Saturday, April 27, 2024
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गावस्कर, सचिन सब रिटायर हुए…: गाँधी-वाड्रा फैमिली से कपिल सिब्बल ने पूछे मुश्किल सवाल, कहा- घर की नहीं, सबकी कॉन्ग्रेस चाहिए

"हमने जो हार देखी है, उसके बाद नेतृत्व को यह स्थान किसी और के लिए छोड़ देना चाहिए जो निर्वाचित होगा और नामांकित नहीं होगा। उस व्यक्ति को प्रदर्शन करने दें।"

कॉन्ग्रेस पार्टी को पाँच राज्यों के विधानसभा चुनावों में एक बार फिर बुरी तरह हार का सामना करना पड़ा। इसके बाद भी जिम्मेदारी और मंथन के नाम पर पार्टी के अंदर कोई खास परिवर्तन नहीं देखने को मिला। कॉन्ग्रेस से टूटकर अलग हुआ छोटा ग्रुप जी-23 के सदस्य जरूर गुपचुप तरीके से दिल्ली में पार्टी नेता गुलाम नबी आज़ाद के घर मीटिंग करते नजर आए। उन्हीं में से एक कपिल सिब्बल ने इंडियन एक्सप्रेस से बात करते हुए बहुत से मुद्दों पर अपने विचार रखें हैं। उनका साफ कहना है कि शीर्ष नेतृत्व सपनों की दुनिया में है। हमें घर की कॉन्ग्रेस नहीं बल्कि सबकी कॉन्ग्रेस चाहिए।

इंडियन एक्सप्रेस से हालिया विधानसभा चुनाव परिणामों पर बात करते हुए उन्होंने कहा, “परिणामों ने मुझे कभी आश्चर्यचकित नहीं किया। हम 2014 से नीचे की ओर जा रहे हैं। हमने राज्य दर राज्य खोया है। जहाँ हम सफल हुए वहाँ भी सबको साथ नहीं रख पाए। इस बीच कुछ प्रमुख लोगों का पलायन हुआ है…जिनमें नेतृत्व की क्षमता थी… वे कॉन्ग्रेस से दूर जा रहे हैं। 2022 के विधानसभा चुनाव में भी नेतृत्व के करीबी लोगों ने पार्टी का साथ छोड़ दिया। मैं आँकड़े देख रहा था कि 2014 से अब तक लगभग 177 सांसद और विधायक और 222 उम्मीदवार कॉन्ग्रेस छोड़ चुके हैं। किसी अन्य राजनीतिक दल में इस तरह का पलायन नहीं दिखा है।”

हार के कारणों पर बात करते हुए कपिल सिब्बल ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया, “हमें समय-समय पर अपमानजनक हार का सामना करना पड़ा है। जिन राज्यों में हम प्रासंगिक होने की उम्मीद करते हैं, वहाँ वोटों का प्रतिशत लगभग नगण्य है। उत्तर प्रदेश में हमारे पास 2.33% वोट शेयर है। यह मुझे आश्चर्य नहीं करता। हम मतदाताओं से जुड़ने में असमर्थ हैं। हम सामने से नेतृत्व करने में असमर्थ हैं, लोगों तक पहुँचने में असमर्थ हैं। जैसा कि गुलाम नबी आजाद ने कहा था कि एक नेता में पहुँच, जवाबदेही और स्वीकार्यता के गुण होने चाहिए। 2014 के बाद से, जवाबदेही का अभाव, घटती स्वीकार्यता और पहुँच बढ़ाने के लिए बहुत कम प्रयास हुए हैं। यही असली समस्या है।”

उन्होंने आगे कहा, “यहाँ तक कि सीडब्ल्यूसी (कॉन्ग्रेस वर्किंग कमेटी) में जो हुआ उसने भी मुझे चौंकाया नहीं। एक पार्टी के लिए आठ साल बाद, 2014 से, यह कहने के लिए कि इस पराजय के कारणों का पता लगाने के लिए हम एक चिंतन शिविर करेंगे, अगर आठ साल तक एक राजनीतिक दल और नेतृत्व को इसके पतन के कारणों के बारे में पता नहीं है; यह जानने के लिए वह चिंतन शिविर का इंतजार कर रहा है, तो सपनों की दुनिया में रह रहा है। अपनी आँखे उस वास्तविकता से बंद कर रहा है जो हमारे सामने है।”

सिब्बल ने अपनी पीड़ा बयान करते हुए कहा, “सीडब्ल्यूसी में हमारी पार्टी के प्रमुख नेता, कुछ अपवादों को छोड़कर, शायद वास्तव में महसूस करते हैं कि गांधी परिवार के बिना, कॉन्ग्रेस का जीवित रहना संभव नहीं है। लेकिन हममें से कुछ लोगों ने नेतृत्व को यह बताने की बहुत कोशिश की कि अब समय आ गया है कि हम अपनी प्रक्रियाओं में सुधार करें और कॉन्ग्रेस को पुनर्जीवित करें और इसे उसके मूल गौरव तक ले जाएँ। मैं आज इसलिए नहीं बोल रहा हूँ क्योंकि मुझे किसी व्यक्ति से कोई नाराजगी है। इसलिए नहीं कि मैं ए, बी या सी का विरोधी हूँ। मैं इसलिए बोलता हूँ क्योंकि मैं कॉन्ग्रेस समर्थक हूँ। मैं कभी भी किसी अन्य पार्टी में शामिल नहीं होऊँगा। मेरा मृत शरीर भी भाजपा में शामिल नहीं होगा। मैं सच्चा कॉन्ग्रेसी बना रहूँगा लेकिन मैं कॉन्ग्रेस का ऐसा पतन नहीं देख सकता।”

कॉन्ग्रेस को CWC से बाहर देखने की सलाह देते हुए उन्होंने कहा, “सीडब्ल्यूसी कॉन्ग्रेस के अंदर है? सीडब्ल्यूसी के सदस्य शीर्ष नेतृत्व के नामांकित व्यक्ति होते हैं। सीडब्ल्यूसी के बाहर भी एक कॉन्ग्रेस है… यदि आप चाहें तो कृपया उनके विचारों को सुनें। मुझे उम्मीद है कि मैं भी उन्हीं में शामिल हूँ। मैं कॉन्ग्रेस से बाहर नहीं हूँ। मैं कॉन्ग्रेस में हूँ। लेकिन मैं सीडब्ल्यूसी में नहीं हूँ। हमारे जैसे बहुत से नेता जो सीडब्ल्यूसी में नहीं हैं, लेकिन कॉन्ग्रेस में हैं, उनका दृष्टिकोण बिल्कुल अलग है। क्या इससे कोई फर्क नहीं पड़ता क्योंकि हम सीडब्ल्यूसी में नहीं हैं? इसलिए भले उनके अनुसार सीडब्ल्यूसी भारत में कॉन्ग्रेस पार्टी का प्रतिनिधित्व करती है। पर मुझे नहीं लगता कि यह सही है। देश भर में बहुत सारे कॉन्ग्रेसी हैं, केरल से, असम से, जम्मू-कश्मीर से, महाराष्ट्र से, उत्तर प्रदेश से, गुजरात के लोग हैं, जो उस दृष्टिकोण को नहीं मानते हैं।”

शीर्ष नेतृत्व की क्षमता पर सवाल उठाते हुए कपिल सिब्बल ने कहा, “शीर्ष नेता आज एक बात कहते हैं और कल इसके विपरीत कहते हैं। हमें जो लड़ाई लड़नी है वह मोदी शासन के खिलाफ है। यह कोई लड़ाई नहीं है कि हमें कॉन्ग्रेस के भीतर लड़ना चाहिए। मोदी सरकार से लड़ने के लिए कॉन्ग्रेस को एक होना चाहिए। लेकिन अगर आप अपना घर भी ठीक से नहीं रख सकते हैं, तो आप मोदी शासन से कैसे लड़ेंगे?”

वहीं उन्होंने क्रिकेट खिलाड़ियों का उदाहरण लेते हुए सोनिया, राहुल, प्रियंका गाँधी-वाड्रा परिवार को पीछे हटने की तरफ भी साफ संकेत दिए। उन्होंने कहा, “नेतृत्व को अब तक आत्ममंथन करना चाहिए था। वह ‘चिंतन’ सब उनके मन में हो जाना चाहिए था। और उन्हें किसी और को नेतृत्व करने देना चाहिए। किसी और को मौका दो। उदाहरण के लिए, सुनील गावस्कर को एक दिन सेवानिवृत्त होना पड़ा। यहाँ हम गावस्कर के साथ काम नहीं कर रहे हैं। सचिन तेंदुलकर को एक दिन संन्यास लेना पड़ा। कल तक विराट कोहली टीम के कप्तान थे। तीनों के नाम दुनिया के क्रिकेट इतिहास में सुनहरे अक्षरों में लिखे जाएँगे। उन्हें भी संन्यास लेना पड़ा। उन्हें भी हटना पड़ा। तो अगर महान उत्कृष्टता के लोग भी, किसी स्तर पर सोचते हैं कि यह जाने का समय है, तो निश्चित रूप से, हमने जो हार देखी है, उसके बाद नेतृत्व को यह स्थान किसी और के लिए छोड़ देना चाहिए जो निर्वाचित होगा और नामांकित नहीं होगा। उस व्यक्ति को प्रदर्शन करने दें।”

ऐसे में देखा जाए तो कपिल सिब्बल की चिंता जायज है लेकिन पार्टी का शीर्ष नेतृत्व इसका संज्ञान लेगा इसकी उम्मीद कम ही दिख रही है। क्योंकि ऐसा करने से एक परिवार के हाथ से पार्टी निकल जाएगी।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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