क्या आपने कर्नाटक के बेलगावी (Belagavi, Karnataka) में ऊँची तार से साड़ी में लटके हुए एक पुतले की तस्वीरें देखी? अगर आपने देखी होगी तो इसे देखकर आप जरूर परेशान हुए होंगे, क्योंकि यह तस्वीर खौफ पैदा करने वाली ही है। जिन्होंने ऐसा किया है, उन्होंने उस पुतले पर भाजपा की पूर्व प्रवक्ता नूपुर शर्मा की तस्वीर भी लगाई है। इस धर्मनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक देश में उनके ऊपर इनाम की घोषणा कर कहा गया है कि उनका सिर काट दिया जाना चाहिए।
यह असली लग रहा है, है ना? अगर आप इसके बारे में सोचते हैं तो यह बेहद डरावना है। बहुत सारे लोग एक महिला के साथ ऐसा करना चाहते हैं। एक अकेली महिला, जिसकी बातें उन्हें पसंद नहीं आई। जिस तरह से हमें सोचने और व्यवहार करने के लिए ढाला गया है उसके तहत हम कुछ सेकंड के लिए तस्वीर को देखते हैं और फिर हम खुद से ही कहते हैं, “नहीं, यह भारत है अफगानिस्तान या सीरिया नहीं। ऐसी चीजें यहाँ नहीं हो सकतीं”।
इसमें कुछ सच्चाई है। हाँ, अफगानिस्तान में ऐसी चीजें आम हैं। साल 2021 में सत्ता हथियाने के कुछ ही समय बाद तालिबान ने शवों को क्रेन से लटकाना शुरू कर दिया। वे तस्वीरें भी इसी तरह डरावनी थीं। एक तस्वीर सामने आई थी, जिसमें तालिबान ने एक शव को हेलीकॉप्टर से लटका दिया था। वे पुतले नहीं थे, वाकई हत्या करने के बाद लोगों में एक संदेश भेजने के लिए उनके शव को फाँसी लगाकर तमाशा बनाया गया था।
अफगानिस्तान के हेरात प्रांत में लटकाए गए शव पुतले नहीं थे। वे वास्तविक लोग थे। ‘अपहरण’ के आरोपित 4 लोगों को पहले मार दिया गया और फिर जनता के सामने उनके शव को फाँसी पर लटका दिया गया। दूर के युद्धग्रस्त देशों में डरावनी चीजें हो रही हैं, यही सोच रहे हैं न आप?
दरअसल, बात यह है कि यह लेख लिखे जाने तक पूरे भारत में लाखों लोग उपद्रव कर रहे थे और नूपुर शर्मा को फाँसी पर लटकाने, बिना सिर के उनके धड़ देखने के की माँग कर रहे थे। उनमें से कई चाहते हैं कि पहले नूपुर शर्मा का बलात्कार हो, फिर सिर कलम किया जाए। वह डरावना पुतला इसी इरादे की खुलेआम घोषणा है।
अभी कल (9 जून 2022) को ही जम्मू की एक मस्जिद में मौलवी ने लाउडस्पीकर से आवाज लगाई गई कि नूपुर शर्मा का सिर कलम कर देना चाहिए। उसने यह भी घोषणा की कि हिंदू, चूँकि वे ‘गोमूत्र पीते हैं’, इसलिए वे मुस्लिमों के बराबर समझे जाने के योग्य नहीं हैं। इसी तरह पश्चिम बंगाल में भी मुस्लिमों की भीड़ ने नूपुर शर्मा का सिर कलम करने की माँग को लेकर विरोध प्रदर्शन किया था।
दिल्ली की जामा मस्जिद, यूपी के सहारनपुर, प्रयागराज, झारखंड के राँची और कई अन्य जगहों पर भीड़ घोषणा कर रही है कि वे असली नूपुर शर्मा को फाँसी देना या सिर कलम करना चाहती है। मौलाना, उलेमा और नेताओं ने एक हफ्ते से भी अधिक समय से खुले तौर पर घोषणा की है कि नूपुर शर्मा जीने के लायक नहीं हैं।
शासन-प्रशासन चुप है। कानून-व्यवस्था तोड़ने के आरोप में यहाँ-वहाँ कुछ गिरफ्तारियाँ हुई हैं और धार्मिक नफरत फैलाने के आरोप में कुछ एफआईआर भी दर्ज हुई हैं, लेकिन क्या ये काफी हैं? क्या हम पालघर के साधुओं का चेहरा भूल गए हैं?
कल्पवृक्ष गिरि महाराज 70 वर्ष के थे। अपने कमजोर हाथों से को जोड़ते हुए एक पुलिस अधिकारी से बचाने की गुहार लगाई थी और अपने झुर्रीदार चेहरे के साथ इस उम्मीद में वे मुस्कुराए थे कि राज्य की शक्ति के रूप में कई वर्दीधारी पुलिस अधिकारी उनके सामने मौजूद हैं, जो खून की प्यासी भीड़ से उनकी रक्षा कर लेगी। लेकिन, वह कुछ कुछ ही सेकंड में गलत साबित हो गया। जब भीड़ उन्हें और उनके सहयोगी को पीट-पीट कर मार डाला और उनके शवों को भी नहीं छोड़ा तब भी पुलिस देख रही थी।
पालघर की घटना के 2 साल हो चुके हैं। इस घटना में सरकार असफल साबित हुई थी। सत्ताधारी दल के नेताओं ने कभी भी इस मामले में कुछ नहीं कहा। यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ को छोड़कर किसी भी प्रमुख नेता ने कभी उनका जिक्र नहीं किया और ना ही उन साधुओं के लिए शोक व दुख व्यक्त किया। कल्पवृक्ष गिरि महाराज यह विश्वास लिए हुए भीड़ के हाथों मारे गए कि सरकार उन्हें बचा लेगी।
लखबीर सिंह शायद इतना साक्षर या जागरूक नहीं था कि उसे विश्वास हो जाए कि उसे बचा लिया जाएगा। जबकि उसका खंडित शरीर उसके ही खून के कुंड में पड़ा था। उसकी आँखें सदमे से फैल गई थीं। वह इशारे से बोलने की कोशिश करता रहा। संभवत: वह बचाए जाने, मदद करने या कुछ पानी दिए जाने की याचना कर रहा था।
लखबीर के हमलावरों ने उसकी हत्या का तमाशा भी बना लिया था। उन्होंने निष्प्राण पड़े उसके शरीर के चारों ओर अपनी तलवारें लहराते हुए क्रूरता का नृत्य किया। उन्हें सरकार का कोई डर नहीं था। हेरात की अनाम लाशों की तरह ही लखबीर को पुलिस के बैरिकेड्स के मचान से बाँध दिया गया और सभी लोगों के देखने के लिए छोड़ दिया गया था।
आधुनिक तकनीक, देश चलाने के लिए जबरदस्त जनादेश, ताकतवर सुरक्षाबल और सूचनाएँ उपलब्ध होने के बावजूद सरकार पालघर में साधुओं की हत्या और किसान आंदोलन के दौरान सिंघु-कोंडली बॉर्डर पर लखबीर सिंह की निर्मम हत्या के मामले में राज्य की सत्ता विफल साबित हुई।
महीनों तक लोगों ने पीएम को मारने और काटने की धमकी दी, बलात्कार की घटनाएँ सामने आईं, यातायात रोक दिया गया और किसानों के विरोध के नाम पर पुलिसकर्मियों पर हमला किया गया और सरकार देखती रही। जब लाल किले में तिरंगा फहराया गया और पीला झंडा लगा दिया गया, तब भी सरकार देखती रही।
चूँकि सरकार का अपमान और दुर्बलता सभी को दिखाई दी थी और जब लाल किले की ऊँची दीवारों से दर्जनों पुलिस अधिकारियों को नीचे गिराया गया तब पूरी दुनिया इसे देख रही थी। सरकार ने अराजकतावादियों के सामने हार मान ली थी। जिस दिन गणतंत्र अपना संविधान मनाता है, उसी दिन लोकतंत्र के प्रतीकों को अशुद्ध कर दिया गया था।
#WATCH | Delhi: Protestors attacked Police at Red Fort, earlier today. #FarmersProtest pic.twitter.com/LRut8z5KSC
— ANI (@ANI) January 26, 2021
तस्वीरें शक्तिशाली होती हैं। ये मन-मस्तिष्क में बैठ जाती हैं। तस्वीरें कहानियाँ बताती हैं। दुर्भाग्य से हमारे लिए ऐसी बहुत सी तस्वीरें हैं, जो किसी सरकार के कमजोर होने और भीड़ के सामने बेबस एवं लाचार होने की कहानी बयाँ कर सकती हैं। जब सरकार कमजोर होती है तो उस स्थान पर अराजकतावादी, कट्टरपंथी और शैतान कब्जा कर लेते हैं। अराजकता महामारी की तरह फैलती है। निराशा टिड्डियों की तरह पैदा होती है।
कट्टरता एक फिसलन भरी ढलान है। अराजकता एक अंधकारमय स्थान है। यहाँ कानून और व्यवस्था का अस्तित्व समाप्त हो जाता है। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि कट्टरपंथी किस किताब से आदेश लेते हैं या अराजकतावादी किस टूलकिट का पालन करते हैं।
राज्य की शक्ति ही जनता को कट्टरता और अराजकता के खतरे से बचा सकती है। जब उस राज्य की शक्ति अराजकता को रोकने में विफल हो जाती है तो कट्टरता बढ़ जाती है। मानव पर भ्रष्टता हावी हो जाती है और मनुष्य शैतान बन जाते हैं। उसके बाद पुतलों को वास्तविक शरीर बनने में केवल कुछ ही समय लगता है।