मैं ख़ुद को खोज रहा हूँ। इसी क्रम में बहुत कुछ किया, बहुत सारी ग़लतियां भी हुईं, बहुत कुछ सीखा भी। अब शायद जीना आ जाये।शुरू में यह पीड़ादायक लगा लेकिन अब समझ में आ रहा है कि पीड़ा से ही सृजन होता है।
एक आत्महीन देश ही किसी ‘उन्नत’ देश को धन्यभाव से देखता और पिछलग्गू बन जाता है। नेहरू ने भारत को उसकी मूल संस्कृति से काटकर असल में ऐसा ही देश बना दिया जो अपनी हर गति, हर उन्नति के लिए परमुखापेक्षी हो गया।
यह फैसला देकर जजों ने अपनी सूझबूझ का परिचय तो दिया ही है, साथ ही किसी भी लोकतंत्र में नकारात्मक प्रेशर-ग्रुप्स को भी एक शानदार मैसेज दिया है कि वे कोर्ट को कोई हलवा न समझें।
पेट्रोल बम, एके-47, मानव बम और अत्याधुनिक हथियारों के बरअक्स एक स्वयंसेवक की लाठी यकीनन नाकाफी है, भले उसके मन में पहाड़ों सा साहस है लेकिन व्यवहारवाद यही कहता है कि बंदूक के आगे लाठी काम नहीं आती।