Sunday, December 22, 2024
Homeविविध विषयअन्य'हिन्दू जनजागरण का सेनापति' जिसने नेपथ्य से थाम रखी थी राम मंदिर आंदोलन की...

‘हिन्दू जनजागरण का सेनापति’ जिसने नेपथ्य से थाम रखी थी राम मंदिर आंदोलन की डोर

"कुछ किरदार नेपथ्य में थे। लेकिन अयोध्या के राम जन्मभूमि मुक्ति आंदोलन की डोर उनके ही हाथों में थी। मोरोपंत पिंगले एक ऐसे ही किरदार थे। दरअसल, अयोध्या आंदोलन के असली रणनीतिकार वही थे।"

एक थे मोरोपंत त्र्यंबक पिंगले जिन्हें ‘मोरोपंत पेशवा’ भी कहते हैं। वे शिवाजी के अष्टप्रधानों में से एक थे। उनके निधन के करीब 236 साल बाद पैदा हुए थे मोरेश्‍वर नीलकंठ पिंगले। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के प्रचारक रहे मोरेश्वर भी मोरोपंत पिंगले के नाम से ही जाने गए।

30 दिसम्बर 1919 को मध्य प्रदेश के जबलपुर में पैदा हुए मोरेश्वर नीलकण्ठ पिंगले का निधन 85 साल की उम्र में 21 सितम्बर 2003 को हुआ था। मराठी में उन्हें ‘हिन्दु जागरणाचा सरसेनानी (हिन्दू जनजागरण के सेनापति)’ कहा जाता है।

संघ के साथ उनका जुड़ाव छह दशक से भी ज्यादा समय तक रहा। इस दौरान उन्होंने कई दायित्वों का निवर्हन किया। मसलन, मध्य भारत के प्रांत प्रचारक, पश्चिम क्षेत्र के क्षेत्र प्रचारक, अखिल भारतीय शारीरिक प्रमुख, अखिल भारतीय बौद्धिक प्रमुख, अखिल भारतीय प्रचारक प्रमुख, सह सरकार्यवाह। आपातकाल के समय छह अघोषित सरसंघचालकों में से वे भी एक थे। तीसरे सरसंघचालक बालासाहब देवरस के निधन के बाद वे उनके उत्तराधिकारी बनने के दावेदारों में भी शामिल रहे।

धर्मांतरण के खिलाफ आरएसएस के अभियान के पीछे भी मोरोपंत पिंगले ही थे। 12 जुलाई, 1981 को आरएसएस की नेशनल एग्‍जीक्‍यूटिव ने धर्मांतरण के खिलाफ एक प्रस्‍ताव पारित किया। इसी साल विश्व हिन्दू परिषद (वीएचपी) ने धर्मांतरण को रोकने के लिए पहला कार्यक्रम शुरू किया था। इसे संस्‍कृति रक्षा निधि योजना कहा गया। वीएचपी की 1983 की एकात्‍म यात्रा के पीछे उन्‍हीं का दिमाग था। इसका मकसद हिंदुओं को एकजुट करना था।

रामजन्मभूमि आन्दोलन के रणनीतिकार पिंगले ही थे। राम जानकी रथ यात्रा जो 1984 में निकाली गई, उसके वे संयोजक थे। वरिष्ठ पत्रकार हेमंत शर्मा अपनी किताब ‘युद्ध में अयोध्या’ में लिखते हैं, “कुछ किरदार नेपथ्य में थे। लेकिन अयोध्या के राम जन्मभूमि मुक्ति आंदोलन की डोर उनके ही हाथों में थी। मोरोपंत पिंगले एक ऐसे ही किरदार थे। दरअसल, अयोध्या आंदोलन के असली रणनीतिकार वही थे।” बकौल शर्मा, “उनकी बनाई योजना के तहत देशभर में करीब तीन लाख रामशिलाएँ पूजी गई। गॉंव से तहसील, तहसील से जिला और जिलों से राज्य मुख्यालय होते हुए लगभाग 25 हजार शिला यात्राएँ अयोध्या के लिए निकली थीं। 40 देशों से पूजित शिलाएँ अयोध्या आई थी। यानी, अयोध्या के शिलान्यास से छह करोड़ लोग सीधे जुड़े थे। इससे पहले देश में इतना सघन और घर-घर तक पहुॅंचने वाला कोई आंदोलन नहीं हुआ था।”

शर्मा की किताब बताती है कि 1992 में संघ के तीन प्रमुख नेताओं एचवी शेषाद्रि, केएस सुदर्शन और मोरोपंत पिंगले 3 दिसंबर से ही अयोध्या में डेरा डाले हुए थे। आंदोलन के सारे सूत्र इन्हीं के पास थे। पिंगले एक बात अक्सर कहा करते थे, “जैसे सौर ऊर्जा संयंत्र से बिजली पैदा होती है, वैसे ही संघ की शाखा और कार्यक्रमों से भी संगठन रूपी बिजली पैदा होती है।” संघ का फैलाव बता रहा है कि पिंगले सही ही कहा करते थे।

Join OpIndia's official WhatsApp channel

  सहयोग करें  

एनडीटीवी हो या 'द वायर', इन्हें कभी पैसों की कमी नहीं होती। देश-विदेश से क्रांति के नाम पर ख़ूब फ़ंडिग मिलती है इन्हें। इनसे लड़ने के लिए हमारे हाथ मज़बूत करें। जितना बन सके, सहयोग करें

अजीत झा
अजीत झा
देसिल बयना सब जन मिट्ठा

संबंधित ख़बरें

ख़ास ख़बरें

किसी का पूरा शरीर खाक, किसी की हड्डियों से हुई पहचान: जयपुर LPG टैंकर ब्लास्ट देख चश्मदीदों की रूह काँपी, जली चमड़ी के साथ...

संजेश यादव के अंतिम संस्कार के लिए उनके भाई को पोटली में बँधी कुछ हड्डियाँ मिल पाईं। उनके शरीर की चमड़ी पूरी तरह जलकर खाक हो गई थी।

PM मोदी को मिला कुवैत का सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘द ऑर्डर ऑफ मुबारक अल कबीर’ : जानें अब तक और कितने देश प्रधानमंत्री को...

'ऑर्डर ऑफ मुबारक अल कबीर' कुवैत का प्रतिष्ठित नाइटहुड पुरस्कार है, जो राष्ट्राध्यक्षों और विदेशी शाही परिवारों के सदस्यों को दिया जाता है।
- विज्ञापन -