पश्चिम की दुनिया ने तो इस सदी में 9/11 का स्वाद चखा और इस्लामी आतंक की शक्ल ठीक से देखी। मगर भारत का चप्पा-चप्पा ऐसे अनगिनत 9/11 से भरा हुआ है। एक ही शहर में कई-कई 9/11 हैं। ये हजार साल में इतनी-इतनी बार हुए हैं कि इंसानी याददाश्त ही चकरा जाए।
जिस समय यह अंधड़ चल रहे थे उसी समय 50 से ज्यादा लेखकों के लिखे दस्तावेजों में इनकी भयावहता दर्ज है और इन लेखकों में सारे ही मुस्लिम थे। मैंने ये दस्तावेज अनेक बार पढ़े-पलटे हैं और इन घटनाओं को रेखांकित किया है।
धर्मांतरण के ब्यौरे ऐसे अपमानजनक हैं कि आज कोई भी आत्मसम्मान वाला व्यक्ति अपने अतीत में झाँकने भर से खुदकुशी कर ले। इसलिए कश्मीर में गुलाम नबी आजाद ने जो कहा है, उसे इतिहास की रोशनी में देखिए, किंतु राजनीति की आँख से नहीं।
अलाउद्दीन खिलजी (1296-1316) के समय दिल्ली में गुलामों के बाजार में बिकती लड़कियों और महिलाओं से जियाउद्दीन बरनी मिलवाया है। वे बाजार सदियों तक सजे रहे और लाखों गुलाम बेची गईं। वे खरीदी गईं। उपहारों में दी गईं। उनके साथ क्या हुआ होगा, किरदार में उतरकर सोचिए। स्पष्ट है कि उनके बच्चे हुए होंगे, बच्चों के बच्चों के बच्चे हुए होंगे। 2023 के भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश में आज उनकी संतानों की पहचान किनमें की जाए?
इब्नबतूता ने मोहम्मद तुगलक के समय के ईद के जलसों की लाइव रिपोर्टिंग की है, जहाँ लड़कियाँ तोहफों में बाँटी जा रही हैं। जिन्हें ये लड़कियाँ बाँटी गईं, उन हितग्राहियों में हर बार कई आलिम और सूफी भी इब्नबतूता ने चिन्हित किए हैं। वह लिखता है कि ये लड़कियाँ हमलों में हारे हिंदू राजघरानों से लूटकर लाई गईं राजकन्याएँ थीं। वे कहाँ गईं? उनकी संतानें आज अखंड भारत का हिस्सा रहे अफगानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश में कहाँ किन शक्लों में पहचानी जाएँ? धर्मांतरण केवल ऐसा नहीं था कि कोई तलवार सहित आया और आपने खुश होकर कहा- कुबूल है जी!
आइए पाँच मिनट में केवल पलटकर झाँकें कि कहाँ-क्या हुआ-
- सिंध पर 712 में अरबों के कब्जे के बाद देवल, अलोर, सेहवान, नरूनकोट और ब्राह्मणाबाद सबसे शुरुआती 9/11 हैं। देवल के मंदिर से 700 देवदासियों समेत हजारों लोगों को कैद किया गया। नरूनकोट की हिफाजत एक बौद्ध को सौंपी गई थी जो बिना लड़े ही सरेंडर हो गया। वड नाम के शहर में अरबों के दाखिल होने के पहले दाहिर की रानी और राज्य की प्रमुख महिलाओं ने सामूिहक चिता में आत्मदाह किया। यहाँ 30 हजार लोगों को गुलाम बनाया गया, जिनमें दाहिर की दो बेटियों सहित सिंध के सम्मानित राजप्रमुखों की 30 बेटियाँ भी शामिल थीं।
- महमूद गजनवी के हमलों में सोमनाथ गुजरात का पहला 9/11 है। सोमनाथ पर लगातार मुगलों तक ऐसे 6 बार 9/11 हैं।
- पृथ्वीराज चौहान की हार के बाद तुर्कों के हाथों महरौली के 27 मंदिरों को मटियामेट करना दिल्ली का पहला 9/11 है। अजमेर में भी ठीक इसी समय का 9/11 अढ़ाई दिन के झोपड़े में देखिए।
- इल्तुतमिश के हाथों 1232 में ग्वालियर पर हमला। पड़ाव पर हिंदुओं का हत्याकांड, उज्जैन के महाकाल मंदिर और विदिशा के विजय मंदिर की तबाही 1234 में इसी इल्तुतमिश के हाथों पहली बार हुई, जिसके समय दिल्ली में महरौली के मंदिरों को मलबा बनाकर उसी मलबे से कुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद बनाई गई।
- 1266 में बलबन ने दिल्ली से सटे मेवात और उत्तर प्रदेश के कटेहर इलाके में हिंदुओं की ‘लाशों के खलिहान’ लगवा दिए और सख्त निगरानी के लिए ये इलाके बेरहम अफगानियों के हवाले कर दिए। यह रामपुर, बरेली, संभल, मुरादाबाद, बंदायू और अमरोहा का इलाका है।
- जलालुद्दीन खिलजी ने 1290 में रणथंभौर के मंदिर नींव तक खुदवा दी। अलाउद्दीन खिलजी ने 1295 में देवगिरि पर हमला किया और 600 मन सोना लूटकर लाया। 1299 में गुजरात पर हमला और एक बार फिर सोमनाथ तबाह।
- 1301 में एक बार फिर रणथंभौर पर हमला, मंदिरों का विनाश और जौहर। इसी साल मध्यप्रदेश के उज्जैन और मांडू में आखिरी परमार राजा महलकदेव पर हमला, हत्याएँ और लूट। 1303 में चित्तौड़गढ़ पर हमला, 30 हजार हिंदुओं का कत्लेआम और जौहर। 1307 में देवगिरि को फिर से लूटा गया और 1310 में तेलंगाना और कर्नाटक के मंदिर लूटकर तबाह किए। 1308 में सिवाना और जालौर पर हमले में राजा शीतलदेव और हजारों हिंदुओं का कत्ल।
- 1320 में गयासुद्दीन तुगलक के दिल्ली पर कब्जा करते ही गुजरात मूल के परवार जाति के लोगाें का एक ही दिन में कत्लेआम का आदेश। मुहम्मद तुगलक के महल के सामने तो दिन भर मौत की सजा पाने वालों के सिर कलम करने के लिए जल्लाद नियुक्त कर दिए गए।
- 1327 में इस तुगलक के हाथों में कर्नाटक में कम्पिला नाम का पूरा राज्य तबाह, दो महीने तक खून-खराबा किया गया और दक्षिण में राज परिवार की स्त्रियों के पहले जौहर का धुआँ आसमान में देखा गया।
- फिरोजशाह तुगलक ने 1353 में बंगाल के 9/11 में एक लाख 80 हजार लोगों के कत्ल किए, कटे हुए सिर पर नकद इनाम की स्कीम और इसी तुगलक के हाथों 1365 में जगन्नाथ और ज्वालामुखी के मंदिर मिटाए गए। फिरोजशाह की माँ नाएला भट्टी एक हिंदू राजा की बेटी थी।
- 1528 में आगरे पर बाबर के कब्जे के बाद उसने चंदेरी पर हमला बोला। राजा मेदिनीराय के 5 हजार राजपूत सीधी टक्कर में मारे गए, जिनके कटे हुए सिरों की मीनार बनवाई गई। रानी मणिमाला का जौहर स्मारक आज भी है।
- 1543 में शेर शाह सूरी ने मध्य प्रदेश के रायसेन पर हमला किया और एक ही दिन में राजा पूरनमल के पूरे परिवार को धोखे से मरवा दिया।
- 1565 में अकबर ने जबलपुर के पास रानी दुर्गावती पर हमले के लिए आसफ खां को भेजा, रानी ने सीधी लड़ाई में जीवित पकड़े जाने की बजाए मैदान में खुदकुशी की, उनका बेटा मारा गया, महल में स्त्रियों ने जौहर किया, पूरे वंश का विनाश। अकबर के चित्तौड़ के हमले में एक बार 30 हजार बेकसूर नागरिक कत्ल किए गए और जौहर हुआ।
- ठीक इसी समय दूर दक्षिण में 1565 में तालिकोट की लड़ाई में पाँच मुस्लिम बहमनी सुलतानों ने एकजुट होकर भारत के आखिरी हिंदू साम्राज्य विजयनगर को जलाकर राख कर दिया। कर्नाटक के बेल्लारी जिले में वह शहर आज भी खंडहरों में खोया हुआ है।
- कश्मीर में सिकंदर बुतशिकन, आगरा में सिकंदर लोदी और गुजरात में महमूद बेगड़ा ने मुगलों के आने के पहले हजारों मंदिरों को मिटाया और हिंदुओं के कत्लेआम जारी रखे। बीदर के महमूद गवां ने कर्नाटक में विजयनगर के पास एक ही हमले में 20 हजार लोगों को कत्ल कराया और इतने ही बंदी बनाकर गुलामों की तरह 5-10 तनकों में बेच दिया।
- मध्य प्रदेश के मांडू में गुजरात के एक हमलावर के हमले में एक ही दिन में 18 हजार हिंदू राजपूत कत्ल किए गए।
- सबसे बदनाम मुगल औरंगजेब के फरमान से काशी और मथुरा के मंदिरों के विनाश इतिहास में दर्ज हैं।
- 1398 में तैमूरलंग के दिल्ली हमले में एक लाख हिंदुओं का कत्लेआम हुआ। नादिरशाह और अहमदशाह अब्दाली के हमलों में भी लूटमार के पहले कत्लेआम किए गए।
जिन्हें लक्ष्य करके इस्लाम कुबूल करने पर मजबूर किया गया और अगर इस्लाम कुबूल नहीं किया तो उसकी सजाएँ आज के सीरिया में हुए सार्वजनिक कत्लेआमों जैसी ही थीं। दिल्ली के चाँदनी चौक पर गुरु तेग बहादुर, भाई जतीदास और भाई मतीदास आइसक्रीम खाने नहीं आए थे! छत्रपति शिवाजी के बेटे छत्रपति संभाजी की मृत्यु ह्दयाघात से किसी एम्स में नहीं हुई थी। सरहिंद के किले पर गुरु गोविंद सिंह के वीर बालकों को चिप्स खिलाने के लिए आमंत्रित नहीं किया गया था। चौराहों पर सार्वजनिक उनके सिर कलम किए गए, उन्हें जीवित जलाया गया, आरों से काटा गया, दीवारों में चुनवाया गया, टुकड़े-टुकड़े किए गए और शहर के हर दरवाजों पर टाँगे गए।
इतिहासकार हरबंश मुखिया ने एक व्याख्यान में कहा था कि इस्लामी धर्मांतरण भी जिंदा रहने की सजा का एक विकल्प ही था। अगर आप जजिया नहीं दे सकते हैं और इज्जत से मुस्लिम हुकूमत में रहना भी चाहते हैं तो इस्लाम कुबूल कर लें। यह एक ऐसी सजा थी, जो पीढ़ियों से भोगी जा रही है।
आप सच से भाग नहीं सकते। सच को दबा नहीं सकते। सच ज्ञानवापी की दीवारों से झाँक-झाँककर अपना पता देगा और तहखानों में चीख-चीखकर पुकारेगा। गुलाम नबी आजाद के भीतर अपने अपमानित पुरखों का कोई अंश ही होगा, जो वे साहसपूर्वक एक सच सबके सामने कह गए! सच को स्वीकार करना चाहिए, किंतु तथ्यों की रोशनी में और तथ्य अब किसी से छिपे हुए नहीं हैं!
वैसे एक प्यारे जंतु के रूप में हम शुतुरमुर्गों का भी सम्मान करते हैं!