मीडिया में ये बात ज़ोर-शोर से चल रही है कि जेएनयू ने रोमिला थापर से सीवी माँगी है। अगर उन्होंने अपना सीवी नहीं दिखाया तो उन्हें एमेरिटस प्रोफेसर के पद से हटा दिया जाएगा। वामपंथियों ने सोशल मीडिया के माध्यम से कहा कि ये थापर का अपमान है। वहीं कुछ अन्य लोगों ने जेएनयू प्रशासन पर सवाल खड़े करते हुए कहा कि जेएनयू थापर से उनकी सीवी कैसे माँग सकता है? हालाँकि, उन्होंने इसका जवाब नहीं दिया कि जेएनयू ऐसा क्यों नहीं कर सकता।
One of the world’s greatest historians Romila Thapar had recently slammed the BJP govt for peddling myths to justify its Hindu Nationalist ideology. Now she is asked to show her CV for continuing as Professor Emeritus at JNU! pic.twitter.com/35TeAAQ67o
— Prashant Bhushan (@pbhushan1) September 2, 2019
क्या रोमिला थापर के माथे पर सींग उगा हुआ है? क्या रोमिला थापर जेएनयू जैसे बड़े संस्थानों के नियम-क़ायदों से ऊपर हैं? क्या रोमिला थापर किसी संस्था में उसके नियम-क़ानून का पालन किए बिना बने रहना चाहती हैं। आख़िर रोमिला थापर के पास ऐसा क्या है कि जेएनयू उनके कहे अनुसार अपना काम करे? मीडिया आउटलेट्स ने यह भी लिखा कि किसी भी एमेरिटस प्रोफेसर से सीवी नहीं माँगी जाती और जानबूझ कर ऐसा किया गया है।
JNU asking Romila Thapar to submit a cv to JNU to continue her Professor Emerita status is worse than an insult, it is a crime against the values & principles of education & respect for intellectual merit. Can JNU sink any lower? https://t.co/mb9widqiNu
— Shashi Tharoor (@ShashiTharoor) September 1, 2019
वामपंथी मीडिया गुट ने फासिज़्म का रोना रोया। उनका शायद मानना है कि लेफ्ट लिबरल प्रोफेसरों या कथित विशेषज्ञों की योग्यता पाए सवाल नहीं खड़े किए जा सकते और वे जो कह दें, वही दुनिया का अंतिम सत्य होता है।खैर, आप यह जान कर चौंक जाएँगे कि वामपंथियों के इस तर्क में कोई दम नहीं है क्योंकि जेएनयू प्रशासन द्वारा सीवी माँगने का निर्णय एक रूटीन प्रक्रिया है।
I’m no admirer of Romilla Thapar,but to humiliate her like this & eventually to try and strip her of JNU emeritus post makes @narendramodi look small,vindictive.Will govt relook all Padma awards etc also now?
— Sunil Jain (@thesuniljain) September 1, 2019
Give it a break, focus on jobs, growth, harmony https://t.co/ycXNC5wDzw
सिर्फ़ रोमिला थापर ही नहीं बल्कि 75 की उम्र पार कर चुके सभी एमेरिटस प्रोफेसरों से जेएनयू प्रशासन द्वारा उनकी सीवी माँगी गई है। जेएनयू ने कुल 25 प्रोफेसरों को आजीवन एमेरिटस प्रोफेसर की मान्यता दी है। अब यूनिवर्सिटी प्रशासन ने इसकी समीक्षा करने का निर्णय लिया है। अधिकतर एमेरिटस प्रोफेसरों ने पिछले 3 वर्षों में एक बार भी यूनिवर्सिटी में उपस्थिति दर्ज नहीं कराई है और न ही विश्वविद्यालय के अकादमिक कार्यों में कोई योगदान दिया है। ये रही सच्चाई:
इसीलिए, जेएनयू की एग्जीक्यूटिव काउंसिल ने 75 वर्ष की उम्र पार कर चुके सभी एमेरिटस प्रोफेसरों की सीवी माँगी है, ताकि उनकी समीक्षा की जा सके। यह जेएनयू के नियम-क़ानून के अंतर्गत किया जा रहा है। जेएनयू के नियम-क़ायदों के मुताबिक़ [Rule-32(g)], जब कोई एमेरिटस प्रोफेसर 75 की उम्र को पार कर जाता है तो यूनिवर्सिटी उनके स्वास्थ्य, उपस्थिति और क्रियाकलापों के आधार पर यह निर्णय लेगा कि उनको मिली मान्यता बरकरार रखी जाए या नहीं।
You can put your entire troll army and bots at work but it will still not be enough to stop any us from asking a simple question: JNU admin how low will you sink? As an admirer of Prof #RomilaThapar ‘s work this is unacceptable, it’s an insult of her deep intellect.
— Supriya Shrinate (@SupriyaShrinate) September 2, 2019
रोमिला थापर 87 वर्ष की हो गई हैं और 75 से ज्यादा उम्र वाले एमेरिटस प्रोफेसरों की समीक्षा होगी तो वह इस सूची में ऑटोमैटिक आ जाती हैं। फिर इतना हंगामा क्यों? क्या जेएनयू रोमिला थापर के लिए अपने नियम-क़ानून बदल ले? वामपंथियों की सोच यह है कि जेएनयू के पास दो नियम-क़ानून होने चाहिए। एक सामान्य लोगों के लिए और एक वामपंथी प्रोफेसरों के लिए।
ऊपर आपने जितनी भी ट्वीट्स देखी, उन सभी में गिरोह विशेष ने मोदी और जेएनयू द्वारा रोमिला थापर को परेशान करने का आरोप लगाया है, जिसकी सच्चाई हमने आपको बताई।