सीएनएन न्यूज़18 ने गुरुवार (12 जून 2025) को अपने एक एंकर के ऑन एयर कही गई बातों को लेकर माफी माँगी है। एंकर आकांक्षा स्वरूप ने कामाख्या मंदिर में मानव बलि का दावा किया था और राजा रघुवंशी की हत्या को उससे जोड़ा था। चैनल ने इसे पूरी तरह से गलत बताया और कहा कि ऐसा करने का उनका कोई इरादा नहीं था।
सीएनएन न्यूज़18 ने एक्स पर पोस्ट किया, “कल प्रसारित एक शो में, राजा रघुवंशी हत्याकांड के संदर्भ में, सीएनएन न्यूज़18 के एंकर ने असम के पवित्र कामाख्या मंदिर में ‘नर बलि’ का गलत उल्लेख किया। यह पूरी तरह से गलत निर्णय था। हमारा ऐसा कोई इरादा नहीं था। हम उन सभी लोगों से माफी माँगते हैं, जिनकी धार्मिक भावनाएँ इन टिप्पणियों के बाद आहत हुई हैं। इसके अलावा हमने अपने सभी प्लेटफॉर्म से इस तरह के किसी भी क्लिप का संदर्भ हटा दिया है। हमें इन टिप्पणियों पर गहरा खेद है और हम इसके लिए माफी माँगते हैं।”
In one of the shows aired yesterday, in the context of Raja Raghuvanshi murder case, CNN News18 anchor referred erroneously to 'human sacrifice' at the holy Kamakhya Temple in Assam. This was a complete error of judgment. We had no intention whatsoever. We apologize profusely to… pic.twitter.com/qNzabvZ1Af
बुधवार को राजा रघुवंशी की बहन श्रास्ती रघुवंशी से बात करते हुए एंकर आकांक्षा स्वरूप ने विवादित टिप्पणी की। श्रास्ती रघुवंशी ने उनसे बात करते हुए दावा किया कि यह नर बलि का मामला भी हो सकता है, क्योंकि हनीमून कपल मेघालय जाने से पहले गुवाहाटी के कामाख्या मंदिर गए थे। राजा की हत्या उनकी पत्नी सोनम ने मध्य प्रदेश के तीन सहयोगियों की मदद से की थी।
आकांक्षा स्वरूप ने कहा, “ऐसा कहा जा रहा है कि यह मानव बलि का मामला हो सकता है। हमने राजा रघुवंशी के भाई से बात की है, जिन्होंने कहा कि इसे नर बलि कहा जा सकता है क्योंकि उन्हें पीछे से चाकू मारा गया था और उनके गले में माला भी थी। वे कामाख्या गए थे, जहां मानव बलि दी जाती है।”
फिर एंकर ने पूछा, “तो क्या ये बातें संदेह पैदा करती हैं कि यह तांत्रिक हत्या हो सकती है?” इसका जवाब देते हुए राजा की बहन ने कहा कि वह इस पर कुछ नहीं कह सकती। हालाँकि उन्होंने कहा कि उन्हें पता है कि कामाख्या में नर बलि दी जाती है।
🚨 Absolutely shocking & deeply offensive!
Anchor @akankshaswarups, while sitting in the studio of @CNNnews18, has casually and falsely claimed that human sacrifices are part of rituals at the revered Maa Kamakhya Temple in Assam.
यह CNN News18 की एंकर आकांक्षा स्वरूप द्वारा लगाया गया एक पूरी तरह से झूठा दावा है। कामाख्या में कोई मानव बलि नहीं दी जाती है। हाँ, शक्ति पीठ पर पशु बलि दी जाती है। यहाँ दुर्गा पूजा के दौरान कई तरह के जानवरों और पक्षियों की बलि दी जाती है।
पश्चिम बंगाल में मुस्लिम भीड़ ने मंगलवार (10 जून 2025) को शिव मंदिर पर हमला किया। विरोध में बीजेपी नेताओं ने गुरुवार (12 जून 2025) को पश्चिम बंगाल विधानसभा के बाहर विरोध प्रदर्शन किया है। बीजेपी नेताओं ने माँग की है कि इस मामले पर तुरंत चर्चा होनी चाहिए। इसी बीच पुलिस ने हिसंक झड़प को अवैध निर्माण से जुड़ा बताया है और 40 लोगों को गिरफ्तार किया है।
#WATCH | Kolkata | BJP leaders protest outside West Bengal assembly demanding a discussion over yesterday's clash that erupted between police and miscreants in South 24 Parganas. pic.twitter.com/9AcWcNQTwa
मामले में पुलिस ने 40 लोगों को गिरफ्तार कर स्थिति को नियंत्रण करने की सूचना दी है। पुलिस का कहना है कि वह मामले की जाँच कर रही है कि क्या यह सांप्रदायिक तनाव बढ़ाने की साज़िश थी।
A clash between two groups occurred yesterday afternoon in Rabindra Nagar PS area and adjacent areas of Nadial PS over illegal construction and plantation on govt land without any permission whatsoever and replacing an existing shop in the process, resulting in brickbatting at…
बीजेपी नेता अग्निमित्रा पॉल ने पश्चिम बंगाल में हुई हिंसा और शिव मंदिर में तोड़फोड़ पर ममता बनर्जी सरकार से सवाल पूछा है। पॉल ने पूछा कि यह सब क्यों हुआ? सरकार को पहले से पता क्यों नहीं था कि 2000 लोग सड़कों पर आ सकते हैं? अग्निमित्रा ने सीधा आरोप लगाया कि ये सब ममता बनर्जी करवा रही हैं।
#WATCH | Kolkata | BJP leaders protest outside West Bengal assembly demanding a discussion over yesterday's clash that erupted between police and miscreants in South 24 Parganas.
BJP leader Agnimitra Paul says, "…Our question is why this happened? Didn't you have the state… pic.twitter.com/HFIYGXUfN1
पॉल का कहना है कि ममता बनर्जी सिर्फ 33% वोटों की चिंता करती हैं और उन्हें इस बात की परवाह नहीं है कि हिंदू या पुलिसकर्मी मरें। पॉल ने ममता बनर्जी को ‘मुहम्मद यूनुस’ से तुलना की है, जो सिर्फ एक खास वर्ग की चिंता करता है।
पॉल ने बताया कि विधानसभा में इस मुद्दे पर चर्चा की माँग की (जिसे ‘एडजर्नमेंट मोशन’ कहते हैं) गई थी, लेकिन स्पीकर ने अनुमति नहीं दी क्योंकि यह सत्तारूढ़ पार्टी टीएमसी के खिलाफ जाता है।
मामला क्या है?
घटना दक्षिण 24 परगना के बज-बज इलाके में, रवींद्र नगर पुलिस स्टेशन के पास महेशतला में हुई। वहाँ के हिन्दू समुदाय ने देखा कि एक पुराने शिव मंदिर के पास मौजूद तालाब पर कुछ लोग कब्ज़ा कर रहे हैं।
हिंदू समुदाय ने अधिकारियों से शिकायत भी की, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई। मंगलवार (10 जून 2025) को, कुछ मुस्लिमों ने मंदिर की ज़मीन पर फल की दुकानें लगाने की कोशिश की। हिन्दुओं ने रोका तो विवाद शुरू हो गया, जो देखते ही देखते हिंसक झड़प में बदल गया।
मंदिर तोड़ा, पुलिस पर हमला!
इसके बाद मुस्लिम भीड़ ने शिव मंदिर में तोड़फोड़ कर दी और मंदिर पर पत्थर और ईंटें फेंकीं। जब पुलिस मौके पर पहुँची, तो मुस्लिम भीड़ ने उन पर भी हमला कर दिया। सड़कों पर पत्थर, ईंटें और टूटी हुई चीज़ें बिखरी पड़ी थीं।
बीजेपी नेता सुवेंदु अधिकारी ने बताया कि भीड़ ने सिर्फ मंदिर ही नहीं, बल्कि पवित्र तुलसी मंच, आस-पास की हिन्दू दुकानों और घरों पर भी हमला किया।
पुलिस बेबस, बीजेपी आग बबूला
सुवेंदु अधिकारी ने आरोप लगाया कि रवींद्र नगर पुलिस स्टेशन से कुछ ही दूरी पर यह सब हुआ, लेकिन पुलिस ने भीड़ को रोकने के लिए कुछ नहीं किया। सुवेंदु अधिकारी ने सोशल मीडिया पर वीडियो भी पोस्ट किए, जिनमें भारी भीड़ को हिंसा करते देखा जा सकता है, और पास में पुलिस स्टेशन भी दिख रहा है।
पत्थरबाज़ी में कई पुलिसकर्मी घायल हुए, जिनमें एक महिला कॉन्स्टेबल भी शामिल है। पुलिस ने आंसू गैस के गोले छोड़े और अतिरिक्त बल बुलाया, लेकिन भीड़ लगातार हमला करती रही। हालात इतने बिगड़ गए कि पुलिस को कुछ देर के लिए पीछे हटना पड़ा।
फिलहाल, हालात पर काबू पाने के लिए कोलकाता से भारी संख्या में पुलिस बल भेजा गया है, लेकिन अब भी कुछ जगहों पर पत्थरबाज़ी की खबरें हैं।
मध्य पूर्व में युद्ध की आशंका है। आने वाले दिनों में इजरायल ईरान के खिलाफ मिशन शुरू करने की तैयारी कर रहा है। रिपोर्ट के मुताबिक इजरायल ने अमेरिकी अधिकारियों को ईरान पर हमला करने की अपनी योजना के बारे में बता दिया है। इसके बाद अमेरिकी विदेश विभाग ने बुधवार (11 जून) को अमेरिकी नागरिकों और अधिकारियों को बढ़ते क्षेत्रीय तनाव के बीच इराक छोड़ने की सलाह दी है।
अमेरिका को आशंका है कि ईरान इराक में अमेरिकी ठिकानों को निशाना बनाकर इजरायल की कार्रवाई का जवाब दे सकता है। रिपोर्टों के अनुसार अमेरिका मध्य पूर्वी क्षेत्र में ईरान की मारक क्षमता वाले अपने दूतावासों और ठिकानों से अपने गैर-जरूरी कर्मचारियों को वापस बुलाने की योजना बना रहा है। यूएई, बहरीन और कुवैत में अमेरिका के सैन्य ठिकानों को कथित तौर पर रेड अलर्ट पर रखा गया है।
अमेरिकी सरकार ने क्षेत्र में सैन्य परिवार के सदस्यों को स्वेच्छा से क्षेत्र छोड़ने के लिए अधिकृत किया है। बुधवार को कैनेडी सेंटर में बोलते हुए अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने मीडिया को सूचित किया कि अमेरिकी नागरिकों को मध्य पूर्व छोड़ने की सलाह दी गई है। ट्रम्प ने कहा कि अमेरिका नहीं चाहता कि ईरान परमाणु हथियार विकसित करे।
इस बीच, ईरान के रक्षा मंत्री अजीज नसीर जादेह ने बुधवार को क्षेत्र में अमेरिकी ठिकानों पर ईरानी हमले की संभावना जाहिर करते हुए कहा है, “अगर हम पर कोई संघर्ष थोपा जाता है, तो इस्लामिक रिवोल्यूशनरी गार्ड कॉर्प्स मेजबान देशों में सभी अमेरिकी ठिकानों को निशाना बनाएगा।”
अमेरिका-ईरान परमाणु समझौता
मध्य पूर्व में अमेरिकी दूत स्टीव विटकॉफ कथित तौर पर ईरान के परमाणु कार्यक्रम पर छठे दौर की वार्ता के लिए अगले कुछ दिनों में ईरानी अधिकारियों से मिलने की योजना बना रहे हैं। दोनों देशों ने अप्रैल 2024 से पाँच दौर की चर्चा की है ताकि एक ऐसे समझौते पर पहुँच सकें जो 2015 के ईरान परमाणु समझौते की जगह ले सके। ट्रम्प ने 2018 में अपने पहले कार्यकाल के दौरान रद्द कर दिया था। ईरान परमाणु समझौता या संयुक्त व्यापक कार्य योजना (JCPOA) ईरान द्वारा अमेरिकी सुरक्षा परिषद (संयुक्त राज्य अमेरिका, यूनाइटेड किंगडम, फ्रांस, चीन, रूस और जर्मनी) और यूरोपीय संघ के पाँच स्थायी सदस्यों के साथ हस्ताक्षरित एक समझौता था, जिसने प्रतिबंधों को हटाने के बदले में ईरान के परमाणु कार्यक्रम पर प्रतिबंध लगा दिए थे।
राष्ट्रपति ट्रंप को अमेरिका और ईरान के बीच चर्चाओं को लेकर कम उम्मीदें हैं। उन्होंने दोनों देशों के बीच परमाणु समझौते की संभावना की कमी जताई। ट्रंप ने कहा, “मुझे नहीं पता। मुझे ऐसा लगता था, और मैं इसके बारे में कम आश्वस्त होता जा रहा हूँ। ऐसा लगता है कि वे देरी कर रहे हैं, और मुझे लगता है कि यह शर्म की बात है, लेकिन मैं अब कुछ महीने पहले की तुलना में कम आश्वस्त हूँ। उनके साथ कुछ हुआ है, लेकिन मैं किसी समझौते के होने को लेकर बहुत कम आश्वस्त हूँ।”
अमेरिका-ईरान वार्ता खटाई में है। साथ ही ईरान द्वारा परमाणु समझौते के लिए अमेरिका के प्रस्ताव को अस्वीकार करने और यूरेनियम को रिफाइन करने के अपने अधिकार को मान्यता देने की माँग के कारण इजरायल और ईरान के बीच तनाव बढ़ गया है।
अमेरिका और इजरायल ईरान के परमाणु कार्यक्रम का विरोध कर रहे हैं
अमेरिका और इजराइल दोनों ही ईरान के परमाणु कार्यक्रम का विरोध कर रहे हैं। इससे यहूदी राष्ट्र को खतरा बढ़ सकता है। परमाणु हथियार विकसित करने से ईरान की सैन्य क्षमताएँ बढ़ेंगी और साथ ही मध्य पूर्व में उसका प्रभाव भी बढ़ेगा। इसे रोकने के लिए इजरायल पूरी ताकत लगा रहा है। हालाँकि ईरान किसी भी परमाणु हथियार को विकसित करने से इनकार करता रहा है।
अमेरिका और ईरान के बीच परमाणु समझौते की कोई संभावना न होने के कारण, अब इजरायल ईरान के परमाणु प्रतिष्ठानों को निशाना बनाने की योजना बना सकता है ताकि उसके परमाणु कार्यक्रम की प्रगति की संभावनाओं को खत्म किया जा सके। हालाँकि, चूँकि ईरान की परमाणु सुविधाएँ भूमिगत हैं, इसलिए इजरायल को उन्हें ढूँढने और निशाना बनाने के लिए अमेरिका की सहायता की आवश्यकता होगी।
ईरान- इजरायल विवाद का इतिहास
ईरान और इजराइल के बीच मौजूदा स्थिति को देखते हुए यह मानना मुश्किल है कि दोनों देश कभी एक-दूसरे के काफी करीब थे। ईरान में 1979 की क्रांति के बाद इजराइल-ईरान संबंधों में गिरावट आई, जिसके परिणामस्वरूप देश में शासन बदल गया। क्रांति ने मोहम्मद रजा शाह पहलवी की जगह ली, जो पश्चिम की ओर झुकाव रखते थे।
हालाँकि अयातुल्ला रूहोल्लाह खोमैनी ने ईरान को इस्लामी गणराज्य घोषित किया। खोमैनी सरकार ने इजराइल और अमेरिका दोनों का खुलकर विरोध किया। वर्तमान ईरान सरकार इजराइल के अस्तित्व को मान्यता नहीं देता है। ईरान के दूसरे सर्वोच्च नेता, अयातुल्ला अली खामेनेई ने इजराइल को एक ‘कैंसरयुक्त ट्यूमर’ बताया। उन्होंने कहा, “निस्संदेह उखाड़कर नष्ट कर दिया जाएगा”।
क्षेत्र में इजराइल और अमेरिका के प्रभाव को चुनौती देने की अपनी व्यापक रणनीति के तहत ईरान फिलिस्तीनी आतंकवादी समूहों का समर्थन कर रहा है। 2009 के खोमैनी ने कथित तौर पर कहा था कि उनका शासन किसी भी देश या समूह का समर्थन करेगा जो इजराइल से लड़ता है। ईरान इजरायल को निशाना बनाने के लिए आतंकवादी समूहों का समर्थन करके मध्य पूर्व में अघोषित तौर पर शामिल रहा है।
ओडिशा हाई कोर्ट का कहना है कि अगर पत्नी अपने पति की शारीरिक अक्षमता या दुर्बलता का मजाक बनाती है या उसे ‘निखट्टू’ या ‘केम्पा’ जैसे अपमानजनक शब्दों का उपयोग करती है तो इस आधार पर पति अपनी पत्नी से तलाक ले सकता है। पति के लिए इस तरह के शब्द मानसिक क्रूरता से कम नहीं हैं।
फैमिली कोर्ट के तलाक के फैसले को बरकरार रखते हुए जस्टिस बिभु प्रसाद राउत्रे और जस्टिस चित्तरंजन दास की बेंच ने ये कहा-
“किसी व्यक्ति से अपेक्षा की जाती है कि वह सामान्य तौर पर भी दूसरे व्यक्ति का सम्मान करे। जब पति-पत्नी के संबंधों की बात आती है तो यह अपेक्षित होता है कि पत्नी अपने पति का सम्मान करे,फिर चाहे पति को कोई शारीरिक दुर्बलता ही क्यों न हो। यहाँ यह मामला है कि पत्नी ने पति की शारीरिक दुर्बलता को लेकर उस पर आरोप लगाए और उस पर टिप्पणियाँ की। यह निश्चित रूप से मानसिक क्रूरता की श्रेणी में आता है।”
क्या है मामला
लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार, तलाक के लिए कोर्ट पहुँचे पति-पत्नी का विवाह हिंदू रीति रिवाजों के अनुसार 1 जून 2016 को हुआ था। पति का आरोप है कि शादी के बाद से ही पत्नी उसकी शारीरिक दुर्बलता को लेकर ताने कसती रहती थी।
सितंबर 2016 में पत्नी उसका घर छोड़कर चली गई। मान-मनौव्वल के बाद जनवरी 2017 में वह वापस आई। हालाँकि पति का आरोप है कि वापसी के बाद भी पत्नी का रवैया नहीं बदला और वह लगातार उस पर ताने कसती रही। इसके चलते पति-पत्नी के बीच काफी झगड़े हुए। इसके बाद मार्च 2018 में पत्नी ने घर छोड़ कर चली गई और पति और ससुराल वालों के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 498-ए (क्रूरता) के तहत आपराधिक मामला दर्ज करा दिया।
इसके बाद पति ने अप्रैल 2019 में तलाक की अर्जी डाली। फैमिली कोर्ट के जज जस्टिस पुरी ने पाँच मुद्दों पर फैसला सुनाया। इसमें पत्नी की ओर से पति पर की गई क्रूरता की बात भी शामिल की गई। सुनवाई के बाद कोर्ट ने तलाक की मंजूरी दे दी।
पत्नी एलीमनी (स्थायी भरण-पोषण) और स्त्रीधन संपत्तियों के वापस न मिलने से परेशान थी। इसके चलते पत्नी ने इस आदेश को चुनौती देते हुए वैवाहिक अपील (मेट्रीमोनियल अपील) दायर कर दी। कोर्ट ने पत्नी को फैमिली कोर्ट का रुख करने की आजादी भी दी है क्योंकि पति-पत्नी की आय का आकलन किए बिना स्थायी भरण-पोषण देने का कोई आधार नहीं था।
कोर्ट ने क्या कहा
हाई कोर्ट ने माना कि पति शारीरिक रूप से विकलांग व्यक्ति है। पति ने इस बात की गवाही दी थी कि पत्नी उसकी शारीरिक अक्षमता को लेकर उस पर ‘केम्पा’ और ‘निखट्टू’ जैसी अपमानजनक टिप्पणियाँ करती थी। केम्पा एक उड़िया शब्द है जिसका अर्थ है- एक हाथ से दिव्यांग होना। इस पर सुनवाई के दौरान भी पत्नी इन आरोपों को गलत साबित नहीं कर पाई। इसके अलावा पति की ओर से आए एक अन्य गवाह ने भी इस बात की पुष्टि की।
सुनवाई के दौरान पत्नी ने यह भी माना कि उसने पति और ससुराल वालों के खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज करवाया। मामले पर फैसला सुनाने से पहले कोर्ट ने कहा कि क्रूरता में मानसिक उत्पीड़न भी शामिल होता है। जस्टिस राउत्रे ने फैसले में कहा कि वैवाहिक संबंधों में पति-पत्नी से एक-दूसरे का सम्मान और समर्थन करने की अपेक्षा की जाती है।
कोर्ट का कहना है कि पत्नी अगर पति की शारीरिक दुर्बलता पर अपमानजनक टिप्पणियाँ करती है तो ये पति के लिए मानसिक उत्पीड़न का कारण बनता है। इन शब्दों उपयोग पत्नी की ईर्ष्या भरी सोच और अनादर बताता है।
जब ग्रेटा थनबर्ग का नाम आता है, लोग उन्हें जलवायु परिवर्तन की बड़ी आवाज़ मानते हैं। लेकिन हाल के सालों में उनकी हरकतों पर सवाल उठने लगे हैं। कुछ लोग कहते हैं कि वे असली समस्याओं को सुलझाने की बजाय सिर्फ़ सुर्खियों में रहने के लिए अलग-अलग आंदोलनों में कूद पड़ती हैं।
पहले ग्रेटा जलवायु परिवर्तन पर भाषण देती थीं, सरकारों से सवाल करती थीं और पर्यावरण के लिए सख्त कदम उठाने की माँग करती थीं। लेकिन अब वे फिलिस्तीन के मुद्दे पर बोलने लगी हैं। वे ‘फ्री फिलिस्तीन’ आंदोलन में शामिल हो गई हैं और फिलिस्तीनी स्कार्फ़ (केफियाह) पहनकर प्रदर्शन करती दिखती हैं।
आलोचक कहते हैं कि ग्रेटा की यह सक्रियता अब समस्याएँ हल करने से ज़्यादा खुद को मशहूर रखने का तरीका बन गई है। कुछ मीडिया उन्हें ‘न्याय की लड़ाई’ लड़ने वाली बताता है, लेकिन कई लोग इसे सोची-समझी रणनीति मानते हैं, जिसमें पीड़ितों की तकलीफ़ से ज़्यादा ग्रेटा की अपनी ब्रांडिंग पर ध्यान होता है।
सवाल यह है कि क्या ग्रेटा वाकई सामाजिक और पर्यावरणीय न्याय के लिए लड़ रही हैं, या यह सब सिर्फ़ प्रचार बनकर रह गया है?
गाजा के लिए मदद या प्रचार स्टंट: ग्रेटा और उनकी ‘सेल्फी यॉट’
ग्रेटा अब एक नए मुद्दे पर सक्रिय हैं। उन्होंने गाजा में इजरायल की घेराबंदी को चुनौती देने के लिए ‘फ्रीडम फ्लोटिला’ नाम के अभियान में हिस्सा लिया। वे ‘मैडलीन’ नाम की एक नाव पर सवार हुईं, जो फ्रीडम फ्लोटिला गठबंधन का हिस्सा थी। इस अभियान का मकसद गाजा तक मानवीय सहायता पहुँचाना था। लेकिन इस कदम पर भी सवाल उठे कि क्या यह पीड़ितों की मदद का प्रयास है या फिर प्रचार का एक और नाटक।
आलोचक कहते हैं कि ग्रेटा ऐसे गंभीर मुद्दों में शामिल तो हो जाती हैं, लेकिन उनका मकसद समस्या हल करना नहीं, बल्कि चर्चा में बने रहना है।
ग्रेटा और 11 अन्य कार्यकर्ताओं को ले जा रही ‘मैडलीन’ नाव को इजरायली सेना ने रास्ते में रोक लिया। इस नाव पर ब्रिटिश झंडा था और यह फ्रीडम फ्लोटिला गठबंधन का हिस्सा थी। इस मिशन का मकसद गाजा में मदद पहुँचाना था।
नाव पर फ्रांस की यूरोपीय सांसद रीमा हसन भी सवार थीं। यह नाव इटली के सिसिली से चली थी और गाजा जाने की कोशिश कर रही थी।
इसके बाद बहस शुरू हो गई कि क्या ऐसे अभियान वाकई मदद करते हैं या सिर्फ़ दिखावे के लिए होते हैं।
एक इजरायली अधिकारी ने इस मिशन को ‘सेल्फी फ्लोटिला’ कहा और बताया कि उनका मकसद हमास पर हर तरफ से दबाव बनाना है। वे गाजा में ऐसी किसी मदद को नहीं पहुँचने देना चाहते, जो उनके नियंत्रण में न हो। उन्होंने कहा कि अगर इस नाव को जाने दिया गया, तो और लोग भी ऐसी कोशिश करेंगे, जिससे इजरायल के खिलाफ उकसावे की गतिविधियाँ बढ़ सकती हैं। इजरायल ऐसी किसी स्वतंत्र सहायता को इजाज़त देने को तैयार नहीं, खासकर जब वह उनके नियंत्रण से बाहर हो।
गाजा यात्रा की पहले से तैयारी, सोशल मीडिया पर लगाया अपहरण का आरोप
ग्रेटा को अच्छी तरह पता था कि गाजा की यह यात्रा उन्हें दुनिया भर में सुर्खियाँ और सहानुभूति दिला सकती है, खासकर जब गाजा में लोग भयंकर संकट झेल रहे हैं। जब इजरायली सेना ने उनकी नाव रोकी, तो ग्रेटा ने तुरंत सोशल मीडिया पर एक पहले से रिकॉर्ड किया वीडियो डाला। इसमें उन्होंने आरोप लगाया कि इजरायली सेना ने अंतरराष्ट्रीय जल क्षेत्र में उनका अपहरण किया।
कई लोग कहते हैं कि ग्रेटा ने इस पूरे अभियान को पहले से प्रचार की तरह तैयार किया था, ताकि नाव रुकने पर वे खुद को पीड़ित दिखाकर लोगों की सहानुभूति बटोर सकें।
जब ग्रेटा ने अपहरण का आरोप लगाया, तो यह खबर तुरंत सुर्खियों में आ गई। वामपंथी मीडिया ने इसे इजरायल के खिलाफ हमले का मौका बना लिया। लेकिन कई लोगों ने इस दावे पर सवाल उठाए। उनका कहना है कि इजरायल के पास और भी बड़े मुद्दे हैं, उन्हें 22 साल की ग्रेटा का अपहरण करने की ज़रूरत नहीं, जो खुद को संकटग्रस्त लोगों की वैश्विक नायिका बताती हैं।
7 अक्टूबर को हमास ने सैकड़ों इजरायली और विदेशी लोगों को अगवा किया था, जिनमें बच्चे, बुजुर्ग और महिलाएँ शामिल थीं। कई लोग मारे गए, कई को बेरहमी से सताया गया, और कुछ आज भी उनकी हिरासत में हैं। इसके मुकाबले, ग्रेटा को सिर्फ़ हिरासत में लिया गया और बाद में सुरक्षित छोड़ दिया गया। उन्हें न चोट लगी, न भूखा रखा गया, न सताया गया।
आलोचक कहते हैं कि ग्रेटा का अपहरण का दावा न सिर्फ़ नाटक है, बल्कि उन असली पीड़ितों का मज़ाक उड़ाने जैसा है, जो आतंकवाद का शिकार हुए।
हिरासत में लिए जाने के बाद भी ग्रेटा ने नाटक जारी रखा। उन्होंने अपने समर्थकों से कहा कि वे स्वीडन सरकार पर दबाव डालें ताकि उन्हें छुड़ाया जाए। उन्होंने यह भी दावा किया कि उनकी नाव पर कोई उत्तेजक पदार्थ छिड़का गया। आलोचक कहते हैं कि इस पूरे अभियान में गाजा के असली संकट से ज़्यादा ग्रेटा की कैमरे के सामने मौजूदगी पर ध्यान था।
After being stopped by the Israeli Navy, IDF special forces soldiers handed out food and water to the brain dead morons from Europe on the boat including Greta Thunberg. I bet they didnt expect to be treated so well. Look how confused they seem 😂 #Flotilla#Gazapic.twitter.com/wq7YyNgwzw
यह अभियान मानवीय सहायता से ज्यादा एक सोची-समझी प्रचार योजना की तरह दिखा, जिसमें ग्रेटा खुद को एक वीर कार्यकर्ता के रूप में पेश करने की कोशिश करती दिखीं, जबकि गाजा की असली तकलीफें कहीं पीछे छूट गईं।
ग्रेटा और 11 अन्य कार्यकर्ताओं की नाव में जो मदद का सामान था, जैसे बेबी फॉर्मूला और चावल, वह सिर्फ़ दिखावे के लिए था। गाजा के बड़े संकट के सामने यह सामान बहुत कम था।
दरअसल, उनकी पूरी नाव में जो राहत सामग्री थी, वह एक ट्रक से भी कम थी। वहीं, सिर्फ पिछले दो हफ्तों में ही इजरायल ने लगभग 1200 सहायता ट्रक गाजा में भेजे हैं। इससे साफ होता है कि थनबर्ग और उनके साथियों की मदद असल में जरूरतमंदों के लिए पर्याप्त नहीं थी। आलोचकों का कहना है कि ग्रेटा का यह सहायता मिशन फिलिस्तीनियों की मदद करने से ज्यादा, खुद को चर्चा में लाने की कोशिश थी।
गाजा इस समय बेहद गंभीर संकट से गुजर रहा है। 7 अक्टूबर को हमास के हमले के बाद इजरायल की जवाबी कार्रवाई में हजारों लोग मारे जा चुके हैं, 90% से ज्यादा आबादी विस्थापित हो चुकी है और वहाँ लोग लगातार अंतर्राष्ट्रीय मदद पर निर्भर हैं। ऐसे में ग्रेटा की हीरो बनने की कोशिश असली पीड़ितों की तकलीफ़ के सामने दिखावटी लगती है।
ग्रेटा थनबर्ग अक्सर पर्यावरण और बढ़ते कार्बन उत्सर्जन पर चिंता जताती हैं, लेकिन जब बात हमास की आती है, तो वे चुप्पी साध लेती हैं।
ग्रेटा अक्सर पर्यावरण और कार्बन उत्सर्जन की बात करती हैं, लेकिन हमास पर चुप रहती हैं। 7 अक्टूबर 2023 को जब हमास ने इजरायल पर हमला किया, तो हजारों मिसाइलें दागी गईं, जिससे पर्यावरण को भारी नुकसान हुआ। लेकिन ग्रेटा ने न तो इस पर्यावरणीय विनाश की निंदा की, न ही इजरायली नागरिकों की हत्या, बलात्कार या अपहरण पर कुछ कहा।
आलोचक कहते हैं कि यह नई बात नहीं। कई फिलिस्तीन समर्थक कार्यकर्ताओं ने भी हमास के अत्याचार दिखाने वाली डॉक्यूमेंट्री देखने से मना कर दिया, जिसमें इजरायली महिलाओं, बच्चों और बुजुर्गों पर हुए ज़ुल्म दिखाए गए थे। इजरायली अधिकारियों को उम्मीद थी कि ग्रेटा इन पीड़ितों के लिए बोलेंगी, लेकिन उनका रवैया सिर्फ़ एक पक्ष की तरफ झुका रहा।
‘फ्री फिलिस्तीन’ के नारे लगाना, हमास को मानवीय दिखाना और इजरायल को विलेन बताना पश्चिमी देशों में अब ट्रेंड बन गया है। ग्रेटा भी इसी ट्रेंड का हिस्सा लगती हैं। उन्होंने कभी यमन, सूडान जैसे संघर्ष क्षेत्रों के लिए फ्लोटिला नहीं भेजा, जहाँ रोज़ लोग मारे जा रहे हैं। लेकिन गाजा के लिए ज़रूर गईं, क्योंकि उन्हें पता है कि बिना यहूदियों के मीडिया में खबर नहीं बनती।
चाहे जलवायु संकट पर उनके भाषण हों या गाजा की फ्लोटिला यात्रा, ग्रेटा हमेशा ऐसे नाटकीय कदम उठाती हैं, जो उनकी ‘इंसाफ की लड़ाई’ वाली छवि को मज़बूत करते हैं। लेकिन आलोचक कहते हैं कि वे जिन मुद्दों को उठाती हैं, उनकी गहराई और जटिलता को नज़रअंदाज़ कर देती हैं। उनका रवैया समाधान की ओर कम और प्रचार व ट्रेंड के पीछे भागने जैसा ज़्यादा है, जहाँ इंसाफ़ से ज़्यादा कैमरे की नज़र में रहना ज़रूरी है।
‘ग्रीन एनर्जी’ नाव और ग्रेटा का ट्रान्साटलांटिक पीआर स्टंट
ग्रेटा ने एक बार ‘मालिजिया’ नाम की रेसिंग नाव से अटलांटिक महासागर पार किया, जिसे ‘ज़ीरो कार्बन’ बताया गया। वे न्यूयॉर्क में संयुक्त राष्ट्र के जलवायु सम्मेलन में जा रही थीं और इसे पर्यावरण के लिए कदम कहा। लेकिन सच यह था कि नाव पूरी तरह पर्यावरण अनुकूल नहीं थी। इसे चलाने में सहायक जहाज़ इस्तेमाल हुए, जो जीवाश्म ईंधन से चलते थे। नाव वापस लाने के लिए चालक दल के कुछ लोग हवाई जहाज़ से लौटे, जिससे कार्बन उत्सर्जन हुआ और ‘जीरो कार्बन‘ का दावा कमज़ोर पड़ गया।
यह यात्रा पर्यावरण बचाने से ज़्यादा ग्रेटा को ‘धरती की रक्षक’ दिखाने के लिए थी। वामपंथी मीडिया ने इसे खूब बढ़ा-चढ़ाकर दिखाया और उन्हें पर्यावरण आइकन बना दिया। लेकिन इस कवायद का कार्बन उत्सर्जन पर कोई असर नहीं पड़ा और यह जागरूकता से ज़्यादा प्रचार बनकर रह गया।
इलेक्ट्रिक कार और कोबाल्ट खनन का नाटक
दिसंबर 2019 में ग्रेटा मैड्रिड के जलवायु शिखर सम्मेलन में इलेक्ट्रिक कार (Seat Mii Electric) से पहुँचीं। वे हवाई यात्रा से बचती हैं ताकि कार्बन उत्सर्जन कम हो, इसलिए नाव और इलेक्ट्रिक कार का इस्तेमाल करती हैं।
Climate Strike Week 300. Today we strike outside Exportkreditnämnden (EKN) in solidarity with Congo together with hope4kinshasa. We demand that they stop the collaboration with companies and mines committing human rights violations in DRC. 1/5 pic.twitter.com/wl49Yjlo6R
लेकिन यहाँ विरोधाभास है। ग्रेटा ख़ुद कह चुकी हैं कि इलेक्ट्रिक कार की बैटरियों में इस्तेमाल होने वाला कोबाल्ट ज़्यादातर कांगो से आता है, जहाँ बच्चों से जबरन मज़दूरी कराकर इसे निकाला जाता है। फिर भी, उनकी यह यात्रा उनके अपने बयान से मेल नहीं खाती।
ऐसे में सवाल उठता है कि क्या पर्यावरण बचाने के नाम पर दूसरे गंभीर मानवाधिकार मुद्दों की अनदेखी करना सही है? ग्रेटा की ये यात्रा उनके उस बयान से मेल नहीं खाती, जिसमें उन्होंने कोबाल्ट खनन में बच्चों के शोषण को लेकर चिंता जताई थी। आलोचकों का मानना है कि यह एक और उदाहरण है जहाँ वे अपने दिखावे के एजेंडे के तहत अपनी ही बातों को नजरअंदाज कर देती हैं।
ग्रेटा का भारत में किसान आंदोलन का समर्थन
ग्रेटा ने भारत में कृषि कानूनों के खिलाफ़ प्रदर्शन कर रहे किसानों का समर्थन किया। उन्होंने एक्स पर पोस्ट किया कि यह आंदोलन ‘दमनकारी नीतियों’ के खिलाफ़ लड़ाई है। लेकिन यह आंदोलन ज़्यादातर उन किसानों की माँगों से जुड़ा था, जो धान की खेती और उसकी सब्सिडी को बचाना चाहते थे। यह कुछ राजनीतिक लॉबियों से भी जुड़ा था, जो अनाज मंडियों (APMC मंडियों) पर कब्ज़ा रखती हैं। बाद में यह आंदोलन खालिस्तानी तत्वों और हिंसा की वजह से भी बदनाम हुआ।
आलोचक कहते हैं कि ग्रेटा ने मुद्दे की गहराई समझे बिना एक पक्ष ले लिया, जिससे प्रचार और राजनीतिक एजेंडे को बढ़ावा मिला, न कि किसानों की असली समस्याओं का हल।
ऑपइंडिया की रिपोर्ट के अनुसार, पंजाब में धान की खेती ने ज़मीन की गुणवत्ता बिगाड़ दी और भूजल लगभग ख़त्म हो गया। धान को बहुत पानी चाहिए, दालों या तिलहन से 10 गुना ज़्यादा। एक किलो धान के लिए 500-600 लीटर पानी लगता है। फसल कटने के बाद पराली जलाने से भारी प्रदूषण होता है। मोदी सरकार के नए कृषि कानून इन समस्याओं को हल करने के लिए थे, जिसमें पराली जलाना अपराध था।
लेकिन जब इन मुद्दों पर सही बात कहने की जरूरत थी, तब ग्रेटा थनबर्ग, जो खुद को जलवायु कार्यकर्ता कहती हैं, ने इन पर्यावरणीय समस्याओं को नजरअंदाज कर दिया। उन्होंने भारत के किसानों के समर्थन में वही बातें कहीं, जो उन्हें टूलकिट में बताई गई थीं। यानी उन्होंने स्थानीय समस्याओं को समझे बिना, एक तय स्क्रिप्ट पर काम किया और सिर्फ प्रचार के लिए पक्ष लिया।
ग्रेटा की सक्रियता में नाटक ज़्यादा और समाधान कम है। फिर भी, वामपंथी मीडिया ने उन्हें ‘पर्यावरण की देवी‘ बना दिया। मीडिया उन्हें निडर और न्याय की लड़ाई लड़ने वाली बताता है, लेकिन उनके बड़े भाषणों या गतिविधियों का कोई ठोस असर नहीं हुआ। न 2018 का स्कूल स्ट्राइक, न 2019 का ‘तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई?’ भाषण, और न ही गाजा मिशन ने कोई बड़ा बदलाव लाया या कार्बन उत्सर्जन कम किया।
वे सुर्खियों में रहती हैं, लेकिन उनके काम से न पर्यावरण सुधरा, न ज़रूरतमंदों की हालत। फिर भी वामपंथियों का खेमा उनके नाटक को नज़रअंदाज़ कर उन्हें हीरो बनाने में जुटा रहता है।
ओडिशा के भद्रक में गोतस्करों के हमले में एक गोरक्षक की मौत हो गई है। गोतस्करों के एक समूह में गोरक्षक पर बीते दिनों हमला किया था। इसमें वह गंभीर रूप से घायल था। उसकी अस्पताल में इलाज के दौरान मौत हो गई है। इसके चलते हिन्दू आक्रोशित हैं। भद्रक में अब इन्टरनेट पर रोक लगा दी गई है।
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, बुधवार (11 जून, 2025) को गोरक्षक संतोष पारीदा की एक अस्पताल में इलाज के दौरान मौत हो गई है। वह भद्रक के तिहदी के रहने वाले थे। गोरक्षक पारीदा बीते 30 मई, 2025 से अस्पताल में भर्ती थे और उनका इलाज चल रहा था।
पारीदा पर 30 मई, 2025 को गोतस्करों के गैंग ने हमला कर दिया था। रिपोर्ट्स में बताया गया है कि गोतस्कर मुस्लिम थे। गोतस्करों के हमले में पारीदा गंभीर रूप से घायल हो गए थे। आशंका जताई जा रही है कि यह हमला तब हुआ जब गोरक्षक ने गोतस्करों को रोका।
भद्रक में इस मौत के बाद स्थिति तनावपूर्ण हो गई है । मामले में भद्रक पुलिस ने FIR दर्ज कर ली है। भद्रक पुलिस ने इस मामले में 12 लोगों को गिरफ्तार भी कर लिया है। बिगड़ी स्थिति को देखते हुए भद्रक में इन्टरनेट को 12 जून, 2025 से बंद कर दिया गया है।
भद्रक में अतिरिक्त पुलिस बल भी तैनात किया गया है। मामले का संज्ञान राज्य की मोहन चरण माँझी सरकार ने भी ले लिया है। माँझी सरकार ने पीड़ित परिवार को ₹10 लाख मुआवजा दिए जाने का ऐलान किया है। सरकार ने मामले में कड़ी कार्रवाई का आश्वासन दिया है।
एक रिपोर्ट बताती है कि ओडिशा में 2019-24 के बीच 2000+ गोतस्करी के मामले दर्ज हो चुके हैं। ओडिशा पुलिस के एक वरिष्ठ अफसर ने नाम ना लिखने की शर्त पर ऑपइंडिया को बताया कि भद्रक की सीमा पश्चिम बंगाल से विशेष दूर नहीं है, ऐसे में यहाँ से गायों की तस्करी बंगाल के रास्ते बांग्लादेश में होती है।
ऐसे दौर में जब बुनियादी ढाँचा किसी देश की वैश्विक स्थिति को परिभाषित करता है, भारत के इंजीनियरिंग चमत्कार अब सिर्फ़ सुर्खियाँ नहीं बटोर रही हैं, बल्कि जीवन बदलने वाली वास्तविकताएँ बन गई हैं। जम्मू-कश्मीर में हाल ही में दुनिया के सबसे ऊँचे रेलवे पुल, चेनाब रेल ब्रिज से लेकर तमिलनाडु में वर्टिकल-लिफ्ट पम्बन रेलवे सी ब्रिज तक, ये महत्वाकांक्षी परियोजनाएँ न केवल परिदृश्य बदल रही हैं, बल्कि लोगों के जीवन को भी जोड़ रही हैं। चाहे वह आवागमन को आसान बनाना हो, पर्यटन को बढ़ावा देना हो या रणनीतिक उपस्थिति दर्ज कराना हो, भारत का मेगा इंफ्रास्ट्रक्चर राष्ट्रीय विकास का एक नया अध्याय लिख रहा है।
Engineering Marvels of New India!✨
From the Pamban Railway Sea Bridge in Tamil Nadu; India’s first vertical lift railway sea bridge, to the #ChenabBridge in Jammu & Kashmir; the world’s highest railway bridge, these iconic structures are redefining connectivity and showcasing… pic.twitter.com/HISkvB00wr
चेनाब रेल ब्रिज जम्मू और कश्मीर में चिनाब नदी से 359 मीटर ऊपर है। यह दुनिया का सबसे ऊंचा रेलवे ब्रिज है। यह एफिल टॉवर से भी ऊँचा है। यह कश्मीर घाटी और देश के बाकी हिस्सों के बीच एक महत्वपूर्ण कड़ी है। चिनाब रेल ब्रिज सिर्फ़ एक इंजीनियरिंग उपलब्धि से कहीं ज़्यादा है क्योंकि यह उस क्षेत्र में बदलाव का वादा करता है जो लंबे समय से भूभाग, मौसम और संघर्ष के कारण अलग-थलग पड़ा हुआ है।
स्रोत- बीबीसी
देश में ऐसा कोई पुल नहीं था जो चिनाब ब्रिज बनाने वाली टीम के लिए मिसाल बन सके। पुल के स्टील आर्च को हर चरण में नवाचार की आवश्यकता थी। पुल के पीछे के इंजीनियरों ने अस्थिर हिमालयी भूविज्ञान से निपटने के लिए एक डिजाइन-एज़-यू-गो दृष्टिकोण अपनाया। पुल को 63 मिमी मोटी स्टील का उपयोग करके बनाया गया है जो विस्फोट प्रतिरोधी है और कंक्रीट के खंभे हैं। यह पुल भूकंप, तेज़ हवाओं और तोड़फोड़ को झेलने में सक्षम है।
दो दशकों से अधिक समय से क्षेत्र बेहतर परिवहन बुनियादी ढांचे की प्रतीक्षा कर रहा था। यह पुल 35,000 करोड़ रुपए की USBRL परियोजना का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। ये दूरदराज के गाँवों तक बेहतर पहुँच प्रदान करेगा, जहाँ सिर्फ पैदल या नाव के माध्यम से पहुँचा जा सकता था। 2,015 किलोमीटर की सड़क से लगभग 70 गाँव लाभान्वित होंगे और आर्थिक गतिविधि, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा के लिए रास्ते खोलेंगे।
इसके अलावा, यह कश्मीर और लद्दाख में भारतीय रक्षा बलों के लिए एक रणनीतिक मार्ग भी प्रदान करता है। चूंकि यह सभी मौसम में रेल के आवागमन की सुविधा देगा, इसलिए सैनिकों को अब बर्फबारी या राजमार्ग बंद होने से परेशानी नहीं होगी।
स्थानीय लोगों के लिए, यह सेब और अखरोट जैसे खराब होने वाले सामानों के परिवहन के लिए एक अच्छा मार्ग है। नए रेल लिंक से पर्यटन में तेजी आएगी।
ढोला-सादिया ब्रिज: असम को अरुणाचल से जोड़ने वाला पूर्वोत्तर का अहम ब्रिज
ढोला-सादिया पुल का उद्घाटन मई 2017 में प्रधानमंत्री मोदी ने किया था। यह 9.15 किलोमीटर लंबा है और असम में ब्रह्मपुत्र नदी पर बना है। यह नदी पर बना भारत का सबसे लंबा पुल है। ये असम के ऊपरी हिस्सों और अरुणाचल प्रदेश के पूर्वी जिलों के बीच चौबीसों घंटे हर मौसम में संपर्क बनाए रखता है। इसने असम के रूपई और अरुणाचल प्रदेश के मेका के बीच यात्रा की दूरी को 165 किलोमीटर कम कर दिया है। पुल की वजह से अब इन दोनों क्षेत्रों के बीच की दूरी पहले के छह घंटे के बजाय सिर्फ़ एक घंटे में तय की जा सकती है।
स्रोत-इंडिया टुडे
पुल से पहले, परिवहन प्रणाली नौकाओं पर निर्भर थी जो अक्सर बाढ़ से प्रभावित होती थीं। इसने क्षेत्र के भीतर नागरिक और सैन्य दोनों तरह की यात्रा के तरीके को बदल दिया है। यह माल और सेवाओं की आपूर्ति सुनिश्चित करने के साथ-साथ सीमावर्ती क्षेत्रों की ओर रक्षा बलों की तेजी से आवाजाही के लिए भी महत्वपूर्ण है। इस कनेक्टिविटी ने क्षेत्र में आर्थिक विकास में योगदान दिया है, साथ ही पूर्वोत्तर और भारत की मुख्य भूमि के बीच की खाई को पाटा है।
विझिनजाम अंतर्राष्ट्रीय बंदरगाह: भारत के समुद्री भविष्य के लिए एक नया प्रवेश द्वार
विझिनजाम अंतर्राष्ट्रीय गहरे पानी का बहुउद्देशीय बंदरगाह केरल में बनाया गया है। इस पर सरकार को 8,800 करोड़ रुपये खर्च करने पड़े। यह भारत के समुद्री बुनियादी ढांचे के लिए एक बड़ी उपलब्धि है। इसे मई 2025 में पीएम मोदी ने राष्ट्र को समर्पित किया। विझिनजाम अंतर्राष्ट्रीय बंदरगाह भारत का एकमात्र गहरा जल कंटेनर ट्रांसशिपमेंट बंदरगाह है, जिसे कंटेनर और बहुउद्देशीय कार्गो के लिए डिजाइन किया गया है।
स्रोत-कार्गो इनसाइट
यह बंदरगाह भारत के आत्मनिर्भर भारत विजन को मजबूत करता है। इससे विदेशों में खर्च होने वाले पैसे की बचत होगी।
बंदरगाह की गहराई 20 मीटर है, जो दुनिया के सबसे बड़े मालवाहक जहाजों को आसानी से फिट कर सकती है। यह एक आधुनिक समय का ट्रांसशिपमेंट हब है जो बिना किसी जटिलता के बड़े पैमाने पर कार्गो वॉल्यूम को संभाल सकता है। आने वाले वर्षों में बंदरगाह अपनी क्षमता बढ़ाएगा, जिससे केरल एक प्रमुख व्यावसायिक केन्द्र बन जाएगा।
यह कोलंबो, सिंगापुर और दुबई जैसे वैश्विक ट्रांसशिपमेंट केंद्रों के साथ प्रतिस्पर्द्धा करने की स्थिति में है, जिससे विदेश जानेवाली कंटेनर आवाजाही की लागत कम हो जाएगी।
यह आर्थिक अवसर और रोजगार सृजन लाता है। कोच्चि के निकट एक जहाज निर्माण और मरम्मत क्लस्टर का निर्माण कार्य चल रहा है। इससे हजारों रोजगार के अवसर खुलेंगे, खास तौर पर युवाओं और स्थानीय प्रतिभाओं के लिए। समुद्री गतिविधियों में वृद्धि से पर्यटन, एमएसएमई और मत्स्य पालन जैसे संबद्ध क्षेत्रों का विकास होगा।
पम्बन ब्रिज: भारत का पहला वर्टिकल लिफ्ट सी ब्रिज
तमिलनाडु में नए पम्बन ब्रिज का उद्घाटन अप्रैल 2025 में किया गया था। यह भारत का पहला वर्टिकल लिफ्ट रेलवे सी ब्रिज है। यह पाक जलडमरूमध्य में लगभग 2.07 किमी तक फैला है और रामेश्वरम द्वीप को मुख्य भूमि भारत से जोड़ता है। इसने 1914 के कैंटिलीवर ब्रिज की जगह ली है जो लंबे समय से तीर्थयात्रियों और व्यापारियों की सेवा कर रहा था।
पुल का निर्माण रेल विकास निगम लिमिटेड ने किया है। इसके 72.5 मीटर के नौवहन क्षेत्र को 17 मीटर तक उठाया जा सकता है, जिससे बड़े समुद्री जहाज रेल यातायात को बाधित किए बिना इसके नीचे से गुजर सकते हैं। इसे जंग-रोधी स्टेनलेस स्टील, विशेष पॉलीसिलोक्सेन कोटिंग और हाई-ग्रेड सुरक्षात्मक पेंट का उपयोग करके बनाया गया है। इसका जीवनकाल 100 वर्ष है।
स्रोत-दृष्टि आईएएस
नया पुल पुराने पुल से 3 मीटर ऊँचा है। इसमें डबल-ट्रैक उपयोग के लिए तैयार एक सबस्ट्रक्चर है। उन्नत निर्माण कठोर समुद्री मौसम, भूकंपीय गतिविधि और चक्रवातों का सामना कर सकता है।
तमिलनाडु के लोगों और रामेश्वरम के तीर्थयात्रियों के लिए, यह तेज़, सुरक्षित और निर्बाध यात्रा की गारंटी देता है। यह क्षेत्र में समुद्री नौवहन को भी मजबूत करता है, जिससे नौका-आधारित परिवहन पर निर्भरता कम होती है।
अटल सुरंग: हिमालय की कनेक्टिविटी को बदलने वाली भारत की सबसे लंबी राजमार्ग सुरंग
अटल सुरंग का उद्घाटन अक्टूबर 2020 में किया गया था। यह आधुनिक इंजीनियरिंग का एक चमत्कार है। यह हिमालय की पीर पंजाल रेंज के नीचे 9.02 किमी तक फैली है। अटल सुरंग 10,000 फीट से ऊपर दुनिया की सबसे लंबी राजमार्ग सुरंग है। पूर्व प्रधान मंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के नाम पर इसका नामकरण किया गया है। यह मनाली और सुदूर लाहौल-स्पीति घाटी के बीच सालभर संपर्क सुनिश्चित करता है। पहले भारी बर्फबारी के कारण साल में 6 महीने मुख्य भूमि से कट जाता था।
स्रोत-अमर उजाला
सुरंग का निर्माण सीमा सड़क संगठन द्वारा किया गया था। इसने मनाली और लेह के बीच की दूरी 46 किलोमीटर कम कर दी और यात्रा का समय 4 से 5 घंटे कम कर दिया। दक्षिण पोर्टल मनाली से 25 किलोमीटर दूर 3,060 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है, जबकि उत्तर पोर्टल 3,071 मीटर की ऊँचाई पर सिस्सू गाँव के पास से निकलता है।
यह घोड़े की नाल के आकार की, सिंगल-ट्यूब, डबल-लेन संरचना है जिसमें 8 मीटर की सड़क और 5.525 मीटर की ओवरहेड क्लीयरेंस है। इसमें एक अंतर्निहित आपातकालीन भागने वाली सुरंग भी है। यह 80 किमी/घंटा तक की गति से प्रतिदिन 3,000 कारों और 1,500 ट्रकों का समर्थन कर सकती है।
जेड-मोड़ सुरंग, सोनमर्ग और करगिल दोनों तक पहुँचना हुआ आसान
जेड-मोड़ सुरंग दो दिशाओं में है, जो 6.5 किमी लंबी है। इसमें सड़क की लंबाई 5.6 किमी शामिल है। यह सुरंग गंदेरबल के गगनगीर और सोनमर्ग के बीच एक महत्वपूर्ण कड़ी है। सुरंग 8,500 फीट से अधिक की ऊँचाई पर बनाई गई है। यह सड़क के Z-आकार वाले हिस्से के लिए एक विकल्प प्रदान करती है जहाँ हिमस्खलन की वजह से सर्दियों में सोनमर्ग तक पहुँचना असंभव होता था। अब सोनमर्ग पर्यटक स्थल तक पूरे साल पहुँचना लोगों के लिए आसान हो गया है। सुरंग रक्षा के नजरिए से भी महत्वपूर्ण है। Z-मोड़ सुरंग कश्मीर घाटी और लद्दाख दोनों के लिए रणनीतिक और आर्थिक रूप से भारत के लिए महत्वपूर्ण है।
स्रोत-ईटी
सुरंग श्रीनगर-लेह राजमार्ग का हिस्सा है। लद्दाख तक पहुँच को सुगम बनाने के मामले में यह कनेक्टिविटी काफी अहम है। इससे कश्मीर घाटी में आर्थिक विकास और पर्यटन को भी बढ़ावा मिलेगा। यह दो-लेन वाली सड़क सुरंग है। उसमें इमरजेंसी सिचुएशन में बचने के लिए समानांतर 7.5 मीटर चौड़ा रास्ता है।
अटल सेतु: भारत का सबसे लंबा समुद्री पुल
मुंबई में ‘अटल बिहारी वाजपेयी सेवारी-न्हावा शेवा अटल सेतु’ आधिकारिक तौर पर जनवरी 2024 में खोला गया था। यह देश का सबसे लंबा पुल और सबसे लंबा समुद्री पुल है और कुल 21.8 किलोमीटर को जोड़ता है। इसमें 16.5 किलोमीटर खुले समुद्र पर हैं, क्योंकि छह लेन वाला मुंबई ट्रांस हार्बर लिंक (एमटीएचएल) मुंबई में सेवरी से नवी मुंबई में न्हावा शेवा के बीच 3.4 किलोमीटर की दूरी को जोड़ता है।
स्रोत- पीएम मोदी/ एक्स
यह पुल दक्षिण मुंबई से भारत की मुख्य भूमि तक परिवहन के लिए एक सीधा और विश्वसनीय संपर्क है, जो मुंबई और नवी मुंबई के बीच यात्रा के समय को कम करता है। यह मुंबई अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे और नवी मुंबई अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे तक जाने का आसान मार्ग है। साथ ही, पुणे, गोवा और दक्षिण भारत के प्रवेश द्वार तक यात्रा के समय को भी कम करता है।
इस पुल का आर्थिक महत्व भी काफी है, क्योंकि यह मुंबई बंदरगाह और जवाहरलाल नेहरू बंदरगाह के बीच माल की ढुलाई के लिए आसान मार्ग है।
इस पुल के बेस में आईसोलेशन बियरिंग का इस्तेमाल किया गया है, जो भूकंप के 6.5 तीव्रता को भी झेल सकता है। इस पुल में नॉइस बैरियर का इस्तेमाल किया है, जो किनारों पर लगाए हैं। इसमें साइलेंसर है जो ध्वनि की तीव्रता को कम करता है। इससे समुद्री जीवों को शोर-शराबे का सामना नहीं करना पड़ेगा।
अपने आकार, भौगोलिक महत्व और इंजीनियरिंग की श्रेष्ठता के साथ अटल सेतु एक पुल से कहीं ज़्यादा है। यह आधुनिक भारत की महत्वाकांक्षा का प्रतीक है जो अपने विकास को समायोजित करने वाले बुनियादी ढाँचे का निर्माण करता है।
भारत की मेगा इंफ्रास्ट्रक्चर परियोजनाएँ दरअसल राष्ट्रीय परिवर्तन के साधन हैं। दूरदराज के गाँवों को जोड़ने से लेकर यात्रा के समय को कम करने और व्यापार को बढ़ावा देने तक, प्रत्येक पुल, सुरंग और बंदरगाह समावेशी विकास के लिए देश की प्रतिबद्धता को दर्शाता है। ये पहल न केवल रणनीतिक तत्परता और आर्थिक एकीकरण को बढ़ाती हैं, बल्कि नागरिकों के जीवन में रोजमर्रा की ज़िंदगी को भी आसान बनाती हैं।
बांग्लादेश के अंतरिम मुख्य सलाहकार मुहम्मद यूनुस को अपनी हालिया यात्राओं में निराशा हाथ लगी है। जहाँ एक ओर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपदस्थ प्रधानमंत्री शेख हसीना के ऑनलाइन भाषणों पर रोक लगाने के उनके आग्रह को यह कहकर टाल दिया कि यह सोशल मीडिया है, आप इसे नियंत्रित नहीं कर सकते।
वहीं दूसरी ओर, ब्रिटेन के प्रधानमंत्री कीर स्टारमर ने भी यूनुस से मुलाकात से इनकार कर दिया। यूनुस ब्रिटेन की यात्रा पर हसीना सरकार द्वारा कथित रूप से विदेशों में धोखे से भेजी गई करोड़ो की राशि को वापस लाने के लिए समर्थन जुटाने गए थे। इन कूटनीतिक झटकों से बांग्लादेश के आर्थिक नुकसान की आशंका बढ़ गई है, क्योंकि उसे विदेशों में जमा कथित ‘चोरी की धनराशि’ को वापस लाने में चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है।
भारत में बेअसर यूनुस की दलील
लंदन में बोलते हुए, यूनुस ने भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से हसीना के ऑनलाइन भाषणों पर लगाम लगाने की गुहार लगाई, जो बांग्लादेश में ‘गुस्सा भड़का’ रहे हैं। लेकिन प्रधानमंत्री मोदी ने साफ कर दिया कि ‘यह सोशल मीडिया है, आप इसे नियंत्रित नहीं कर सकते।’ यह स्पष्ट इनकार यूनुस की इस अड़ियल माँग पर एक तमाचा था कि भारत को अपने घरेलू कानूनों से परे जाकर काम करना चाहिए।
यूनुस की यह दलील कि भारत बांग्लादेश की अपेक्षा के अनुरूप काम नहीं कर रहा, उनकी निराशा और कूटनीतिक अक्षमता का ही प्रमाण है। यूनुस की सरकार, जो खुद हसीना पर ‘फर्जी खबर’ फैलाने का आरोप लगाती है, लेकिन अब यूनुस खुद भारतीय मीडिया पर आरोप लगाकर अपनी खामियों को छिपाने की कोशिश कर रहे है।
ब्रिटेन में भी नहीं मिली ‘लिफ्ट’: स्टारमर का ठुकराना
यूनुस की लंदन यात्रा, जिसका मकसद हसीना सरकार द्वारा कथित रूप से विदेशों में धोखे से भेजी गई करोड़ो की राशि को वापस लाना था, वह भी पूरी तरह से ध्वस्त हो गई। ब्रिटिश प्रधानमंत्री कीर स्टारमर ने यूनुस से मिलने से स्पष्ट रूप से इनकार कर दिया।
यूनुस ने दावा किया कि ब्रिटेन को ‘नैतिक रूप से’ मदद करनी चाहिए, लेकिन ब्रिटिश अधिकारियों ने उन्हें कोई भाव नहीं दिया, जिससे उनकी वैश्विक विश्वसनीयता पर बड़ा सवालिया निशान लग गया। यह स्पष्ट है कि यूनुस, अपनी नोबेल पुरस्कार विजेता की प्रतिष्ठा के बावजूद, अंतरराष्ट्रीय मंच पर अपनी बात मनवाने में अक्षम साबित हुए हैं।
आर्थिक वसूली का बेतुका दावा
यूनुस द्वारा कथित ‘चोरी की धनराशि’ की वसूली का दावा केवल एक राजनीतिक हथकंडा लगता है। यूनुस 20 लाख करोड़ ($234 बिलियन) के कथित गबन का आरोप लगाते हैं और ब्रिटेन, कनाडा, सिंगापुर जैसे देशों को ‘चोरी किए गए’ राशि के गंतव्य के रूप में नामित करते हैं। लेकिन बिना ठोस अंतरराष्ट्रीय सहयोग और प्रभावी कूटनीति के ये दावे सिर्फ हवाई किले बनाने जैसा है।
यूनुस की यह कवायद बांग्लादेश को आर्थिक रूप से और अधिक नुकसान पहुँचा सकती है, क्योंकि उनकी अक्षमता ने धन-वापसी के प्रयासों को एक मजाक बना दिया है। उनकी यात्राओं से स्पष्ट है कि वे सिर्फ राजनीतिक लाभ हासिल करने की कोशिश कर रहे हैं, न कि बांग्लादेश के वास्तविक हितों की रक्षा की।
रूस और यूक्रेन के बीच चल रहे संघर्ष में बुधवार (11 जून 2025) को रूस ने यूक्रेन के दूसरे सबसे बड़े शहर खारकीव पर 9 मिनट का लक्षित ड्रोन हमला किया, जिसके बाद यह दावा किया गया कि यह यूक्रेन द्वारा रूसी क्षेत्र में हालिया हमलों का ‘करारा जवाब’ था। इस सटीक सैन्य कार्रवाई में 6 लोगों की जान गई और 64 लोग घायल हुए, जिनमें 9 बच्चे भी शामिल थे।
वहीं, गुरुवार (12 जून 2025) को भी खारकीव में ड्रोन हमले हुए और दक्षिणी यूक्रेन के मायकोलाइव और खेरसॉन में बिजली गुल हो गई। युद्धग्रस्त इलाकों में 1,212 सैनिकों के शवों और कैदियों की अदला-बदली हुई है, लेकिन रूस अपनी शर्तों पर अड़ा है, जिससे शांति की उम्मीद अभी भी दूर है।
युद्ध की शुरुआत: 2022 का ‘महायुद्ध’
रूस और यूक्रेन के बीच यह भीषण युद्ध फरवरी 2022 में शुरू हुआ, जब रूस ने यूक्रेन पर पूरी तरह से हमला कर दिया। हालाँकि, दोनों देशों के बीच तनाव की जड़ें 2014 से ही गहरी हो चुकी थीं, जब रूस ने क्रीमिया को अपने में मिला लिया और पूर्वी यूक्रेन के डोनबास इलाके में अलगाववादियों का समर्थन करना शुरू कर दिया था।
रूस इस युद्ध को अपनी सुरक्षा का मसला बताता है, खासकर नाटो (NATO) के लगातार बढ़ते दायरे और यूक्रेन के पश्चिमी देशों की तरफ झुकाव को लेकर उसकी चिंताएँ रही हैं।
बता दें, कि यूक्रेन ने 1 जून 2025 को रूस पर बड़ा ड्रोन हमला किया था, जिसे ‘ऑपरेशन स्पाइडरवेब‘ का नाम दिया गया था। इस हमले में यूक्रेन ने रूस के परमाणु-सक्षम लंबी दूरी के बॉम्बर को निशाना बनाने का दावा किया था, जिससे रूसी सैन्य शक्ति को भारी नुकसान पहुँचाने की बात कही गई थी।
यूक्रेन को आर्थिक मदद
इस युद्ध में मुख्य रूप से रूस और यूक्रेन आमने-सामने हैं। यूक्रेन को अमेरिका, ब्रिटेन, यूरोपीय संघ और कई अन्य पश्चिमी देशों से भारी मात्रा में सैन्य और आर्थिक मदद मिल रही है। रूस पर कई देशों ने कड़े प्रतिबंध लगाए हैं, जबकि बेलारूस जैसे कुछ देश रूस का साथ दे रहे हैं।
युद्ध में दोनों पक्ष ड्रोन, मिसाइल, तोपखाने और हवाई हमलों का बड़े पैमाने पर इस्तेमाल कर रहे हैं। यूक्रेन में खारकीव, लुगांस्क, डोनेट्स्क, ज़ापोरिज़्ज़िया और खेरसॉन जैसे इलाके इस युद्ध के मुख्य मैदान बने हुए हैं, जहाँ लगातार गोलीबारी और हमले हो रहे हैं।
शांति वार्ता: एक उम्मीद, एक हताशा
हाल ही में, एक सकारात्मक खबर यह भी आई थी, कि रूस ने 1,212 यूक्रेनी सैनिकों के शव लौटाए हैं, जो युद्ध में मारे गए थे। यह वापसी पिछले सप्ताह इस्तांबुल में हुई शांति वार्ताओं के दौरान हुए समझौते का हिस्सा थी, जहाँ कैदियों की अदला-बदली पर भी सहमति बनी थी।
यूक्रेनी सरकार ने बताया कि लौटाए गए अवशेषों में खारकीव, लुगांस्क, डोनेट्स्क, ज़ापोरिज़्ज़िया और खेरसॉन जैसे इलाकों में मारे गए सैनिकों के साथ-साथ रूस के कुर्स्क क्षेत्र में यूक्रेन के जवाबी हमले में शहीद हुए सैनिक भी शामिल हैं।
हालाँकि, इस्तांबुल में हुई दो दौर की बातचीत के बावजूद युद्ध खत्म होने की कोई राह नहीं निकली। कैदियों की अदला-बदली और सैनिकों के शवों की वापसी ही इन वार्ताओं के एकमात्र ठोस नतीजे रहे हैं।
शांति की राह में दीवारें
शांति अभी भी दूर की कौड़ी है क्योंकि रूस बिना शर्त युद्धविराम की माँग को लगातार ठुकरा रहा है। रूस की माँग है कि यूक्रेन अपने महत्वपूर्ण इलाकों को छोड़ दे और नाटो में शामिल होने का सपना त्याग दे। दोनों पक्ष एक-दूसरे पर नागरिकों को निशाना बनाने का आरोप लगा रहे हैं, लेकिन इस संघर्ष में हजारों नागरिक, जिनमें ज्यादातर यूक्रेनी हैं, अपनी जान गँवा चुके हैं।
अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन की विश्व सामाजिक सुरक्षा रिपोर्ट में भारत के लिए एक खुशखबरी है। इस रिपोर्ट के अनुसार, भारत अपने नागरिकों को सामाजिक सुरक्षा देने में दुनिया में दूसरे स्थान पर है। आँकड़े कहते हैं कि भारत में 94 करोड़ से भी अधिक लोगों को सामाजिक सुरक्षा दे रहा है। 2015 में ये 19% था जो अब 2025 में 64.3% हो गया है यानी 10 वर्षों में ये आँकड़ा 45% तक बढ़ा है।
केंद्रीय मंत्री मनसुख मंडाविया ने इस रिपोर्ट पर कहा कि भारत की सामाजिक सुरक्षा कवरेज में हुई यह वृद्धि दुनिया में सबसे तेज विस्तार है। लाखों ऐसे लोग हैं जो विभिन्न खाद्य और स्वास्थ्य सुरक्षा योजनाओं का लाभ ले रहे हैं। ये सरकार की प्रतिबद्धता को दर्शाता है। हमारा लक्ष्य समाज के आखिरी व्यक्ति तक सशक्तिकरण लाना है।
जिनेवा में अंतर्राष्ट्रीय श्रम सम्मेलन के 113वें सत्र में ILO के महानिदेशक गिल्बर्ट एफ होंगबो के साथ केंद्रीय श्रम और रोजगार मंत्री मनसुख मंडाविया ने बातचीत की। इस दौरान उन्होंने कहा कि मोदी सरकार ने पिछले 11 वर्षों में गरीबों और मजदूरों के लिए कल्याणकारी योजनाएँ लाईं हैं।
ILO श्रम अधिकारों और सामाजिक न्याय के लिए समर्पित संयुक्त राष्ट्र की एक एजेंसी है। ये समय-समय पर अपने 187 सदस्य देशों के बीच सामाजिक सुरक्षा कवरेज का मूल्यांकन करती है। इसके तहत 9 श्रेणियों में आँकड़े लागू किए जाते हैं।
इनमें बेरोजगारी भत्ता, परिवार और बाल लाभ, स्वास्थ्य सुरक्षा, वृद्धावस्था पेंशन, रोजगार संबंधी चोट का लाभ, मातृत्व लाभ, दिव्यांगता लाभ, आय बदलने के जरिए बिमारी का लाभ और सर्वाइवर बेनेफिट शामिल होते हैं।
ILO की मान्यता प्राप्त करने के लिए किसी भी देश की सामाजिक सुरक्षा योजना को कानूनी तौर पर समर्थित, सक्रिय रूप से लागू और पिछले तीन वर्षों के सत्यापित आँकड़ों के साथ प्रस्तुत किया जाना जरूरी होता है।
भारत की सामाजिक सुरक्षा प्रणाली में विभिन्न कल्याणकारी कार्यक्रमों के माध्यम से काफी विस्तार हुआ है। इसका लक्ष्य लाखों लोगों को वित्तीय सुरक्षा, स्वास्थ्य देखभाल और खाद्य सहायता पहुँचाना है।
इन कार्यक्रमों ने देश भर में आजीविका में सुधार और गरीबी को कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इनमें आयुष्मान भारत, ई-श्रम पोर्टल, प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना, अटल पेंशन योजना समेत अन्य योजनाएं शामिल हैं।
अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन का 48.8% का आँकलन भारत के सामाजिक सुरक्षा परिदृश्य के लिहाज से अभी अधूरा है। रिपोर्ट के अनुसार, ये डेटा अभी पूलिंग अभ्यास का पहला चरण है। इसमें 8 राज्यों के केंद्रीय और महिला-केंद्रित योजनाओं के लाभार्थियों के आँकड़ें शामिल किए गए हैं। दूसरे चरण के पूरा होने के बाद भारत की कुल सामाजिक सुरक्षा कवरेज 100 करोड़ से अधिक तक पहुँच सकती है।
श्रम एवं रोजगार मंत्रालय ने सामाजिक सुरक्षा कवरेज का व्यापक मूल्यांकन करने के लिए 19 मार्च 2025 को भारत के सामाजिक सुरक्षा डेटा पूलिंग अभ्यास के पहले चरण की शुरुआत की है। इस पहल का उद्देश्य भारत की कल्याणकारी योजनाओं के लाभार्थियों के डेटा को इकट्ठा करना है।
पहले चरण में उत्तर प्रदेश, राजस्थान, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, तमिलनाडु, ओडिशा, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक और गुजरात सहित दस राज्यों को केंद्रीय स्तर पर डेटा एकत्र करने के लिए चुना गया है।
सामाजिक सुरक्षा कवरेज के आँकड़ों को 2025 में अपडेट करने वाला भारत दुनिया का पहला देश भी है। केंद्रीय मंत्री का कहना है कि इससे डिजिटाइजेशन और लोगों के लिए कल्याणकारी योजनाओं की प्रणाली में पारदर्शिता मजबूत हुई है।