हैदराबाद से भोपाल की दूरी करीब 850 किलोमीटर है। आज करीब 16-17 घंटे में यह दूरी नापी जा सकती है। लेकिन 285 साल पहले हैदराबाद के निजाम के सामने मराठा ऐसी दीवार बनकर खड़े हुए कि इतिहास में शौर्य का एक नया अध्याय जुड़ गया। इसे बैटल ऑफ भोपाल (Battle of Bhopal) यानी भोपाल का युद्ध के नाम से जानते हैं।
24 दिसंबर 1737 को हुए इस युद्ध में निजाम के साथ मुगल, नवाबों और जयपुर के जय सिंह द्वितीय की ताकत भी जुड़ी थी। लेकिन मराठा वीर अकेले ही सब पर भारी पड़े थे। कहते हैं कि यदि इस युद्ध में मराठा पराजित हो जाते तो न केवल भोपाल हैदराबाद का हिस्सा बनता, बल्कि मुगलों का भी कभी अंत नहीं होता।
The Marathas under Peshwa Baji Rao I won a decisive victory in the Battle of Bhopal against the combined armies of the Mughals and the Nizam. pic.twitter.com/XQA9tsbIH9
— Dr Abhas Kumar Mitra (@abhas_mitra) April 12, 2022
भोपाल पर निजाम का कब्जा
समृद्ध इतिहास वाला भोपाल आज मध्य प्रदेश की राजधानी है। इसकी पृष्ठभूमि राजा भोज से जुड़ी हुई है, जिन्होंने यहाँ दुनिया का सबसे बड़ा तालाब बनावाया था। सालों बाद यहाँ निजाम शाह का शासन आया। निजाम की पत्नी कमलापति थीं, जिनके नाम के चलते लोग धीरे-धीरे इसे रानी कमलापति का भोपाल कहने लगे थे। बाद में रानी कमलापति का भोपाल, दोस्त मोहम्मद खान का हो गया। उसने रानी के बेटे को मारकर खुद को यहाँ नवाब घोषित कर दिया। दोस्त खान ने यहाँ 1723 से 1728 तक राज किया। फिर हैदराबाद के निजाम ने भोपाल पर हमला कर उसे (दोस्त मोहम्मद खान) अपने अधीन कर लिया। उसकी मौत के बाद निजाम का बेटा यहाँ का नवाब बनाया गया।
मराठा और निजाम की संयुक्त सेना के बीच युद्ध
हैदराबाद का निजाम हमेशा भोपाल पर काबिज रहना चाहता था। दूसरी ओर मार्च 1737 में मराठाओं से हार कर मुगल बिलबिलाए हुए थे। वे कैसे भी मराठाओं की बढ़ती ताकत को रोकना चाहते थे। यही वजह थी कि उन्होंने हैदराबाद के निजाम के कंधे पर बंदूक रखकर मराठाओं को खत्म करने की साजिश रची। इस साजिश में हैदराबाद के निजाम के साथ केवल मुगल ही नहीं, बल्कि जय सिंह द्वितीयव अवध और बंगाल के नवाब भी थे। सभी एकजुट हुए और मराठाओं पर हमला बोलने की साजिश रची। मगर वे भूल गए थे कि दिल्ली में घेरकर मुगलों को मारने वाले पेशवा बाजीराव अब भी मराठाओं का नेतृत्व कर रहे थे।
Bajirao Ballal Peshwa was the only warrior who remained undefeated till his death.
— Harini Rayasam (@HariniRayasam) March 30, 2022
He has defeated Mughals and their vassal Nizam – ul Mulk at several battles like Battle of Delhi and Battle of Bhopal. pic.twitter.com/DporAY0aAk
भोपाल का युद्ध, 1737
24 दिसंबर 1737, वही दिन है जब 70 हजार की फौज को पेशवा बाजीराव की सेना ने इस तरह धूल चटाई कि निजाम को भोपाल छोड़ना पड़ा, जबकि मुगलों का नामोनिशान मिटने की कगार पर आ गया।
#ThisDayInHistory Post 545:
— Sayan Dey (@sayan_dey) December 24, 2021
24 December 1737 (284 years ago): The #Marathas defeated the combined forces of the Mughal Empire, Rajputs of Jaipur, Nizam of Hyderabad, Nawab of Awadh and Nawab of Bengal in the Battle of Bhopal.
[1]#ThisDayInHistory #History #OnThisDay #OTD pic.twitter.com/ZUZOCfjDwi
इतिहास बताता है कि 1737 के दिसंबर में हैदराबाद के निजाम और अन्य नवाबों के साथ साठ-गाँठ कर मराठाओं को हराने के लिए मुगलों ने हमला बोला। हैदराबाद के निजाम का उद्देश्य साफ था वे भोपाल पर कब्जा चाहते थे और मुगल किसी भी तरह मराठाओं को हराकर अपना अस्तित्व बचाना चाहते थे। वह दिल्ली की हार से तिलमिलाए थे। उनको पता चल रहा था कि औरंगजेब की मौत उन्हें लगातार कमजोर कर रही है। वहीं पेशवा बाजीराव के नेतृत्व में मराठा सेना हर दिन मजबूत हो रही थी।
यही वजह थी कि 1737 में मुगल शासक मोहम्मद शाह ने खुद हैदराबाद निजाम से मदद माँगी। इसके बाद निजाम ने भोपाल को अपने कब्जे में रखने के लिए करीबन 70000 फौजी मराठाओं से लड़ने के लिए लगाए। लेकिन पेशवा बाजीराव की सूझबूझ का उनके पास कोई जवाब नहीं था। निजाम ने जहाँ भोपाल की लालच में किले में डेरा जमाकर अपनी रक्षात्मक रणनीति तैयार करनी शुरू की। वहीं पेशवा ने समझदारी के साथ आक्रमण का निर्णय लिया।
A war dosnt have to be a pitched battle as sun tzu says ” a true warrior always avoids battles. ”
— Samarth (@Samarth19567493) December 22, 2022
Bajirao surrounded them in both these instances and made them sign treaties much favourable to him . He won entire malwa province in battle of bhopal. pic.twitter.com/P13xqiZflg
उन्होंने निजाम को किले सहित चारों ओर से घेरा और फिर उनके खाने-पीने के सामानों पर रोक लगा दी। पेशवा जानते थे कि सेना कितनी ही बड़ी क्यों न हो, लेकिन अगर उन्होंने पानी जैसी मूलभूत जरूरत पर गाज गिरा दी तो आधी जीत उनकी वहीं हो जाएगी और निजाम को अपनी सेना सहित घुटने टेकने ही पड़ेंगे। पेशवा ने अपनी इसी रणनीति पर काम किया। युद्ध से पहले उन्होंने अपने भाई चिमाजी को 10 हजार सैनिकों के साथ अलग भेज दिया। जब निजाम की सेना के साथ मराठाओं की सेना के आमने-सामने आने का समय आया तब तक निजाम की सेना प्यास से तड़प चुकी थी, क्योंकि चिमाजी की मदद से पेशवा ने पानी के हर स्रोत में जहर मिलवा दिया था। न सैनिक उस पानी को पी सकते थे और न ही लड़ सकते थे। अंतत: निजाम की वो भारी-भरकम 70 हजार की सेना पस्त पड़ गई।
निजाम की फ़ौज के कमजोर पड़ते ही बाजीराव ने मराठा सेना के साथ हमला बोला और ऐसी मारकाट मचाई कि हैदराबाद के निजाम ने कसम खा ली कि वह दोबारा मराठा से युद्ध नहीं करेंगे। हालात देख निजाम ने न केवल भोपाल पर कब्जे का सपना छोड़ा, बल्कि उलटा 50 लाख रुपए मराठाओं को देकर अपनी और मुगलों के सरदार मुहम्मद खान बहादुर की जान बचाई। वहीं 7 जनवरी 1738 को यानी इस युद्ध के चंद दिनों बाद ही भोपाल के दोराहा में पेशवा बाजीराव और जय सिंह द्वितीय के बीच शांति संंधि हुई। इसके बाद मराठा ने मालवा प्रांत पर आधिपत्य जमाया और भोपाल में स्वराज्य की स्थापना हुई।
Find out how in the Battle of Bhopal of 1737 between Marathas and Mughal forces led by Nizam of Hyderabad had resulted in Maratha victory and subsequently, the territory of Malwa was given to them.#HistoryAwarenesshttps://t.co/SvoQB8K6NR pic.twitter.com/E3g1OLbmoO
— Sangam Talks (@sangamtalks) December 23, 2018