Monday, November 25, 2024
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दो परिवारों को लगता था कश्मीर उनके बाप की जागीर है- नहीं रहा, नहीं है: सांसद लद्दाख

नामग्याल ने कहा कि लद्दाख के लोगों ने शुरू से ही सरकार को बता दिया था कि उन्हें कश्मीर के अलावा किसी भी और तरीके से देश में रहना मंज़ूर है- भले ही वह केंद्र-शासित प्रदेश के रूप में हो।

लद्दाख के 34-वर्षीय सांसद जाम्यांग त्सेरिंग नामग्याल ने अपने लोक सभा वक्तव्य में जम्मू-कश्मीर के विभाजन का विरोध करने वालों की कलई खोल कर रख दी। अपने भाषण में उन्होंने लद्दाख के प्रति फ़र्ज़ी चिंता दिखाने की आड़ में 370/35A हटाने और लद्दाख को अलग केंद्र-शासित प्रदेश बनाने का विरोध कर रही घाटी की पार्टियों पीडीपी और नेशनल कॉन्फ्रेंस (NC) की तो जमकर पोल खोली ही, कॉन्ग्रेस की 2008 की राज्य सरकार से लेकर के पूर्व-प्रधानमंत्री नेहरू तक को अपने लपेटे में लिया। उनके भाषण की खुद प्रधानमंत्री मोदी ने ट्वीट कर तारीफ़ की।

‘हमने कहा था कश्मीर के साथ के अलावा कुछ भी चलेगा’

अपने भाषण में नामग्याल ने कई महत्वपूर्ण बिंदु गिनाए। उन्होंने शुरूआत पूर्व-प्रधानमंत्री नेहरू पर तंज़ कसते हुए की। उन्होंने कहा कि 70 साल से लद्दाख को कश्मीर के साथ रखने वालों को वहाँ की स्थानीय संस्कृति, वहाँ की सभ्यता, वहाँ की आकांक्षाओं के बारे में ज्ञान नहीं था; उनके लिए तो यह बंजर भूमि थी जिस पर घास का तिनका भी नहीं उगता। मालूम हो कि अक्साई चिन पर चीन के कब्ज़े पर पंडित नेहरू ने संसद में कहा था कि अरुणाचल और लद्दाख के पहाड़ों पर तो एक पत्ता घास का भी नहीं उगता, तो ऐसे में उनकी समझ में नहीं आ रहा कि उसके पीछे संसद का कीमती समय बर्बाद करने का क्या मतलब है

नामग्याल ने कहा कि लद्दाख के लोगों ने शुरू से ही सरकार को बता दिया था कि उन्हें कश्मीर के अलावा किसी भी और तरीके से देश में रहना मंज़ूर है- भले ही वह केंद्र-शासित प्रदेश (UT) के रूप में हो। हिंदी में बोल रहे नामग्याल ने कहा कि हिंदुस्तान का हिस्सा बने रहने के लिए ही लद्दाख ने 70 साल UT बनने की लड़ाई लड़ी, लेकिन पिछली सरकारों ने लद्दाख को ‘फेंककर’ रखा।

‘क्या यही है आपका लोकतंत्र?’

मोदी सरकार और गृह मंत्री अमित शाह पर लग रहे ‘लोकतंत्र की हत्या’ के आरोप के जवाब में नामग्याल ने PDP-NC-कॉन्ग्रेस द्वारा लद्दाख में बार-बार की गई लोकतंत्र की हत्याएँ गिनाईं। उन्होंने बताया कि समूचा लद्दाख अपने लिए UT का दर्जा चाहता है। उन्होंने बताया कि कैसे तत्कालीन गृह-मंत्री (अब रक्षा-मंत्री) राजनाथ सिंह सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल के साथ कश्मीर आने पर गृह सचिव को साथ लेकर लद्दाख गए और वहाँ हर आस्था और पंथ- हिन्दू महासभा, बौद्ध काउन्सिल, ईसाई और मुस्लिम संगठनों- ने UT के दर्जे की ही माँग की।

“और कुछ नहीं चाहिए, बस UT चाहिए।”

नामग्याल ने याद दिलाया कि कैसे घाटी की पार्टियों PDP-NC ने अपने तत्कालीन लेह जिलाध्यक्षों को केवल इसलिए पार्टी से बर्खास्त कर दिया कि उन दोनों ने अपने इलाके के लोगों की माँग का सम्मान करते हुए UT की माँग के ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए थे। उन्होंने कहा,

“आज लोकतंत्र की बात कर रहे हैं ये लोग! क्या वो था आपका लोकतंत्र? लोगों का आवाज़ बंद करना? दबे-कुचले रखना? ये आपका लोकतंत्र था क्या?”

जब नामग्याल इस बारे में बता रहे थे, तो विपक्ष ने उनके भाषण के बीच में टोका-टाकी शुरू कर दी, जिस पर खुद उन्हें झिड़कते हुए नामग्याल ने कहा, “सुनने की क्षमता रखिए।”

‘करगिल पर सदन को भ्रमित कर रहे हैं’

विपक्ष ने UT बनने में करगिल की कथित असहमति का ज़िक्र किया था। इसपर नामग्याल ने उन्हें आड़े हाथों लेते हुए कहा कि वे सदन को भ्रमित कर रहे हैं। बकौल नामग्याल, “मैं करगिल से चुन के आता हूँ। मैं गर्व से कहता हूँ कि करगिल वालों ने UT के ही लिए वोट दिया था।” उन्होंने बताया कि करगिल के भाजपा घोषणापत्र में UT बनाने का वादा 2014 में सबसे ऊपर था। लेकिन जब वह 2014 में हो नहीं पाया तो 2014-19 में भाजपा ने लद्दाख के UT बनने के फायदे एक-एक घर जाकर समझाए। इसी के चलते लद्दाख संसदीय सीट पर भाजपा को आज़ादी के इतिहास की रिकॉर्ड-तोड़ जीत हासिल हुई।

उन्होंने ‘करगिल-बंद’ के विपक्ष के दावे को भी सिरे से ख़ारिज कर दिया। उन्होंने कहा, “आप कह रहे हैं आज करगिल बंद है। किसने कहा करगिल बंद है? लद्दाख से चुन के मैं आ रहा हूँ, आप नहीं आ रहे! आप आराम से बैठिए।” जब शोर-शराबा फिर से बढ़ा तो नामग्याल ने कटाक्ष किया, “आज तक आप लोगों (PDP-NC-कॉन्ग्रेस) ने बोला। आज हमारा बोलने का मौका है।”

उन्होंने विपक्ष पर करगिल से पूरी तरह अनभिज्ञ होने का भी आरोप लगाया। “ये सिर्फ़ एक रोड और छोटा-से मार्केट को कारगिल समझ बैठे हैं।” उन्होंने विपक्ष को चुनौती दी कि अगर असली करगिल देखना है तो ज़न्स्कार, वाखा, मुलबेक, शर्गोल, आर्यन घाटी आदि जगहों पर जाना चाहिए। 70% भू-भाग के लोग निर्णय का स्वागत करते हैं।

कुछ छिटपुट विरोध कर रहीं आवाज़ों के बारे में भी उन्होंने PDP-NC-कॉन्ग्रेस को घेरते हुए कहा कि जो लोग करगिल में अशांति की बात कर रहे हैं, असल में वही लोग फ़ोन कर के अशांति पैदा करवा रहे हैं। जो ज़मीन पर उनके हुक्म का पालन कर रहे हैं, वे नहीं जानते वे क्या कर रहे हैं। उन्हें इनकी (PDP-NC-कॉन्ग्रेस) बातों पर यकीन करने की बजाय खुद के भविष्य के बारे में सोचना चाहिए।

‘बराबरी’ और सेक्युलरिज़्म

‘बराबरी’ और सेक्युलरिज़्म के मुद्दे पर भी PDP-NC-कॉन्ग्रेस को घेरते हुए नामग्याल ने कई खुलासे किए। उन्होंने लद्दाख के साथ हुए सौतेले व्यवहार का विवरण पेश किया। उन्होंने बताया कि लद्दाख के नाम पर केंद्र सरकार से लिया जा रहा पैसा कश्मीर में खर्च हो जाता है, लद्दाख नहीं पहुँचता। कश्मीर की दो राजधानियों, दो सचिवालयों में कितने लद्दाखी हैं, उन्होंने पूछा। नामग्याल ने दावा किया कि अगर पिछली सरकारें 1,000 नौकरियों का निर्मांण करतीं थीं, तो उनमें से 10 भी लद्दाख के हिस्से में नहीं आती थीं।

उन्होंने और भी उदाहरण दिए। 2011 में तत्कालीन कॉन्ग्रेस-यूपीए की केंद्र सरकार ने कश्मीर को एक केंद्रीय विश्वविद्यालय दिया। बहुत लड़-झगड़ कर जम्मू को भी एक मिल गया। लेकिन, बकौल तत्कालीन छात्रसंघ नेता नामग्याल, माथे पर काली पट्टियाँ बाँध कर प्रदर्शन करने के बाद भी लद्दाख को केंद्रीय विश्वविद्यालय नहीं मिला। वह अंत में जाकर मोदी सरकार ने दिया।

उन्होंने याद दिलाया कि 2008 में सरकार बनाने पर कॉन्ग्रेस ने कश्मीर में 4 नए ज़िले बनाए। जम्मू को अपने लिए 4 नए ज़िले लड़-झगड़कर लेने पड़े। लेकिन लद्दाख को एक भी नहीं मिला।

भाषा के मुद्दे पर उन्होंने याद दिलाया कि कोई तय, मानक लिपि न होने के बाद भी कश्मीरी भाषा को मान्यता मिल गई। जम्मू के आंदोलन के बाद डोगरी को भी मान्यता दे दी गई। नामग्याल ने पूछा कि लद्दाख की भाषा ‘बोटी’ को भी मान्यता क्यों नहीं दी गई?

उन्होंने विपक्ष को इस पर भी आड़े हाथों लिया कि विपक्ष ‘गर्व से’ दावा करता है कि 370 के चलते कभी बौद्ध-बहुसंख्य लद्दाख आज मुस्लिम-बहुल इलाका बन गया है। नामग्याल ने आरोप लगाया कि PDP-NC-कॉन्ग्रेस ने 370 का दुरुपयोग लद्दाख के बौद्धों को खत्म करने के लिए किया। विपक्ष के जनसांख्यिकीय बदलाव की ‘आशंका’ और सेक्युलरिज़्म के मुद्दे पर उन्होंने लद्दाख के बौद्धों और घाटी के कश्मीरी पण्डितों का ज़िक्र करते हुए पूछा कि क्या यही विपक्ष का ‘सेक्युलरिज़्म’ है? 

‘ दो परिवारों’ की खोली पोलपट्टी

अपने पूरे भाषण में नामग्याल ने ‘दो परिवारों’- PDP-NC के अब्दुल्ला-मुफ़्ती परिवारों की कई बार पोल-पट्टी खोली। उन्होंने शुरू में ही NC सांसद मसूदी पर कटाक्ष करते हुए कहा कि वे (मसूदी) कह रहे हैं कि इसपर विचार होना चाहिए कि 370 जाने से किस चीज़ का नुकसान होगा; केवल 2 परिवारों की रोज़ी-रोटी का। इसपर मसूदी को भी झेंप कर मुस्कुराना पड़ा। इसके अलावा गृह-मंत्री अमित शाह समेत सभी भाजपा सांसदों ने मेजें थपथपा कर इसका समर्थन किया।

फिर इसके कुछ देर बाद उन्होंने कश्मीर पर “शासन नहीं, राज करने वाले” दो परिवारों को फिर आड़े हाथों लेते हुए उनपर लद्दाख- और करगिल-रूपी दो भाइयों को आपस में लड़वाने का भी आरोप लगाया। बकौल नामग्याल, PDP-NC ने करगिल को बौद्ध-बहुल लद्दाख से काट कर जानबूझकर मुस्लिम-बहुल इलाकों से साथ एक जिले में जोड़ दिया।

उन्होंने कटाक्ष यह भी किया कि ये दोनों परिवार कश्मीर को अपने बाप की जागीर समझ बैठे थे। इस पर सभी भाजपा सदस्यों की मेजों के थपथपाने से सदन गूँज उठा। उन्होंने कहा,

“ये सोचते हैं कश्मीर मेरा बाप का जागीर है। नहीं है, नहीं रहा।”

श्यामा प्रसाद मुखर्जी

भाजपा के पितृ-पुरुष श्यामा प्रसाद मुखर्जी के नारे “एक देश में दो प्रधान, दो विधान, और दो निशान, नहीं चलेगा, नहीं चलेगा, नहीं चलेगा” को याद करते हुए PDP-NC-कॉन्ग्रेस को याद दिलाया कि लद्दाख स्वायत्तशासी पहाड़ी विकास काउन्सिल, जिसके अध्यक्ष को कैबिनेट मंत्री का दर्जा प्राप्त है, 2011 में ही कश्मीर के दूसरे विधान-निशान-प्रधान को नकार कर हिंदुस्तान के झंडे और चिह्न को आत्मसात कर चुका है। लद्दाख हिंदुस्तान का अभिन्न अंग बनना चाहता है।

अपने भाषण के अंत में मोदी-शाह और भाजपा सांसदों के अलावा बिल के समर्थन में वोट देने जा रहे गैर-भाजपाई दलों और सांसदों का भी धन्यवाद नामग्याल ने किया। साथ ही उन्होंने कहा कि पहली बार किसी सरकार ने चीन-पाकिस्तान दोनों से सीमा साझा करने वाले लद्दाख के महत्व को समझा है।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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