एनडीए ने मंगलवार (21 जून 2022) को जैसे ही झारखंड की पूर्व राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू को राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाने का ऐलान किया है। तभी से उनके खिलाफ सोशल मीडिया पर एक नकारात्मक माहौल बनाए जाने लगा है। जहाँ आज के मौजूदा राजनीतिक दौर में बीजेपी के इस राजनीतिक कदम की सामाजिक न्याय को प्राथमिकता देने की वजह से तारीफ होनी चाहिए थी और बड़े तबके में हो भी रही है। वहीं जाति आधारित राजनीति करने वाले कुछ दल, उनके नेता और समर्थकों के साथ ही इस्लामी और वामपंथी समूह थोड़े उखड़े हुए हैं। और कहीं न कहीं इस पूरे कदम को एक निम्नतम स्तर पर पहुँचाने के लिए भाषा और लिखने-बोलने की मर्यादा को तार-तार करते हुए सोशल मीडिया पर अपनी भड़ास निकाल रहे हैं।
हमने ऐसे लोगों के कुछ ट्वीट इकट्ठे किए हैं ताकि आप देख सकें कि बीजेपी के विरोध में ये सभी आदिवासी-वनवासी समाज के ही विरोध में उतर आए हैं। यहाँ तक कि अब अचानक से इनकी जनजाति पहचान को ही फासिज्म से जोड़कर हो हल्ला मचा रहे हैं।
किसी अभिषेक सिंह नाम के ट्विटर यूजर ने द्रौपदी मुर्मू की उम्मीदवारी में वनवासी या दलित समाज की उन्नति को ख़ारिज करते हुए लिखा, “आरएसएस का दलित या आदिवासी भी संघी है, इसलिए ऐसी उम्मीदवारी पर खुश होना बंद कीजिए।”
A dalit, or tribal from RSS is sanghi,
— Abhishek Singh (@Abhishe84958246) June 21, 2022
So stop gloating with the candidature.
दिल्ली विश्वविद्यालय में हिंदी के प्रोफेसर अपूर्वानंद ने द्रोपदी मुर्मू को राष्ट्रपति उम्मीदवार बनाए जाने पर तंज करते हुए लिखा, “एक मुस्लिम, ओबीसी, दलित, आदिवासी के रूप में आपकी पहचान से कोई फर्क नहीं पड़ता जब तक कि आप फासीवादी पार्टी के साथ हैं या काम करते हैं। आप इन समुदायों के लिए काम नहीं करते, केवल फासीवादियों को उन पर आधिपत्य जमाने में मदद करते हैं। या अपनी ऐसी एक पहचान के तौर पर आप अपनी कब्र खुद खोदते हैं।”
Your identity as a Muslim,OBC, Dalit, Adivasi doesn’t matter if you are with or work for a fascist party. You do not work for these communities, only help the fascists hegemonise them. Or as an identity you dig your own grave.
— Apoorvanand अपूर्वानंद (@Apoorvanand__) June 22, 2022
वहीं अपूर्वानंद के ट्वीट पर सवाल करते हुए अर्बन श्रिंक नाम के एक ट्विटर यूजर ने पूछा, “तो क्या सवर्ण हिंदुओं को फासीवादी पार्टी के लिए काम करने से छूट दी गई है, क्योंकि आपका ट्वीट केवल हाशिए की पहचान के लिए है!”
So are the Savarna Hindus exempted from working for the fascist party, since your tweet is only directed towards marginalised identities! https://t.co/DVk1Xznq2H
— UrbanShrink (@UrbanShrink) June 22, 2022
वहीं JNU की शोधछात्रा और खुद को अम्बेडकरवादी बताने वाली दीपिका सिंह ने भी अपनी भड़ास निकालते हुए लिखा, “कितना दुर्भाग्यपूर्ण है कि भारत को अपना पहला आदिवासी राष्ट्रपति मिलने जा रहा है, जो एक रूढ़िवादी पार्टी की पसंद है, जबकि तथाकथित प्रगतिशील दल अभी भी अपर कास्ट उम्मीदवारों को चुनने में लगे हुए हैं! क्या “प्रगतिशील” सवर्णों के लिए एक अवधारणा के स्तर पर ही प्रतिनिधित्व करना इतना कठिन है?
To the people pointing out “she will be puppet of RSS and will do no good for the adivasi community”. I know guys. Hence I mentioned ‘unfortunate’. My point was, it shouldn’t have taken 70+ years for an adivasi to become India’s first adivasi President and that too chosen by BJP!
— Deepika Singh (@Deepika_opines) June 22, 2022
बाद में एक दूसरे ट्वीट में लोगों की ओर इशारा करते हुए दीपिका ने लिखा, “वह भी आरएसएस की कठपुतली होगी और आदिवासी समुदाय के लिए कुछ भी अच्छा नहीं करेगी। मुझे पता है दोस्तों। इसलिए मैंने ‘दुर्भाग्यपूर्ण’ शब्द का उल्लेख किया। मेरा कहना था, एक आदिवासी को भारत का पहला आदिवासी राष्ट्रपति बनने में 70+ साल नहीं लगने चाहिए थे और वह भी भाजपा द्वारा चुना गया!”
वहीं किसी दलित लेनिनवादी विचारक अपने नाम में जोड़े हुए अनुभव सिंह नामक ट्विटर यूज़र ने लिखा, “द्रौपदी मुर्मू को प्रेसिडेंट उम्मीदवार के रूप में चुनकर भाजपा ने हाशिए पर खड़े समुदाय को बिना कोई राजनीतिक शक्ति प्रदान किए बिना एक समान हिंदू पहचान को आगे बढ़ाने के अपने प्रयासों में, प्रतिनिधित्व की राजनीति में महारत हासिल की है। फिर भी यह देखा जाना है कि क्या इस तरह के झाँसे को उन लोगों द्वारा उजागर किया जाएगा जिनके निशाने पर ऐसी पार्टियाँ हैं।”
It is not however just a politics of identity. The regional politics matters too. She hails from Orissa, a state with a 22.5 % tribal population & dominated by the upper caste Patnaik family for decades. A region where the BJP is in a direct contest with the BJD 2/n
— Anubhav Singh (@lucifer_damned) June 21, 2022
आगे एक दूसरे ट्वीट में अपनी बात आगे बढ़ाते हुए अनुभव सिंह ने लिखा, “हालाँकि, यह सिर्फ पहचान की राजनीति नहीं है। क्षेत्रीय राजनीति भी मायने रखती है। वह ओडिशा से ताल्लुक रखती हैं, जो 22.5% आदिवासी आबादी वाला राज्य है और जहाँ दशकों से उच्च जाति पटनायक परिवार का वर्चस्व है। एक ऐसा क्षेत्र जहाँ बीजेपी का सीधा मुकाबला बीजद से है।”
Hindutva is multi layered & being stuck in the binaries it ostensibly promotes takes away the focus from how it negotiates with multiple regional identities & their unique politics. That’s the key to its success while we remain stuck in binaries which is merely an outer layer
— Anubhav Singh (@lucifer_damned) June 21, 2022
वहीं तीसरे ट्वीट के थ्रेड में अनुभव सिंह ने लिखा, “हिंदुत्व बहुस्तरीय है और इसे जिस तरह से कई क्षेत्रीय पहचानों और उनकी अनूठी राजनीति के साथ तालमेल बिठाता है, उससे ध्यान हटाता है। यही इसकी सफलता की कुंजी है जबकि हम बायनेरिज़ में फँसे रहते हैं जो केवल एक बाहरी परत है।”
अनुभव सिंह के ही ट्वीट पर टिप्पणी करते हुए अनुराग वर्मा नाम के ट्विटर यूजर ने लिखा, “यही कारण है कि किसी भी पहचान का व्यक्तिगत प्रतिनिधित्व ज्यादा मायने नहीं रखता। अधिक से अधिक यह व्यक्ति के लिए महत्वपूर्ण हो सकता है लेकिन समुदाय के लिए शायद ही कभी। शायद हर क्षेत्र में, केवल सांकेतिक प्रतिनिधित्व के बजाय व्यवस्था में संरचनात्मक परिवर्तन की माँग करना महत्वपूर्ण है।”
This is why the individual representation of any identity doesn’t matter much. At best it can matter to the individual but rarely to the community. Perhaps in every field, it is important to demand structural change in the system instead of merely a token representation. https://t.co/VOBH2JDrfq
— Anurag Minus Verma (@confusedvichar) June 21, 2022
बता दें कि ऐसे दो-चार नहीं बल्कि सोशल मीडिया पर कई लोग हैं जिन्हें द्रौपदी मुर्मू की उम्मीदवारी में आदिवासी, वनवासी या जनजाति समुदाय का हित नजर नहीं आ रहा है। बल्कि ऐसे लोग कहीं न कहीं उन्हें ख़ारिज करने और आलोचना में ही लगे हैं। ऐसे लोगों के लिए अब यहाँ सामाजिक न्याय नहीं बल्कि राजनीतिक एजेंडा ज़्यादा महत्वपूर्ण हो गया है।
गौरतलब है कि राष्ट्रपति पद के लिए द्रौपदी मुर्मू का नाम घोषित होने के बाद मुर्मू ने आज (22 जून 2022) सुबह मंदिरों के दर्शन किए। वह ओडिशा के मयूरभंज में रायरंगपुर जगन्नाथ मंदिर गईं। फिर वहाँ से वह शिव मंदिर पहुँची और इसके बाद उन्होंने आदिवासी पूजा स्थल जहिरा जाकर भी आशीर्वाद लिया।
वहीं एनडीए द्वारा मुर्मू को राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार घोषित किए जाने के बाद उनको जेड प्लस सेक्योरिटी मिल गई है। साथ ही एक बड़ा वर्ग ऐसा भी है जो उनका नाम राष्ट्रपति पद के लिए भेजे जाने पर उनके मंदिर जाने के क्षण को गौरवान्वित करने वाला क्षण कह रहे हैं और उनकी हिन्दू छवि को देखकर अभी से उन्हें अपना राष्ट्रपति भी मान चुके हैं।