धर्मेंद्र की माँ और छोटे भाई का रो-रोकर बुरा हाल है। देखकर ऐसा लगा कि जैसे वह किसी गंभीर बीमारी से पीड़ित हैं। धर्मेंद्र के पिता वीरसहाय हर रोज सुबह बिना कुछ खाए-पिए अपने बेटे को खोजने निकलते हैं, लेकिन देर रात हताश होकर खाली हाथ घर लौट आते हैं।
"उनके नंबर से मेरे पास फोन आया। उधर से कोई और बोला और पूछा कि यह किसका नंबर है? मैंने कहा मेरे पति का... मैं कुछ लोगों को लेकर घटनास्थल की ओर दौड़ी तो देखा कि एक दुकान के सामने वह घायल पड़े हुए हैं मैं देखते ही बेहोश हो गई।"
"कमरे के अंदर आओ तो मेरे बेटे राहुल को लेकर ही आना, नहीं तो वापस चले जाना।" एक मॉं के इस सवाल का जवाब मेरे पास नहीं था। आपके पास भी नहीं होगा। इसलिए इस दंगाई भीड़ की पहचान जरूरी है ताकि कल कोई राहुल फिर बेमौत मारा न जाए।
हिंदू लड़की की शादी की तैयारियाँ। हलवाई लजीज व्यंजन बनाने में लगे हुए। तभी दंगाइयों ने पहले तो ईंट-पत्थर-टाइल्स फेंकना शुरू कर दिया उस घर में। उसके बाद पेट्रोल बम फेंका। यह कोई आतंकी हमला नहीं था। बल्कि हमलावर घर के पड़ोस में रहने वाले वही अब्बा जान, भाई जान थे; जिनसे शादी वाले घर की बहन-बेटियाँ हर रोज दुआ सलाम करती थीं।
"यह दिल्ली को भी पाकिस्तान बनाना चाहते हैं, जो कि ऐसा कभी हो नहीं सकता, लेकिन अब हम इसका इलाज करके मानेंगे। यह चोर बिल्डिंग है। इसमें गुंडागर्दी होती है। इस इमारत को अब यहाँ नहीं रहने देंगे, इसे हम सरकार से तुड़वाकर ही दम लेंगे। चाँदबाग को इन्होंने अपना गढ़ बना रखा है।"
"मुसलमानों की भीड़ लाठी-डंडे, ईंट-पत्थर, सरिया, रॉड, तमंचे लेकर गली से मेन रोड की तरफ जा रही थी। भीड़ में महिलाएँ और बच्चे भी थे। हिंदुओं पर हमला करने के लिए वे अपने बच्चों और महिलाओं को घरों से बाहर निकाल रहे थे। इसे देखकर मैं दंग रह गई।"
इस्लामी भीड़ और उनकी तैयारी को देखकर ऐसा लग रहा था कि वह पहले तो हिंदुओं की दुकानों और फिर हमारे मकानों को अपना निशाना बनाना चाहते थे। अच्छा हुआ दिल्ली पुलिस का कि उसने समय रहते हालातों को काबू में कर लिया।
जानकारी मिली कि इस्लामी भीड़ हिंदुओं के घरों को अपना निशाना बना रही है। हमने अपने-अपने चारों बच्चों को मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्र से निकाला और दूसरी गली में एक परिचित के घर पहुँचा दिया। हम इतने डर गए कि सोमवार को पूरे दिन और पूरी रात भूखे प्यासे बच्चों के साथ घर में कैद रहे।