexual slurs & beat her
— Anshul Saxena (@AskAnshul) November 8, 2019
Then BJP’s Brahm Dutt saved Mayawati & escorted her safely
1997: SP goons killed Dutt
2019: Mayawati drops guest house case against SP leader Mulayam Singh
गेस्ट हाउस कांड में जिस तरह के नारे लग रहे थे, उनमें चर्मकार समाज के लिए गलत शब्दों का इस्तेमाल करते हुए ‘ये पागल हो गए है, हमें उन्हें सबक सिखाना होगा’ जैसे आपत्तिजनक नारे भी थे। बसपा विधायकों के परिवारों को खत्म करने की बातें की जा रही थीं। ‘इस च#@र (जातिसूचक, गाली के सन्दर्भ में) औरत को उसकी माँद से घसीट कर निकालो’ जैसी भद्दी और भड़काऊ बातें की जा रही थीं। इसके बाद भाजपा के समर्थन से मायावती की सरकार बनी। उन्होंने एक समिति बना कर जाँच का जिम्मा सौंपा। 74 लोगों के खिलाफ आरोप-पत्र भी दायर हुए।