कर्नाटक में संवैधानिक अधिकारों के नाम पर छेड़ी गई हिजाब की लड़ाई में पिछले दिनों ISIS की एंट्री हुई थी। ISIS ने हिजाब मसले पर अपना बयान जारी करते हुए कहा था कि वे उस हर हिंदू को काट डालेंगे जो उनकी बहनों के सम्मान पर नजर गड़ाए हुए हैं। आतंकी संगठन की मैग्जीन वॉयस ऑफ हिंद में दावा था कि कर्नाटक के शैक्षणिक संस्थानों में जो कुछ भी हुआ वो मुस्लिम महिलाओं को सार्वजनिक रूप से सताने और उन्हें नंगा करने की साजिश है जो कि भाजपा ने रची है।
ISIS के इस बयान के बाद न तो कहीं इसका कोई विरोध दिखा और न ही किसी ने इसकी निंदा की। सामाजिक सौहार्द की बात करने वालों में से किसी ने ये सवाल उठाना जरूरी नहीं समझा कि आखिर कैसे एक समुदाय की जिद्दवश कोई आतंकी संगठन भारतीय हिंदुओं को सरेआम काटने की धमकी दे सकता है। और किसी को ये मुद्दा भी चर्चा के लायक नहीं लगा कि एक समुदाय की जिद्द अगर ISIS की मानसिकता से मेल खाती तो कहीं ये मजहबी आजादी की माँग से ज्यादा बढ़ते कट्टरपंथ का प्रभाव तो नहीं है!
आगे बढ़ते हुए बता दें कि भारतीय मुस्लिम महिलाओं के सम्मान का अर्थ हिजाब बताने वाला ISIS एक आतंकी संगठन है जिसने अब तक सैंकड़ों लोगों की जान सिर्फ एक मजहब को आधार बना कर ली है। इनके द्वारा तड़पाए गए लोगों में काफिर तो टॉप लिस्ट में है। मगर जिन लोगों को इन्होंने सताया उनमें औरतें भी कम नहीं है। भारत के संदर्भ में मुस्लिम महिलाओं का शिक्षा केंद्र में हिजाब पहनकर जाना इनके लिए साख का विषय है लेकिन हकीकत में जहाँ इनका शासन है वहाँ हिजाब और बुर्का इनकी प्राथमिकता है और महिलाओं की शिक्षा दोयम दर्जे की बात। तो आखिर प्रगतिशील वर्ग इनकी बातों पर चुप्पी साधकर सहमति कैसे दे सकता है।
ISIS का मेनिफेस्टो
इस आतंकी संगठन के पास महिलाओं के लिए बनाया गया पूरा एक पूरा मेनिफेस्टो है जिसमें इन्होंने अपनी औरतों के काम निर्धारित किए हुए हैं, उनकी सीमा बताई हुई है, और उनके ड्रेस कोड पर विस्तृत चर्चा की हुई है। द एटलांटिक में प्रकाशित 2015 की एक रिपोर्ट में इस मेनिफेस्टो का जिक्र है। इसके मुताबिक ISIS का साफ मानना है कि जवान लड़कियों का काम कॉलेज जाकर डिग्री लेना या करियर बनाना नहीं बल्कि निकाह करके बच्चे पैदा करना है। ये मानते हैं कि 9 साल की उम्र में लड़की निकाह के लायक हो जाती है और उससे निकाह की सबसे बढ़िया उम्र 16-17 की होती है। इसके अलावा लड़कियों को घर के अंदर रहने की सलाह और जिहाद जैसे जरूरी कामों के लिए बाहर निकलने के निर्देश भी इस मेनिफेस्टों का हिस्सा हैं।
दिलचस्प बात तो ये है कि एक आतंकी समूह भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में मुस्लिम लड़कियों द्वारा शैक्षणिक संस्थान में हिजाब पहनने को उनके सम्मान की बात बताता है जबकि जहाँ जहाँ वो खुद शासन चलाते हैं वहाँ शिक्षा की चर्चा नहीं है और महिलाओं की पहचान ही हिजाब बुर्के में बँधी हुई है। इस्लामी स्टेट के राज में हिजाब, बुर्का औरतों के लिए वो बंदिशें हैं जिन्हें न पहनने पर तमाम प्रताड़ताएँ मुफ्त में मिलने का प्रावधान है।
अभी हाल में तालिबान ने अफगानिस्तान का क्या हाल किया… ये किसी से छिपा नहीं है। वहाँ भी ISIS जैसी मानसिकता है। जो कभी खुद को उदार दिखाने के लिए लड़कियों को पढ़ाने की बात करता है लेकिन समय समय पर उनके लिए शिक्षा का रास्ता बंद करके उन्हें रोने पर मजबूर कर देता है।
ऐसे में भारत का वामपंथी या मजहबी व्यक्ति न तो तालिबान शासन में महिलाओं की स्थिति पर अपनी राय रखता है और न ही ये सवाल खड़ा करता है कि आखिर एक समुदाय की माँग आजादी का विषय कैसे हो सकती है जब उसका समर्थन ISIS जैसा समूह खुलेआम कर रहा है। ये लोग न तो हिजाब की माँग को कट्टरपंथ से जोड़कर देखते हैं और न ही ये सोचते हैं कि आतंकी संगठन इसे लागू कराने के लिए हिंदुओं को काटने की धमकी दे रहा है तो ये कितना उचित है और कितना अनुचित।
सोचिए कि जिस आधार पर ISIS जैसे कट्टरपंथी व आतंकी समूह महिलाओं को शोषित करते हैं वे किसी की आजादी का पर्याय कैसे हो सकता है। कैसे मान लें कि उन विचारों को अनुमति देना देश में कट्टरपंथ को बढ़ावा देना नहीं है जिनसे ISIS तक सहमत है… कम से कम भारत देश में हर लड़की और महिला को ये आजादी है कि घर में चाहे कितनी ही मजहबी रीतियों ने उन्हें जकड़ा हुआ हो, मगर स्कूल में उन्हें अन्य लड़कियों की तरह समान पोशाक पहननी होती है। अब इस पर भी यदि लड़कियाँ ये माँग उठाने लगें कि उन्हें वही पोशाक पहननी है तो इसे कट्टरपंथी प्रभाव से न जोड़ा जाए तो और क्या समझा जाए।
ISIS ने बनाया है महिलाओं के लिए ड्रेस कोड
न्यूयॉर्क टाइम्स की एक रिपोर्ट बताती है कि कैसे मोसूल के इस्लामी स्टेट बनने के बाद ISIS ने महिलाओं का ड्रेस कोड निर्धारित किया था जिसे मानना महिलाओं की बाध्यता थी। इस ड्रेस कोड का मकसद था कि महिला का कोई भी अंग किसी और को न दिखे। चेहरा हो, आँख हो, हाथ हो, पैर हो या कुछ भी। हर चीज काले रंग में ढकी होनी चाहिए।
हलीमा अली बेदेर एक महिला जिनका कोट रिपोर्ट में लिया गया। उन्होंने बताया कि एक बार उन्होंने ऊपर से लेकर नीचे तक खुद को ढका हुआ था। मगर आँख ढकना भूल गई थीं। ऐसे में वो घर से बाहर निकली ही थीं कि मजहबी ज्ञान देने वालों ने उन्हें पकड़ लिया और उनपर चिल्लाने लगे, बुरे-बुरे लांछन लगाने लगे। उनसे पूछा गया, “तुम्हारा शौहर कहाँ है? क्या उसे मंजूर है कि कोई तुम्हारा चेहरा देखे? मैंने सवाल किया कि मैं चेहरा कहाँ दिखा रही हूँ। बस आँख ही तो खुशी हैं।” लेकिन फिर भी महिला की सुनवाई नहीं हुई। कारण सिर्फ यही था कि इस्लामी देश में ISIS ने जो तय कर दिया वहीं मानना सबकी मजबूरी थी।
अब भारत में भी ऐसे ही हिजाब और बुर्कों के लिए लड़ाई लड़ी जा रही है जिनकी वजह से इस्लामी देशों में महिलाओं को तमाम प्रताड़नाएँ सहनी पड़ती हैं। और जो ये ISIS महिलाओं के हक में आकर हिंदुओं को काटने की बातें कर रहा है वो खुद दूसरी महिलाओं को मानव जाति का नहीं मानता।
रेप के बाद सेक्स स्लेव बना देता है ISIS, बाजार लगाकर औरतें बेचता है
महिलाओं का अपरहण ISIS के लिए सामान्य बात है। इसके बाद वह उन महिलाओं का बलात्कार करते हैं फिर उन्हें सेक्स स्लेव बनाकर बेच देते हैं। अत्याचार का शिकार हुई एक यजीदी लड़की ने एक बार खुलासा किया था कि कैसे वो 6 माह बाद ISIS के चंगुल से मुक्त हुई थी और उस बीच उसके साथ हर रोज किसी न किसी ने रेप किया था। लडकी उस समय महज 14 साल की थी। प्रताड़नाओं से इतना तंग आ गई थी कि उसने मरने की कोशिश भी की। हालाँकि वह सफल नहीं हुई। उसके ऊपर 6 महीने तक जुल्म ढहाए गए। उसका सौदा उस आतंकी से भी हुआ जो सभी आतंकियों में सबसे बदबूदार था।
ISIS अपनी महिलाओं का कितना हितैषी है ये हुदा मुथाना नाम की महिला के बयान से पता चलता है। हुदा 2015 में ISIS से इतना प्रभावित थी कि अमेरिका के लोगो का खून बहाने की बातें करती थीं। अमेरिका में शरिया लागू कराना चाहती थीं। लेकिन कुछ साल ISIS के साथ बिताने के बाद 2019 में वो गिड़गिड़ाती नजर आई थीं कि उन्हें अपने देश अमेरिका लौटना है चाहे तो उन्हें जेल दे दी जाए।
यही नहीं ISIS का महिलाओं के प्रति क्या रवैया रहा है इसकी विस्तृत जानकारी हमेशा मीडिया में आती रही है। 2014 में मोसुल से एक वीडियो सामने आया था। ये वीडियो तब का था जब ISIS वहाँ अपना कब्जा जमा चुका था। इस वीडियो में खुलेआम गुलाम बनाई गई महिलाओं की बिक्री चल रही थी और खरीददार उनका मोलभाव कर रहे थे और बंदूक के बदले में औरत का सौदा बाजार लगाकर किया जा रहा था। इससे पहले इन्हीं ISIS आतंकियों ने मोसूल में कब्जा करके बकायदा पर्चे बाँटे थे और महिलाओं को चेताया था कि उन्हें मोटे कपड़े का ढीला जिलबाब पहनना है और घरों के भीतर रहना है, सिर्फ जरूरत पड़ने पर ही पैर बाहर निकालने हैं।
ड्रेस कोड न मानने वालों के लिए ISIS की पुलिस
मौजूदा जानकारी ये भी बताती है कि ISIS ने अपने खूँखार इरादों को अंजाम देने के लिए अल खान्सा नाम की ब्रिगेड बनाई हुई है। इसे ISIS में शामिल महिलाएँ संचालित करती है। इनका काम उन महिलाओं और लड़कियों को सजा देने का है जो शरिया का पालन न करें। रिपोर्ट्स की मानें तो ये ब्रिगेड किसी भी महिला को नियम उल्लंघन करने पर कड़ी सजा देती। चाहे फिर वो सूली पर चढ़ाने की सजा हो, सिर कलम करने की सजा हो या फिर कोड़े मारने की। ये ब्रिगेड वेश्यालयों को भी चलाती। जहाँ यजीदी महिलाओं का शोषण होता। इस ब्रिगेड को ISIS ने हथियारों से लैस किया हुआ था जो बुर्के की आड़ में छुरा लेकर भी घूमती थी। ये उन्हें अपना निशाना बनाती जिनका बुर्का या तो पतला होता या फिर ISIS के ड्रेस कोड के मुताबिक नहीं होता था।
ड्रेस कोड न मानने वालों के साथ क्या होता है?
बताया जाता है कि ISIS की पुलिस के निशाने पर वो महिलाएँ हमेशा रहती हैं जो ड्रेस कोड का पालन न करें। इन्हें पकड़कर नोटिस जारी होता है फिर उनके गुनाह पर सुनवाई होती है और सजा मुकर्रर की जाती हैं। कई बार सजा जुर्माने तक सीमित रहती है और कई बार बात जान पर बन आताी है। ऊपर जिस हलीमा का जिक्र है उसे सिर्फ आँख दिखाने पर 40 डॉलर चुकाने पड़े थे। उसके अलावा भी कई महिलाएँ हैं जिन्हें शरीर का अंग दिखने के कारण ISIS की अदालत में पेश होना पड़ा।
ISIS का ड्रेस कोड सिर्फ बुर्के, हिजाब तक सीमित नहीं है। एक बार एक फतवा जारी हुआ था जिसके अनुसार लाल रंग को प्रतिबंधित कर दिया गया था। इसके अलावा इस्लामी राज में शरीर ढकना कितना अनिवार्य है ये एक महिला के साथ हुए किस्से से समझिए जिसकी जुराब में छेद था इसकी वजह से उसकी ऐड़ी दिख रही थी और पुलिस ने उसे रोक लिया था।
इसके अलावा एक महिला सचिव जिसने दस्तानों से हाथ ढका हुआ था और उसके हाथ कलम फिसल रही थी। जब उसने उसे उतारने की कोशिश की तो तुरंत उसे चेतावनी दे दी गई।
वफा नाम की महिला जो एक बार अपने बच्चों के साथ पिकनिक के लिए गई लेकिन जैसे ही खाना खाने के लिए अपना कपड़ा उठाया तुरंत पुलिस आई और शौहर की आईडी माँग कर उसे नोटिस देकर चली गई। वफा ने बहुत समझाया कि वो बिन कपड़ा उठाए कैसे खाती लेकिन किसी ने नहीं सुनी। उसके 21 कोड़े मारने की सजा दी गई। उन्होंने विरोध किया मगर कोई फर्क नहीं। एक कमरे में लेकर जाकर नुकीलीं तारों वाले कोड़ों से उन्हें मारा गया। वह चिल्लाती रहीं, रोती रहीं, दया की भीख माँगती रहीं…। घटना के कई दिन बाद भी वह पीठ के बल नहीं सो पाईं और इस बीच उन्हें समझ आ गया कि महिलाओं को घर में रखने के लिए ये कपड़ों के नियम हैं।
जीना मोहम्मद नाम की महिला ने अपना गुस्सा जाहिर करते हुए ISIS के पाखंड पर बताया था कि एक बार वह अपनी बहन के साथ लॉन्जरी लेने गई थीं। वहाँ आतंकियों की बीवियाँ रेसी पैंटी खरीद रही थीं। मगर जब दोनों बहनें बाहर निकलीं तो आतंकी उनके पीछे आया कि उन्होंने आँख क्यों नहीं ढकी इस पर महिलाएँ चिल्लाईं और कहा कि तुम्हारी उत्तेजक पैंटी खरीदती हैं और तुम्हें हमारी आँख की पड़ी है।