Saturday, April 27, 2024
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संदेशखाली में CBI का छापा, TMC नेता हफीजुल खान के ठिकाने पर मिला गोला बारूद और विदेशी पिस्टल: शाहजहाँ शेख का है करीबी

केन्द्रीय जाँच ब्यूरो (CBI) ने पश्चिम बंगाल के संदेशखाली में शुक्रवार (26 अप्रैल, 2024) को छापेमारी की है। CBI को संदेशखाली में बड़ी मात्रा में हथियार और गोला बारूद बरामद हुए हैं। CBI संदेशखाली में ED टीम पर हुए जनवरी, 2025 में हुए हमले की जाँच कर रही है।

CBI ने संदेशखाली में शाहजहाँ शेख के एक करीबी के घर पर छापेमारी की है जहाँ से उसे बड़ी मात्रा में हथियार बरामद हुए हैं। बताया जा रहा है कि यहाँ से उसे विदेश में बने हथियार तक बरामद हुए हैं। CBI की टीम केन्द्रीय सुरक्षा बलों के साथ यहाँ पहुँची है।

इंडिया टुडे की रिपोर्ट के अनुसार, CBI की टीम संदेशखाली के सर्बेरिया इलाके में छापेमारी करने पहुँची है जहाँ उसने शाहजहाँ के एक करीबी हफीजुल खान के घर से यह हथियार बरामद किए हैं। हफीजुल भी तृणमूल कॉन्ग्रेस का नेता बताया जा रहा है।

CBI 5 जनवरी, 2024 को प्रवर्तन निदेशालय (ED) पर संदेशखाली में हुए हमले के सिलसिले में यह छापेमारी करने पहुँची है। CBI की यह छापेमारी सुबह से ही जारी है। इस मामले में अभी बंगाल सरकार की कोई प्रतिक्रिया सामने नहीं आई है।

गौरतलब है कि 5 जनवरी, 2024 को प्रवर्तन निदेशालय (ED) की एक टीम संदेशखाली में पूछताछ करने गई थी। यह टीम राशन घोटाला मामले में शेख शाहजहाँ से पूछताछ करने पहुँची थी। इस दौरान ED और केन्द्रीय सुरक्षा बलों की टीम पर शाहजहाँ के गुंडों ने हमला बोल दिया था।

उनकी गाड़ियाँ तोड़ दी थीं और अधिकारियों को घायल कर दिया था। इस हमले में तीन अधिकारी घायल हो गए थे। ED की टीम काफी मुश्किल से यहाँ से निकल पाई थी। इसके बाद इस हमले के मामले में FIR दर्ज हुई थी।

इस हमले के लगभग एक महीने के बाद संदेशखाली का भयावह सच देश के सामने आना चालू हुआ था। पूर्व TMC नेता और स्थानीय दबंग शेख शाहजहाँ और कुछ अन्य नेताओं पर महिलाओं ने यौन शोषण के आरोप लगे थे। इसके अलावा इन पर लोगों की जमीन कब्जाने, मारने पीटने और धमकाने के आरोप भी लगे थे। शेख शाहजहाँ पहले फरार हो गया था लेकिन बाद में वह पकड़ा गया था। वर्तमान में वह केन्द्रीय एजेंसियों की हिरासत में है।

TMC बांग्लादेशी घुसपैठियों से करवाती है जमीन पर कब्जा, कॉन्ग्रेस उन्हें पैसे बाँटती है: मालदा में PM मोदी का हमला, बोले- अगले जन्म में बंगाल में पैदा लूँगा

लोकसभा चुनाव 2024 में दूसरे चरण का मतदान आज शुक्रवार (26 अप्रैल 2024) को जारी है। इस बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पश्चिम बंगाल के मालदा में एक रैली को संबोधित किया। यहाँ उन्होंने पश्चिम बंगाल से अपने प्रेम और निकटता के बारे में बताया और कहा कि उन्हें लगता है कि पिछले जन्म में उनका जन्म पश्चिम बंगाल में हुआ था।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जनसभा में आए हुए लोगों की भावनाओं की कद्र करते हुए कहा, “आप सब इतना प्यार दे रहे हैं, ऐसा लगता है मैं पिछले जन्म में या तो बंगाल में पैदा हुआ था या अगले जन्म में बंगाल की किसी माँ की गोद से पैदा होने वाला हूँ। मुझे इतना प्यार कभी नसीब नहीं हुआ।”

मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की अगुवाई वाली सत्ताधारी तृणमूल कॉन्ग्रेस (TMC) पर निशाना साधते हुए पीएम मोदी ने कहा कि TMC के राज में बंगाल में एक ही चीज चलती है और वह है- हजारों करोड़ के स्कैम। उन्होंने कहा कि घोटाले TMC करती है और भुगतान बंगाल की जनता को करना पड़ता है।

बंगाल की समृद्धि वाले इतिहास की याद दिलाते हुए प्रधानमंत्री ने कहा, “एक समय था, जब बंगाल पूरे देश के विकास का नेतृत्व करता था। लेकिन, पहले लेफ्ट वालों ने और फिर TMC वालों ने बंगाल की इस महानता को चोट पहुँचाई, बंगाल के सम्मान को चूर-चूर कर दिया और विकास पर रोक लगा दी।”

बंगाल की जनता को दिए जा रहे केंद्रीय योजनाओं के लाभ का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा, “बंगाल के 50 लाख से ज्यादा किसानों के खाते में पीएम किसान सम्मान निधि के 8,000 करोड़ रुपए सीधे भेजे गए हैं। लेकिन, TMC सरकार आपको लूटने का कोई मौका नहीं छोड़ती। मैं बंगाल के विकास के लिए यहाँ की सरकार को जो पैसा भेजता हूँ, वो TMC के नेता, मंत्री और तोलाबाज मिलकर खा जाते हैं।”

प्रधानमंत्री ने कहा, “माँ-माटी-मानुष की बात कहकर सत्ता में आई TMC ने सबसे बड़ा विश्वासघात यहाँ की महिलाओं से ही किया है। जब BJP सरकार ने मुस्लिम बहनों को अत्याचार से बचाने के लिए तीन तलाक खत्म किया तो TMC ने इसका विरोध किया। संदेशखाली में महिलाओं पर इतने अत्याचार हुए और TMC सरकार आखिर तक मुख्य आरोपी को बचती रही।”

प्रधानमंत्री ने TMC पर तुष्टिकरण का भी आरोप लगाया। उन्होंने कहा, “TMC और कॉन्ग्रेस को जोड़े रखने का सबसे बड़ा चुंबक है- तुष्टिकरण। तुष्टिकरण के लिए ये दोनों पार्टियाँ कुछ भी कर सकती हैं। तुष्टिकरण की खातिर ये लोग देशहित में लिए गए हर निर्णय को वापस पलटना चाहते हैं।”

उन्होंने कहा, “TMC और कॉन्ग्रेस में तुष्टिकरण का कॉम्पिटिशन चल रहा है। TMC सरकार बंगाल में बांग्लादेशी घुसपैठियों को लाकर बसाने का काम करती है। इन घुसपैठियों को आपकी जमीन और खेत पर कब्जा करवाती है और कॉन्ग्रेस आपकी संपत्ति ऐसे वोटबैंक में बाँटने की बात कर रही है।”

दारू घोटाला केस में मनीष सिसोदिया को फिर नहीं मिली राहत, शराब कारोबारी विजय नायर के साथ 8 मई तक बढ़ी न्यायिक हिरासत

दिल्ली शराब घोटाला केस में तिहाड़ जेल में बंद आप नेता मनीष सिसोदिया को फिर राहत नहीं मिली है। दिल्ली की राउज एवेन्यू कोर्ट ने शराब घोटाला मामले से जुड़े मनी लॉन्ड्रिंग केस में आप नेता मनीष सिसोदिया, विजय नायर और अन्य आरोपितों की न्यायिक हिरासत 8 मई, 2024 तक बढ़ा दी है। मनीष सिसोदिया को ईडी के साथ ही सीबीआई ने भी गिरफ्तार किया है।

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, राउज एवेन्यू कोर्ट में सुनवाई के दौरान प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने जवाब दाखिल करने के लिए समय माँगा था। इस पर कोर्ट ने ईडी को 8 मई तक का समय दिया। कोर्ट ने कहा कि दस्तावेजों के निरीक्षण को लेकर ईडी 8 मई दोपहर 12 बजे तक अपना जवाब दाखिल कर सकती है। मनीष सिसोदिया को पिछले साल 26 फरवरी को गिरफ्तार किया गया था। सीबीआई की गिरफ्तारी के बाद से ही सिसोदिया दिल्ली की तिहाड़ जेल में बंद हैं।

सीबीआई की हिरासत 7 मई तक

बता दें कि इस मामले में मनीष सिसोदिया को सीबीआई ने भी गिरफ्तार किया है। अभी सीबीआई के पास 7 मई तक की हिरासत है। बुधवार (24 अप्रैल 2024) को सीबीआई ने उन्हें कोर्ट में पेश कर हिरासत बढ़ाने की माँग की थी, जिसे कोर्ट ने 7 मई तक बढ़ा दी थी। बता दें कि दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल भी अभी तिहाड़ जेल में बंद हैं। कोर्ट ने उनकी भी कस्टडी बढ़ा दी है। इस मामले में बीआरएस की एमएलसी के कविता भी जेल में बंद हैं, उन्हें ईडी ने हैदराबाद से गिरफ्तार किया था।

गौरतलब है कि दिल्ली शराब घोटाला केस में ईडी का आरोप है कि दिल्ली आबकारी नीति को संशोधित करते समय अनियमितताएं बरती गईं, लाइसेंस धारकों को अनुचित लाभ दिया गया, लाइसेंस शुल्क माफ कर दिया गया या कम कर दिया गया और सक्षम प्राधिकारी की मंजूरी के बिना लाइसेंस दिए गए। इस मामले में मनी ट्रेल भी सामने आ चुकी है।

कॉलेजियम सिस्टम के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका भी नहीं हुई दर्ज… सुनवाई तो दूर की बात: हजारों वकीलों को समान अवसर मिलने की बात अब कौन सुनेगा?

हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में जजों की नियुक्ति करने वाली कॉलेजियम सिस्टम में किसी तरह की दखल सुप्रीम कोर्ट नहीं चाहता है। कॉलेजियम प्रणाली पर सवाल उठाने वाली एक रिट याचिका को सुप्रीम कोर्ट की रजिस्ट्री ने दर्ज करने से इनकार कर दिया है। रजिस्ट्री का कहना है कि साल 2016 में राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग अधिनियम 2014 को संविधान पीठ पहले ही फैसला दे चुकी है।

याचिकाकर्ता एडवोकेट मैथ्यूज जे नेदुमपारा को जवाब देते हुए सुप्रीम कोर्ट के रजिस्ट्रार ने कहा कि इस मामले से संबंधित सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट्स-ऑन-रिकॉर्ड एसोसिएशन एवं अन्य बनाम भारत संघ केस में सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ द्वारा पहले ही फैसला किया जा चुका है। इस निर्णय में संविधान पीठ ने 2015 में राष्ट्रीय न्यायिक आयोग (NJAC) को असंवैधानिक और शून्य घोषित कर दिया था।

रजिस्ट्रार ने कहा कि NJAC संविधान की मूल संरचना का उल्लंघन करता था, इसलिए असंवैधानिक घोषित किया जा चुका है। वर्तमान याचिका उन्हीं मुद्दों से संबंधित है, जिन्हें पूर्व के फैसले द्वारा खत्म किया जा चुका है। रजिस्ट्रार ने यह भी कहा कि ऐसा प्रतीत होता है कि वर्तमान याचिका स्थापित सिद्धांतों को ‘अतिक्रमण’ करने के लिए या ‘किसी गुप्त उद्देश्य से’ दायर की गई है।

रजिस्ट्रार ने कहा कि एनजेएसी पर फैसले के खिलाफ 2018 में दायर एक समीक्षा याचिका को भी संविधान पीठ ने खारिज कर दिया था। बेंच ने याचिका को ध्यान से देखा और उसमें कोई योग्यता नहीं पाई।याचिकाकर्ता संविधान के अनुच्छेद 32 की आड़ में 2015 के फैसले की समीक्षा की माँग कर रहे हैं। इन मुद्दों को ‘कानूनी रूप से दोबारा उठाने की अनुमति’ नहीं दी जा सकती।

इसके आधार पर रजिस्ट्रार ने सुप्रीम कोर्ट नियम 2013 के आदेश XV नियम 5 के आलोक में याचिका लेने से इनकार कर दिया। आदेश XV नियम 5 इस प्रकार है: “रजिस्ट्रार इस आधार पर याचिका प्राप्त करने से इनकार कर सकता है कि यह किसी उचित कारण का खुलासा नहीं करता है या तुच्छ है या इसमें घोटाला है।”

याचिकाकर्ताओं ने अपनी याचिका में कहा कि कॉलेजियम प्रणाली के कारण ‘याचिकाकर्ताओं और हजारों वकीलों को समान अवसर से वंचित’ कर दिया गया है। इसके अलावा, याचिका में यह घोषित करने की माँग की गई कि एनजेएसी ‘लोगों की इच्छा’ है और सुप्रीम कोर्ट एवं उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों की नियुक्ति और स्थानांतरण ‘विधायी और कार्यकारी नीति के विशेष क्षेत्र’ में आता है।

बताते चलें कि कॉलेजियम सिस्टम भाई-भतीजावाद और जातिवाद का ऐसा मिश्रण है कि न्यायिक क्षेत्र में इसे ‘अंकल कल्चर’ कहा जाने लगा है। अन्य क्षेत्रों की तरह केंद्र की मोदी सरकार ने इसमें आवश्यक सुधार करने की कोशिश की, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने खुद को सर्वोच्च ऑथरिटी बताते हुए संसद में बने इस कानून को ही खारिज कर दिया। इसके कारण जनता में पहले से ही बैठी आशंका और मजबूत हो गई कि सुप्रीम कोर्ट आखिर कॉलेजियम में पारदर्शिता तक क्यों नहीं लाना चाहता है।

क्या है कॉलेजियम सिस्टम

कॉलेजियम सिस्टम सुप्रीम कोर्ट द्वारा खुद से विकसित किया हुआ एक सिस्टम है, जिसके तहत सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट में जजों की नियुक्ति की जाती है। यह नियुक्ति फिलहाल सुप्रीम कोर्ट के पाँच वरिष्ठ जजों की अनुशंसा पर ही की जाती है। हाईकोर्ट में जजों की नियुक्ति भी कॉलेजियम की सलाह पर होती है। इसमें सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश, संबंधित हाईकोर्ट के चीफ़ जस्टिस और उस राज्य के राज्यपाल शामिल होते हैं।

कॉलेजियम सिस्टम कोई संवैधानिक अवधारणा नहीं है, बल्कि यह सुप्रीम कोर्ट द्वारा अपने तीन फैसलों के आधार पर विकसित किया गया है। इसे ‘जजेस केस’ के नाम से जाना जाता है। पहला केस 1981, दूसरा 1993 और तीसरा 1998 के केस से जुड़ा है। 1981 के पहले केस को एसपी गुप्ता केस के नाम से भी जाना जाता है।

इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि जजों की नियुक्ति के लिए चीफ़ जस्टिस के पास एकाधिकार नहीं होना चाहिए, बल्कि इसमें सरकार की भी भूमिका होनी चाहिए। 1993 में दूसरे केस में 9 जजों की एक बेंच ने कहा कि जजों की नियुक्तियों में मुख्य न्यायाधीश की ‘राय’ को बाकी लोगों की राय के ऊपर तरजीह दी जाए। इस तरह 1998 के तीसरे केस में सुप्रीम कोर्ट ने कॉलेजियम का आकार बड़ा करते हुए इसे पाँच जजों का एक समूह बना दिया।

इन तीन केसों के आधार पर कॉलेजियम सिस्टम को विकसित किया गया और सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के साथ-साथ चार अन्य वरिष्ठ न्यायाधीशों की राय को अनिवार्य बना दिया गया। इनकी राय के बिना सुप्रीम कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में किसी भी न्यायाधीश की नियुक्ति नहीं की जा सकती।

जजों की नियुक्ति को लेकर क्या कहता है संविधान

सारा काम इसी ‘राय’ को ‘सहमति’ बनाने को लेकर है। संविधान में कहा गया है कि सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के जजों की नियुक्ति सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के वरिष्ठ जजों से विचार-विमर्श करके ही राष्ट्रपति करेंगे। संविधान के अनुच्छेद 124 में सुप्रीम कोर्ट और उसमें जजों की नियुक्ति और अनुच्छेद 217 में हाईकोर्ट के जजों की नियुक्ति से संबंधित प्रावधान है।

संविधान के अनुच्छेद 217 में कहा गया है कि राष्ट्रपति हाईकोर्ट के जजों की नियुक्ति के लिए भारत के मुख्य न्यायाधीश, राज्य के राज्यपाल और उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश से विचार-विमर्श करने के बाद निर्णय लेंगे।

हालाँकि, सुप्रीम कोर्ट ने ‘जजेज केसेस’ में संविधान में उल्लेखित शब्द ‘कंसल्टेशन’ की व्याख्या करके ‘सहमति’ कर दी। यानी विचार-विमर्श को सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश की ‘सहमति’ के रूप में संदर्भित कर दिया।

मोदी सरकार का न्यायिक सुधार और सुप्रीम कोर्ट का अड़ंगा

साल 2014 में केंद्र में नरेंद्र मोदी की सरकार बनने के बाद अन्य क्षेत्रों की तरह न्यायिक क्षेत्रों में भी सुधार करने की कोशिश की। मोदी सरकार ने साल 2014 में संविधान में 99वाँ संशोधन करके नेशनल ज्यूडिशियल अप्वाइंटमेंट कमीशन (NJAC) अधिनियम लेकर आई। इसमें सरकार ने कॉलेजियम की जगह जजों की नियुक्ति के लिए NJAC के प्रावधानों को शामिल किया था।

NJAC में 6 सदस्यों का प्रावधान किया है, जिसमें सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश, सुप्रीम कोर्ट के दो वरिष्ठ जज, केंद्रीय कानून मंत्री और दो अन्य विशेषज्ञ शामिल हैं। इन दो विशेषज्ञों का चयन प्रधानमंत्री, विपक्ष के नेता और सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश मिलकर करेंगे। इसमें यह भी प्रावधान है कि ये दो विशेषज्ञ हर तीन साल पर बदलते रहेंगे।

इसके साथ ही साल 2014 में संविधान संशोधन करके केंद्र सरकार ने जजों की नियुक्ति के मामले में बड़ा बदलाव किया। इस संशोधन में संसद को यह अधिकार दिया गया कि भविष्य में सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के जजों की नियुक्ति से जुड़े नियमों को बना सकता है और जरूरत पड़ी तो उसमें बदलाव भी कर सकता है।

केंद्र सरकार द्वारा इस कानून को बनाने के बाद साल 2015 में सुप्रीम कोर्ट ने नेशनल ज्युडिशियल अप्वाइंटमेंट्स कमीशन अधिनियम को रद्द कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने इसे ‘संविधान के आधारभूत ढाँचे से छेड़छाड़’ बताते हुए रद्द कर दिया। बता दें कि संविधान में सुप्रीम कोर्ट को मौलिक अधिकारों के संरक्षक के रूप में बताया गया है, जबकि देश में कानून बनाने का अधिकार सरकार और संसद के पास ही है।

कॉलेजियम पर भाई-भतीजावाद और गुटबाजी का आरोप

कॉलेजियम सिस्टम पर जजों की नियुक्ति के मामले में अक्सर भाई-भतीजावाद का आरोप लगता है। सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट में जजों की नियुक्ति प्रक्रिया में भयानक भाई-भतीजावाद और जातिवाद का आरोप लगता है। इतना ही नहीं इस प्रक्रिया में गुटबाजी के कारण केसों के प्रभावित होने के आरोप लगते हैं।

न्यायपालिका में ‘अंकल कल्चर’ कहते है। इसके तहत अधिकांश ऐसे जजों को ही चुना जाता है, जिनके परिवार से कोई जज रह चुका होता है या जिनकी न्यायपालिका में ऊँचे पदों पर जान-पहचान है। कहा जाता है कि देश की न्यायिक व्यवस्था सिर्फ 300 परिवारों के इर्द-गिर्द घुमती है।

यह भी कहा जाता है कि कॉलेजियम सिस्टम के कारण जजों के बीच आपसी पॉलिटिक्स और गुटबाजी होती रहती है। इसके कारण जज फैसला लिखने से ज्यादा ध्यान इस बात पर लगाते हैं कि कौन जज बने। इससे न्यायिक व्यवस्था प्रभावित होती है। बताते चलें कि इस समय देश में लगभग 5 करोड़ केस विभिन्न न्यायालयों में पेंडिंग हैं।

पूर्व कानून मंत्री का कॉलेजिम सिस्टम पर वार

इस कानून को नकारने के बाद सुप्रीम कोर्ट और केंद्र के बीच पिछले दिनोें तानातानी बढ़ गई थी। पूर्व केंद्रीय कानून एवं न्याय मंत्री किरेन रिजिजू ने अक्टूबर 2022 को कहा कि देश के लोग कॉलेजियम सिस्टम से खुश नहीं हैं और संविधान की भावना के मुताबिक जजों की नियुक्ति करना सरकार का काम है। केंद्र ने तो यहाँ तक कह दिया कि जज इस सिस्टम के जरिए अधिकतर समय राजनीति और गुटबाजी में व्यस्त रहते हैं।

उन्होंने कहा था कि आधे समय न्यायाधीश नियुक्तियों को तय करने में व्यस्त होते हैं, जिसके कारण उनका जो प्राथमिक काम न्याय प्रदान करना होता है, वह प्रभावित होता है। उन्होंने कहा कि संविधान में पूरी तरह स्पष्टता है कि भारत के राष्ट्रपति न्यायाधीशों की नियुक्ति करेंगे। इसका मतलब है कि कानून मंत्रालय भारत के मुख्य न्यायाधीश के परामर्श से न्यायाधीशों की नियुक्ति करेगा। 

25 नवंबर 2022 को केंद्रीय क़ानून मंत्री किरेन रिजिजू ने कॉलेजियम द्वारा जजों की नियुक्ति को ‘संविधान से परे’ और एलियन बता दिया। उन्होंने कहा कि कॉलेजियम प्रणाली में कई खामियाँ हैं और लोग आवाज उठा रहे हैं कि यह पारदर्शी नहीं है और ना ही इसमें जवाबदेही है। 

किरेन रिजीजू ने कहा, “भारत का संविधान जनता और सरकार के लिए ‘धार्मिक दस्तावेज’ है। कोई चीज जो संविधान से अलग है, उसे सिर्फ अदालत के कुछ जजों ने तय किए जाने के कारण आप कैसे माना सकता है कि उसका पूरा देश समर्थन करता है। आप बताएँ कि कॉलेजियम प्रणाली किस प्रावधान के तहत निर्धारित की गई है।”

केंद्रीय कानून मंत्री किरेन रिजिजू ने आगे कहा कि जिस प्रकार मीडिया पर निगरानी के लिए भारतीय प्रेस परिषद है, उसी प्रकार न्यायपालिका पर निगरानी की भी व्यवस्था होनी चाहिए। लोकतंत्र में कार्यपालिका और विधायिका पर निगरानी की व्यवस्था मौजूद है, लेकिन न्यायपालिका के भीतर ऐसा कोई तंत्र नहीं है।

उन्होंने कहा, “हमारे कार्यपालिका और विधायिका अपने दायरे में बिल्कुल बँधे हुए हैं। अगर वे इधर-उधर भटकते हैं तो न्यायपालिका उन्हें सुधारती है। समस्या यह है कि जब न्यायपालिका भटकती है तो उसको सुधारने का व्यवस्था नहीं है।” उन्होंने कहा था कि अगर न्यायपालिका यह काम खुद करे तो अच्छा है।

‘रामभक्तों की विधवाओं के मंगलसूत्र का क्या’ : CM योगी का डिंपल यादव पर करारा पलटवार, पुलवामा बलिदानियों की पत्नियों को बना रही थीं ढाल

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने समाजवादी पार्टी की मैनपुरी प्रत्याशी डिंपल यादव के मंगलसूत्र वाले बयान पर पलटवार किया है। उन्होंने डिंपल यादव से रामभक्तों की विधवाओं के मंगलसूत्र के विषय में प्रश्न पूछा है। उन्होंने समाजवादी पार्टी पर परिवारवाद के आरोप लगाए।

सीएम योगी ने उत्तर प्रदेश के इटावा में समाजवादी पार्टी की नेता पर यह हमले बोले। मैनपुरी लोकसभा के अंतर्गत आने वाली जसवंतनगर विधानसभा क्षेत्र में एक रैली को संबोधित कर रहे थे। इस सीट से भाजपा ने उत्तर प्रदेश सरकार में मंत्री जयवीर सिंह को प्रत्याशी बनाया है, वह सपा के इस गढ़ पर अक्शिलेश यादव की पत्नी डिंपल को चुनौती दे रहे हैं।

सीएम योगी ने डिंपल यादव के बयान पर कहा, “समाजवादी पार्टी की एक नेत्री द्वारा कहा जा रहा है कि मोदीजी पुलवामा के शहीदों के मंगलसूत्र का क्या, बहनों और भाइयों से हम समाजवादी पार्टी से पूछना चाहते हैं कि जिन रामभक्तों का लहू समाजवादी पार्टी की सरकार ने अयोध्या में बहाया था उनके परिवार की शहीदों की विधवाओं का क्या और उनके मंगलसूत्र का क्या।” सीएम योगी डिंपल के एक बयान का जवाब दे रहे थे।

डिंपल यादव ने पुलवामा आतंकी हमले की शहीदों की विधवाओं के मंगलसूत्र को लेकर पीएम मोदी से प्रश्न पूछे थे। मंगलसूत्र का यह मामला पीएम मोदी द्वारा रैली में एक भाषण के बाद चालू हुआ था। पीएम मोदी ने राजस्थान में एक रैली में कहा था कि कॉन्ग्रेस महिलाओं का मंगलसूत्र छीन कर उनमें बाँटना चाहती है जिनके अधिक बच्चे हैं, जो घुसपैठिये हैं।

गौरतलब है कि मुलायम सिंह यादव की सरकार ने अयोध्या में कारसेवकों पर गोली चलाने आदेश दिया था जिसमें कई कारसेवक मारे गए थे। सीएम योगी इसी को लेकर हमला बोल रहे थे। सीएम योगी ने भी इटावा में कॉन्ग्रेस के सम्पत्ति दोबारा बाँटने पर हमला बोला, उन्होंने कॉन्ग्रेस पर एससी/एसटी और ओबीसी का आरक्षण छीनने का आरोप लगाया।

उन्होंने कहा, ” कॉन्ग्रेस ने कर्नाटक में ओबीसी का 32% आरक्षण मुस्लिमों को दे दिया। कॉन्ग्रेस ओबीसी के आरक्षण को डकैती डालने का काम कर रहे हैं। यह पहली बार नहीं हो रहा। जब कॉन्ग्रेस के नेतृत्व वाली सरकार थी और सपा बसपा ने उन्हें समर्थन दिया था, उन्होंने रंगनाथ मिश्रा कमिटी बनाई थी।”

उन्होंने आगे कहा, “उस कमेटी ने संस्तुति की थी कि ओबीसी और एससी एसटी को मिलने वाले आरक्षण के लाभ में मुस्लिमों को शामिल किया जाना चाहिए। यह कॉन्ग्रेस की मंशा थी। सच्चर कमिटी की रिपोर्ट के जरिए भी यही कोशिश की थी। अब कॉन्ग्रेस कह रही है कि वह जब सत्ता में आएँगे तो संसाधनों पर मुस्लिमों का दोबारा हक़ होगा, यहाँ के हिन्दू कहाँ जाएँगे। यह लोग संविधान को अपमानित करना चाहते हैं और देश की कीमत पर राजनीति करना चाहते हैं।”

सीएम योगी ने समाजवादी पार्टी पर परिवारवाद का आरोप भी जड़ा। उन्होंने कहा कि समाजवादी पार्टी ने यादवों से छल किया है, उन्होंने अपने ही परिवार के पाँच यादवों को टिकट दिए हैं। गौरतलब है कि समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव समेत डिंपल यादव, तेजप्रताप यादव, धर्मेन्द्र यादव और अक्षय यादव लोकसभा चुनाव लड़ रहे हैं। यह सभी कनौज, मैनपुरी, बदायूं, आजमगढ़ और फिरोजाबाद से सपा के प्रत्याशी हैं। भाजपा ने इसी को लेकर उन पर हमला बोला है।

‘अतीक अहमद के बेटे शेर, दिनदहाड़े ही मारेंगे’: जेल में बंद अली का खुलासा- पूरे परिवार को थी उमेश पाल हत्याकांड की जानकारी, असद को जाने से किया था मना

प्रयागराज के माफिया डॉन अतीक अहमद के कहने पर ही उमेश पाल को दिनदहाड़े सबके सामने मारा गया। इन शूटरों को लीड कर रहा था अतीक का सबसे छोटा बेटा, जिसे पुलिस ने मुठभेड़ में मार गिराया। अतीक के बेटे अली ने उमेश को दिनदहाड़े मारने से मना किया था, लेकिन अतीक अहमद नहीं माना। उसने कहा कि उसके बेटे शेर हैं और वो उमेश को दिनदहाड़े ही मारेंगे।

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, नैनी जेल में बंद माफिया अतीक के बेटे अली ने पुलिस को बड़ा बयान दिया है। उसने कहा कि उमेश की दिनदहाड़े हत्या से मना किया था पर अब्बा नहीं माने। उन्होंने (अतीक ने) कहा था कि शेर हैं अतीक के बेटे। उमेश को दिनदहाड़े मारेंगे। उमेश को मारने की दो बार पहले भी कोशिश हुई थी, लेकिन शूटर नाकाम रहे।

अपने बयान में अली अहमद ने कहा कि मैंने इस तरीके से दिनदहाड़े उमेश पाल को मारने के लिए मना किया था, पर अब्बा नहीं माने, बोले- अतीक के बेटे शेर हैं, दिनदहाड़े वारदात को अंजाम देंगे। इसके अलावा अली ने असद को भी शूटरों के साथ भेजने से मना किया था, बाद में अतीक का बेटा असद पुलिस मुठभेड़ में मारा गया था। अली को भी इस मामले में आरोपित बनाया गया है।

उसने बताया कि उमेश पाल को मारने की पहले भी दो बार कोशिश हुई थी। अतीक के शूटरों ने एक बार उमेश पाल को धोबी घाट चौराहे पर और दूसरी बार कचहरी रोड पर 84 खंबा के पास घेरकर कत्ल करने की योजना बनाई थी, लेकिन दोनों ही बार प्लान फेल हो गया था। यही वजह थी कि 13 फरवरी को जब नैनी जेल में उससे मिलने गुलाम, गुड्डू मुस्लिम व सदाकत आए तो उसने तीनों को जलील भी किया। कहा, इस बार अगर उमेश को मारने में नाकाम रह गए तो फिर अपनी शक्ल मत दिखाना। जेल के भीतर विवेचक ने दो घंटे से ज्यादा समय तक अली से पूछताछ करके उसका बयान दर्ज किया।

गौरतलब है कि अतीक अहमद के 19 साल के बेटे असद की अगुवाई में हत्यारों के ग्रुप ने 24 फरवरी 2023 को राजू पाल हत्याकांड में गवाह रहे उमेश पाल की दिनदहाड़े हत्या कर दी थी। इस दौरान बम भी चलाए गए थे, इसमें अंगरक्षकों की भी मौत हुई थी। इस वारदात के बाद असद फरार हो गया था और यूपी पुलिस ने उसपर 5 लाख का ईनाम घोषित किया था। असद को पुलिस ने झाँसी में मार गिराया था। इसके अगले ही दिन 15 अप्रैल को अतीक अहमद और उसके भाई अशरफ अहमद की प्रयागराज के अस्पताल परिसर में हत्या कर दी गई थी।

बंगाल के मेदिनीपुर में भाजपा कार्यकर्ता के बेटे की लाश लटकी हुई, TMC कार्यकर्ताओं-BJP प्रदेश अध्यक्ष के बीच तनातनी: मर चुकी है राज्य सरकार की ममता?

देश भर में लोकसभा चुनाव 2024 के लिए दूसरे चरण की वोटिंग जारी है। इस चरण में बंगाल की भी तीन सीटों पर वोटिंग हो रही है। वोटिंग के बीच बंगाल से चुनावी हिंसा की भी खबरें भी आई हैं। पश्चिम बंगाल भाजपा ने आरोप लगाया है कि TMC के गुंडे बालूरघाट चुनावी हिंसा कर रहे हैं। भाजपा अध्यक्ष सुकांता मजूमदार की TMC कार्यकर्ताओं से झड़प की भी खबरें हैं। बंगाल के ही मेदिनीपुर में एक भाजपा कार्यकर्ता के बेटे का शव लटका मिला है।

पश्चिम बंगाल भाजपा अध्यक्ष सुकांता मजूमदार के विरुद्ध एक पोलिंग स्टेशन के बाहर TMC कार्यकर्ताओं ने काफी नारेबाजी की। दोनों खेमों के बीच धक्कामुक्की भी हुई। सुकांता मजूमदार ने आरोप लगाया कि यहाँ वोटिंग को प्रभावित करने के लिए बड़ी संख्या में TMC कार्यकर्ता मौजूद हैं।

बंगाल भाजपा ने भी बालूरघाट में TMC कार्यकर्ताओं पर चुनाव प्रभावित करने का आरोप लगाया है। बंगाल भाजपा ने एक वीडियो साझा किया है जिसमें एक महिला एक व्यक्ति को थप्पड़ मारते दिखाई देती है। भाजपा का कहना है कि TMC के गुंडे भाजपा कार्यकर्ता को वोट देने पर पीट रहे हैं। भाजपा ने TMC पर लोगों की आवाज दबाने और फासीवादी नीति अपनाने का आरोप लगाया है। भाजपा ने यह भी आरोप है कि उसके कार्यकर्ता के बेटे को गुंडों ने मार दिया है।

भाजपा ने ट्वीट करके बताया है कि मेदिनीपुर में उसके कार्यकर्ता सुदर्शन मिद्या के बेटे दीनबंधु मिद्या बुधवार से ही गायब थे और उनका शव शुक्रवार (26 अप्रैल, 2024) को एक जगह लटका मिला। भाजपा ने इस ट्वीट में सत्ताधारी TMC को क्रूर बताया है। मेदिनीपुर में 25 मई को मतदान होना है।

इस बीच देश के 13 राज्यों की 88 सीटों पर मतदान जारी है। मतदान के मामले में सबसे आगे त्रिपुरा और छत्तीसगढ़ हैं जहाँ 11 बजे तक लगभग 37% मतदान हो चुका है। उत्तर प्रदेश में 24.3% मतदान 11 बजे तक हुआ है जबकि महाराष्ट्र 18.8% के साथ सबसे पिछड्डी है। मणिपुर में भी 33% से अधिक मतदान हो चुका है और यहाँ से अभी हिंसा की कोई खबर नहीं आई है। असम में 27% से अधिक मतदान हो चुका है। केरल में 25% से अधिक मतदान हुआ है।

नहीं होगा VVPAT पर्चियों का 100% मिलान, EVM से ही होगा चुनाव: सुप्रीम कोर्ट ने खारिज की सारी याचिकाएँ, बैलट पेपर की माँग भी रद्द

सुप्रीम कोर्ट ने वीवीपैट (वोटिंग पर्ची दिखाने वाली मशीन) वेरिफिकेशन की माँग पर बड़ा फैसला सुनाते हुए शुक्रवार (26 अप्रैल 2024) को इससे जुड़ी सारी याचिकाएँ खारिज कर दीं। इसके अलावा बैलेट पेपर की माँग को लेकर भी दर्ज याचिकाओं को रद्द किया गया। कोर्ट ने कहा कि मतदान ईवीएम मशीन से होगा और ईवीएम-वीवीपैट का 100 फीसद मिलान नहीं होगा

बता दें कि वीवीपैठ वेरिफिकेशन और बैलेट पेपर से जुड़ा यह फैसला जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस दीपांकर दत्ता की बेंच ने सुनाया है। इस संबंध में एसोसिएशन फार डेमेक्रेटिक रिफार्मस (एडीआर) संस्था और कुछ अन्य ने सुप्रीम कोर्ट में याचिकाएँ दाखिल की थी। इनमें माँग थी कि वीवीपैट पर्चियों का ईवीएम से 100 प्रतिशत मिलान किया जाए।

कोर्ट ने ये याचिकाएँ खारिज करते हुए कहा कि कोई भी उम्मीदवार नतीजों के 7 दिनों के भीतर ईवीएम के माइक्रोकंट्रोलर के सत्यापन के लिए शुल्क का भुगतान करके दौबारा काउंटिंग की माँग कर सकता है। इसके साथ उन्होंने चुनाव के बाद सिंबल लोडिंग यूनिटों को भी सील कर सुरक्षित रखने का निर्देश दिया।

गौरतलब है कि इस मामले में चुनाव आयोग ने पीठ से कहा था कि ईवीएम और वीवीपैट में किसी तरह की छेड़छाड़ होना मुमकिन ही नहीं है। आयोग ने इस दौरान मशीनों की सुरक्षा, उन्हें सील करने और उनकी प्रोग्रामिंग के बारे में भी सर्वोच्च न्यायालय को अवगत कराया था। बावजूद सभी सबूतों के एडीआर की ओर से पेश वकील प्रशांत भूषण मशीनों में छेड़छाड़ की आशंका पर बात रखते रहे। आखिरकार कोर्ट ने उनसे पूछा भी क्या सिर्फ संदेह के आधार पर कोर्ट ईवीएम के बारे में आदेश दे दें, वो भी तब जब इसके खिलाफ कोई सबूत नहीं है केवल संदेह है।

इससे पहले कोर्ट ने इस मामले पर 24 अप्रैल को फैसला सुरक्षा रखा गया था। उस समय भी कोर्ट ने कहा EVM-VVPAT के मामले में कहा कि जिन लोगों ने याचिकाएँ लगाई हैं वह खुद गडबडियों को लेकर एकदम पुष्ट नहीं हैं बल्कि उन्हें शंका है। कोर्ट ने कहा कि जब उसने इस मामले में समाधान पूछा तो एक व्यक्ति ने कहा कि वापस बैलट पेपर लगा दो। कोर्ट ने यह सारी दलीलें सुनने के बाद मामले में अपना निर्णय सुरक्षित रखा था और आज उन्हीं दलीलों के मद्देनजर सब याचिकाएँ खारिज कर दीं।।

TMC नेता जिन्ना अली बना रहा था देसी बम, मकसद था – चुनाव में लोगों को डराना… उसके हाथ में ही हो गया ब्लास्ट: बुरी तरह घायल, EC ने माँगी रिपोर्ट

बंगाल में लोकसभा चुनावों के बीच तृणमूल कॉन्ग्रेस का नेता/कार्यकर्ता देसी बम बनाते समय घायल हो गया। घटना मुर्शिदाबाद की है। कार्यकर्ता का नाम जिन्ना अली है। बताया जा रहा है कि जिन्ना कथिततौर पर बम बना रहा था जब वही बम उसके हाथ में फट गया और उसका सीधा हाथ चोटिल हो गया।

घटना के संबंध में डेक्कन क्रॉनिकल ने रिपोर्ट प्रकाशित की है। बताया गया है कि विस्फोट बुधवार को हुआ था। पड़ोसियों ने रात में जब ये आवाज सुनी तो वो भागकर जिन्ना के घर गए। वहाँ उन्होंने जिन्ना को बेहोश खून से लथपथ देखा।

स्थानीय फौरन उसे बीरभूम इलाज के लिए लेकर गए। बाद में मुर्शिदाबाद के कॉन्ग्रेस प्रवक्ता जयंत दास ने इस संबंध में बताया कि तृणमूल कॉन्ग्रेस के कार्यकर्ता क्रूड बम बना रहे थे ताकि प्रतिद्वंदी पार्टी के कार्यकर्ताओं को चुनाव से पहले डराया जा सके।

रिपोर्ट में बताया गया कि इस घटना के संबंध में चुनाव आयोग ने भी संज्ञान लिया है। चुनाव आयोग ने राज्य पुलिस और जिला प्रशासन से घटना के संबंध में रिपोर्ट माँगी है। चुनाव आयोग ने कहा है कि बेहरामपुर के बुरवान गाँव के मुनई कांद्रा में घटना घटी है उस पर रिपोर्ट दी जाए। ये जगह पोलिंग स्टेशन के 50 यार्ड के भीतर है। 13 मई को यहाँ लोकसभा चुनाव होने हैं।

बंगाल में देसी बम फेंकने की घटना हो रही आम

बता दें कि बंगाल में चुनावों के समय में देसी बमों का मिलने की घटनाएँ हर चुनाव में सामान्य होती जा रही हैं। मुर्शिदाबाद में पिछले साल बड़ी तादाद में देसी बम मिल चुके हैं। पंचायत चुनाव से लेकर विधानसभा चुनाव और लोकसभा चुनाव तक में बमबाजी की जाती है।

पिछले साल ही पंचायत चुनाव की रिपोलिंग के दिन तालाब के पास मुर्शिदाबाद में 35 बम मिले थे। इसी तरह इन चुनावों में भी प्रथम चऱण की वोटिंग वाले दिन बमबाजी की घटनाएँ सामने आई थीं। भाजपा कार्यकर्ता के घर के बाहर भी बम मिले थे।

‘मुस्लिमों का संसाधनों पर पहला दावा’, पूर्व PM मनमोहन सिंह ने 2009 में दोहराया था 2006 वाला बयान: BJP ने पुराना वीडियो दिखा किया हमला

देश के पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने 2009 लोकसभा चुनावों के समय ‘मुस्लिमों का देश के संसाधनों पर पहला हक’ वाला बयान दोहराया था। इसका एक वीडियो भी सामने आया है, जिसमें तत्कालीन पीएम मनमोहन सिंह अपने पुराने बयान पर कायम रहने की बात करते हैं। भाजपा ने इस वीडियो के जरिए कॉन्ग्रेस पर हमला बोला है।

भाजपा ने एक्स (पहले ट्विटर) पर मनमोहन सिंह का एक वीडियो डालते हुए लिखा है, “अप्रैल 2009 में लोकसभा चुनाव से ठीक पहले डॉ मनमोहन सिंह ने अपना बयान दोहराया था कि अल्पसंख्यकों जिसमें विशेष कर गरीब मुसलमानों को देश के संसाधनों के विषय में प्राथमिकता मिलनी चाहिए। उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा था कि वह अपने पूर्व बयान पर कायम हैं जिसमें कहा गया था कि संसाधनों के मामले में मुसलमानों का पहला अधिकार होना चाहिए।”

भाजपा ने आगे लिखा, “डॉ मनमोहन सिंह का यह स्पष्ट बयान कॉन्ग्रेस के झूठ और उनके पहले के बयान पर दी गई सफाई को ध्वस्त करता है। साथ ही यह इस बात को सिद्ध करता है कि मुसलमानों को तरजीह देना कॉन्ग्रेस पार्टी की स्पष्ट नीति है। यह आरक्षण से लेकर संसाधनों तक हर चीज में मुस्लिमों को प्राथमिकता देने की कॉन्ग्रेस की मानसिकता का एक और साक्ष्य है।”

इस वीडियो में मनमोहन सिंह कहते सुने जा सकते हैं, “मैनें यह नहीं कहा (सुना नहीं जा सका)… मैंने कहा कि अल्पसंख्यक और विशेषकर मुस्लिम अल्पसंख्यक, अगर वह गरीब हैं तो उनका देश के संसाधनों पर पहला दावा बनता है, मैंने कहा कि सब तरह के अल्पसंख्यक और साथ में जोड़ा कि विशेषकर मुस्लिम अल्पसंख्यक का हक़ है, मैं अपने इस बयान पर कायम हूँ।” इस बयान में पीएम मनमोहन सिंह अपने 2006 के एक बयान की बात कर रहे थे।

मनमोहन सिंह ने दिसम्बर 2006 में एक कार्यक्रम में कहा था, “हमें अल्पसंख्यकों और विशेष कर मुस्लिमों, के लिए ऐसी योजनाएँ बनानी होंगी जिससे वह हमारे विकास के लाभ का समान रूप से लाभ ले सकने के लिए सशक्त हों। उनका संसाधनों पर पहला दावा हो।” यह बात पीएमओ की वेबसाइट पर भी लिखी हुई है। इस बयान के बाद खूब बवाल मचा था। इस बयान के अगले दिन पीएमओ ने सफाई भी पेश की थी। हालाँकि, अब सामने आए नए वीडियो से स्पष्ट है कि पीएम मनमोहन सिंह 2009 तक अपने बयान पर कायम थे।

उनके इस बयान का जिक्र हाल ही में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने एक चुनावी रैली में किया था। पीएम मोदी ने कॉन्ग्रेस के सम्पत्ति दोबारा बाँटने के वादे को लेकर कहा था कि कॉन्ग्रेस महिलाओं के मंगलसूत्र छीन कर उनको बाँटना चाहती है जिनका वह सम्पत्ति पर पहला अधिकार मानती है। कॉन्ग्रेस ने इसके बाद फिर से इस बयान को झुठलाने की कोशिश की थी लेकिन इसमें सफल नहीं हो सकी थी। अब मनमोहन सिंह का यह वीडियो सामने आने के बाद कॉन्ग्रेस और घिर गई है।

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