Tuesday, January 21, 2025
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ब्राह्मण होना गर्व की बात, उनका ड्राफ्ट नहीं होता तो संविधान बनने में लगते 25 और साल: जानिए कर्नाटक हाई कोर्ट के जजों ने क्यों बताया ‘वर्ण का प्रतीक’, कहा- इनके लिए आयोजन होते रहने चाहिए

कर्नाटक हाई कोर्ट के दो जजों ने एक ब्राह्मण संगठन द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में हिस्सा लिया। उन्होंने यहाँ ब्राह्मणों के समाज में योगदान की प्रशंसा की और साथ ही ब्राह्मण होना गर्व की बात कहा। उन्होंने ब्राह्मणों की एकता पर काम करने वाले और भी कार्यक्रम आयोजित किए जाने की वकालत की है।

राजधानी बेंगलुरु में ‘विश्वामित्र’ के नाम से 18-19 जनवरी, 2025 को आयोजित किए गए इस कार्यक्रम कर्नाटक हाई कोर्ट के जस्टिस वेदव्यासाचार्य श्रीशानंद और जस्टिस कृष्णा दीक्षित ने हिस्सा लिया। यह कार्यक्रम अखिल कर्नाटक ब्राह्मण महासभा ने आयोजित किया था।

इस कार्यक्रम में बोलते हुए जस्टिस दीक्षित ने कहा कि ब्राह्मण शब्द जाति का नहीं बल्कि वर्ण का द्योतक होना चाहिए। उन्होंने कहा कि वेद को चार हिस्सों में बदलने वाले वेदव्यास एक मछुआरे के पुत्र थे और रामायण लिखने वाले वाल्मीकि SC या संभवतः ST थे लेकिन ब्राह्मणों ने हमेशा उनका सम्मान किया है।

जस्टिस दीक्षित ने संविधान निर्माण में भी ब्राह्मणों के महत्वपूर्ण योगदान का उल्लेख किया। उन्होंने कहा, “सात सदस्यों वाली ड्राफ्ट कमिटी में तीन ब्राह्मण थे, अल्लादी कृष्णस्वामी अय्यर, गोपालस्वामी अयंगर और BN राव… डॉ BR अंबेडकर ने भंडारकर संस्थान में कहा था कि अगर BN राव ने संविधान का ड्राफ्ट नहीं बनाया होता, तो इसे तैयार होने में 25 साल और लगते।”

जस्टिस दीक्षित ने कहा कि जब हम ब्राह्मण कहते हैं तो यह गर्व की बात होती है। उन्होंने कहा, “क्यों? क्योंकि उन्होंने (ब्राह्मणों ने) संसार को द्वैत, अद्वैत, विशिष्ट अद्वैत और सुधाअद्वैत जैसे कई सिद्धांत दिए। यह वह समुदाय है जिसने दुनिया को ‘बसाव’ महान दार्शनिक व्यक्तित्व दिए।”

वहीं जस्टिस श्रीशानंद ने इस बात पर जोर दिया कि ब्राह्मणों में एकता लाने वाले कार्यक्रम किए जाते रहने चाहिए। उन्होंने कहा, “कई लोग पूछते हैं कि जब लोग खाने या शिक्षा के लिए संघर्ष कर रहे हैं तो ऐसे बड़े आयोजनों की क्या ज़रूरत है। लेकिन यह आयोजन समुदाय को एक साथ लाने और उसके मुद्दों पर चर्चा करने के लिए ज़रूरी हैं। ऐसे आयोजन आखिर क्यों नहीं होने चाहिए?”

जस्टिस श्रीशानंद ने बताया कि जज बनने से पहले वह कई संस्थाओं से जुड़े हुए थे लेकिन अब उनसे दूर हैं।

ताहिर हुसैन को क्यों नहीं मिलनी चाहिए जमानत: सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस अमानुल्लाह का सवाल, चुनाव प्रचार के लिए जेल से बाहर आना चाहता है दिल्ली के हिंदू विरोधी दंगों का ‘मास्टरमाइंड’

सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार (21 जनवरी 2025) को दिल्ली में हिंदू विरोधी दंगों के आरोपित और विधानसभा चुनाव में एआईएमआईएम उम्मीदवार ताहिर हुसैन की अंतरिम जमानत याचिका पर सुनवाई की। यह याचिका दिल्ली विधानसभा चुनाव के प्रचार के लिए दायर की गई थी। सुनवाई के दौरान जजों के बीच मामले को लेकर गहरी चर्चा हुई। सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस पंकज मित्तल और जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की खंडपीठ ने दिल्ली पुलिस से यह स्पष्ट करने को कहा कि ताहिर हुसैन को अंतरिम या नियमित जमानत क्यों न दी जाए।

बता दें कि ताहिर हुसैन पर 2020 के दिल्ली दंगों में शामिल होने और आईबी कर्मचारी अंकित शर्मा की हत्या का गंभीर आरोप है। वह इस मामले में चार साल और दस महीने से जेल में है। इससे पहले, दिल्ली हाई कोर्ट ने उसकी अंतरिम जमानत याचिका खारिज करते हुए सिर्फ नामांकन के लिए कस्टडी पेरोल दी थी।

रिपोर्ट्स के मुताबिक, सुनवाई की शुरुआत में जस्टिस पंकज मित्तल ने कहा कि ताहिर हुसैन के खिलाफ 11 मामले दर्ज हैं, जिनमें से 9 मामलों में उसे जमानत मिल चुकी है। लेकिन दो मामलों में वह अभी भी जेल में हैं, जिनमें से एक मनी लॉन्ड्रिंग और आईबी अधिकारी अंकित शर्मा की हत्या का मामला है। जस्टिस मित्तल ने टिप्पणी की थी, “जेल में रहते हुए चुनाव लड़ना आसान हो गया है। लेकिन ऐसे लोगों को चुनाव लड़ने से रोकना चाहिए।” उन्होंने वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ अग्रवाल से यह भी पूछा कि ताहिर हुसैन सिर्फ अंतरिम जमानत की माँग क्यों कर रहे हैं। उन्होंने कहा, “चुनाव ही जीवन में सबकुछ नहीं है। अगर जमानत लेनी है तो नियमित जमानत के लिए आवेदन करें।”

दूसरी ओर जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह ने मामले पर अलग नजरिया रखा। उन्होंने दिल्ली पुलिस से सवाल किया कि जब ताहिर हुसैन को अन्य 9 मामलों में जमानत दी जा चुकी है, तो इस मामले में उन्हें जमानत क्यों नहीं मिल सकती। उन्होंने कहा, “अगर अन्य मामलों में वही आरोप हैं और उनमें जमानत मिल चुकी है, तो इस मामले में क्या अलग है? अगर वह मुख्य आरोपित नहीं हैं बल्कि सिर्फ उकसाने का आरोप है, तो पाँच साल से अधिक समय तक जेल में रखने का औचित्य क्या है?”

वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ अग्रवाल ने अपनी दलील में कहा कि ताहिर हुसैन ने चार साल और दस महीने जेल में बिताए हैं। उन्होंने कहा कि हुसैन पर सिर्फ यह आरोप है कि उन्होंने भीड़ को उकसाया। मुख्य आरोपितों को नियमित जमानत दी जा चुकी है। अग्रवाल ने यह भी कहा कि ताहिर हुसैन ने दंगों के समय मदद के लिए कई पीसीआर कॉल किए थे।

सुनवाई के दौरान, जस्टिस मित्तल ने हाई कोर्ट के आदेश में कुछ तथ्यों को लेकर आपत्ति जताई। उन्होंने कहा कि हुसैन को हाई कोर्ट से आदेश में गलती सुधारने के लिए अर्जी देनी चाहिए थी। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि अदालत फिलहाल अंतरिम जमानत देने के पक्ष में नहीं है।

जस्टिस अमानुल्लाह ने ताहिर हुसैन की जमानत याचिका को गंभीरता से लेने की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने कहा, “हम मामले की मेरिट पर विचार कर रहे हैं। अगर हमें लगे कि नियमित जमानत का आधार है, तो अंतरिम जमानत क्यों न दी जाए? पाँच साल से अधिक समय से वह जेल में हैं, और जिन मामलों में आरोप समान हैं, उनमें जमानत मिल चुकी है।”

दिल्ली पुलिस की ओर से पेश अधिवक्ता राजत नायर ने अदालत से समय माँगा ताकि वह मामले पर अपनी दलीलें प्रस्तुत कर सकें। इस पर अदालत ने मामले की सुनवाई बुधवार तक स्थगित कर दी।

गौरतलब है कि ताहिर हुसैन पर 2020 के दिल्ली दंगों का मुख्य साजिशकर्ता होने का आरोप है। वो उस समय आम आदमी पार्टी में था और पार्षद था। उसके खिलाफ आईबी अधिकारी अंकित शर्मा की हत्या सहित कई गंभीर आरोप हैं। दिल्ली हाई कोर्ट ने पहले उसे चुनाव के लिए नामांकन भरने के लिए कस्टडी पैरोल दी थी, लेकिन जमानत देने से इनकार कर दिया था। अब हुसैन चुनाव प्रचार के लिए अंतरिम जमानत माँग रहा है।

सैफ अली खान को अस्पताल से मिली छुट्टी, पर 15 हजार करोड़ की फैमिली प्रॉपर्टी ले सकती है MP सरकार: जानिए क्यों आई ये नौबत

बॉलीवुड एक्टर सैफ अली खान पर 16 जनवरी 2025 की रात चाकू से हमला हुआ था, जिसके बाद से वो मुंबई के लीलावती अस्पताल में भर्ती थे। अब 5 दिन बाद मंगलवार (21 जनवरी 2025) को उन्हें अस्पताल से छुट्टी मिल गई है। उन्हें अस्पताल से भले ही छुट्टी मिल गई हो, लेकिन उनके सामने एक और मुसीबत खड़ी हो गई है। दरअसल, जबलपुर से लेकर भोपाल तक की 15 हजार करोड़ रुपये की खानदानी संपत्ति खतरे में पड़ गई है, जिसपर सरकार कब्जा कर सकती है।

रिपोर्ट्स के मुताबिक, सैफ अली खान की यह संपत्ति भोपाल में स्थित है। यह विवाद काफी पुराना है और 1960 के दशक से चला आ रहा है। सैफ के दादा नवाब हमीदुल्ला खान की मौत के बाद उनकी संपत्ति पर कानूनी विवाद शुरू हुआ। नवाब की बेटी आबिदा सुल्तान को इस संपत्ति का असली वारिस माना गया था, लेकिन वे पाकिस्तान चली गई थीं। इसके बाद भारत सरकार ने इस संपत्ति को दुश्मन संपत्ति (एनिमी प्रॉपर्टी) घोषित कर दिया और उनकी दूसरी बेटी साबिया सुल्तान को इसका उत्तराधिकारी माना।

सैफ अली खान और उनके परिवार ने 2014 में इस संपत्ति को दुश्मन संपत्ति घोषित किए जाने के खिलाफ अदालत में चुनौती दी थी। उनका कहना था कि यह संपत्ति दुश्मन संपत्ति नहीं है और इसे गलत तरीके से अधिग्रहण करने की कोशिश की जा रही है। 2015 में इस मामले में अदालत ने संपत्ति पर रोक लगा दी थी, जिससे सरकार इसे अपने कब्जे में नहीं ले सकी। हालाँकि, दिसंबर 2024 में मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने इस मामले में एक अहम फैसला सुनाया। अदालत ने सैफ अली खान, उनकी माँ शर्मिला टैगोर और उनकी बहनों सोहा अली खान और सबा अली खान की याचिका खारिज कर दी। अदालत ने उन्हें 30 दिनों के भीतर अपीलीय प्राधिकरण में अपील करने का विकल्प दिया था।

अब यह समय सीमा समाप्त हो चुकी है। सैफ अली खान और उनके परिवार ने अपील दायर नहीं की, जिसके चलते हाई कोर्ट की ओर से संपत्ति पर लगी रोक (स्टे ऑर्डर) अब निष्प्रभावी हो चुका है। जिसके बाद से भोपाल जिला प्रशासन के लिए इन संपत्तियों को अपने अधिकार में लेने का रास्ता साफ हो गया है।

बता दें कि भोपाल की यह संपत्ति करीब 100 एकड़ में फैली है। इसमें कोहेफिज़ा और चिकलोड इलाके की जमीन शामिल है, जहाँ लगभग 1.5 लाख लोग रहते हैं। संपत्ति में पटौदी परिवार का एक ऐतिहासिक घर भी शामिल है, जिसे ‘पटौदी फ्लैग हाउस’ कहा जाता है। इस संपत्ति की अकेले कीमत 1000 करोड़ रुपये बताई जाती है। सरकार ने इस संपत्ति को दुश्मन संपत्ति अधिनियम, 1968 के तहत अधिग्रहित करने की प्रक्रिया शुरू की थी। कोर्ट के हालिया फैसले के बाद जिला प्रशासन इस प्रक्रिया को तेजी से आगे बढ़ा सकता है।

हालाँकि सैफ अली खान और उनके परिवार के पास अब भी एक आखिरी मौका है। वे मध्य प्रदेश हाई कोर्ट की डिवीजन बेंच में अपील कर सकते हैं। अगर वहाँ से फैसला उनके पक्ष में आता है, तो उनकी संपत्ति पर से संकट हट सकता है।

गौरतलब है कि 16 जनवरी 2025 को सैफ अली खान पर हुए हमले ने पहले ही उन्हें मानसिक और शारीरिक रूप से झकझोर दिया था। ऐसे में सैफ अली खान के लिए यह समय कई चुनौतियों से भरा हुआ है। एक तरफ वह अपने स्वास्थ्य को लेकर संघर्ष कर रहे हैं, तो दूसरी तरफ उनकी खानदानी संपत्ति पर खतरा मंडरा रहा है। अब देखना होगा कि वे इस संपत्ति को बचाने के लिए कानूनी लड़ाई में क्या कदम उठाते हैं।

क्या एनसन फंड के फाउंडर की बीवी के साथ TMC सांसद महुआ मोइत्रा का है लिंक? हिंडनबर्ग के साथ मिलकर शॉर्ट सेलिंग का चलाया अभियान, अमेरिका में चल रही जाँच

हेज फंड कम्पनी एनसन फंड्स और हिंडनबर्ग रिसर्च के फाउंडर नाथन एंडरसन पर शेयर बाजार में गड़बड़ी के आरोप लगे हैं। अब उनके खिलाफ अमेरिकी एजेंसियाँ जाँच कर रही है। इस मामले में सामने आए कोर्ट के कागजों से खुलासा हुआ है कि एंडरसन ने एनसन फंड्स के साथ मिलकर शॉर्ट सेलिंग का एक पूरा अभियान चलाया और मोटा पैसा कमाया।

यह सब मिलीभगत से किया गया। यह भी सामने आया है कि हिंडनबर्ग की रिपोर्ट में दिए जाने वाले तथ्य एनसन ने दिए। हिंडनबर्ग लगातार दावा करती रहती थी कि उसकी रिपोर्ट एकदम स्वतंत्र है और इसमें कोई भी बाहरी एजेंसी दखल नहीं देती है। जबकि जाँच में पता चला कि हिंडनबर्ग को एनसन बता रही थी कि उसे अपनी रिपोर्ट में क्या लिखना है।

अमेरिका की सिक्यूरिटी एक्सचेंज एजेंसी (SEC) समेत कई और एजेंसियाँ अब इन दोनों के गठजोड़ की जाँच कर रहे हैं। इस मामले में आगे दोनों कम्पनियों पर मुकदमा भी चल सकता है। इस मामले में TMC सांसद महुआ मोइत्रा का एंगल भी सामने आ रहा है।

कुछ रिपोर्ट्स में बताया गया है कि सांसद महुआ मोइत्रा और एनसन फंड्स के सह-संस्थापक मोएज कासम की पत्नी मारिसा सीगल कासम के बीच कनेक्शन हो सकते हैं। कयास है कि दोनों की अच्छी पहचान हो सकती हैं क्योंकि यह दोनों ही जेपी मॉर्गन के लिए काम कर चुकी हैं।

राजनीति में आने से पहले मोइत्रा ने लगभग 12 साल तक जेपी VP के रूप में काम किया था तो वहीं मारिसा ने लंदन, हांगकांग और न्यूयॉर्क में जेपी मॉर्गन में विभिन्न पदों पर काम किया। इस पैटर्न के सामने आने के बाद अडानी समूह पर लगाए गए आरोपों को लेकर भी प्रश्न उठ रहे हैं।

गौरतलब है ऑपइंडिया ने बताया था कि महुआ मोइत्रा ने लगातार अडानी समूह के खिलाफ संसद में प्रश्न पूछे थे। आरोप था कि यह प्रश्न महुआ मोइत्रा ने कारोबारी दर्शन हीरानंदानी से गिफ्ट और बाकी फायदे लेकर पूछे थे। प्रश्न भी इस तरीके के थे जिनसे हीरानंदानी को कारोबारी फायदा पहुँचे।

एनसन फंड्स के खिलाफ यह आरोप भी है कि उसने शेयरों के भाव में गड़बड़ी की और मुनाफा कमाया। इसके लिए पहले स्टॉक के जानबूझकर दाम गिराए गए और बड़ा पैसा बनाया। अदालत में दायर किए गए कागजों में भी यह बताया गया है।

इन सब जाँच के बीच अगर यह साबित हो जाता है कि मोइत्रा के मारिसा कासम एनसन फंड्स के सह-संस्थापक के साथ रिश्ते हैं, तो मामले में और भी कई कड़ियाँ जुड़ जाएँगी। गौरतलब है कि हाल ही में हिंडनबर्ग को इसके संस्थापक एंडरसन ने बंद कर दिया था।

महुआ मोइत्रा ने अडानी समूह को बनाया था निशाना

अक्टूबर 2023 में ऑपइंडिया की एक रिपोर्ट में बताया गया था कि भाजपा सांसद निशिकांत दुबे ने तृणमूल TMC महुआ मोइत्रा पर व्यवसायी दर्शन हीरानंदानी से नकद और गिफ्ट लेने का आरोप लगाया था। आरोप था कि इसके बदले में महुआ मोइत्रा ने अडानी समूह को लेकर संसद में प्रश्न पूछे।

इस रिपोर्ट में लोकसभा के भीतर मोइत्रा द्वारा पूछे गए प्रश्नों की जानकारी दी गई थी। महुआ ने पारादीप पोर्ट और अडानी समूह को निशाना बनाया था। इन प्रश्नों से हीरानंदानी को कथित तौर पर फायदा होना था। यह प्रश्न बंदरगाह समझौतों, टेलिकॉम सेवाओं और गैस के प्रोजेक्ट को लेकर थे।

यह भी आरोप था कि महुआ के प्रश्नों से अडानी से मुकाबले में हीरानंदानी का पक्ष लिया गया। मोइत्रा ने बाद में कुछ भी गलत करने से इनकार किया था। हालाँकि, ऑपइंडिया की रिपोर्ट के बाद उनके खिलाफ जाँच तेज हो गई थी। यह जाँच उनके प्रश्नों और हीरानंदानी के व्यापारिक हितों से सम्बन्धित थी।

अब जबकि एनसन फंड्स के सह संस्थापक की पत्नी के साथ उनके संबंध तलाशे जा रहे हैं, तब उनके अडानी समूह पर प्रश्न पूछने के पीछे के उद्देश्य पर भी सवाल उठ रहे हैं।

चेतावनी: ऑपइंडिया ने किसी भी तरह से महुआ मोइत्रा और मारिसा सीगल कासम के बीच संबंधों की पुष्टि नहीं की है। ऊपर दी गई जानकारी उपलब्ध समाचार रिपोर्टों , मारिसा सीगल कासम और महुआ मोइत्रा के प्रोफाइल पर आधारित कयास हैं।

जहाँ मुरुगन मंदिर, वहीं जानवरों की कुर्बानी देने वाले थे मुस्लिम: हिंदुओं के विरोध के बाद पवित्र पहाड़ी के इस्लामीकरण की कोशिश विफल, प्रतिबंधित PFI के राजनीतिक विंग SDPI की थी साजिश

तमिलनाडु के थिरुपरनकुंद्रम जिले में पवित्र मदुरै पहाड़ी पर मुस्लिमों ने शनिवार (18 जनवरी 2025) पशुओं की कुर्बानी देने की कोशिश की, जिसे पुलिस ने विफल कर दिया। पुलिस ने हिंदू संगठनों की शिकायत के बाद कुर्बानी देने से रोका। मदुरै पहाड़ी पर पशुओं की कुर्बानी बैन आतंकी संगठन पीएफआई के पॉलिटिकल विंग एसडीपीआई के लोग देने वाले थे। बता दें कि पीएफआई यानी पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (PFI) को बैन करने के बाद इससे जुड़े लोगों ने सोशल डेमोक्रेटिकल पार्टी ऑफ इंडिया (SDPI) बनाई है।

रिपोर्ट्स के मुताबिक, एसडीपीआई के सदस्यों द्वारा पवित्र मंदिर क्षेत्र में स्थित एक दरगाह पर कुर्बानी देने की प्लानिंग की गई थी। इसके बारे में इंदु मक्कल कच्ची (IMK) के मदुरै जिलाध्यक्ष सोलैकन्नन ने कमिश्नर लोगनाथन को सूचना दी थी और लिखित में कुर्बानी रोकने की माँग की थी। इस पवित्र पहाड़ी पर मुरुगन मंदिर स्थित है, तो मुस्लिमों के लिए कथित सिकंदर बादुशाह (बादशाह) की मजार भी है। इसी मजार पर बकरों और मुर्गियों की बलि देने की तैयारी की जा रही थी।

कमिश्नर को दी गई अपनी शिकायत में सोलैकनन ने लिखा, “मदुरै में थिरुपरनकुंद्रम सुब्रमण्यम स्वामी मंदिर पहाड़ी एक प्राचीन स्थल है और हिंदुओं के लिए इसका बहुत धार्मिक महत्व है। यहाँ का हिंदू समुदाय हर पूर्णिमा पर पहाड़ी की पूजा और गिरिवलम (परिक्रमा) करता रहा है।” ऐसे में यहाँ कुर्बानी जैसी चीजें रोकी जाए।

हालाँकि तुरंत ही सक्रिय हुई पुलिस ने इस्लामिक समूह को बकरों और मुर्गियों की कुर्बानी देने से रोक दिया। पुलिस ने कहा कि इस मजार पर सिर्फ नमाज या दुआ पढ़ी जा सकती है, कुर्बानी नहीं दी जा सकती।

टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, बीते सप्ताह इस्लामी संगठनों से जुड़े लोगों ने राजस्व अधिकारियों और जिला प्रशासन से मुलाकात की थी और सिकंदर बादुशाह दरगाह पर कुर्बानी की अनुमति माँगी थी, लेकिन मदुरै जिला प्रशासन ने दरगाह पर सिर्फ नमाज़ अदा करने की अनुमति दी।

दरअसल, इस्लामी संगठनों की कोशिश का हिंदू विरोध कर रहे हैं। हिंदुओं का कहना है कि मदुरै पहाड़ी पर स्थित मंदिर भगवान मुरुगन के 6 पवित्र निवासों में से एक है। ऐसे में यहाँ कुर्बानी नहीं दे सकते। उन्होंने आरोप लगाया कि मुस्लिम लोग इस मंदिर को अपवित्र कर इस्लामी स्वरूप देना चाहते हैं।

इस मामले में बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष के अन्नामलाई का भी बयान आया है। उन्होंने एक्स पर लिख कि कुछ लोग थिरुपरनकुंद्रम पहाड़ी को सिकंदर मलाई (पहाड़ी) कह रहे हैं। भाजपा नेता ने सत्तारूढ़ डीएमके पर मुस्लिम तुष्टिकरण में लिप्त होने का आरोप लगाया। उन्होंने धार्मिक मान्यताओं की परवाह किए बिना थिरुपरनकुंद्रम पहाड़ी पर शांति बनाए रखने के महत्व पर जोर दिया।

कब से शुरू हुआ ताजा विवाद?

इस मामले में ताजा विवाद 27 दिसंबर 2024 को शुरू हुआ, जब कुछ मुस्लिमों ने थिरुपरनकुंड्रम मुरुगम मंदिर पहाड़ियों पर स्थिति दरगाह परिसर में कुर्बानी के लिए बकरे और मुर्गियाँ ले जाते की कोशिश की। इस मामले में तमिलनाडु पुलिस ने मलैयाडीपट्टी निवासी सैयद अबू दाहिर और उसके परिवार को पहाड़ी के नीचे ही रोक लिया, जिसके बाद 20 से अधिक मुस्लिमों ने प्रदर्शन भी किया था।

इसके बाद इस महीने की शुरुआत में सिकंदर मस्जिद समिति और ऐय्यकिया कूटामाइप्पू जमात के 100 से ज़्यादा सदस्यों को मस्जिद खोलने और वहाँ नमाज़ पढ़ने की अनुमति माँगते हुए विरोध प्रदर्शन किया था, जिन्हें पुलिस ने हिरासत में भी लिया था। प्रदर्शन कर रहे मुस्लिमों ने 5 जनवरी 2025 को दावा किया कि सुल्तान सिकंदर ने लगभग 400 साल पहले सिकंदर बादुशाह थोझुगई पल्लीवासल को बनवाया था।

थिरुपरनकुंद्रम पहाड़ी का ‘मालिकाना हक’ सुब्रमण्यम स्वामी मंदिर के पास

थिरुपरनकुंद्रन पहाड़ी की चोटी पर काशी विश्वनाथ मंदिर, एक लैंप पोस्ट और एक पवित्र कल्लथी वृक्ष है। अंग्रेजी प्रशासन ने भी फैसला दिया था कि “थिरुपरनकुंद्रम पहाड़ी का मालिक सुब्रमण्यम स्वामी मंदिर है।” अंग्रेजी ने कहा था कि पहाड़ी के आसपास स्थित जैन मंदिरों और शिलालेखों की सुरक्षा के लिए इस पूरे क्षेत्र को पुरातत्व विभाग के अधिकार क्षेत्र में रखा जाना चाहिए। लेकिन साल 2011 से इस्लामी संगठन SDPI थिरुपरनकुंद्रम पहाड़ी पर लैंप पोस्ट के पास झंडा लगाने का विरोध कर रहा है और अब पवित्र पहाड़ी पर कुर्बानी देने की कोशिश कर रहा है। ऐसे में ये पवित्र पहाड़ी को इस्लामी मजहबी स्थल बनाने की कोशिश नहीं तो क्या है?

स्थानीय हिंदुओं का आरोप है कि स्थानीय मुस्लिमों ने समय के साथ पहाड़ी के कुछ हिस्सों पर अतिक्रमण कर लिया। तमिलनाडु सरकार भी इस मामले में तुष्टिकरण करती है।

बता दें कि एसडीपीआई प्रतिबंधित आतंकी संगठन पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) की राजनीतिक शाखा है। इस संगठन से जुड़े लोग हिंदुओं के खिलाफ अपराधों में शामिल रहे हैं। सुरक्षा विशेषज्ञों का कहना है कि PFI के लोग मुखौटा संगठनों की आड़ में आतंकी वारदातों में शामिल रहे हैं। यही वजह है कि गृह मंत्रालय ने पीएफआई पर बैन लगाया हुआ है।

महिला डॉक्टर के रेप-मर्डर को ‘सुसाइड’ साबित करने की कोशिश, संजय रॉय को ‘VIP ट्रीटमेंट’: अदालत ने बंगाल पुलिस को किया नंगा, पीड़ित पिता बोले- अब कुछ न करें ममता बनर्जी

कोलकाता में आरजी कर मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में डॉक्टर के साथ हुए रेप और हत्या मामले में अभियुक्त संजय रॉय को फाँसी की जगह उम्रकैद की सजा दी गई है। इस फैसले पर पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने नाराजगी जाहिर की। उन्होंने कहा कि यदि इस मामले की जाँच सीबीआई के बजाय राज्य पुलिस ने की होती, तो दोषी को फाँसी की सजा मिल सकती थी। इस मामले में अब ममता सरकार ने हाई कोर्ट में अपील कर संजय रॉय के लिए फाँसी की सजा माँगी है।

हालाँकि इस केस में सियालदाह की कोर्ट ने दोषी संजय रॉय को सजा सुनाते समय बंगाल पुलिस की जाँच प्रक्रिया पर गंभीर सवाल उठाए। अदालत ने पुलिस की कार्यशैली को ‘बेहद उदासीन’ करार दिया और कई गड़बड़ियों पर कड़ी आपत्ति जताई।

बंगाल पुलिस को लेकर कोर्ट ने क्या कहा? विस्तार से पढ़ें

जज अनिर्बाण दास ने फैसले में कहा कि ताला पुलिस स्टेशन ने इस मामले की शुरुआत से ही लापरवाह रवैया अपनाया। उन्होंने सब-इंस्पेक्टर सुब्रत चटर्जी की गवाही का उल्लेख करते हुए कहा कि उन्होंने झूठे दस्तावेज तैयार किए और इसे अदालत में स्वीकार करने में भी कोई झिझक नहीं दिखाई। जज ने कहा, “यह पुलिस अधिकारियों की गंभीर लापरवाही को दिखाता है। मैंने पुलिस के एक सब-इंस्पेक्टर से इस तरह की गवाही की उम्मीद नहीं की थी। यह साबित करता है कि इस संवेदनशील मामले को कितनी लापरवाही से संभाला गया।”

जज अनिर्बाण दास ने सब-इंस्पेक्टर सुब्रत चटर्जी के गवाही में दिए गए बयानों का जिक्र करते हुए कहा कि उन्होंने झूठे दस्तावेज तैयार किए। उन्होंने घटना के दिन का एक फर्जी जनरल डायरी (जीडी) एंट्री बनाया, जिसका समय सुबह 10:10 बजे का था। लेकिन यह साबित हुआ कि सुब्रत चटर्जी उस समय पुलिस स्टेशन में मौजूद ही नहीं थे।

कोर्ट ने कहा, “उन्होंने यह भी कहा कि उन्हें ऐसा करने का निर्देश दिया गया था, लेकिन यह नहीं बताया कि यह आदेश किसने दिया।” जज ने कहा कि मैं सब-इंस्पेक्टर सुब्रत चटर्जी के इस कृत्य की निंदा करता हूँ। कोर्ट ने कहा, “पीड़िता के परिवार को शिकायत दर्ज कराने के लिए घंटों इंतजार करना पड़ा।”

असिस्टेंट सब-इंस्पेक्टर अनुप दत्ता (Anup Dutta) को लेकर भी कोर्ट ने तीखी टिप्पणी की। कोर्ट ने कहा, “असिस्टेंट सब-इंस्पेक्टर अनुप दत्ता ने आरोपित के साथ नरमी बरती। यह काम बिल्कुल गलत था।” वहीं, इंस्पेक्टर रूपाली मुखर्जी (Rupali Mukherjee) को लेकर भी कोर्ट ने निराशा जताई। कोर्ट ने कहा, “इंस्पेक्टर रूपाली मुखर्जी द्वारा 9 अगस्त 2024 को आरोपित से मोबाइल फोन लेकर उसे ताला पुलिस स्टेशन में बिना निगरानी के छोड़ना भी बेहद संदिग्ध था। हालाँकि फोन से छेड़छाड़ नहीं हुई, लेकिन यह लापरवाही स्पष्ट रूप से एक गंभीर चूक है।”

कोर्ट ने कोलकाता पुलिस के आयुक्त से अपील की कि वे इस तरह की लापरवाही और अवैध कृत्यों को सख्ती से रोकें। उन्होंने सुझाव दिया कि पुलिस अधिकारियों को ऐसे मामलों में जाँच के लिए ट्रेनिंग देने की जरूरत है, खासकर जब मामला परिस्थितिजन्य, इलेक्ट्रॉनिक और वैज्ञानिक साक्ष्यों पर आधारित हो।

कोर्ट ने आरजी कर मेडिकल कॉलेज और अस्पताल की आलोचना करते हुए कहा कि उन्होंने पीड़िता की मौत को आत्महत्या बताने की कोशिश की ताकि अस्पताल को किसी भी जिम्मेदारी से बचाया जा सके। जज ने कहा, “अस्पताल प्रशासन ने न केवल जाँच में देरी की, बल्कि पीड़िता के माता-पिता को भी उनकी बेटी को देखने से रोका। यह कर्तव्य से चूक और तथ्यों को छिपाने का प्रयास था।” कोर्ट ने साफ कहा कि अगर जूनियर डॉक्टर विरोध न करे, तो शायद मामला आगे बढ़ता ही नहीं।

हालाँकि जज ने कहा, “अपराध निर्मम और बर्बर था, यह मामला ‘दुर्लभ से दुर्लभतम’ की श्रेणी में नहीं आता। न्यायपालिका की प्राथमिक जिम्मेदारी साक्ष्यों के आधार पर कानून का पालन करना और न्याय सुनिश्चित करना है, न कि केवल जनभावनाओं से प्रभावित होना। हमें ‘आँख के बदले आँख’ जैसे पुराने विचारों से ऊपर उठकर मानवता को बुद्धिमत्ता, करुणा और न्याय की गहरी समझ के माध्यम से ऊँचा उठाना होगा।”

जज ने अपने फैसले में यह भी कहा कि पीड़िता के माता-पिता के असीम दुख और दर्द को कोई सजा कम नहीं कर सकती, लेकिन न्यायपालिका का कर्तव्य यह है कि वह कानून के दायरे में रहकर दोषियों को सजा दे। इस दौरान कोर्ट ने पीड़ित परिवार को 17 लाख रुपए मुआवजा देने के आदेश दिए गए थे, लेकिन परिवार ने कहा कि उन्हें मुआवजा नहीं बल्कि न्याय चाहिए।

मुख्यमंत्री ममता बनर्जी पर भड़के पीड़ित के पिता

सियालदाह कोर्ट के फैसले के बाद पीड़िता के पिता ने कहा, “आदेश की कॉपी मिलने के बाद हम आगे का फैसला करेंगे। उन्हें (सीएम ममता बनर्जी) जल्दबाजी में कुछ भी करने की जरूरत नहीं है। आज तक मुख्यमंत्री ने जो भी किया है, उन्हें आगे कुछ नहीं करना चाहिए।” यह कहते हुए कि उम्रकैद इसलिए दी गई, क्योंकि सीबीआई उचित सबूत नहीं दे सकी, पीड़िता के पिता ने कहा, “वह बहुत कुछ कह सकते हैं, लेकिन कहेंगे नहीं। तत्कालीन सीपी और अन्य लोगों ने सबूतों से छेड़छाड़ की, क्या ये सब उन्हें शुरुआत से नजर नहीं आया।”

बंगाल पुलिस पर शुरू से उठ रहे थे गंभीर सवाल

गौरतलब है कि 9 अगस्त 2024 की सुबह आरजी कर मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में डॉक्टर क्षत-विक्षत हालत में मिली। उस समय वो बेहोश थी। उसे तुरंत इलाज देना शुरू किया गया, लेकिन उसने दम तोड़ दिया। पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में यौन उत्पीड़न और हत्या की बात सामने आई। रिपोर्ट में कहा गया है, “उसकी दोनों आँखों और मुँह से खून बह रहा था, चेहरे और नाखून पर चोटें थीं। पीड़िता के निजी अंगों से भी खून बह रहा था। उसके पेट, बाएँ पैर…गर्दन, दाएँ हाथ और…होंठों पर भी चोटें थीं।” हालाँकि पुलिस ने पहले इसे आत्महत्या बताया था, लेकिन अर्धनग्न शरीर की हालत कुछ और ही बयाँ कर रही थी। जिसके बाद छात्रों ने जमकर हंगामा किया और फिर छात्रा के शव का पोस्टमार्टम किया गया।

इस मामले में पीड़ित के माता-पिता और परिजनों ने गंभीर आरोप लगाए थे। उन्होंने बंगाल पुलिस पर मामले को दबाने, बेटी को उन्हें 3 घंटे तक न देखने देने जैसे आरोप लगाए। यही नहीं, आरजी कर प्रशासन पर भी उन्होंने मामले को दबाने के आरोप लगाए थे। इस मामले में कोर्ट के आदेश के बाद सीबीआई ने जाँच की, वहीं, पुलिस ने संजय रॉय को पकड़ा था और फिर उसे अब कोर्ट ने उम्रकैद की सजा दी है।

जवानों ने 60 नक्सलियों को घेरा, ड्रोन से टारगेट लगा कर रहे ढेर: ₹1 करोड़ का इनामी कमांडर भी मारा गया, जानिए वामपंथी आंतकियों का कैसे सफाया कर रही BJP स्टेट (छत्तीसगढ़+ओडिशा) की पुलिस

ओडिशा-छत्तीसगढ़ की सीमा पर गरियाबंद जिले में जवानों ने करीब 60 नक्सलियों को घेर रखा है। 20 जनवरी से चल रहे एनकाउंटर में 16 नक्सलियों के मारे जाने की पुष्टि हो चुकी है। यह संख्या लगातार बढ़ रही है। कुछ रिपोर्टों में 20 नक्सलियों के मारे जाने की भी बात कही गई है। मारे गए नक्सलियों में ₹1 करोड़ का इनामी कमांडर जयराम उर्फ़ चलापति भी है। इसके अलावा कुछ और बड़े कमांडर भी इस ऑपरेशन में मारे गए हैं। नक्सलियों के पास से कई हथियार भी बरामद हुए हैं। एनकाउंटर में 1 जवान के घायल होने की भी सूचना है।

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, यह एनकाउंटर गरियाबंद जिले के कुल्हाड़ीघाट इलाके में सोमवार (20 जनवरी, 2025) को चालू हुआ था। इस एनकाउंटर में पहले दिन 2 महिला नक्सियों के शव बरामद किए गए थे। जिस इलाके में यह एनकाउंटर हुआ है, वह ओडिशा से सीमा साझा करता है, इसलिए ओडिशा के नुआपाड़ा इलाके में सुरक्षाबल सर्च अभियान चला रहे हैं।

₹1 करोड़ का इनामी भी मारा गया

मंगलवार (21 जनवरी, 2025) को खबर लिखे 16 शव बरामद हो चुके थे। सुरक्षाबल लगातार इस इलाके में सर्च अभियान चला रहे हैं। मारा गया कमांडर जयराम उर्फ़ चलापति भी शामिल है। वह नक्सलियों की सेंट्रल कमेटी का सदस्य था। उसके साथ ही ओडिशा में नक्सली आतंक के प्रुमख मनोज को भी सुरक्षाबलों ने मार गिराया है। बाकी नक्सलियों की सुरक्षाबल पहचान कर रहे हैं।

इन नक्सलियों के पास से सुरक्षाबलों को बड़ी मात्रा में हथियार और गोला बारूद बरामद हुए हैं। इस मुठभेड़ में घायल एक जवान को हेलिकॉप्टर से एयरलिफ्ट कर लिया गया है। उसकी हालत खतरे से बाहर बताई जा रही है। घायल जवान का राजधानी रायपुर में इलाज चल रहा है।

नक्सल विरोधी इस ऑपरेशन में 10 टीमें शामिल हैं। इनमें छत्तीसगढ़ और ओडिशा की पुलिस समेत DRG और CRPF की कोबरा बटालियन हिस्सा ले रही हैं। नक्सलियों को ठिकाने लगाने के लिए ड्रोन का सहारा लिया जा रहा है। सूचना है कि घेरे में फंसने वाला नक्सलियों का यह दल 60 लोगों का था, अभी इसके और लोग भी मारे जा सकते हैं।

2024 में 221 मारे, जनवरी 2025 में ही 42 का सफाया

सुरक्षाबलों के सामने अब नक्सलियों के पैर उखड़ रहे हैं। छत्तीसगढ़ में विष्णु देव साय के मुख्यमंत्री बनने के बाद से लगातार नक्सली बैकफुट पर है। 2024 में छत्तीसगढ़ में सुरक्षाबलों ने 221 नक्सली मार गिराए थे। एक एनकाउंटर में 40 से अधिक नक्सली मारे गए थे।

नक्सलियों के इस सफाए में जनवरी में और भी तेजी आ गई है। जनवरी, 2025 में इस गरियाबंद एनकाउंटर को मिला कर छत्तीसगढ़ में 42 नक्सली खत्म किए जा चुके हैं। यह संख्या यह महीना खत्म होते-होते 50 पार हो सकती है। मात्र नक्सलियों को मार गिराने में ही नहीं बल्कि उनका नेटवर्क तोड़ने में भी कामयाबी मिली है।

छत्तीसगढ़ में 2024 में 925 नक्सली गिरफ्तार भी किए गए थे। इसके अलावा 738 ने नक्सलवाद की राह छोड़ कर आत्मसमर्पण की राह चुनी थी। इस तरह 2024 में ही इस नेटवर्क से 1800 लोग कम कर दिए गए थे। वर्तमान में छत्तीसगढ़ में 1000 के आसपास नक्सली होने के दावे हैं।

सिर्फ छत्तीसगढ़ ही नहीं बल्कि पूरे देश में नक्सली नेटवर्क तबाह हो रहा है। 2024 में देश भर में 287 नक्सली (छत्तीसगढ़ सहित) खत्म किए गए थे। गृह मंत्री अमित शाह ने मार्च, 2026 तक नक्सलियों को खत्म करने का लक्ष्य सुरक्षाबलों को दिया है।

CM, गृह मंत्री ने की तारीफ़

गरियाबंद में हुए एनकाउंटर में सुरक्षाबलों की सफलता पर छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय और गृह मंत्री अमित शाह ने उनकी तारीफ़ की है। CM विष्णु देव साय ने ट्विटर पर जवानों की बहादुरी को सलाम किया है। गृह मंत्री अमित शाह ने इसे नक्सलवाद पर करारी चोट बताया है।

CM साय ने एक्स (पहले ट्विटर) पर लिखा, “गरियाबंद जिले के मैनपुर थाना अंतर्गत कुल्हाड़ीघाट क्षेत्र में सुरक्षाबलों की नक्सलियों के साथ रविवार रात से अब तक जारी मुठभेड़ में 10 से अधिक नक्सलियों के मारे जाने की खबर है। मार्च 2026 तक देश-प्रदेश में नक्सलवाद के खात्मे के यशस्वी प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी एवं माननीय केंद्रीय गृह मंत्री श्री अमित शाह जी के संकल्प को मजबूती प्रदान करते हुए सुरक्षाबल के जवान निरंतर सफलता हासिल कर लक्ष्य की ओर तेजी से आगे बढ़ रहे हैं। जवानों को मिली यह कामयाबी सराहनीय है।”

वहीं गृह मंत्री अमित शाह ने लिखा, “नक्सलवाद को एक और करारा झटका। नक्सल मुक्त भारत बनाने की दिशा में हमारे सुरक्षा बलों को बड़ी सफलता मिली है। ओडिशा-छत्तीसगढ़ सीमा पर CRPF, SOG ओडिशा और छत्तीसगढ़ पुलिस ने संयुक्त ऑपरेशन में 14 नक्सलियों को ढेर कर दिया। नक्सल मुक्त भारत के हमारे संकल्प और हमारे सुरक्षा बलों के संयुक्त प्रयासों से आज नक्सलवाद अपनी अंतिम सांसें ले रहा है।”

हलाल के ठप्पे से हुई लाखों करोड़ की कमाई, सरिया-सीमेंट को भी दिया सर्टिफिकेट: केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया- इसके चलते महँगे हुए सामान

केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया है कि हलाल सर्टिफिकेट का दायरा मांस से आगे बढ़ कर सरिया और सीमेंट जैसे घर बनाने के सामान तक पहुँच गया है। केंद्र सरकार ने बताया है कि हलाल सर्टिफिकेट देने के नाम पर कई एजेंसियों ने लाखों करोड़ों रूपए बनाए हैं।

केंद्र सरकार ने यह दलीलें सुप्रीम कोर्ट में उत्तर प्रदेश की योगी सरकार के खिलाफ दायर याचिकाओं के मामले में दी है। योगी सरकार ने 2023 में उत्तर प्रदेश में हलाल सर्टिफिकेट वाले उत्पादों की बिक्री पर रोक लगा दी थी। इसके खिलाफ कुछ संगठन सुप्रीम कोर्ट पहुँच गए थे।

आटा-बेसन भी हलाल

सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में यूपी सरकार के फैसले के खिलाफ दायर याचिकाओं की सोमवार (25 जनवरी, 2025) को सुनवाई की। इस दौरान केंद्र की तरफ से हलाल मामले में जवाब दाखिल करने के लिए सॉलिसिटर जनरल (SG) तुषार मेहता पेश हुए। उन्होंने बताया कि सरिया और सीमेंट, यहाँ तक कि बेसन पर भी हलाल का प्रमाण पत्र लगा हुआ था।

SG तुषार मेहता ने कहा, “जहाँ तक हलाल मीट का सवाल है, किसी को इसमें कोई आपत्ति नहीं हो सकती। लेकिन कोर्ट को यह आश्चर्य होगा, जैसा कि कल मुझे हुआ, सीमेंट तक का भी हलाल-सर्टिफाइड होना ज़रूरी है। सरिया का भी हलाल-सर्टिफाइड होना ज़रूरी है। यहाँ तक कि पानी की भी हलाल-सर्टिफाइड होना ज़रूरी है।”

SG तुषार मेहता ने कहा कि बेसन और आटा तक का हलाल सर्टिफाइड होना जरूरी किया गया था। उन्होंने प्रश्न उठाया कि इसकी क्या जरूरत है। SG मेहता ने कहा कि इस हलाल सर्टिफिकेट के धंधे में कई एजेंसियों ने लाखो करोड़ रूपए बना लिए हैं।

कीमत बढ़ा रहा हलाल का ठप्पा

SG मेहता ने सुप्रीम कोर्ट में बताया कि हलाल के चलते कई उत्पाद महंगे दामों पर बिक रहे हैं क्योंकि हलाल का ठप्पा लगाने के लिए फीस देनी पड़ती है। उन्होंने प्रश्न उठाया कि जो गैर मुस्लिम लोग हलाल नहीं खाना चाहते, उनके लिए महंगे उत्पाद लेने की मज़बूरी क्यों हो।

सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई अब मार्च तक के लिए टाल दी है। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र द्वारा इस मामले में दाखिल जवाब की कॉपी भी हलाल को बचाने के लिए पहुँचे संगठनों को देने को कहा है। इस मामले में कोर्ट ने इन एजेंसियों पर एक्शन को लेकर पहले ही रोक लगा दी थी।

योगी सरकार ने लगाई थी रोक

गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश सरकार ने नवम्बर, 2023 में राज्य में हलाल सर्टिफाइड उत्पादों पर बैन लगा दिया गया था। यूपी सरकार ने तय किया था कि राज्य की सीमा के भीतर हलाल उत्पादों के उत्पादन, वितरण, भण्डारण पर संपूर्ण बैन लागू हो। इसके लिए आधिकारिक तौर पर आदेश भी जारी किया गया था।

उत्तर प्रदेश सरकार ने कहा था हलाल सर्टिफिकेट किसी उत्पाद की गुणवत्ता से संबंधित नहीं है। ऐसे निशान गुणवत्ता को लेकर भ्रम की स्थिति ही पैदा करते हैं। जिन उत्पादों पर इस तरह के प्रतिबंध लगाए गए हैं, उनका उल्लेख राज्य सरकार द्वारा जारी पत्र में साफ तौर पर किया गया था। यूपी में हलाल सर्टिफाइड प्रोडक्ट बैन होने के बाद हलाल ट्रस्ट ने कोर्ट का रास्ता पकड़ा था।

घुसपैठियों के लिए बॉर्डर सील, WHO से अलग, थर्ड जेंडर खत्म: राष्ट्रपति बनते ही एक्टिव हुए डोनाल्ड ट्रंप, भारत के लिए ‘प्रीमियम’ सीट, कई देशों के प्रमुख बैठे पीछे

अमेरिका को नया राष्ट्रपति मिल गया है। डोनाल्ड ट्रंप ने अमेरिका के 47वें राष्ट्रपति के रूप में शपथ ली। यह शपथ ग्रहण समारोह कैपिटल रोटुंडा के भव्य कक्ष में आयोजित हुआ। भारत की ओर से विदेश मंत्री एस. जयशंकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के विशेष दूत के रूप में इस समारोह में शामिल हुए। अपने शपथ ग्रहण समारोह के साथ ही डोनाल्ड ट्रंप एक्शन मोड में आ गए और ताबड़तोड़ फैसले लिए, जिसमें मैक्सिको की सीमा पर इमरजेंसी लागू करना और डब्ल्यूएचओ से अमेरिका को हटाना शामिल है।

शपथ ग्रहण समारोह में विदेश मंत्री जयशंकर

भारत-अमेरिका संबंधों के लिहाज से यह शपथ ग्रहण समारोह कई मायनों में महत्वपूर्ण है। शपथ ग्रहण समारोह में विदेश मंत्री एस जयशंकर सबसे आगे की पंक्ति में बैठे नजर आए। ट्रंप जब मंच से संबोधित कर रहे थे, तब उन्होंने जयशंकर की ओर मुखातिब होकर संवाद किया। अमेरिका के लिए भारत की बढ़ती अहमियत का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि शपथ ग्रहण जैसे महत्वपूर्ण मौके पर भारत को बेहद तवज्जो दी गई। उनके साथ इक्वाडोर के राष्ट्रपति भी बैठे। कई देशों के राष्ट्रध्यक्षों को पीछे बैठाया गया।

शपथ ग्रहण समारोह के बाद डोनाल्ड ट्रंप ने अपने संबोधन में अमेरिका को ‘स्वर्ण युग’ की शुरुआत का वादा किया। उन्होंने कहा कि अमेरिका अब किसी भी देश के सामने झुकेगा नहीं। ट्रंप ने कई कठोर फैसलों की घोषणा की, जैसे WHO से अलग होना, थर्ड जेंडर को मान्यता न देना और पेरिस जलवायु समझौते से बाहर होना। ये सभी फैसले उनकी ‘अमेरिका फर्स्ट’ नीति को स्पष्ट करते हैं।

डोनाल्ड ट्रंप ने अपने कार्यकाल के दौरान कई ऐसे फैसले लिए, जिससे अमेरिका और दुनिया पर गहरा प्रभाव पड़ने वाला है। उनके 10 बड़े फैसलों को सरल तरीके से समझते हैं:

WHO को अलविदा: ट्रंप ने अमेरिका को विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) से बाहर कर लिया। उन्होंने इसे अमेरिका के हितों के खिलाफ बताते हुए फंडिंग रोक दी।

पेरिस समझौते से बाहर: जलवायु परिवर्तन पर पेरिस समझौते से हटने का ऐलान किया, जिसे उन्होंने ‘अमेरिका विरोधी’ बताया।

BRICS को चेतावनी: ब्रिक्स देशों (भारत, चीन, ब्राजील, रूस, दक्षिण अफ्रीका) को धमकी दी कि अगर वे अमेरिका विरोधी कदम उठाते हैं, तो परिणाम भुगतने होंगे।

टिकटॉक को मोहलत: चीन से जुड़े ऐप टिकटॉक को अमेरिकी कानूनों के पालन के लिए 75 दिन का समय दिया, हालाँकि ट्रंप की नजर टिकटॉक को अमेरिकी नियंत्रण में लाने की तरफ है।

थर्ड जेंडर को खत्म किया: ट्रंप ने अमेरिका में सिर्फ ‘पुरुष और महिला’ को मान्यता दी और थर्ड जेंडर को खारिज कर दिया।

मेक्सिको बॉर्डर सील: दक्षिणी सीमा पर इमरजेंसी लगाकर सेना तैनात की, ताकि अवैध प्रवासियों को रोका जा सके।

ग्रीनलैंड पर नजर: ट्रंप ने ग्रीनलैंड को अमेरिका के लिए जरूरी बताते हुए इसे अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा के लिए अहम बताया।

फ्री स्पीच की पैरवी: उन्होंने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को लेकर नया आदेश जारी किया, ताकि सरकारी सेंसरशिप रोकी जा सके।

कैपिटल हिल हिंसा से जुड़े लोगों को माफी: डोनाल्ड ट्रंप कैपिटल हिल हिंसा में शामिल 1500 रिपब्लिकन समर्थकों को माफी दे दी है और उनकी जेल से रिहाई बी शुरू हो गई है।

कनाडा-मेक्सिको पर टैक्स: इन देशों से आयात पर 25% टैरिफ लगाने की घोषणा की, जिससे व्यापारिक तनाव बढ़ा।

अमेरिका के नवनियुक्त राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अपने उद्घाटन भाषण में अमेरिकी नागरिकों को बेहतर भविष्य का भरोसा दिलाया है। उन्होंने कहा कि अब अमेरिका अपने हितों को सबसे ऊपर रखेगा और दूसरे देशों के दबाव में नहीं आएगा। यह भाषण न केवल अमेरिका के लिए महत्वपूर्ण था, बल्कि यह संदेश भी था कि ट्रंप प्रशासन नई विश्व व्यवस्था बनाने की ओर अग्रसर है।

गर्भवती गाय का सर काटा, पेट फाड़ बछड़ा निकाला: माँस निकाल कर ले गए, कर्नाटक में गोवंश की क्रूरता से हत्या

कर्नाटक में गायों पर हमले लगातार बढ़ते जा रहे हैं। गायों के थन काटने और मंदिर के बछड़े की पूँछ काटने के बाद अब एक गाय की हत्या कर दी गई। इस गर्भवती गाय का पेट फाड़ कर उसके गर्भ से बछड़ा निकाल दिया गया। इसके बाद उसके शरीर से माँस निकाल ले गए।

यह घटना कर्नाटक के उत्तर कन्नड़ जिले में रविवार (19 जनवरी, 2025) को हुई। यहाँ के होनावर ताल्लुक में कृष्णा आचारी नाम के एक शख्स की गाय गाँव के बाहर घास खाने के लिए गई थी, जिस दौरान गोतस्करों ने इस घटना को अंजाम दिया। उन्होंने इस सूनसान इलाके में इस गर्भवती गाय का सर काटा, फिर उसका पेट फाड़ दिया।

उसके पेट से बछड़ा निकाला गया। उसके शरीर से माँस अलग कर हड्डियाँ और टाँगे वहीं छोड़ दी गईं। माँस लेकर गोतस्कर फरार हो गए। जब गोपालक यहाँ पहुँचा तो उसने अपनी गाय की क्षत-विक्षत देह देखी। इसके बाद उन्होंने बाकी गाँव वालों और पुलिस को इस घटना की सूचना दी।

कृष्णा आचारी ने बताया कि वह इस गाय को 10 वर्षों से पाल रहे थे और उसे अपने घर का सदस्य मानते थे। इस घटना के बाद हिन्दू संगठनों ने प्रदर्शन किया है। स्थानीय लोगो ने आरोप लगाया है कि इस इलाके में पिछले कुछ समय से गोतस्करी चरम पर है। मामले में पुलिस ने FIR दर्ज कर ली है।

मामले में स्थानीय भाजपा विधायक दिनाकर शेट्टी ने पहुँच कर राज्य की सिद्दारमैया सरकार पर गोवंश की लापरवाही करने का आरोप लगाया है। राज्य भाजपा अध्यक्ष बीवाई विजयेन्द्र कहा कि गाय पर हमला करने वालों के लिए राज्य सरकार के मन में सहानुभूति है।

राज्य विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष R अशोक ने कॉन्ग्रेस सरकार पर तुष्टिकरण की राजनीति करने का आरोप लगाया है। उन्होंने कहा, ” तुष्टीकरण और अराजकता के कारण दम तोड़ रही कॉन्ग्रेस सरकार की कमजोरी का फायदा उठाते हुए कट्टरपंथी ताकतें गायों पर हमला करके हिंदुओं को चुनौती दे रही हैं।”

उन्होंने आगे कहा “मुख्यमंत्री सिद्धारमैया, गायों पर बार-बार हो रहे इन हमलों को देखें तो लगता है कि इसके पीछे कोई बड़ा नेटवर्क है। ऐसा लगता है कि यह कट्टरपंथी ताकतों की कोई बड़ी जिहादी साजिश है। अगर सरकार इसे गंभीरता से नहीं लेती और इन अत्याचारों पर अंकुश नहीं लगाती तो पूरे राज्य में बड़ा आंदोलन होगा।”

कर्नाटक में 10 दिनों के भीतर गायों पर यह तीसरा क्रूर हमला है। इससे पहले बेंगलुरु में तीन गायों के थन काट दिए गए थे और उन्हें गंभीर रूप से घायल कर दिया गया था। इस हमले में सैयद नसरू नाम का एक कट्टरपंथी पकड़ा गया था। इसके अलावा मैसुरु के नंजानगुड़ में मंदिर के एक बैल की पूँछ काट दी गई थी।