दक्षिण कोरिया की राजधानी सियोल में शनिवार (29 अक्टूबर, 2022) को आयोजित हैलोवीन फेस्टिवल में मची भगदड़ में करीब 150 लोगों की दर्दनाक मौत हो गई है। इस हादसे के बाद से पूरी दुनिया में हैवोलीन चर्चा का विषय बना हुआ है। आइए जानते हैं, हैवोलीन फेस्टिवल क्या है और कब मनाया जाता है।
हैलोवीन शब्द अंग्रेजी के हॉलो शब्द से लिया गया है, जिसका अर्थ ‘पवित्र’ होता है। यही नहीं, हॉलो शब्द का उपयोग संतों के लिए भी किया जाता है। यही कारण है कि जब स्कॉटलैंड और आयरलैंड में इस फेस्टिवल की जब शुरुआत हुई, तब लोग संतों की वेशभूषा में तैयार होकर अन्य लोगों के घर जाते थे। हैलोवीन के इतिहास को लेकर अलग-अलग मान्यता है। कुछ लोग इसे सैकड़ों वर्ष पुराना तो कुछ 2000 साल पुराना मानते हैं।
पहले इसे, ‘आल सेंट्स डे’, ‘ऑल हैलोज़ डे’ और ‘ऑल हैलोज़ ईव’ कहा जाता था और 1 नवंबर को मनाया जाता था। चूँकि, यह तीन शब्दों का नाम था इसलिए धीरे-धीरे बदलते हुए इसे हैलोवीन कहा जाने लगा। ईसाई, सेल्टिक कैंलेंडर के आखिरी दिन यानी 31 अक्टूबर को पूर्वजों की याद में हैलोवीन फेस्टिवल मनाते हैं। इस साल भी यह फेस्टिवल सोमवार (31 अक्टूबर, 2022) को मनाया जाएगा।
जैसा कि बताया गया है, पहले इस फेस्टिवल को ईसाई संतों की वेशभूषा में तैयार होकर मनाया जाता था। हालाँकि, अब इस फेस्टिवल में हैलोवीन कॉस्ट्यूम (Halloween Costume) यानी डरावने कपड़े और डरावना मास्क-मेकअप किया जाता है। हैवोलीन को लेकर ईसाई समुदाय में मान्यता है कि भूतों का गेटअप करने से पूर्वजों की आत्माओं को शांति मिलती है। वहीं, फसल के मौसम में किसानों की मान्यता थी कि बुरी आत्माएँ धरती पर आकर उनकी फसल को नुकसान पहुँचा सकती हैं। यही कारण था कि लोग डरावने कपड़े पहनने लगे। हालाँकि, इसे लेकर आज भी अलग-अलग कहानियाँ और मान्यताएँ हैं।
इस फेस्टिवल में लोग कद्दू को खोखला करके उसमें डरावने चेहरे और नाक बनाते हैं। इसके बाद, उसके अंदर जलती हुई मोमबत्ती (कैंडल/लालटेन) डाल कर अंधेरे में रख दिया जाता है। इन्हें ही डरावना हैलोवीन कहा जाता है। कई देशों में कद्दू, यानी हैलोवीन ही को घर के बाहर अंधेरे में पेड़ों पर लटकाया जाता है, जो पूर्वजों का प्रतीक होता है। इस फेस्टिवल के खत्म होने के बाद कद्दू को दफना दिया जाता है।