झारखंड के पारसनाथ पहाड़ी में स्थित जैन समाज की आस्था के केंद्र सम्मेद शिखर को लेकर शुरू हुआ विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा है। इस विवाद को नई हवा देते हुए झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) के विधायक लोबिन हेम्ब्रम ने कहा है कि पार्श्वनाथ पर्वत पर जनजातियों का हक है, इसके लिए जनजातीय वर्ग आंदोलन करेगा।
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, जनजातीय संगठन पारसनाथ पहाड़ी को मराँग बुरु देवता बताते हुए पहाड़ी में पशु बलि के अधिकार की माँग रहे हैं। इन माँगों को आगे बढ़ाते हुए, जेएमएम विधायक लोबिन हेम्ब्रम ने कहा है कि पारसनाथ पर्वत शुरू से ही जनजातियों का रहा है। उन्होंने कहा कि जैन समुदाय सम्मेद शिखर पर अपना अधिकार जता रहा है, लेकिन इसे स्वीकार नहीं किया जाएगा। देश भर के जनजातीय इसका विरोध करेंगे।
लोबिन हेम्ब्रम ने आगे कहा है कि पारसनाथ की पहाड़ियों में जनजातियों को अधिकार देने के लिए झारखंड के मुख्यमंत्री को 25 जनवरी तक का समय दिया गया है। यदि समय रहते अधिकार नहीं मिलते तो 30 जनवरी को उलिहातु (बिरसा मुंडा की जन्मस्थली) और 2 फरवरी को भोगनाडीह (संताल विद्रोह जहाँ से शुरु हुआ) में अपनी माँगों के लिए उपवास करेंगे। इस मामले में राज्य और केंद्र सरकार का ध्यान आकर्षित करने के लिए 10 जनवरी को जनजातीय वर्ग पारसनाथ में एकजुट होगा।
उन्होंने आगे कहा है, “आज यह हाल क्यों हुआ। उस जगह पर सालों से जनजातीय समाज के लोग रह रहे है। लेकिन उस 10 किलोमीटर की परिधि में उन्हें बलि चढ़ाने से रोका जा रहा है। यहाँ तक कि जंगलों से लकड़ी तक नहीं काटने दी जा रही। जमीन हमारी पहाड़ हमारे और कब्जा किसी और का यह अब नहीं चलेगा।”
झामुमो विधायक हेम्ब्रम ने यह भी कहा है कि गिरिडीह में जैन मुनि नग्न होकर घूमते हैं, इससे बहन-बेटियों और बहुओं को सर झुका कर चलना पड़ता है। लेकिन किसी ने भी इस पर सवाल नहीं उठाया। धार्मिक भावनाओं को देखते हुए उनका सम्मान किया।
बता दें कि जैन समाज के लोगों के विरोध प्रदर्शन और उनकी माँगों को ध्यान में रखते हुए केंद्र सरकार ने झारखंड सरकार के उस फैसले पर रोक लगा दी है, जिसमें सम्मेद शिखर को पर्यटन स्थल घोषित करने का ऐलान किया गया था। इस मामले को लेकर केंद्र सरकार ने एक कमेटी बनाई है और झारखंड सरकार से कहा है कि इस समिति में वह 2 सदस्यों को शामिल करे। इस समिति में एक सदस्य स्थानीय जनजातीय समुदाय से शामिल किया जाए।