Wednesday, November 6, 2024
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‘भक्तों को भी मंदिर के संचालन में अपनी बात रखने का अधिकार’: श्री महाकाली मंदिर पुनर्निर्माण के खिलाफ याचिका पर आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट

याचिकाकर्ता येल्लंती रेणुका ने हाईकोर्ट में याचिका दायर करते हुए कहा, "मंदिर के उक्त पुनर्गठन/पुनर्निर्माण की इजाजत नहीं दी जा सकती। ऐसा किया गया तो ये संविधान के 25 और 26 का उल्लंघन होगा।"

आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट (Andhra Pradesh ने मंदिर में भक्तों के अधिकार पर शुक्रवार (1 अप्रैल 2022) को बड़ा फैसला सुनाया। कोर्ट ने अपने फैसले में स्पष्ट कहा कि मंदिर के भक्तों को मंदिर के संचालन-व्यवस्था पर अपनी बात रखने का पूरा अधिकार है। जस्टिस आर रघुनंदन राव की पीठ ने गुंटूर जिले में श्री महाकाली अम्मावरी मंदिर के प्रस्तावित पुनर्निर्माण के खिलाफ येल्लंती रेणुका द्वारा दायर एक याचिका पर सुनवाई के दौरान यह टिप्पणी की।

दरअसल, याचिकाकर्ता येल्लंती रेणुका ने दावा किया था कि उनकी माँ ने अपनी खाली पड़ी जमीन पर श्री महाकाली अम्मावरी मंदिर में देवता को स्थापित किया था। इस मंदिर को 1976 में वैदिक विद्वानों और पुरोहितों द्वारा प्रतिष्ठित किया गया था, जिन्होंने प्रासंगिक आगम शास्त्रों का पालन करते हुए संस्कार और अनुष्ठान किए थे। इसके बाद मंदिर को और विकसित किया गया।

याचिका में येल्लंती रेणुका ने इस बात पर जोर दिया कि इस मंदिर और देवता की स्थापना में उसकी माँ औ एक अन्य व्यक्ति का अहम योगदान है। ऐसे में उन्हें मंदिर का वंशानुगत ट्रस्टी माना जाना चाहिए।

कोर्ट का फैसला

मामले की सुनवाई के दौरान कोर्ट के समक्ष येल्लंती रेणुका और दूसरे याचिकाकर्ता ने दावा किया था कि वे लंबे समय से मंदिर के विभिन्न धार्मिक समारोहों और अन्य गतिविधियों में भाग लेते रहे हैं। कोर्ट ने कहा कि इस दावे को नकारा नहीं जा सकता।

कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि आंध्र प्रदेश चैरिटेबल हिंदू धार्मिक संस्थान और धर्मार्थ बंदोबस्ती अधिनियम 1987 की धारा 2(18)(बी) में कहा गया है कि कोई भी व्यक्ति जो सेवा, दान या पूजा में हिस्सा लेने का हकदार है या उसे इसकी आदत है, संस्था से जुड़ा होगा, वह उससे ‘रुचि रखने वाला व्यक्ति’ होगा।

रुचि रखने वाले शब्द की व्याख्या करते हुए कोर्ट ने कहा, “रुचि रखने वाले शब्द का एक निश्चित अर्थ है। सिविल प्रोसीजर कोड की धारा 92 में इसका प्रावधान है कि कोई भी दो व्यक्ति जो रुचि रखते हैं, वो किसी भी धर्मार्थ या फिर धार्मिक प्रबंधन के कार्यों में अदालत के हस्तक्षेप की जरूरत होने पर कोर्ट जा सकते हैं।”

आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने आगे कहा, “संहिता में रुचि रखने वाले व्यक्तियों को परिभाषित नहीं किया गया है, लेकिन एक मंदिर में इसके वास्तविक उपासकों को शामिल करने की व्याख्या अवश्य की गई है। उसी परिभाषा को आंध्र प्रदेश बंदोबस्ती अधिनियम में शामिल किया गया है। बंदोबस्ती एक्ट के तहत इस कैटेगरी में आने वाले लोगों को इसमें महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है। धारा 43 (5) के तहत संबंधित बंदोबस्ती विभाग के सहायक आयुक्त को किसी भी संस्था के पंजीकरण पर निर्णय लेने से पहले ऐसे व्यक्तियों को सुनवाई का अवसर देना होगा।”

अदालत ने अपने फैसले में कहा, “तथ्यों से यह माना जा सकता है कि मंदिर के भक्तों को एक संस्था या मंदिर चलाने के तरीके में अपनी बात रखने का अधिकार है और यह नहीं कहा जा सकता है कि रुचि रखने वाले ऐसे व्यक्तियों अदालत में कुप्रबंधन या पूजा के तरीकों या आवश्यक धार्मिक प्रथाओं के उल्लंघन की शिकायतों को कोर्ट में आने की अनुमति नहीं दी जा सकती है।”

क्या है मामला

ये विवाद उस वक्त शुरू हुआ जब मंदिर के प्रबंधन ने मंदिर के पुनर्निर्माण के लिए कदम उठाते हुए बंदोबस्ती विभाग को इसकी जानकारी देकर काम शुरू कर दिया। इसके बाद येल्लंती रेणुका और मंदिर के दूसरे संस्थापक सदस्य ने इसका विरोध किया। बावजूद इसके मंदिर प्रबंधन ने विरोध को दरकिनार करते हुए मंदिर के पुनर्निर्माण के लिए भक्तों से चंदा इकट्ठा करना शुरू कर दिया।

मामला बढ़ने पर येल्लंती रेणुका ने हाईकोर्ट में याचिका दायर करते हुए कहा, “मंदिर के उक्त पुनर्गठन/पुनर्निर्माण की इजाजत नहीं दी जा सकती। ऐसा किया गया तो ये संविधान के 25 और 26 का उल्लंघन होगा।”

इस दावे पर मंदिर प्रबंधन के सदस्य प्रतिवादी ने दावा किया कि येल्लंती रेणुका मंदिर के संस्थापक परिवार की सदस्य नहीं, ये एक विवादित तथ्य है। ऐसे में रेणुका अपनी रिट याचिका को बनाए रखने की हकदार नहीं हैं।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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