ब्राह्मण विरोधी और कॉन्ग्रेस के प्रति निष्ठावान डॉक्टर मीना कंडासामी ने हाल ही में सोशल मीडिया पर स्वीकार किया था कि उन्होंने छेड़छाड़ करने वाले एक व्यक्ति के खिलाफ इसलिए शिकायत नहीं की, क्योंकि वह गैर-ब्राह्मण था।
कंडासामी ने ट्विटर पर JNU में 25 साल की उम्र में हुई छेड़छाड़ को लेकर अपनी चुप्पी को सही ठहराने की कोशिश की। उन्होंने कहा, “साल 2010 में एक 25 वर्षीय लड़की के रूप में, जो JNU में यूजीसी की विजिटिंग फेलो थी, मैंने उस गैर-ब्राह्मण फैकल्टी (प्रोबेशन पर आए) पर आरोप नहीं लगाया, जिन्होंने मुझसे छेड़छाड़ की थी। हालाँकि, जेएनयू में GSCASH के कड़े नियम थे। मैंने जेएनयू में कई अकादमिक शुभचिंतकों, प्रोफेसरों और दिल्ली के लेखकों को बताया कि क्या हुआ, लेकिन मैंने कोई कार्रवाई नहीं की, क्योंकि मैंने दो चीजों के बारे में सोचा था।”
अपने ऊपर हुए यौन हमले के बारे में चुप रहने का एक कारण यह भी है कि उन्हें कथित यौन करने वाली की पत्नी से अपने जीवन का पहला वेतन चेक मिलना था। हालाँकि, उन्होंने अपने साथ छेड़छाड़ के बारे में बात नहीं करने का प्राथमिक कारण छेड़छाड़ करने वाले का गैर-ब्राह्मण होना बताया। उन्हें डर था कि उत्पीड़क के खिलाफ आरोप लगाने के कारण उन्हें ‘ब्राह्मण के हाथों की कठपुतली’ कहा जाएगा।
उन्होंने लिखा, “मैं बहुत युवा थी। कोई भी मुझे उस युवती के रूप में नहीं देखता जो न्याय चाहती है। वे इसे केवल एक ब्राह्मण विभाग प्रमुख (प्रोफेसर जिसने मुझे आमंत्रित किया) द्वारा एक गैर-ब्राह्मण बुद्धिजीवी के खिलाफ मेरा इस्तेमाल करने के रूप में देखेंगे। मुझे एक एजेंट बताया जाएगा। अगर मुझे जेएनयू में किसी दलित या बहुजन ने आमंत्रित किया होता तो मैं अलग तरह से सोचती। मैंने अपनी चुप्पी बनाए रखने का फैसला किया, क्योंकि अपमान के साथ रहना ब्राह्मण के हाथों की कठपुतली कहलाने से बेहतर था।”
जाहिरा तौर पर, ब्राह्मणों के प्रति घृणा ने कंडासामी को इतना परेशान कर दिया था कि उन्होंने छेड़छाड़ करने वाले के खिलाफ कार्रवाई नहीं की, क्योंकि वह एक गैर-ब्राह्मण था और न्याय दिलाने से ब्राह्मणवाद को बढ़ावा मिलेगा। उन्होंने अपने खिलाफ यौन हमले को दृढ़ता से सहन किया, क्योंकि इसके खिलाफ बोलने से, उनकी विकृत समझ के अनुसार, ब्राह्मणवाद को बल मिलता।
कंडासामी ने अफसोस जताते हुए लिखा, “यह मैं ही हूँ। मैं 2.0 प्रकार के लोगों से अनुरोध करतीं हूँ कि जो भी नाम से आप मुझे बुलाना चाहें बुलाएँ। मैंने पहली बार ब्राह्मणवाद और उसके वर्चस्व की विषाक्तता देखी है। और हाँ, इस खबर के लिए मुझे के लिए खेद है, लेकिन मैं इसके वर्चस्ववादी परियोजना में शामिल होने वाली बच्ची नहीं हूँ।”
संभवत: वह ‘ब्राह्मणवादी वर्चस्व को खत्म करो’ गिरोह के सम्मानित सदस्यों में से एक हैं, जिनकी ब्राह्मणवाद और ब्राह्मणों पर सभी बुराइयों का दोष मढ़ने की आदत है। साल 2020 में कंडासामी ने अपने एक ट्विटर थ्रेड में ‘ब्राह्मणवादी वर्चस्व को नष्ट करने’ की आवश्यकता पर जोर दिया था।
मीना कंडासामी ने ट्वीट किया था, “कई युवतियाँ आपकी ओर देख रही हैं। उन्हें जाति व्यवस्था को नष्ट करने के लिए कहो। उन्हें बताओ कि आत्मनिर्णय का अर्थ है जाति की अवज्ञा करना। उन्हें ब्राह्मणवादी वर्चस्व को तोड़ने के लिए कहो। मनुस्मृति में आग लगाने के लिए कहो। उन्हें डॉ अम्बेडकर को पढ़ने के लिए कहो। उन्हें विद्रोह करने के लिए कहो।”
मीना कंदासामी के इस ट्वीट से लगता है कि ब्राह्मणवाद शायद समाज को बुरी तरह से प्रभावित करने वाली सभी बुराइयों की जड़ है। शायद इसलिए उन्होंने खुद के साथ हुई छेड़छाड़ से उन्होंने आँखें मूँद लीं, ताकि उन पर ब्राह्मणवाद के एजेंट के रूप में कार्य करने का तोहमत ना लगे।