Tuesday, November 5, 2024
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खाना खा घर से निकले आलोक तिवारी फिर लौटे नहीं, चंदा इकट्ठा कर हुआ अंतिम संस्कार: ग्राउंड रिपोर्ट

आलोक एक गत्ते की फैक्ट्री में मजदूरी करते थे। घर में इकलौते कमाने वाले थे। उनके चले जाने के बाद परिवार के सामने रोटी का संकट पैदा हो गया है। सिर झुकाए कविता बस एक ही बात बोलती है- पता नहीं अब मेरा और मेरे बच्चों का क्या होगा।

उत्तर-पूर्वी दिल्ली के हिंदू विरोधी दंगों ने न जाने कितनी माँ की गोद को सूना कर दिया। न जाने कितनी सुहागिनों की माँग उजाड़ दी। न जाने कितनी बहनों के हाथ से उनका प्यारा भाई छीन लिया। दिल्ली दंगों की आग भले ही बुझ सी गई हो, लेकिन हिंदुओं को मिले जख्म शायद ही कभी भर पाएँ। कुछ ऐसा ही हुआ प्रेम विहार में रहने वाले आलोक तिवारी के साथ।

उत्तर-पूर्वी दिल्ली में दंगे रविवार को शुरू हुए थे। शनिवार को भी दंगा प्रभावित इलाकों में बाजार पूरी तरह से बंद थे। सड़कों पर अब थोड़ी बहुत चहलकदमी दिखती है। पुलिस फोर्स बड़ी संख्या में तैनात है। ऐसे ही माहौल में हम शिव विहार पहुँचे। हम उस परिवार के पास पहुँचे जिसने दंगों में अपनों को खोया है। हमने देखा कि दंगों में मारे गए आलोक तिवारी की पत्नी बदहवास अवस्था में माथे पर हाथ लगाकर जमीन पर पैर फैलाए बैठी थी। पास में बैठी कुछ आस-पास की महिलाएँ आलोक की पत्नी को सांत्वना देने में लगी हुई थीं। हमें देखते ही पत्नी ने खुद को संभाला। कुछ देर तक तो हम आस-पास के लोगों से ही बात कर जानकारी लेते रहे इस बीच आलोक की पत्नी कुछ भी बोलने को तैयार नहीं हुई।

हमारे अनुरोध के बाद आलोक तिवारी की पत्नी कविता तिवारी ने बताया, “बुधवार (26 फरवरी) सुबह के करीब दस बजे थे वह घर से खाना खाकर बाहर घूमने की बात कहकर निकले। हम निश्चिंत थे क्योंकि बाहर के माहौल के बारे में जरा भी खबर नहीं थी। करीब आधा घंटे बाद ही उनके नंबर से मेरे पास फोन आया और उधर से कोई और बोला और हमसे पूछा कि यह किसका नंबर है? जिस पर मैंने बताया कि ये नंबर मेरे पति का है। तो उधर से उन्होंने बताया कि आप यहाँ आ जाओ इनके सिर में चोट लगी है। मैं कुछ लोगों को लेकर घटनास्थल की ओर दौड़ी तो देखा कि एक दुकान के सामने वह घायल पड़े हुए हैं मैं देखते ही बेहोश हो गई।”

इसके बाद पास में खड़े चश्मदीद आगे का घटनाक्रम बताते हैं, “आलोक के सिर में चोट लगी थी, जिससे लगातार खून बह रहा था। हम लोगों की मदद से आलोक को घर ले आए। इसके बाद एम्बुलेंस को फोन किया, लेकिन 1:30 बजे जाकर एम्बुलेंस घर पर आई तब तक घायल आलोक के सिर से खून बहुत ज्यादा बह चुका था। GTB में भर्ती कराया गया, लेकिन देर रात आलोक को डॉक्टरों ने मृत घोषित कर दिया।” इसकी जानकारी मिलते ही परिवार में कोहराम मच गया। कड़ी मशक्कत और थाने चौकी के सैकड़ों चक्कर काटने के बाद पुलिस ने बीते दिन (28 फरवरी) आलोक का शव परिजनों को सौंप दिया। परिवार की हालत इतनी दयनीय है कि मोहल्ले के लोगों ने चंदा इकट्ठा कर आलोक तिवारी का अंतिम संस्कार किया, जिसे 4 साल के आरुष तिवारी ने मुखाग्नि दी।

हिंदू विरोधी दंगों के शिकार हुए आलोक तिवारी

घटना के बाद से एक तरफ पत्नी कविता का रो-रोकर बुरा हाल है तो वहीं दूसरी और आलोक के दो बच्चे सोनाक्षी और आरुष तिवारी अपने पिता की मौत से अनजान हैं और अपने खेल में लगे हुए हैं। यूपी के हरदोई जिले के गांव बनमऊ के मूल निवासी आलोक करीब आठ साल से अपने बीबी-बच्चों को लेकर दिल्ली के शिव विहार में रह रहे थे। आलोक एक गत्ते की फैक्ट्री में मजदूरी करते थे। घर में इकलौते कमाने वाले आलोक तिवारी के चले जाने के बाद परिवार के सामने रोटी का संकट पैदा हो गया है। सिर झुकाए कविता बस एक ही बात बोलती है- पता नहीं अब मेरा और मेरे बच्चों का क्या होगा।

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