कर्नाटक हाई कोर्ट ने भाई की मृत्यु के बाद अनुकंपा के आधार पर नौकरी पाने की एक बहन के दावे को खारिज कर दिया है। अदालत ने कहा है कि शादीशुदा भाई के परिवार का बहन हिस्सा नहीं होती।
कर्नाटक हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस प्रसन्ना बी वराले और जस्टिस कृष्ण एस दीक्षित की बेंच ने तुमकुरु की रहने वाली 29 साल की पल्लवी जीएम की याचिका पर सुनवाई करते हुए यह बात कही। पल्लवी के भाई की 2016 में ड्यूटी के दौरान मौत हो गई थी। वे बेंगलुरु इलेक्ट्रिसिटी सप्लाई कंपनी लिमिटेड यानी बीईएससीओएम (BESCOM) में जूनियर लाइन मैन थे।
पल्लवी की याचिका को खारिज करते हुए हाई कोर्ट ने कहा कि कर्नाटक सिविल सेवा (अनुकंपा आधार पर नियुक्ति) नियम, 1999 के तहत एक बहन को ‘परिवार’ की परिभाषा में शामिल नहीं किया गया है। लिहाजा बहन को भाई की मौत के बाद उसकी जगह अनुकंपा पर नौकरी पाने का अधिकार नहीं है। कोर्ट ने कहा कि नियम 2(1)(बी) में स्पष्ट किया गया है कि सरकारी नौकरी में रहते हुए यदि किसी पुरुष की मृत्यु होती है तो उसके आश्रित या साथ रह रहे लोगों, मसलन उसकी विधवा, बेटा/बेटी को ही परिवार का सदस्य माना जाएगा।
अदालत ने कहा कि किसी सरकारी कर्मचारी के परिवार का सदस्य किसे माना जाएगा यह पहले से ही कानूनी तौर पर परिभाषित है। ऐसे में अदालत किसी व्यक्ति को परिवार की परिभाषा में न तो जोड़ सकती है और न ही हटा सकती है।
दरअसल इस मामले में याचिकाकर्ता ने सिंगल जज बेंच के 30 मार्च, 2023 के आदेश को चुनौती दी थी। सिंगल बेंच ने भी अनुकंपा के आधार पर नियुक्ति की माँग वाली याचिका खारिज कर दी थी।
पल्लवी के वकील ने अदालत में तर्क दिया था कि वह अपने भाई पर निर्भर थी। इस आधार पर वह अनुकंपा पर नौकरी पाने की हकदार हैं। बीईएससीओएम के वकील ने कानूनी तौर पर परिवार की परिभाषा का हवाला देते हुए इसका विरोध किया।
हाई कोर्ट ने माना कि मृत कर्मचारी के परिवार का एक सदस्य अनुकंपा के आधार पर नियुक्ति का दावा कर सकता है। लेकिन उसे भी मृत कर्मचारी पर आश्रित होने का पुख्ता सबूत देना होता है। इस मामले में पल्लवी ऐसा कोई सबूत पेश नहीं कर पाईं जिससे यह साबित हो सके कि वह अपने मृत भाई पर आश्रित थीं। साथ ही अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि मृतक के परिवार के वित्तीय संकट में होने के भी कोई प्रमाण नहीं हैं।