केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बुधवार (1 फरवरी 2023) को बजट पेश किया। बजट में वर्ष 2023-24 के लिए रक्षा क्षेत्र (Defense sector) के लिए कुल 5.94 लाख करोड़ रुपए आवंटित किए गए। यह राशि कुल बजट का करीब आठ फीसदी है। पिछले वित्त वर्ष के मुकाबले इस बार करीब 70 हजार करोड़ रुपए रक्षा बजट बढ़ाया गया है। पिछले वर्ष (5.25 लाख करोड़) के मुकाबले यह करीब 13 प्रतिशत ज्यादा है।
वित्त मंत्री के मुताबिक रक्षा क्षेत्र को आवंटित बजट में से 1.62 लाख करोड़ रुपए हथियार और गोला-बारूद खरीदने पर खर्च किया जाएगा। 2.70 लाख करोड़ रुपए जवानों की सैलरी और उनके लिए जरूरी संशाधन जुटाने पर खर्च होंगे। इसके अलावा 1 लाख 38 हजार करोड़ रुपए की रकम सेवानिवृत्त (Retired) सैनिकों के पेंशन पर खर्च किए जाएँगे।
#UnionBudget2023 | Defence Ministry has been allocated Rs 5.94 lakh crores for the financial year 2023-24. pic.twitter.com/QXzoi001iO
— ANI (@ANI) February 1, 2023
पिछले 4 रक्षा बजट पर नजर डालें तो वर्ष 2019-20 में 4.31 लाख करोड़ रुपए रक्षा क्षेत्र के लिए दिए गए थे। वहीं 2020-21 में इसे बढ़ाकर 4.71 लाख करोड़ रुपए किया गया। 2021-22 में देश का रक्षा बजट 4.78 करोड़ रुपए था। इसी तरह वर्ष 2022-23 के लिए 5.25 लाख करोड़ रुपए का बजट दिया गया। हर वर्ष रक्षा क्षेत्र के लिए आवंटित बजट में बढ़ोतरी की जा रही है।
लेकिन एक समय ऐसा भी था जब देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की सरकार ने रक्षा बजट कम कर दिया था। उसके बाद चीन ने जो किया वह भारतीय शौर्य के इतिहास पर सबसे गहरा घाव बना। रक्षा बजट में कटौती नेहरू की ऐसी गलती है, जिस पर चर्चा बहुत कम हुई है। जब चीन और भारत के बीच तनाव के हालात थे तब नेहरू ने 1959 के रक्षा बजट में कटौती की थी। इसके 3 साल बाद भारत-चीन युद्ध हुआ। भारत यह युद्ध बुरी तरह हार गया।
1959 :: 82 Crore Deficit In Central Budget
— indianhistorypics (@IndiaHistorypic) February 1, 2021
Defence Expenditure Less by 25 Crores pic.twitter.com/NX3fV3Ztys
1959 के केन्द्रीय बजट में रक्षा क्षेत्र में 25 करोड़ रुपए की कटौती हुई थी। इसके अलावा केन्द्रीय बजट में 82 करोड़ रुपए की कटौती की गई थी। यह नेहरू द्वारा लिए गए विकराल निर्णयों की श्रृंखला का पहला फैसला था, जिसकी वजह से भारतीय सेना 1962 के युद्ध में बुरी तरह पराजित हुई। भारत न सिर्फ युद्ध हारा, बल्कि अक्साई चीन स्थित कई हज़ारों स्क्वायर किलोमीटर ज़मीन पर चीन ने कब्ज़ा कर लिया।
नेहरू की अगुवाई वाली तत्कालीन सरकार को चीन के हमलों को लेकर कई चेतावनी मिल चुकी थी, 1962 से लगभग 2.5 साल पहले चीनी सैनिकों ने सीमा पर कब्ज़ा करना शुरू कर दिया था। इसके बावजूद जवाहर लाल नेहरू और तत्कालीन रक्षा मंत्री कृष्णा मेनन को सेना से राय-मशवरे और चर्चा की ज़रूरत महसूस नहीं हुई। उसका नतीजा यह निकला कि भारत को अपने इतिहास की सबसे बुरी हार का सामना करना पड़ा।
नेहरू ने सेना द्वारा दिए गए तमाम संकेतों को नज़रअंदाज़ किया और सेना को मजबूत बनाने की कोई छोटी कोशिश तक नहीं की। रिपोर्ट्स में यहाँ तक दावा किया जाता है कि नेहरू और तत्कालीन रक्षा मंत्री वीके कृष्ण मेनन ने योजनाबद्ध तरीके से जनरल थिमैया (1957 से 1961 तक आर्मी स्टाफ के सेनाध्यक्ष) को बदनाम करने की साज़िश रची।
1959 के पहले भी नेहरू सेना को भंग करना चाहते थे। मेजर जनरल डीके ‘मोंटी’ पाटिल (Major General DK “Monty” Palit) द्वारा लिखी गई मेजर जनरल एए ‘जिक’ रुद्रा ऑफ़ इंडियन आर्मी (Major General AA “Jick” Rudra of the Indian Army) की बायोग्राफी के मुताबिक़, “आज़ादी के कुछ साल बाद नेहरू ने कहा आखिर कैसे भारत को एक ‘डिफेंस प्लान’ की ज़रूरत है। अहिंसा हमारी नीति है। हमें सेना के लिहाज़ से कोई ख़तरा नहीं नज़र आता है। सेना को स्क्रैप (scrap) करो। सुरक्षा संबंधी ज़रूरतें पूरी करने के लिए पुलिस है।”