केरल हाईकोर्ट में 25 फरवरी, 2023 को सबरीमाला-मलिकप्पुरम मंदिरों में ‘मेलशांति’ (मुख्य पुजारी) के रूप में नियुक्ति के लिए सिर्फ मलयाला ब्राह्मणों से आवेदन लिए जाने की अधिसूचना के खिलाफ दायर याचिकाओं पर सुनवाई जारी रही। वकील जे साई दीपक ने उच्च न्यायालय के सामने सबरीमाला मंदिर की तरफ से दलील दी। उन्होंने कोर्ट के सामने मंदिर की परंपराओं की रक्षा के लिए पुजारियों की नियुक्ति समेत मंदिर के आंतरिक मामलों में बाहरी हस्तक्षेप पर रोक लगाने को लेकर अपनी बात रखी।
केरल के प्रसिद्ध सबरीमाला मंदिर का संचालन करने वाले त्रावणकोर देवस्वाम बोर्ड की तरफ से सबरीमाला मंदिर के मुख्य पुजारी (मेलशांति) के रूप में नियुक्ति के लिए आवेदन मँगवाए गए थे। देवस्वाम बोर्ड की तरफ से 27 मई, 2021 को जारी अधिसूचना के अनुसार पुजारी के पद के लिए केवल मलयाला ब्राह्मण ही आवेदन दे सकते हैं। याचिकाकर्ताओं ने त्रावणकोर देवास्वाम बोर्ड की अधिसूचना को भारत के संविधान के अनुच्छेद 14, 15 (1) और 16 (2) के तहत प्राप्त मौलिक अधिकारों का हनन करार दिया।
जस्टिस अनिल के नरेंद्रन और जस्टिस पीजी अजित कुमार की बेंच के सामने त्रावणकोर देवास्वोम बोर्ड की अधिसूचना और इसके खिलाफ दी गई याचिकाओं पर सुनवाई चल रही है। 4 फरवरी, 2023 को याचिकाकर्ताओं में से एक की ओर से पेश एडवोकेट बीजी हरिद्रनाथ ने अपनी दलीलें रखी थीं। इसके बाद अदालत ने मामले की अगली सुनवाई 25 फरवरी, 2023 की सुबह होने की बात कही।
Here’s the link to the counter affidavit and written submissions filed in defense of the Sree Sabarimala Ayyappa Temple on behalf of @People4Dharma. Those who wish to read are welcome to and draw their own conclusions. Swamiye Saranam Ayyappa- https://t.co/DZzzQLgfyh pic.twitter.com/dRDpv3wdzO
— Sai Deepak J (@jsaideepak) March 12, 2023
25 फरवरी को ‘पीपल फॉर धर्म ट्रस्ट’ का प्रतिनिधित्व करने वाले अधिवक्ता जे साई दीपक ने केरल उच्च न्यायालय में त्रावणकोर देवास्वाम बोर्ड की अधिसूचना के पक्ष में दलील दी। जे साई दीपक ने अदालत में कहा कि मंदिर में पुजारी की नियुक्ति एक सेक्युलर गतिविधि नहीं है। इसलिए यह अनुच्छेद 14, 15 (1) और 16 (2) के तहत प्राप्त मौलिक अधिकारों का हनन नहीं माना जाएगा।
साई दीपक ने कहा कि मंदिर में पुजारियों की नियुक्ति वाली अधिसूचना के खिलाफ दी गई याचिकाएँ गलत तथ्यों पर आधारित हैं। उन्होंने कहा कि आम तौर पर किसी भी पद पर नियुक्ति का कार्य धर्मनिरपेक्ष होता है लेकिन मंदिर की पुजारी के पद पर जिन लोगों की नियुक्ति होगी वे धर्मनिरपेक्षता के आधार पर नहीं बल्कि धार्मिक विचारों के आधार पर ही चुने जाएँगे। यह प्रक्रिया धार्मिक होने के कारण धर्मनिरपेक्ष नहीं है लेकिन धर्मनिरपेक्ष विरोधी भी नहीं है।
जे साई दीपक ने आगे कहा कि सबरीमाला मंदिर पूरी तरह से केरल सरकार द्वारा नियंत्रित नहीं है। इसे 1950 के त्रावणकोर-कोचीन हिंदू धार्मिक संस्थान अधिनियम के प्रावधानों के तहत नहीं देखा जा सकता। साई दीपक ने तर्क दिया कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 (कानून के समक्ष समानता) और अनुच्छेद 21 (जीवन का अधिकार) के तहत दिए गए संवैधानिक अधिकार अनुच्छेद 25 और 26 (धर्म के अधिकार) पर दिए गए अधिकारों को प्रभावित नहीं कर सकते।
जे साईं दीपक ने सबरीमाला मंदिर की परंपराओं के संरक्षण की बात कही
अधिवक्ता ने तांत्रिक मंदिर के परंपराओं की रक्षा की बात करते हुए कहा कि मंदिर अपनी परंपराओं की वजह से अपने आप में एक वर्ग है और इसलिए यहाँ अनुच्छेद 26 द्वारा प्रदत्त अधिकार लागू होंगे। जे साई दीपक ने सबरीमाला मंदिर में मुख्य पुजारी के पद के लिए जाति आधारित आरक्षण के दावों को भी खारिज कर दिया। उन्होंने कहा यहाँ कोई जातिगत विचार शामिल नहीं है। कहीं भी ब्राह्मणों के नियुक्ति की बात नहीं हो रही है।
साई दीपक ने कहा कि देश भर में पाए जाने वाले अन्य ब्राह्मण इस पद के लिए आवेदन नहीं कर सकते। यहाँ तक कि अपने आप को सबसे विशुद्ध कहने वाले चितांबरम ब्राह्मण भी इस पद के लिए आवेदन नहीं कर सकते। मेलशांति के रूप में नियुक्ति के लिए सिर्फ मलयाला ब्राह्मण ही आवेदन कर सकते हैं। इसकी मुख्य वजह है मंदिर के आध्यात्मिक ऊर्जा को बनाए रखना।
जे साई दीपक ने सबरीमाला मामले में न्यायिक हस्तक्षेप के प्रभाव पर प्रकाश डाला
केरल हाईकोर्ट के सामने जे साई दीपक ने कहा, “न्यायिक हस्तक्षेप के माध्यम से मंदिर के नियमों को बदलने का कोई भी प्रयास मंदिर के इतिहास को फिर से लिखने जैसा होगा। इसकी अनुमति नहीं दी जा सकती, क्योंकि इसका असर बड़े पैमाने पर देखने को मिलेगा।”
अधिवक्ता ने आगे कहा, “कल को यदि कोई मुस्लिम परिवार में पैदा हुआ व्यक्ति कहे कि मैं इस देवता को मानता हूँ, मैं वेदों का ज्ञाता हूँ, मुझे संस्कृत का भी ज्ञान है, मैं तंत्र विद्या भी जानता हूँ, मुझे इस मंदिर में पुजारी बना दो। ऐसे में यह तर्क गलत नहीं होगा क्योंकि मंदिर तो सबके लिए खुला है। साई दीपक ने कहा कि इसी तरह कल को एक रूसी व्यक्ति भी भारतीय नागरिक बनने के बाद मंदिर का पुजारी बनने की इच्छा जाहिर कर सकता है। इस याचिका पर यदि ध्यान दिया गया तो यह सब मुमकिन है।
धार्मिक गतिविधि के धर्मनिरपेक्षीकरण के खिलाफ साई दीपक की आपत्तियाँ
जे साई दीपक ने पुजारियों की नियुक्ति को सेक्युलर गतिविधि के रूप में न देखने की दलील दी। उन्होंने कहा कि ऐसा करना मंदिर की परंपरा और यहाँ की आध्यात्मिकता को नुकसान पहुँचाने जैसा होगा। उन्होंने कहा कि पुजारी की नियुक्ति किसी भी दृष्टिकोण से सुकेलर प्रक्रिया नहीं हो सकती। मंदिर एक धार्मिक जगह है जहाँ हर छोटी से बड़ी प्रक्रिया पूर्णत: धार्मिक होती है। मंदिर एक धार्मिक स्थान है।
जे साई दीपक ने तर्क दिया कि भीड़ का प्रबंधन धार्मिक नहीं है। वेतन का भुगतान धार्मिक नहीं है। वे अलग पहलू हैं। लेकिन, यह याचिका मंदिर की पहचान के साथ खिलवाड़ करने जैसा है जो मंदिर में प्रवेश के मुद्दे से भी अधिक गंभीर है। उन्होंने हाई कोर्ट को यह भी जानकारी दी कि सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court) इस समय इस बात पर विचार कर रहा है कि धर्म के ऐसे मामलों में न्यायपालिका किस हद तक हस्तक्षेप कर सकती है।
जे साई दीपक ने केरल उच्च न्यायालय से अनुरोध किया कि जब तक सर्वोच्च न्यायालय का फैसला नहीं आ जाता तब तक याचिकाओं पर निर्णय को टाल दिया जाना चाहिए। मामले की अगली सुनवाई 1 अप्रैल 2023 को होगी।