कश्मीर में हिंदुओं के नरसंहार के एक छोटे से हिस्से पर बनी फिल्म ‘द कश्मीर फाइल्स (The Kashmir Files)’ ने सिर्फ बॉलीवुड गैंग को ही सकते नहीं डाला है, बल्कि उस दौर के राजनेताओं और उनके काले चेहरे को भी जनता के सामने ला दिया है। चेहरे की इस कालिख को पोछने की जुगत की जा रही है और फिल्म को ही बकवास, झूठ, प्रोपेगेंडा आदि ना जाने कितने नाम देकर इसे खारिज करने की कोशिश की जा रही है।
कश्मीर घाटी की सच्चाई लेकर सारे हिंदूविरोधी एक स्वर में बोल रहे हैं और सबकी भाषा लगभग एक जैसी है। चाहे वह बॉलीवुड हो, आतंकी हों, अलगावादी समर्थक हों, जेहादी हों या घृणा की राजनीति करने वाले राजनेता, सारे फिल्म के तथ्यों को झूठलाने पर तुले हैं या फिर उसका दोष जगमोहन या दिवंगत प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह (VP Singh) पर मढ़ने पर तुले हैं।
कश्मीर फाइल्स फिल्म को लेकर फारूक अब्दुल्ला (Farooq Abdullah) के बाद अब उनके बेटे उमर अब्दुल्ला (Omar Abdullah) बयान दिया है। उमर ने कहा, “द कश्मीर फाइल्स फिल्म में कई झूठी बातें दिखाई गई हैं। उस दौरान फारूक अब्दुल्ला जम्मू-कश्मीर के सीएम नहीं थे। वहाँ राज्यपाल शासन था। देश में वीपी सिंह की सरकार थी, जिसे बीजेपी का समर्थन हासिल था।”
Many false things have been shown in ‘The Kashmir Files’ movie. During that time Farooq Abdullah was not J&K’s CM but Governor rule was there. VP Singh’s govt was there in the country which was backed by BJP: Former Jammu and Kashmir CM Omar Abdullah pic.twitter.com/DN0dMQz5L2
— ANI (@ANI) March 18, 2022
दो दिन पहले ही उमर के अब्बा और जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री रहे फारूक अब्दुल्ला ने परोक्ष रूप से इस मामले के लिए जगमोहन को दोषी ठहरा दिया था। उन्होंने कहा था, “मैं आज इस पूरे प्रकरण की जाँच की माँग करता हूँ। पता चलना चाहिए कि कश्मीरी पंडितों का पलायन कैसे हुआ? उनकी हत्याएँ क्यों हुई? यह किसकी साजिश थी? इसके लिए एक निष्पक्ष जाँच जरुरी है।”
फारूक ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के रिटायर जज से इसकी जाँच कराई जानी चाहिए। इसके साथ ही उन्होंने जगमोहन की फाइल खोलने की भी माँग की। केंद्र सरकार को कश्मीरी पंडितों की कश्मीर में सम्मानजनक और सुरक्षित वापसी के लिए तत्काल कार्रवाई करनी चाहिए।
कश्मीर की राजनीति में फारूक अब्दुल्ला की विरोधी पीडीपी की मुखिया और कश्मीरी नरसंहार के वक्त केंद्रीय गृहमंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद की बेटी महबूबा मुफ्ती कश्मीरी हिंदुओं की बात पर फारूक के साथ खड़ी नजर आती हैं।
इधर फारूक ने कश्मीरी हिंदुओं के हालात के लिए तत्कालीन राज्यपाल जगमोहन पर ठीकरा फोड़ा, उधर महबूबा ने शर्मिंदगी जाहिर करने के बजाय हिंदुओं की भावनाओं के साथ खेलने का केंद्र पर आरोप मढ़ दिया। महबूबा ने लिखा, “भारत सरकार जिस तरह कश्मीर फाइल्स को आक्रामक रूप से बढ़ावा दे रही है और कश्मीरी पंडितों के दर्द को हथियार बना रही है, उससे उनकी मंशा साफ हो जाती है। पुराने घावों को भरने और दो समुदायों के बीच अनुकूल माहौल बनाने के बजाय जानबूझकर खाई पैदा कर रही है।”
फारूक ने पाक ट्रेंड आतंकियों को छोड़ घाटी को सुलगाने में मदद की
लेकिन, जम्मू-कश्मीर के पुलिस महानिदेशक (DGP) रहे शेष पॉल वैद ने खुलासा किया कि पाकिस्तान ने प्रशिक्षण देने के बाद 70 आतंकियों वाले पहले जत्थे को जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद फैलाने के लिए भेजा था, उसे 1989 में तत्कालीन मुख्यमंत्री और इन्हीं उमर अब्दुल्ला के अब्बा फारूक अब्दुल्ला ने रिहा कर दिया था। ये आतंकी आगे चलकर अलग-अलग आतंकी संगठनों का नेतृत्व किया और घाटी में आतंकी और हिंदुओं के नरसंहार को अंजाम दिया।
Many people in the country do NOT know this #KashmirFiles fact: first batch of 70 terrorists trained by ISI were arrested by J&K Police but ill-thought political decision had them released & same terrorists later on lead the many terrorist organizations in J&K. #KashmirFilesTruth
— Shesh Paul Vaid (@spvaid) March 16, 2022
अपने शासनकाल में जिन खूंखार आतंकियों को फारूक अब्दुल्ला ने छोड़ा था, उनमें से कुछ नाम हैं- त्रेहगाम का मोहम्मद अफजल शेख, रफीक अहमद अहंगर, मोहम्मद अयूब नजर, फारूक अहमद गनी, गुलाम मोहम्मद गुजरी, फारूक अहमद मलिक, नजीर अहमद शेख और गुलाम मोहीउदीन तेली।
पूर्व डीजीपी वैद ने कि फारूक ने स्पष्ट कहा कि अगर फारूक ने इन आतंकियों को छोड़ा था, इसका मतलब यह नहीं कि तत्कालीन केंद्र सरकार को इसकी जानकारी नहीं होगी। फारूक अब्दुल्ला ने जुलाई से दिसंबर 1989 के बीच इन आतंकियों को छोड़ा था और उस दौरान केंद्र में कॉन्ग्रेस की सरकार थी और राजीव गाँधी प्रधानमंत्री थे। राजीव गाँधी अक्टूबर 1984 से दिसंबर 1989 तक देश के प्रधानमंत्री थे।
उमर अब्दुल्ला का झूठ
उमर अब्दुल्ला ने कहा कि जब कश्मीरी हिंदुओं का नरसंहार और पलायन हुआ, तब उनके अब्बा मुख्यमंत्री नहीं थे। उमर का बयान पूरी तरह से झूठ पर आधारित है। फारूक अब्दुल्ला 7 नवंबर 1986 से 19 जनवरी 1990 तक जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री थे। 19 जनवरी कश्मीरी हिंदुओं के इतिहास का वही काला दिन है, जब घाटी के हर मस्जिद से इस्लाम अपनाकर मुस्लिम बनने या औरतों को घाटी में छोड़कर सारे हिंदू पुरुषों को कश्मीर के चले जाने का ऐलान किया गया था। इसके बाद नरसंहार अपने चरम पर पहुँच गया था।
इसके पहले 1989 में फारूक अब्दुल्ला आतंकियों को छोड़कर उन्हें प्रोत्साहित किया था और उन्होंने सबसे पहले संघ के नेता टीकाराम टपलू की हत्या 14 जुलाई 1989 को की थी। इसके बाद तो नरसंहार का चरम पर पहुँच गया था। ऐसा कोई दिन नहीं होता, जब घाटी में दो-चार हिंदुओं की हत्या और महिलाओं का बलात्कार कर उनकी लाशें सड़कों पर नहीं फेंक दी जाती।
उमर अब्दुल्ला का यह यह कहना कि उनके अब्बा उस समय मुख्यमंत्री नहीं थे, अपने अब्बा के खूनी चेहरे को ढँकने की कोशिश है। 7 नवंबर 1986 को फारूक अब्दुल्ला के मुख्यमंत्री के बाद घाटी के हवाएँ पूरी तरह बदलनी शुरू हो गई थीं। हिंदुओं को शक की नजरों से देखा जाने लगा था, हमले आम बात हो गए थे। मुख्यमंत्री बनने के दौरान हिंदुओं की हत्या की छिटपुट घटनाएँ फारूक के पद त्याग करते समय पूरे नरसंहार में बदल चुकी थीं।
इसके पहले 1984 में इसकी नींव रख दी जा चुकी थी। 1984 में फारूक को हटाकर गुल शाह को इंदिरा गाँधी ने जम्मू-कश्मीर का सीएम बनवाया था। शाह ने जम्मू के न्यू सिविल सेक्रेटेरिएट एरिया के एक प्राचीन मन्दिर परिसर के भीतर मस्जिद बनाने की अनुमति दे दी, ताकि मुस्लिम कर्मचारी नमाज पढ़ सकें। इस फैसले का जम्मू में विरोध हुआ और दंगे भड़क गए और इसका असर घाटी में खूब हुआ। इसके बाद 18 अप्रैल 1986 को शारजाह में खेला गया भारत-पाकिस्तान क्रिकेट मैच में पाकिस्तान की जीत के साथ। पाकिस्तान की जीत के बाद पाकिस्तान के साथ-साथ घाटी में बड़े पैमाने पर जश्न मनाए गए और हिंदुओं पर हमले किए गए।
साल 2017 में जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कश्मीर के युवाओं से पर्यटन और आतंकवाद में एक चुनने की बता कहते हुए पत्थरबाजी छोड़ने की अपील की थी, तब भी फारूक ने युवाओं को उकसाया था। फारूक अब्दुल्ला ने कहा था कि कश्मीर के युवा पर्यटन के लिए नहीं, अपने देश के लिए लड़ रहे हैं। यह उनके देश के लिए लड़ाई है। जाहिर तक फारूक का आतंकियों और आतंकवाद से मोह ना छूटा है और माया टूटी है। अपने अब्बा का बचाव कर उमर अपना दीन निभा रहे हैं।