Sunday, September 29, 2024
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मुस्लिमों को राहुल गाँधी पर एतबार, नरेंद्र मोदी को PM के रूप में देखना चाहते हैं आम भारतीय: India TV-CNX के सर्वे में खुलासा, समझिए कैसे हुआ कॉन्ग्रेस का इस्लामीकरण

भले ही अपनी सहूलियत के हिसाब से समय-समय पर कॉन्ग्रेस 'हिंदुत्व समर्थक' टोपी पहन लेती थी, लेकिन पार्टी ऐतिहासिक तौर पर मुस्लिम समर्थक रही है। इस पार्टी की प्राथमिकताओं में तुष्टिकरण कार्यक्रम सबसे ऊपर हैं।

अप्रैल-मई 2024 के बीच अगले आम चुनाव (India General Election 2024) होने के आसार हैं। उससे पहले 2024 के लोकसभा (Lok Sabha) चुनावों को लेकर इंडिया टीवी-सीएनएक्स (India TV-CNX) ने एक ओपिनियन पोल किया है।

इससे पता चलता है कि 61% मतदाता फिर से नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री के तौर पर देखना चाहते हैं। अगड़ी जाति के 70% मतदाता चाहते हैं कि मोदी सरकार फिर से आए। लेकिन, 52 फीसदी मुस्लिम मतदाता कॉन्ग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गाँधी को अगले पीएम के तौर पर देखना चाहते हैं।

यह सर्वे 12 राज्यों की 48 लोकसभा सीटों पर किया गया है। गौर करने वाली बात यह भी है कि बिहार की जातीय जनगणना के बाद इसे किया गया है। इंडिया टीवी-सीएनएक्स के सर्वे के मुताबिक, 14 फीसदी मुस्लिमों का मानना है कि अरविंद केजरीवाल को देश के प्रधानमंत्री होने चाहिए। ममता बनर्जी के लिए ऐसा मानने वाले मुस्लिम वोटर 8 प्रतिशत हैं। वहीं 8 प्रतिशत अखिलेश यादव, 6 प्रतिशत नीतीश कुमार और 5 प्रतिशत मुस्लिम मतदाता असदुद्दीन ओवैसी को पीएम के तौर पर देखना चाहते हैं।

आश्चर्यजनक तौर पर केवल 3 प्रतिशत मुस्लिम ही चाहते हैं कि अगले चुनावों के बाद भी नरेंद्र मोदी ही इस पद पर बने रहें। लेकिन जब बात अगड़ी जाति के मतदाताओं की आती है तो 70 प्रतिशत फिर से मोदी को पीएम के तौर पर देखना चाहते हैं। राहुल गाँधी का समर्थन करने वाले केवल 12 प्रतिशत ही हैं।

अगड़ी जाति के वोटरों में 6 प्रतिशत अरविंद केजरीवाल, 4 प्रतिशत ममता बनर्जी और 1 प्रतिशत नीतीश कुमार को पीएम के तौर पर देखना चाहते हैं। सर्वे में शामिल अगड़ी जाति के वोटरों में से कोई भी समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव या ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहाद-उल मुस्लिमीन (AIMIM) के प्रधान ओवैसी को पीएम पद पर नहीं देखना चाहते।

सर्वे के अनुसार, मतदाताओं में से पीएम पद के लिए 61 प्रतिशत का समर्थन नरेंद्र मोदी को हासिल है। राहुल गाँधी 21, ममता बनर्जी तथा अरविंद केजरीवाल तीन-तीन, मायावती तथा नीतीश कुमार दो-दो प्रतिशत लोगों की पसंद इस पद के लिए हैं। 6 प्रतिशत ऐसे भी मतदाता हैं जिन्होंने अगले प्रधानमंत्री के तौर पर अन्य नेताओं का भी नाम लिया है।

कर्नाटक और तेलंगाना में कॉन्ग्रेस के साथ मुस्लिम

उल्लेखनीय है कि कॉन्ग्रेस ने मुस्लिमों का हमेशा से इस्तेमाल किया है। वे भी चुनावों में वोट बैंक की तरह उसके पक्ष में मतदान करते रहे हैं। यह हालिया कर्नाटक विधानसभा चुनावों में भी दिखा है। इसी वोट बैंक की मदद से वह कर्नाटक में 135 के बहुमत के आँकड़े को पार करते हुए सबसे बड़ी पार्टी बनी और सरकार गठन में सफल रही।

चुनाव के दौरान मुस्लिम वोटों को गोलबंद करने के इरादे से ही विपक्षी दलों ने हिजाब का मुद्दा उठाया था। कॉन्ग्रेस ने चुनाव के दौरान हिंदूवादी संगठन ‘बजरंग दल’ को प्रतिबंधित करने का वादा किया था। इसका नतीजा यह रहा कि मई में हुए इन चुनावों में मुस्लिमों ने कॉन्ग्रेस को एकमुश्त वोट दिया, जबकि हिंदू वोट बँट गए।

इसे देखते हुए कहा जा सकता है कि अपने धार्मिक हितों की रक्षा के लिए मुस्लिम समुदाय भी कॉन्ग्रेस पार्टी के पीछे एकजुट हो गया और इस पुरानी पार्टी के उम्मीदवारों के लिए सामूहिक तौर पर वोट दिए। चुनाव अभियानों के दौरान प्रतिबंधित PFI के राजनीतिक मुखौटे SDPI ने कॉन्ग्रेस पार्टी के लिए प्रचार करने का अपना इरादा साफ जाहिर किया था। यही वजह रही कि पहले SDPI ने 100 उम्मीदवार उतारने का फैसला किया था।

लेकिन, चुनाव से कुछ दिन पहले ही उसने कहा कि वह सिर्फ 16 सीटों पर उम्मीदवार खड़े करेगी। यही नहीं, एसडीपीआई ने बाद में अपने कार्यकर्ताओं से घर-घर जाकर कॉन्ग्रेस के लिए प्रचार करने को भी कहा।

वहीं तेलंगाना में मुस्लिम मज़बूती से कॉन्ग्रेस पार्टी का समर्थन कर रहे हैं। इस साल जून में कॉन्ग्रेस के वरिष्ठ नेता एमडी अली शब्बीर ने कहा था कि तेलंगाना के मुस्लिम पूरी ताकत के साथ पार्टी का समर्थन कर रहे हैं और AIMIM उस वोट बैंक में सेंध लगाने में नाकाम रहेगी।

राहुल गाँधी दुनिया में भारत विरोधी रुख को देते रहे हैं हवा

पूरी कॉन्ग्रेस पार्टी का देश में चुनाव जीतने का फंडा ही मुस्लिम वोटरों के इस्तेमाल का रहा है फिर चाहे वो आम चुनाव हो या विधानसभा चुनाव। हमेशा से ही पार्टी के नेता राहुल गाँधी ने खास तौर पर मुस्लिम समुदाय का पक्ष लिया और उन्हें समर्थन दिया है।

उन्होंने कई बार वैश्विक मंचों पर यह झूठ फैलाकर भारत और हिंदुओं को बदनाम किया है कि ‘भारत में अल्पसंख्यक समुदायों पर हमला हो रहा है।’ उन्होंने वाशिंगटन, कैंब्रिज यूनिवर्सिटी और हाल ही में सितंबर में नई दिल्ली में भी भारत के खिलाफ ऐसे बयान दिए थे। जहाँ देश की हर एक राजनीतिक पार्टी पीएम मोदी के समाज के सभी वर्गों के व्यापक समर्थन की ताकत वाली बाजीगरी से मुकाबला करने के लिए खुद का वोट बैंक बनाने की कोशिश कर रही है, वहीं राहुल गाँधी और कॉन्ग्रेस पार्टी लंबे वक्त से ‘अल्पसंख्यक खतरे में हैं’ की बयानबाजी के जरिए तेज़ी से बँटे हुए विपक्ष में अल्पसंख्यक वोटों को अपने पक्ष में करने की कोशिश में रहते हैं।

देश के राजनीतिक माहौल को बाँटने के अलावा कॉन्ग्रेस ‘अल्पसंख्यक खतरे में हैं’ वाले नजरिए का इस्तेमाल केंद्र सरकार को सांप्रदायिक दिखाने के लिए भी करती रही है। कॉन्ग्रेस की रणनीति में केंद्र को बदनाम करने और नीचा दिखाने या अल्पसंख्यक वोट बैंक को मजबूत करने के लिए मामूली अपराधों को सांप्रदायिक मोड़ दिया जाता है।

उदाहरण के लिए हरियाणा के मुस्लिम बहुल क्षेत्र मेवात के नूहं संघर्ष को लिया जाए तो इस दौरान मारे गए लोगों में 80 फीसदी से अधिक गैर-मुस्लिम थे। नूहं में जलाभिषेक यात्रा में हिंदू तीर्थयात्रियों पर इस्लामवादियों के हमले के बाद यहाँ हिंसा शुरू हुई थी। इस साल जुलाई के आखिर और अगस्त की शुरुआत में नूहं और आसपास के इलाकों में हुए मौत के भयावह तांडव के शिकार वे हिंदू भी हुए, जिन्होंने परेड में हिस्सा नहीं लिया था।

इसमें घटना में भी अपने सुव्यवस्थित पारिस्थितिकी तंत्र और ऑनलाइन ट्रॉल और समर्थक पत्रकारों की सेना से लैस कॉन्ग्रेस ने केंद्र सरकार और हिन्दुओं को दोषी ठहराने में कोई कसर नहीं छोड़ी। कॉन्ग्रेस की इस सेना में कई पत्रकार ऐसे थे जो सच्ची और ईमानदार पत्रकारिता की आड़ में प्रचार में लगे रहते थे। ये संस्थानों से निकाले जाने के बाद यूट्यूबर बन गए। नूहं की हिंसा के लिए इन्होंने कॉन्ग्रेस के नजरिए को फैलाने में अहम योगदान दिया था।

कॉन्ग्रेस ऐतिहासिक रूप से मुस्लिम समर्थक पार्टी रही है

भले ही अपनी सहूलियत के हिसाब से समय-समय पर कॉन्ग्रेस ‘हिंदुत्व समर्थक’ टोपी पहन लेती थी, लेकिन पार्टी ऐतिहासिक तौर पर मुस्लिम समर्थक रही है। इस पार्टी की प्राथमिकताओं में तुष्टिकरण कार्यक्रम सबसे ऊपर हैं।

ये नेहरू की ही ‘दूरदर्शिता’ थी जिसने कॉन्ग्रेस का इस्लामीकरण किया और इससे ‘मुस्लिम अल्पसंख्यक’ नामक बोझ पैदा हो गया। बड़े पैमाने पर इस्लामवाद कॉन्ग्रेस की राजनीति में आज़ादी के बाद 1950 के आसपास शुरू हुआ। तब कॉन्ग्रेस ने पाकिस्तान नहीं जाने वाले मुस्लिम लीग के नेताओं, सदस्यों और समर्थकों को अपने में शामिल करना शुरू किया था। उनमें से कई पूर्व मुस्लिम नेता बाद में कॉन्ग्रेस के शासन में केंद्रीय और राज्य स्तर पर कैबिनेट मंत्री तक पहुँचे।

ये कॉन्ग्रेस का ही राज था जब ‘वक्फ अधिनियम’ पहली बार 1954 में भारत में अस्तित्व में आया। इसी के तहत 1964 में केंद्रीय वक्फ परिषद का गठन किया गया। अगस्त 2022 में ये खुलासा हुआ कि कॉन्ग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार ने लुटियंस दिल्ली में 123 सरकारी संपत्तियाँ वक्फ को तोहफे में दे डाली थीं।

1986 में राजीव गाँधी ने जिस तरह से मौलवियों को खुश करने के लिए शाहबानो मामले में सुप्रीम कोर्ट का फैसला पलट दिया, उसने कॉन्ग्रेस के इस्लामीकरण में एक नया अध्याय जोड़ा। शाहबानो मामले में राजीव गाँधी ने भारतीय न्यायपालिका के ऊपर शरिया को चुना। हालिया अतीत में इस पार्टी की इस्लामवाद के समर्पण की पराकाष्ठा 2019 चुनावी घोषणापत्र में देखी जा सकती है। इसमें कॉन्ग्रेस ने सत्ता में आने पर ‘सशस्त्र बल (विशेषाधिकार) अधिनियम (AFSPA)’ की समीक्षा का वादा किया था।

खास तौर से कट्टरपंथी इस्लामी संगठनों और भारतीय हितों के लिए शत्रुतापूर्ण रवैया रखने वाले वामपंथी संस्थानों की लंबे वक्त से AFSPA को हटाने की माँग रही है। इन संगठनों ने सबसे घिनौना प्रचार किया है, जिसने केवल कश्मीर के युवाओं को कट्टरपंथी बनाने के लिए एक औजार के तौर पर इस्तेमाल करने का काम किया है।

इसके अलावा कॉन्ग्रेस के 2019 के घोषणापत्र में मुस्लिम समुदाय से अन्य वादे भी किए गए। इसके पेज 42वें पर कहा गया कि ‘वक्फ संपत्ति (अनधिकृत कब्जेदारों की बेदखली) विधेयक, 2014’ को फिर से पेश कर उसे पारित किया जाएगा। वक्फ संपत्तियों के कानूनी ट्रस्टियों को बहाल किया जाएगा। इसके अलावा कॉन्ग्रेस ने अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थानों के तौर पर अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय और जामिया मिलिया इस्लामिया की विशेषताओं को बनाए रखने का वादा भी किया था।

इसके अलावा वायनाड में कॉन्ग्रेस का समर्थन इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग (IUML) से आता है। ये जमात-ए-इस्लामी और सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया (SDPI) से जुड़ा हुआ है।

इन दोनों पर राष्ट्रीय जाँच एजेंसी (NIA) का आरोप है कि स्वास्थ्य जागरूकता शिविरों के बहाने राज्य भर में हथियार प्रशिक्षण शिविर आयोजित किए। साल 2014 में केरल में PFI और SDPI के कार्यालयों में कई पुलिस छापों में हथियार और हथियारों का जखीरा जब्त किया गया। इन छापों में गिरफ्तार किए गए 24 आरोपी इन दोनों पार्टियों के थे।

इन सभी घटनाओं को देखते हुए ये साफ जाहिर होता है कि क्यों लगभग 52 फीसदी मुस्लिम कॉन्ग्रेस के राहुल गाँधी को भारत के अगले प्रधानमंत्री के रूप में देखना चाहते हैं और इनमें से महज 3 फीसदी क्यों सोचते हैं कि पीएम मोदी को इस पद पर बने रहना चाहिए। 18वीं लोकसभा के सदस्यों का चुनाव करने के लिए भारत में अगला भारतीय आम चुनाव अप्रैल और मई 2024 के बीच होने की उम्मीद है।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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