यह स्पॉन्सर और क्लीनिकल रिसर्चर की जिम्मेदारी है कि वे पारदर्शिता के साथ ट्रायल के प्रतिभागियों के स्वास्थ्य, अधिकारों और रेगुलेटरी एजेंसी के नियमों के तहत वित्तीय सहयोग को भी सुनिश्चित करें।
क्या दिल्ली में मुफ्त की बिजली पाने वाले उस दर्द को महसूस कर सकते हैं, जो अपने खेत-खलिहान को आँखों के सामने डूबते देखने में होता है? वह दर्द जो अपने बाप-दादाओं के पुश्तैनी घर और अपने आम के बगीचों को डूबते देखने में होता है?
कौन जानता है कि IMA जैसे संस्थानों पर भी ये शांतिदूत नजरें रखे हुए हों और आर्मी की गतिविधियों की सूचना कहीं भेजते हों? देहरादून में ही DRDO और आयुध निर्माण फ़ैक्ट्री भी हैं, जिन्हें बेहद संवेदनशील माना जाता है।