Wednesday, September 18, 2024
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‘आसमान नहीं गिर जाएगा’: सुप्रीम कोर्ट ने देश भर में बुलडोजर कार्रवाइयों पर लगाई रोक, कहा – एक भी जगह हुआ अवैध ध्वस्तीकरण तो ये आदेश का उल्लंघन

उत्तर प्रदेश में माफियाओं और अपराधियों को नेस्तनाबूत करने के लिए उनकी अवैध संपत्तियों को बुलडोजर से ध्वस्त करने की कार्रवाई शुरू हुई। बाद में अन्य अपराधियों के खिलाफ भी इसका इस्तेमाल किया जाने लगा, जिनकी संपत्ति अवैध अतिक्रमण कर के बनाई पाई जाती थी। अब सुप्रीम कोर्ट ने बुलडोजर कार्रवाई पर रोक लगा दी है। सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि देश भर में बिना उसके आदेश के ध्वस्तीकरण की कोई भी कार्रवाई नहीं होनी चाहिए। अगली सुनवाई तक ये आदेश जारी रहेगा।

हालाँकि, सुप्रीम कोर्ट ने इस दौरान ये भी स्पष्ट किया कि सार्वजनिक सड़कों, फूटपाथ, रेलवे लाइनों और तालाब जैसे अन्य सार्वजनिक स्थलों के अतिक्रमण को लेकर बुलडोजर चलाया जा सकता है, ये आदेश की जद से बाहर होगा। जस्टिस BR गवई और जस्टिस KV विश्वनाथन ने ये आदेश दिया। दायर याचिकाओं में दावा किया गया था कि राज्य सरकारें अपराधियों को दंड देने के लिए उनकी संपत्तियों पर बुलडोजर चला रही हैं। अब इस मामले की सुनवाई 1 अक्टूबर को होगी।

हालाँकि, सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सर्वोच्च न्यायालय के इस फ़ैसले पर आपत्ति जताते हुए कहा कि नियामक संस्थाओं के हाथ इस तरह से नहीं बाँधे जा सकते हैं। इस पर सुप्रीम कोर्ट के जजों ने कहा, “अगर ध्वस्तीकरण की कार्रवाइयों को 2 सप्ताह के लिए रोक दिया जाए तो आसमान नहीं गिर जाएगा। अपने हाथों को रोकिए। 15 दिन में क्या हो जाएगा?” जब SG ने कहा कि वो पूरे भारत में सभी वैधानिक संस्थाओं के हाथ नहीं रोक सकते, तो सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अनुच्छेद-142 में निहित अपनी विशेष शक्तियों का इस्तेमाल कर के उसने ये फैसला दिया है।

जस्टिस विश्वनाथन ने कहा कि अगर अवैध ध्वस्तीकरण की एक भी घटना होती है तो वो भी सुप्रीम कोर्ट के आदेश का उल्लंघन होगा। अधिवक्ता चंदर उदय सिंह ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा पिछली बार आदेश दिए जाने के बावजूद बुलडोजर वाली कार्रवाइयाँ जारी हैं। सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि वो ध्वस्तीकरण की कार्रवाई के लिए दिशानिर्देश जारी करेगा। SG ने कहा कि ये फर्जी नैरेटिव बनाया जा रहा है कि केवल एक खास समुदाय को निशाना बनाया जा रहा है।

भारतीय हॉकी टीम ने चीन को 1-0 से हराकर रिकॉर्ड 5वीं बार जीता एशियन चैम्पियंस ट्रॉफी खिताब, पूरे टूर्नामेंट में नहीं हारा एक भी मैच

भारतीय हॉकी टीम ने एशियन चैम्पियंस ट्रॉफी 2024 के फाइनल में जबरदस्त प्रदर्शन करते हुए चीन को 1-0 से हराया और रिकॉर्ड 5वीं बार इस प्रतिष्ठित खिताब को अपने नाम किया। यह ऐतिहासिक मुकाबला मंगलवार, 17 सितंबर 2024 को चीन के हुलुनबुइर में खेला गया। भारतीय टीम की इस धमाकेदार जीत ने उन्हें एशियन हॉकी में एक बार फिर शीर्ष स्थान पर पहुँचा दिया है।

इस फाइनल मैच की शुरुआत दोनों टीमों के बीच जबरदस्त टक्कर के साथ हुई। पहले तीन क्वार्टर में कोई भी टीम गोल नहीं कर सकी, जिससे मुकाबला 0-0 की बराबरी पर रहा। भारतीय टीम ने मैच के चौथे क्वार्टर में बढ़त हासिल की, जब डिफेंडर जुगराज सिंह ने मैच के 10वें मिनट में पेनल्टी कॉर्नर से गोल किया। यह गोल निर्णायक साबित हुआ और भारतीय टीम ने 1-0 से जीत दर्ज की।

हरमनप्रीत सिंह की कप्तानी में एक और जीत

कप्तान हरमनप्रीत सिंह की अगुवाई में भारतीय हॉकी टीम ने टूर्नामेंट के सभी मैचों में बेहतरीन प्रदर्शन किया। खासकर फाइनल में चीन के खिलाफ यह जीत टीम के मजबूत डिफेंस और संगठित खेल का परिणाम थी। भारतीय टीम ने पूरे मैच के दौरान शानदार रणनीति अपनाई और चीन को गोल करने के किसी भी मौके से वंचित रखा।

भारत की ऐतिहासिक उपलब्धि

इस जीत के साथ भारतीय टीम ने एशियन चैम्पियंस ट्रॉफी का खिताब 5वीं बार अपने नाम किया। भारतीय टीम ने इससे पहले 2011, 2013, 2018 और 2023 में यह खिताब जीता था। 2018 में भारत और पाकिस्तान संयुक्त विजेता बने थे। इस प्रकार, भारतीय टीम ने इस टूर्नामेंट के आठ सीजन में पाँच बार विजेता बनकर अपनी श्रेष्ठता साबित की है।

टूर्नामेंट में भारतीय टीम की अजेय रेकॉर्ड

भारत ने इस टूर्नामेंट में एक भी मैच नहीं हारा। टीम ने अपने पूल स्टेज के सभी मैच जीते और सीधे सेमीफाइनल में जगह बनाई। सेमीफाइनल में भारत ने साउथ कोरिया को 4-1 से हराकर फाइनल में प्रवेश किया था। इससे पहले भारतीय टीम ने पाकिस्तान को 2-1, मलेशिया को 8-1, चीन को 3-0 और जापान को 5-0 से हराया था।

चीन की हॉकी टीम ने इस साल पहली बार एशियन चैम्पियंस ट्रॉफी के फाइनल में जगह बनाई थी, लेकिन खिताब जीतने से चूक गई। चीन की टीम ने पूरे टूर्नामेंट में अच्छा प्रदर्शन किया, लेकिन फाइनल में भारत की मजबूत डिफेंस और आक्रामक खेल ने उन्हें पीछे छोड़ दिया।

भारतीय टीम की इस जीत ने एशियन हॉकी में उनके प्रभुत्व को फिर से स्थापित किया है। हरमनप्रीत सिंह की कप्तानी और जुगराज सिंह के निर्णायक गोल ने भारत को 5वीं बार इस प्रतिष्ठित खिताब का विजेता बना दिया।

मंदिर पर पत्थरबाजी, हिन्दुओं के घरों में फेंके जलते पटाखे: ईद पर ‘सर तन से जुदा’ की धमकी, MP के कई शहरों में इस्लामी कट्टरपंथियों का उपद्रव

ईद मिलाद-उन-नबी के मौके पर सोमवार (16 सितंबर) को मुस्लिम समुदाय के लोगों ने पूरे देश सहित मध्य प्रदेश के भी कई हिस्सों में जुलूस निकाले। इन जुलूसों में कई स्थानों पर हिंसक वारदातें हुईं। कुछ जगहों पर उत्तेजक नारेबाजी की गई और इस्लामी मुल्कों के झंडे लहराए गए। इस दौरान कई स्थानों पर मुस्लिम भीड़ की हिन्दू संगठन के सदस्यों से भिड़ंत भी होते-होते बची। रतलाम, मंदसौर, श्योपुर, मंडला-बालाघाट आदि जिलों में इस्लामी कट्टरपंथियों के उपद्रवों का खासा असर देखने को मिला। इन सभी मामलों में पुलिस ने केस दर्ज कर के जाँच शुरू कर दी है। कुछ लोगों को हिरासत में भी लिया गया है।

रतलाम में लहराए फिलिस्तीनी झंडे

पहला मामला रतलाम जिले से है। यहाँ ईद मिलाद-उन-नबी के जुलूस में मुस्लिम समुदाय के लोगों ने फिलीस्तीन के झड़े लहराए। यह जुलूस सीरत कमेटी द्वारा निकाला गया था। जुलूस में फिलीस्तीन के झंडे लहराए गए। इस हरकत का वीडियो भी सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है। इसी जुलूस में DJ पर आपत्तिजनक बयानों को बजाया गया। इसमें से अधिकतर बयान AIMIM पार्टी के विधायक अकबरुद्दीन ओवैसी के हैं। इन बयानों में ओवैसी मुस्लिमों की आबादी का हवाला दे कर उनको सड़कों पर उतरने के लिए उकसाता सुनाई दे रहा है।

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक जुलूस खत्म होने के बाद सीरत कमेटी के सचिव अहमद नूर कुरैशी ने इन हरकतों से अपना और अपने संगठन का पल्ला झाड़ लिया। DJ पर बजाए गए आपत्तिजनक बयानों को भी सीरत कमेटी ने गलत बताया। कमेटी ने पुलिस से माँग की है कि जुलूस के दौरान किसी भी तरफ का गैरकानूनी काम करने वालों पर एक्शन लिया जाए। रतलाम के पुलिस अधीक्षक IPS अमित कुमार ने इन घटनाओं का संज्ञान लिया है। उन्होंने इस पूरे मामले की जाँच व अन्य जरूरी कानूनी कार्रवाई के निर्देश दे दिए हैं।

मंडला में भी फिलीस्तीनी झंडे

मध्य प्रदेश के मंडला-बालाघाट में भी ईद मिलाद-उन-नबी के जुलूस के दौरान फिलीस्तीन का झंडा लहराया गया। इस घटना की जानकारी मिलते ही हिन्दू संगठन के सदस्यों ने हंगामा शुरू कर दिया। थाने का घेराव हुआ। प्रदर्शन कर के आरोपित पर कड़ी कार्रवाई की माँग उठाई गई। पुलिस बल ने फ़ौरन ही झंडा लहरा रहे युवक को हिरासत में ले लिया। आरोपित का नाम फरदीन है जिसके खिलाफ FIR दर्ज कर ली गई है।

बालाघाट में भी फिलिस्तीनी झंडे

मंडला एक अलावा बालाघाट के कई हिस्सों में ईद मिलाद-उन-नबी के जुलूस में फिलीस्तीन के झंडे लहराने के वीडियो वायरल हुए हैं। इन वीडियो में भीड़ को नारेबाजी करते भी देखा जा सकता है। हिन्दू संगठन के सदस्यों ने इस नारेबाजी के खिलाफ कार्रवाई की माँग उठाई है। अब तक मिली जानकारी के मुताबिक पुलिस ने केस दर्ज कर के जाँच शुरू कर दी है। 1 आरोपित को हिरासत में भी ले लिया गया है, जिससे पूछताछ चल रही है।

श्योपुर में सिर तन से जुदा के नारे

मध्य प्रदेश के एक अन्य जिले श्योपुर में ईद मिलाद-उन-नबी के जुलूस में मुस्लिम भीड़ ने सिर तन से जुदा के नारे लगाए हैं। इस हरकत का वीडियो भी सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है। वायरल वीडियो में सफेद रंग का एक बड़ा सा झंडा उठाए व्यक्ति के पीछे जा रहे कुछ लोग ‘गुस्ताख़ ए नबी की एक सजा, सिर तन से जुदा, सिर तन से जुदा’ की नारेबाजी कर रहे हैं। सफेद रंग के इस झंडे में काले रंग से एक बड़ी सी तलवार छपी हुई है। आरोपितों पर कड़ी कार्रवाई की माँग के साथ हिन्दू संगठन के सदस्यों ने थाने पर प्रदर्शन किया है।

आरोप है कि जुलूस में शामिल कुछ उपद्रवियों ने हिन्दुओं के घरों को भी निशाना बनाया है। रास्ते में पड़ने वाले हिन्दुओं के घरों के आगे नारेबाजी की गई और उनमें पटाखे फोड़ कर फेंके गए। इस हरकत से एक महिला झुलस भी गई। भीड़ के उपद्रव को रोकने में नाकाम रहने पर अब तक कुल 5 पुलिसकर्मी सस्पेंड किए जा चुके हैं। निलंबित होने वाले पुलिस स्टाफ में एक सब इंस्पेक्टर और 4 कांस्टेबल शामिल हैं। इस घटना पर FIR दर्ज कर के कुल 5 आरोपितों को हिरासत में ले लिया गया है। पकड़े गए आरोपितों से पूछताछ की जा रही है।

पथराव के बाद मंदसौर में महाआरती

मध्य प्रदेश के रतलाम जिले में ईद मिलाद-उन-नबी के जुलूस में मुस्लिम समुदाय के कुछ लोगों ने उपद्रव का प्रयास किया। 16 सितंबर को निकले इस जुलूस के दौरान रास्ते में पड़े बालाजी मंदिर में पत्थर फेंका गया था। इस पत्थरबाजी में एक श्रद्धालु घायल हो गया था जिसके बाद हिन्दू संगठन से जुड़े लोगों ने प्रदर्शन किया था। पुलिस ने तब केस दर्ज कर के जाँच व आरोपित की गिरफ्तारी के प्रयास शुरू कर दिए थे। 10 से 15 अज्ञात लोगों के खिलाफ केस दर्ज किया गया है।

अब तक 11 संदिग्धों को हिरासत में ले कर पूछताछ की जा रही है। 5 DJ जब्त कर लिए गए हैं। पुलिस CCTV फुटेज व अन्य सबूतों को जुटा कर आरोपितों की तलाश कर रही है। इस घटना के विरोध में बालाजी मंदिर में महाआरती का आयोजन किया गया। इस आयोजन में हिन्दू समाज से जुड़े सभी वर्गों ने हिस्सा लिया। श्रद्धालुओं की संख्या हजारों में थी, जिसमें महिलाएँ भी शामिल हुईं। आरती के दौरान सुरक्षा के मद्देनजर पुलिस काफी मुस्तैद रहा।

‘तुम मुस्लिमों को फर्जी पकड़ कर लाए हो’: अलीगढ़ में ट्रेन से कटने चला गया सब इंस्पेक्टर, कहा- बाइक चोरों का रिमांड लेने कोर्ट गया, मजिस्ट्रेट ने धमकाया-अभद्र व्यवहार किया

उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ जिले में एक सब इंस्पेक्टर द्वारा रिमांड मजिस्ट्रेट पर गंभीर आरोप लगाए गए हैं। सब इंस्पेक्टर सचिन कुमार का कहना है कि मजिस्ट्रेट ने न केवल उन्हें मानसिक रूप से प्रताड़ित किया, बल्कि उन पर मुस्लिमों को फर्जी मामलों में फंसाने का आरोप भी लगाया। इस घटना से जुड़ा एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो चुका है, जिसमें सचिन कुमार रेलवे लाइन पर बैठे नजर आ रहे हैं और आत्महत्या की बात कर रहे हैं।

सब इंस्पेक्टर सचिन कुमार ने मंगलवार (17 सितंबर 2024) को अपने ही थाने में एक शिकायती पत्र दिया है। इस पत्र में सचिन का आरोप है कि मजिस्ट्रेट अभिषेक त्रिपाठी ने बार-बार उन्हें अपने केबिन में बुला कर अभद्रता की और मुस्लिमों को फर्जी तौर पर गिरफ्तार करने की बात कही।

यह मामला अलीगढ़ के थानाक्षेत्र बन्नादेवी का है, जहाँ 16 सितंबर 2024 को सब इंस्पेक्टर सचिन कुमार पाँच बाइक चोरों – अदीब, फैज़, अरबाज़, आमिर और शाकिर – की रिमांड मंजूर करवाने के लिए अदालत पहुँचे। इस केस में अलीगढ़ के बन्नादेवी थाने में FIR दर्ज की गई थी, जिसमें सचिन कुमार मामले के विवेचक थे। गिरफ्तार किए गए सभी आरोपितों पर पहले से कई आपराधिक मुकदमे दर्ज थे, और उनके पास से चोरी की गई सात बाइकें बरामद हुई थीं। इसके अलावा, स्कूटी और मोटर पार्ट्स भी इन आरोपितों से मिले थे।

शाम 4 बजे, सब इंस्पेक्टर सचिन कुमार इन आरोपितों की रिमांड के लिए मजिस्ट्रेट अभिषेक त्रिपाठी की अदालत में पहुँचे। लेकिन उनके अनुसार, मजिस्ट्रेट ने उन्हें रात 10 बजे तक अदालत में बैठाए रखा और बार-बार अपने विश्राम कक्ष में बुलाकर अभद्र व्यवहार किया। सचिन कुमार का आरोप है कि मजिस्ट्रेट ने उन्हें बार-बार धमकाते हुए कहा, “तुम मुस्लिमों को फर्जी फंसाकर लाए हो।”

एक्स यूजर अधिवक्ता व पत्रकार अजय द्विवेदी ने 17 सितंबर को एक वीडियो व तहरीर शेयर की है। यह तहरीर सब इंस्पेक्टर सचिन कुमार की होने का दावा किया गया है। इस तहरीर में सचिन कुमार के हवाले से लिखा गया है कि 16 सितंबर को वो वाहन चोरी के एक केस में नामजद अदीब, फैज़, अरबाज़, आमिर और शाकिर का रिमांड मंजूर करवाने शाम 4 बजे रिमांड मजिस्ट्रेट की कोर्ट में गए थे। यह कोर्ट मजिस्ट्रेट अभिषेक त्रिपाठी की थी।

अजय द्विवेदी द्वारा शेयर की तहरीर में आगे बताया गया है कि जज साहब शाम 5 बजे कोर्ट में आए। तब दारोगा ने मजिस्ट्रेट से आरोपितों की रिमांड मंजूर करने का निवेदन किया। आरोप है कि सब इंस्पेक्टर को रात 10 बजे तक कोर्ट में बिठाए रखा गया। इस दौरान हर 10 मिनट पर दारोगा को अपने विश्राम कक्ष में बुलाया गया और अभद्रता की गई और साथ ही धमकी भी दी गई। बकौल दारोगा मजिस्ट्रेट ने उनसे कहा, “तुम मुस्लिमों को फर्जी पकड़ कर लाए हो।”

शिकायत में बताया गया है कि अदीब, फैज़, शाकिर, आमिर और अरबाज़ के खिलाफ पहले से कई आपराधिक मुकदमे दर्ज हैं। इन सभी के पास से चोरी की 7 बाइकें भी बरामद हुईं हैं। स्कूटी और मोटर पार्ट्स भी बरामद किए जाने का दावा इसी शिकायत कॉपी में किया गया है। दारोगा सचिन कुमार का यह भी दावा है कि न सिर्फ उनके द्वारा प्रस्तुत रिमांड को अस्वीकार कर दिया गया बल्कि उन्हें इतना प्रताड़ित किया गया कि उनके मन में आत्महत्या का भी विचार आने लगा।

एक वायरल वीडियो में सब इंस्पेक्टर को रेलवे पटरी पर बैठे देखा जा सकता है। इसी वीडियो में कुछ पुलिसकर्मी दारोगा सचिन कुमार को आत्महत्या न करने के लिए मना रहे हैं। वीडियो में भी दरोगा ने वही बातें कहीं हैं जो कि शिकायत कॉपी में लिखी गई हैं। पुलिसकर्मी ने इस पत्र में कार्रवाई की माँग की है।

SSP के निर्देश पर हुआ था एक्शन

जिस मामले में सब इंस्पेक्टर सचिन कुमार ने अदीब, फैज़, शाकिर, आमिर और अरबाज़ के खिलाफ अदालत में रिमांड का प्रयास किया था उसकी FIR कॉपी ऑपइंडिया के पास मौजूद है। यह FIR 16 सितंबर (सोमवार) को बन्नादेवी थाने में सब इंस्पेक्टर प्रवीण कुमार की शिकायत पर दर्ज हुई थी। सब इंस्पेक्टर सचिन कुमार इस केस में विवेचक हैं। तब पुलिस ने बाइक चोरी के गिरोह से जुड़े पाँचों आरोपितों को गिरफ्तार किया था। पूछताछ में इस गिरोह ने बताया था कि वो 60-70 बाइकें चोरी कर के काट चुके हैं।

अलीगढ़ पुलिस ने इस कार्रवाई को SSP के निर्देश पर किया गया एक गुडवर्क माना था। तब पुलिस ने इन सभी के पास से 4 बाइकें और 3 स्कूटी बरामद की थी। इसके अलावा इनके पास से बाइक के पार्ट्स भी मिले थे जिसमें टंकी, साइलेंसर आदि शामिल है। गिरफ्तारी से पहले ये आरोपित सरकारी अस्पताल के आसपास घूम रहे थे। सभी आरोपितों की उम्र 19 से 25 साल के बीच है। इन सभी के खिलाफ भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 317 (2), 317 (4) और 317 (5) के तहत करवाई की गई थी।

इस घटना के बाद, कई कानूनी विशेषज्ञों का मानना है कि यदि आरोप सही पाए जाते हैं, तो यह न्यायिक प्रणाली पर सवाल खड़े करता है। एक पुलिसकर्मी के साथ इस प्रकार का व्यवहार न केवल उनके मनोबल को कमजोर करता है, बल्कि इससे न्यायिक प्रणाली की निष्पक्षता पर भी असर पड़ता है। यह मामला केवल एक पुलिसकर्मी और मजिस्ट्रेट के बीच का विवाद नहीं है, बल्कि यह न्यायिक प्रणाली और कानून-व्यवस्था से जुड़े गंभीर सवाल उठाता है। अब देखना यह होगा कि इस मामले में क्या कार्रवाई की जाती है और सचिन कुमार की आत्महत्या की धमकी के पीछे की सच्चाई क्या है।

सो नहीं रही CBI, उसके खुलासे परेशान करने वाले: डॉक्टर रेप-मर्डर केस में सुप्रीम कोर्ट, कहा- किसी भी महिला को रात में काम करने से नहीं रोक सकती बंगाल सरकार

सुप्रीम कोर्ट ने पश्चिम बंगाल की ममता बनर्जी सरकार को लताड़ लगाई है। कोर्ट ने कहा है कि पश्चिम बंगाल सरकार महिला डॉक्टरों को रात में काम करने से नहीं रोक सकती। कोर्ट ने इस दौरान आरजी कर मेडिकल कॉलेज रेप और हत्या मामले में CBI जाँच की रिपोर्ट को परेशान करने वाला बताया।

मंगलवार (17 सितम्बर, 2024) को हुई सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने यह टिप्पणियाँ की। चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की बेंच सुनवाई के दौरान पश्चिम बंगाल के महिला सुरक्षा संबधी एक कदम पर बिगड़ गई।

पश्चिम बंगाल सरकार ने बताया कि उसने महिला डॉक्टरों सुरक्षा के लिए उनके रात में काम करने या 12 घंटे से अधिक ड्यूटी ना करने सम्बन्धी नियम बनाए हैं। इस पर कोर्ट ने कहा कि महिलाएँ राज्य सरकार से कोई छूट नहीं चाहतीं बल्कि वह सुरक्षित माहौल चाहती है।

कोर्ट ने कहा, “ऐसा कैसे हो सकता है? महिलाएँ रियायतें नहीं, बल्कि समान मौके चाहती हैं…महिला डॉक्टर हर परिस्थिति में काम करने को तैयार हैं। उन्हें हर परिस्थिति में काम करना चाहिए…पश्चिम बंगाल को इसे सही करना होगा। आप यह नहीं कह सकते कि महिला डॉक्टर 12 घंटे से ज़्यादा शिफ्ट में काम नहीं कर सकतीं और रात में नहीं।”

कोर्ट ने कहा कि सुरक्षाबल भी रात में काम करते हैं और उनमें महिलाएँ शामिल हैं। कोर्ट ने कहा कि राज्य सरकार किसी भी महिला को यह नहीं कह सकती कि वह रात को काम ना करें। कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि सभी को सुरक्षा दिलाना राज्य का काम है। इसके जवाब पश्चिम बंगाल सरकार ने कोर्ट से कहा है कि वह इस नियम को बदल देंगे।

वहीं इस दौरान हत्या और रेप मामले में CBI ने अपनी रिपोर्ट कोर्ट को सौंपी। कोर्ट का कहना है कि यह रिपोर्ट परेशान करने वाली है। कोर्ट ने यह भी कहा कि वह CBI जाँच पर कोई डेडलाइन नहीं लगाएगा। कोर्ट ने यह कहा कि CBI जाँच को लेकर शांत नहीं बैठी है। कोर्ट ने CBI रिपोर्ट की कोई भी जानकारी सार्वजनिक देने से मन मना कर दिया है।

CBI ने अपनी रिपोर्ट में जो खुलासा किया है, वह और भी बुरा है, असल में परेशान करने वाला है। आप जो बता रहे हैं, वह चिंता का विषय है, हम खुद चिंतित हैं, CBI ने इसे हमें बताया है… हमने जो पढ़ा है, उससे हम खुद परेशान हैं… CBI अपनी स्वतंत्र जाँच करने के अलावा हमारे द्वारा उठाए गए मुद्दों पर भी काम कर रही है। जाँच पूरी करने के लिए अभी भी समय है। हमें CBI को पर्याप्त समय देना होगा, वह सो नहीं रहे हैं। कोई समय सीमा तय करना जाँच को भटकाना होग, सच को सामने लाने के लिए उन्हें समय दिया जाना चाहिए।”

सुप्रीम कोर्ट ने यह सुनवाई स्वतः संज्ञान में लिए गए मामले पर की है। कोर्ट ने इस मामले का संज्ञान अगस्त, 2024 में लिया था। डॉक्टरों के एक बड़े समूह ने सुप्रीम कोर्ट से इस मामले में न्याय की माँग भी की थी। कोर्ट ने इसके बाद कई दिशानिर्देश दिए थे।

गौरतलब है कि 9 अगस्त, 2024 को कोलकाता के आरजी कर मेडिकल कॉलेज में एक महिला डॉक्टर की रेप के बाद हत्या कर दी गई थी। इस मामले में पहले प्रशासन और अस्पताल के अधिकारियों ने लीपापोती करने का प्रयास किया था। हालाँकि विरोध के बाद सच्चाई सामने आई थी। अभी इस मामले में CBI जाँच चल रही है।

पोर्ट ब्लेयर से 1400 साल पुराना है ‘श्रीविजय’: पढ़ें सुमात्रा के बौद्ध साम्राज्य और राजेंद्र चोल के ऐतिहासिक नौसैनिक युद्ध की महागाथा, लिबरल गिरोह को नहीं आएगा पसंद

श्रीविजयपुरम—पोर्ट ब्लेयर का नया नाम, एक दिलचस्प इतिहास रखता है। ब्रिटिश औपनिवेशिक विरासत को खत्म करते हुए और अंडमान और निकोबार द्वीपसमूह की राजधानी को भारत की प्राचीन समुद्री जड़ों से फिर से जोड़ते हुए, मोदी सरकार ने पिछले हफ्ते इस शहर का नाम बदलने की घोषणा की। इससे पहले, मोदी सरकार ने नेताजी सुभाष चंद्र बोस को श्रद्धांजलि के रूप में अंडमान और निकोबार द्वीपसमूह के तीन द्वीपों का नाम बदला था।

जहाँ देश ने इस फैसले का स्वागत किया, वहीं कुछ विशिष्ट समूह, जिनमें ‘ब्राउन सिपाही’ भी शामिल हैं, ने पोर्ट ब्लेयर का नाम बदलने की आलोचना की। इसे ‘नक्शे पर बहुसंख्यकवाद’ का एक उदाहरण बताया और कहा कि नया नाम स्थानीय लोगों से मेल नहीं खाता। कुछ ने तो यह भी कहा कि इस द्वीपसमूह का नाम 18वीं सदी के ब्रिटिश नौसैनिक अधिकारी लेफ्टिनेंट आर्चिबाल्ड ब्लेयर के नाम पर रखना सही था। लेकिन, वे यह भूल गए कि ब्रिटिश साम्राज्य बनने से बहुत पहले, जब ब्रिटिश द्वीप अंधकार युग में संघर्ष कर रहे थे, तब भारत का चोल साम्राज्य न केवल भारतीय मुख्यभूमि के महान शहरों पर शासन कर रहा था, बल्कि इस द्वीपसमूह में एक नौसैनिक अड्डा संचालित करता था और भारतीय महासागर क्षेत्र में एक शक्तिशाली समुद्री व्यापार नेटवर्क चलाता था।

चोल साम्राज्य ने पूरे दक्षिण-पूर्व एशिया के व्यापार मार्गों और यहाँ तक कि भू-राजनीति को भी प्रभावित किया और कुछ हद तक नियंत्रित किया।

चोल साम्राज्य का नौसैनिक अड्डा था अंडमान-निकोबार द्वीप समूह

11वीं सदी में, चोल साम्राज्य ने श्रीविजय साम्राज्य (जो अब इंडोनेशिया में है) पर हमले करने के लिए अंडमान और निकोबार द्वीपसमूह का एक महत्वपूर्ण नौसैनिक अड्डे के रूप में उपयोग किया। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के शब्दों में, “जो द्वीप कभी चोल साम्राज्य का नौसैनिक अड्डा था, वह आज हमारी सामरिक और विकासात्मक महत्वाकांक्षाओं का एक महत्वपूर्ण आधार बनने जा रहा है।”

श्रीविजय साम्राज्य के इतिहास में जाने से पहले, यह जानना दिलचस्प होगा कि पोर्ट ब्लेयर का नाम कैसे पड़ा। पोर्ट ब्लेयर का नाम आर्चिबाल्ड ब्लेयर के नाम पर रखा गया था, जो 18वीं सदी के अंत में एक ब्रिटिश नौसैनिक सर्वेक्षक थे। 1789 में, उन्होंने ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के अधीन इस क्षेत्र में एक जेल कॉलोनी की स्थापना की। पहले इस बस्ती को पोर्ट कॉर्नवालिस कहा जाता था, बाद में आर्चिबाल्ड ब्लेयर के सम्मान में इसका नाम बदलकर पोर्ट ब्लेयर कर दिया गया, जिन्होंने इसकी स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। यह शहर ऐतिहासिक रूप से कुख्यात सेल्युलर जेल के लिए जाना जाता है, जिसका इस्तेमाल ब्रिटिश सरकार ने भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों, जैसे वीर सावरकर सहित कई अन्य को कैद करने के लिए किया था।

श्रीविजय नाम संस्कृत शब्दों ‘श्री’ और ‘विजय’ से लिया गया है। ‘श्री’ एक सम्मानजनक शब्द है जो आमतौर पर ‘भाग्यशाली’ या ‘महिमामंडित’ का संकेत देता है और यह हिंदू देवी लक्ष्मी का भी एक नाम है। इसका उपयोग अक्सर व्यक्तियों या स्थानों के नाम के रूप में किया जाता है, जैसे श्रीलंका। ‘विजय’ का अर्थ होता है ‘जीत’।

श्रीविजय साम्राज्य का इतिहास 7वीं सदी में सुमात्रा, इंडोनेशिया में शुरू होता है। दपुंता ह्यांग श्री जयनासा द्वारा स्थापित यह साम्राज्य एक शक्तिशाली समुद्री साम्राज्य के रूप में विकसित हुआ, जिसने चीन और भारत के बीच समुद्री व्यापार मार्गों पर अपना दबदबा बना लिया। अपने चरम पर श्रीविजय सुमात्रा, जावा और मलय प्रायद्वीप पर शासन करता था। यह दक्षिण पूर्व एशिया में बौद्ध धर्म के प्रसार का एक प्रमुख केंद्र था।

श्रीविजय साम्राज्य की समृद्धि मलक्का और सुंडा जलडमरूमध्य पर इसके एकाधिकार से उत्पन्न हुई, जिसने इसे व्यापार और संस्कृति का एक केंद्र बना दिया। साम्राज्य के चीन के साथ करीबी संबंध थे और इसने बौद्ध धर्म के प्रसार को प्रोत्साहित किया, जिससे यह एशिया भर के विद्वानों के लिए एक आकर्षण का केंद्र बन गया। श्रीविजय साम्राज्य महायान बौद्ध शिक्षण का एक प्रमुख केंद्र बन गया। भारत के बिहार में स्थित नालंदा विश्वविद्यालय, जो एक प्रतिष्ठित हिंदू और बौद्ध शैक्षणिक केंद्र है, का श्रीविजय के साथ घनिष्ठ संबंध था, जिससे ‘सिल्क रूट’ और अन्य ऐतिहासिक मार्गों की तुलना में एक कम ज्ञात ‘ज्ञान मार्ग’ का निर्माण हुआ। पलेंबांग इसकी राजधानी थी, और श्रीविजय साम्राज्य कला, संस्कृति और साहित्य का एक प्रमुख केंद्र था। यद्यपि संस्कृत एक प्राचीन भारतीय भाषा है, शोधकर्ता कहते हैं कि श्रीविजय में इसे पढ़ाया जाता था, जबकि संस्कृत-प्रभावित पुरानी मलय भाषा को आधिकारिक भाषा के रूप में प्रयोग किया जाता था। जावा में बुद्ध को समर्पित बोरबुदुर मंदिर इसके धार्मिक और सांस्कृतिक वैभव का प्रतीक है।

महान श्रीविजय साम्राज्य और शैलेन्द्र वंश

कदुकान बुकित अभिलेख, जिसे श्रीविजय से संबंधित सबसे पुराना अभिलेख माना जाता है, ‘महान श्रीविजय’ का वर्णन करता है और कहता है कि इसकी स्थापना दपुंता ह्यांग श्री जयनासा ने की थी। पल्लव लिपि में लिखा गया यह अभिलेख श्री जयनासा की ‘सिद्धयात्रा’, एक सैन्य अभियान, का वर्णन करता है, जिसके परिणामस्वरूप श्रीविजय साम्राज्य की स्थापना हुई।

इसी तरह, पालेमबांग के पश्चिम में तलांग तुओ से प्राप्त पुरानी मलय भाषा के अभिलेख में श्री जयनासा द्वारा 684 ईस्वी में बौद्ध सिद्धांतों को समर्पित एक उद्यान, श्रीकेतरा, की स्थापना का आदेश दर्ज है।

1983 में अपनी किताब ‘The Politics of Expansion: The Chola Conquest of Sri Lanka and Sri Vijaya’ में जॉर्ज डब्ल्यू स्पेंसर ने मलय प्रायद्वीप के कुछ ‘भारतीयीकृत’ राज्यों का उल्लेख किया है।

राजाराज और राजेंद्र चोल के शासनकाल के दौरान श्रीविजय पर शैलेन्द्र (जिन्हें स्यालेंद्र भी कहा जाता है) वंश का शासन था। ऐतिहासिक विवरणों से पता चलता है कि चोल और शैलेन्द्र राजाओं के बीच संबंध हमेशा तनावपूर्ण नहीं थे; 1006 में, राजराजा चोल के शासनकाल के दौरान, श्रीविजय के राजा मरविजयातुंगवर्मन ने नागपट्टिनम में चूड़ामणि विहार का निर्माण कराया। 1030 या 1031 का प्रसिद्ध तंजौर अभिलेख श्रीविजय साम्राज्य का उल्लेख करता है, साथ ही अन्य स्थानों का भी वर्णन करता है, जहाँ राजा राजेंद्र चोल I द्वारा भेजे गए बेड़े ने आक्रमण किया था। इस अभिलेख में श्रीविजय (पलेंबांग) का उल्लेख है। इसके अलावा, अभिलेख में श्रीविजय के शासक संग्राम विजयातुंगवर्मन का भी उल्लेख है, जिन्हें आक्रमण के दौरान चोल नौसेना ने बंदी बना लिया था। इस अभिलेख में पन्नई, मलैयूर, मयिरुडिंगन, इलंगासोकम, माप्पप्पलम, मेविलिंबंगम, वलैपांडुरू, तलैत्तक्कोलम, मदमालिंगम, इलमुरीदेसम और मनक्कवुरम का भी उल्लेख है।

11वीं सदी तक, श्रीविजय का प्रभुत्व खतरे में पड़ चुका था। 1025 में, शक्तिशाली चोल साम्राज्य के राजा राजा चोल I और बाद में उनके पुत्र राजेंद्र चोल I ने एक व्यापक नौसैनिक अभियान शुरू किया।

श्रीविजय सेना को चकित करने की एक अप्रत्याशित रणनीति के तहत, चोल नौसेना ने 1025 ईस्वी में पूर्व की ओर यात्रा करके युद्ध शुरू किया। भारत से श्रीविजय आने वाले जहाज आमतौर पर मलय प्रायद्वीप के लामुरी या केदय बंदरगाहों पर रुकते थे, इससे पहले कि वे मलक्का जलडमरूमध्य को पार करते। हालाँकि, श्रीविजय की रक्षा इसी प्रकार के हमले को ध्यान में रखते हुए की गई थी।

राजेंद्र चोल का श्रीविजय के क्षेत्र में सैन्य अभियान

राजेंद्र चोल की सेनाओं ने श्रीविजय के क्षेत्रों पर हमला किया, उनकी संपत्ति को नियंत्रण में लिया, उनके राजा को कैद किया और उनकी शक्ति को काफ़ी हद तक कमज़ोर कर दिया। हालाँकि, चोल का इन क्षेत्रों पर सीधे शासन करने का इरादा नहीं था; वे केवल व्यापार मार्गों पर नियंत्रण और प्रभाव चाहते थे। हमले के बाद भी, श्रीविजय का मान और शक्ति घटती चली गई।

समय के साथ, श्रीविजय साम्राज्य का व्यापार मार्गों पर प्रभाव कम होने लगा, और 14वीं शताब्दी तक यह हिंदू-बौद्ध माजापहित साम्राज्य और इस्लामी सल्तनतों जैसे देमक के उदय से दब गया। इसके बाद, श्रीविजय साम्राज्य इतिहास से गायब हो गया, लेकिन इसके सांस्कृतिक योगदान में महायान बौद्ध धर्म का प्रसार और दक्षिण पूर्व एशिया के व्यापारिक नेटवर्क का निर्माण शामिल था।

दिलचस्प बात यह है कि 1017 ईस्वी में, राजा राजेंद्र चोल ने अपने श्रीलंका अभियान के दौरान मलक्का जलडमरूमध्य में एक बेड़ा भेजा, लेकिन श्रीविजय की नौसेना ने इसे खदेड़ दिया। श्रीविजय की ताकत मुख्य रूप से समुद्री मार्गों और बंदरगाहों पर उसके नियंत्रण से उत्पन्न होती थी, जिससे उसे व्यापारियों से कर वसूलने का अधिकार मिला था। 1019 ईस्वी में, श्रीविजय ने भारी कर लगाया जब प्रतिद्वंद्वी हिंदू-बौद्ध राज्य मेडांग (जिसे मातरम भी कहा जाता है) सुमात्रा में ध्वस्त हो गया, जिससे तमिल और विदेशी व्यापारियों की स्थिति खराब हो गई।

चोल राजा राजेंद्र के श्रीविजय पर आक्रमण के कारणों का विश्लेषण करते हुए प्रसिद्ध इतिहासकार नीलकंठ शास्त्री अपनी पुस्तक ‘Cholas’ में लिखते हैं कि यह विश्वास करने के लिए पर्याप्त सामग्री है कि शुरुआत में न केवल राजाराज चोल बल्कि उनके पुत्र राजेंद्र के भी श्रीविजय के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध थे। हालाँकि, या तो श्रीविजय द्वारा पूर्वी देशों के साथ चोल के व्यापार को बाधित करने का प्रयास, या राजा राजेंद्र की समुद्र पार के देशों को जीतने की महत्वाकांक्षा ने उनके नौसैनिक अभियान को प्रेरित किया, भले ही चोलों ने इन स्थानों पर शासन करने का प्रयास न किया हो।

नीलकंठ शास्त्री लिखते हैं, “हमें मान लेना चाहिए कि या तो श्रीविजय ने पूर्व के साथ चोल व्यापार के मार्ग में बाधा डालने का प्रयास किया, या अधिक संभावना है, राजेंद्र चोल ने अपने दिग्विजय को समुद्र पार के उन देशों तक बढ़ाने की इच्छा की होगी, जिन्हें उनके देश के लोग पहले से जानते थे, और इस तरह उनके ताज की शोभा बढ़ी।”

इसी प्रकार, आरसी मजूमदार ने भी यह माना कि वाणिज्यिक श्रेष्ठता स्थापित करने की चाह चोलों के श्रीविजय आक्रमण का एक प्रमुख कारण हो सकता है।

अपनी पुस्तक ‘Ancient Indian Colonies in the Far East vol.2’ में मजूमदार लिखते हैं, “शैलेन्द्र साम्राज्य की भौगोलिक स्थिति ने इसे पश्चिमी और पूर्वी एशिया के बीच समुद्री व्यापार के लगभग पूरे आयामों को नियंत्रित करने में सक्षम बनाया, और इसका विजय भविष्य के चोलों की वाणिज्यिक श्रेष्ठता की संभावनाओं को लेकर प्रमुख कारण लगता है, जिसने इस समुद्र पार अभियान को व्यवहारिक राजनीति के दायरे में ला दिया।”

अपनी पुस्तक ‘नागपट्टिनम से सुवर्णद्वीप’ में तानसेन यह सुझाव देते हैं कि अंतरराष्ट्रीय व्यापार प्रणाली में चीनी बाज़ारों का प्रमुखता हासिल करना भी चोलों के श्रीविजय आक्रमण का एक कारण हो सकता है, क्योंकि एशिया के हर क्षेत्र के व्यापारी वहाँ चीनी चीनी मिट्टी, रेशम खरीदने और विदेशी सामान जैसे घोड़े और मसाले बेचने के लिए इकट्ठा होते थे।

यह भी कहा जाता है कि खमेर (वर्तमान कंबोडिया) के राजा सूर्यवर्मन प्रथम ने अपने ताम्ब्रलिंग राज्य (आधुनिक थाईलैंड) के साथ विवाद में राजेंद्र चोल की सहायता मांगी थी। इसके परिणामस्वरूप ताम्ब्रलिंगों ने श्रीविजय के शासक संग्राम विजयतुङ्गवर्मन का समर्थन माँगा, जिससे चोल और श्रीविजय के बीच संघर्ष छिड़ गया।

संक्षेप में, चोलों ने श्रीविजय पर मुख्य रूप से आर्थिक और भू-राजनीतिक कारणों से आक्रमण किया। श्रीविजय दक्षिण पूर्व एशिया के प्रमुख समुद्री व्यापार मार्गों, विशेष रूप से मलक्का जलडमरूमध्य पर नियंत्रण रखता था, जो चीन और दक्षिण पूर्व एशिया के साथ व्यापार करने वाले भारतीय व्यापारियों के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण था। राजेंद्र चोल के नेतृत्व में चोल साम्राज्य, जो इन व्यापार मार्गों पर अपनी शक्ति बढ़ाने के लिए इच्छुक था, ने श्रीविजय को एक बाधा और एक लाभकारी लक्ष्य के रूप में देखा। राजेंद्र चोल प्रथम ने 1025 में श्रीविजय पर हमला किया, जिससे क्षेत्रीय वाणिज्य पर उसका नियंत्रण कम हो सके और दक्षिण पूर्व एशियाई व्यापार नेटवर्क पर चोलों का वर्चस्व स्थापित हो सके। यह अभियान चोल साम्राज्य की नौसैनिक क्षमताओं को भी दर्शाता है।

पोर्ट ब्लेयर का नाम बदलकर श्रीविजयपुरम रखने से भारत की समृद्ध समुद्री विरासत सम्मानित होती है, विशेष रूप से प्राचीन चोल साम्राज्य की सर्वोच्च समुद्री शक्ति, जिसने हिंद महासागर के पार व्यापार नेटवर्क में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और अपने विजय अभियान के माध्यम से अपनी विरासत छोड़ी। यह नामकरण भारत के समुद्री अतीत को मान्यता देता है, जिसने उपमहाद्वीप को पारंपरिक रूप से दक्षिण पूर्व एशिया, पूर्वी अफ्रीका और उससे आगे जोड़ा। मोदी सरकार का पोर्ट ब्लेयर का नाम श्रीविजयपुरम रखने का निर्णय भारतीय महासागर क्षेत्र (आईओआर) की स्थायी प्रासंगिकता को भी मान्यता देता है, जो आर्थिक, सांस्कृतिक और रणनीतिक संबंधों के लिए एक बंधन शक्ति के रूप में कार्य करता है, जैसा कि पारंपरिक व्यापार मार्गों ने सांस्कृतिक आदान-प्रदान और वाणिज्य को बढ़ावा दिया था।

यह निर्णय न केवल भारत के दक्षिण पूर्व एशिया के साथ ऐतिहासिक संबंधों पर जोर देता है, बल्कि IOR में प्रभावशाली भूमिका निभाने की भारत की आज की महत्वाकांक्षा को भी पुष्ट करता है। नामकरण भारतीय राज्यों की परंपरा को सम्मानित करता है, जिन्होंने दक्षिण पूर्व एशियाई सभ्यताओं को प्रेरित किया, और यह भारत के क्षेत्रीय संपर्क और कूटनीति पर अपरिहार्य प्रभाव की याद दिलाता है। यह एक तरह से महान सम्राट राजेंद्र चोल के प्रति मौन और विनम्र श्रद्धांजलि भी है, जिनका दृष्टिकोण और साहस न केवल मुख्य भूमि के दक्षिण तक सीमित था बल्कि दक्षिण पूर्व एशिया के बड़े भारतीय महासागर क्षेत्र में भी फैला था, जो यह समझाता है कि प्राचीन भारतीयों ने मानसून की हवाओं और समुद्री मार्गों का उपयोग करके वैश्विक शक्ति कैसे प्राप्त की थी।

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₹75 हजार में एक शव का अंतिम संस्कार, कपड़ों पर खर्च हुए ₹11 करोड़: वायनाड की तबाही में भी ‘कमाई’ खोज रही केरल की वामपंथी सरकार, राहत के एस्टीमेट पर विवाद

केरल के वायनाड में भूस्खलन और बाढ़ के कारण हुई त्रासदी के राहत बचाव में किए गए खर्च के अनुमान पर वामपंथी सरकार घिर गई है। आलोचकों का कहना है कि केरल सरकार ने एक शव के अंतिम संस्कार के लिए ₹75000 खर्च कर दिए जबकि राहत बचाव कर्मियों के लिए टॉर्च और रेनकोट जैसी चीजें खरीदने पर ₹3 करोड़ खर्च हो गए। ये आँकड़े केरल वामपंथी सरकार द्वारा हाई कोर्ट में दिए गए एक कागज के आधार पर बताए गए हैं। हालाँकि, मुख्यमंत्री के दफ्तर ने इसका खंडन किया है।

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, केरल हाई कोर्ट में वामपंथी सरकार ने वायनाड में राहत-बचाव कार्यक्रम सम्बन्धित एक हलफनामा दायर किया है। इस हलफनामे में वित्तीय विवरण दिया गया है। इस हलफनामे में बताया गया कि वायनाड आपदा में जिन लोगों की मौत हुई, उनके अंतिम संस्कार के लिए ₹2.59 करोड़ के खर्च का अनुमान है।

इसके अलावा ₹4 करोड़ का खर्च अनुमान राहत एवं बचाव कर्मियों को यहाँ पहुँचाने के लिए बताया गया। इसके अलावा ₹10 करोड़ खर्च का अनुमान यहाँ राहत बचाव के काम के लिए पहुँचे सैनिकों और राहत बचावकर्मियों के रहने और खाने-पीने की बात कही गई। हलफनामे के अनुसार, भूस्खलन में फंसे लोगों को निकालने के लिए ₹15 करोड़ का खर्च का अनुमान है।

इसी हलफनामे में भूस्खलन से बचाए गए 4000 लोगों को कपड़े उपलब्ध करवाने पर खर्च किए जाने की बात कही गई है। इसी हलफनामे में कहा गया कि ₹8 करोड़ इन लोगों के मेडिकल और ₹3 करोड़ बाढ़ प्रभावित इलाके से पानी निकालने पर अनुमानित है। ₹17 करोड़ खर्च का अनुमान वायुसेना के विमान पर भी बताया गया।

इस हलफनामे के सामने आने के बाद केरल की वामपंथी सरकार घिर गई है। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष के सुरेन्द्रन ने कहा, “वायनाड भूस्खलन को लेकर केरल हाई कोर्ट में राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण द्वारा ‘राहत’ के लिए बढ़ा-चढ़ाकर पेश किए गए खर्च से भ्रष्टाचार और हेराफेरी की बू आ रही है।”

उन्होंने आगे लिखा, “पिनाराई विजयन सरकार ने बेशर्मी से इस आपदा को पैसा हड़पने वाली योजना में बदल दिया है। जहाँ केरल के लोग वायनाड भूस्खलन पीड़ितों की मदद के लिए निस्वार्थ भाव से आगे आए, वहीं CPM सरकार ने इस त्रासदी का उपयोग अपने फायदे के लिए किया।”

केरल सरकार पर कॉन्ग्रेस और इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग ने भी वामपंथी सरकार पर हमला बोला है। वहीं वामपंथी सरकार इस मामले में बैकफुट है और मुख्यमंत्री कार्यालय ने इस मामले में एक प्रेस रिलीज जारी करके इन खबरों को गलत बताया है।

मुख्यमंत्री कार्यालय ने कहा है जो कागज हाई कोर्ट को दिया गया है, उसमे इस आपदा होने वाली संभावित खर्च की जानकारी है और इसे केंद्र सरकार से सहायता लेने के लिए तैयार किया गया था। उन्होंने कहा कि यह कागज खर्चे प्रदर्शित नहीं करता और उन्होंने मीडिया से इस संबंध में सुधार की बात कही।

चेन्नई में बांग्लादेश क्रिकेट टीम के ‘स्वागत’ से भड़के नेटिजन्स, BCCI को भेजी लानत: कहा- ये हिंदू नरसंहार के मौन समर्थक

भारत और बांग्लादेश के बीच टेस्ट और टी20 सीरीज का आयोजन भारतीय जमीन पर हो रहा है, जबकि बांग्लादेश में हिंदू अल्पसंख्यकों के खिलाफ हो रही हिंसा ने सोशल मीडिया पर गुस्सा पैदा कर दिया है। भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (BCCI) पर लोगों का गुस्सा उतर रहा है और लोग सोशल मीडिया पर बीसीसीआई के प्रति तीखी प्रतिक्रिया दे रहे हैं।

15 सितंबर को जब बांग्लादेश की पुरुष क्रिकेट टीम चेन्नई पहुँची और उनका गर्मजोशी से स्वागत किया गया, तो कई नेटिज़न्स ने इस पर नाराजगी जाहिर की। उनका कहना है कि ऐसे समय में जब बांग्लादेश में हिंदू मारे जा रहे हैं, हम उन खिलाड़ियों का स्वागत कैसे कर सकते हैं।

सोशल मीडिया पर दिखा गुस्सा

सोशल मीडिया पर चर्चित यूजर ‘Mr Sinha’ ने ट्वीट किया, “हम वाकई इन बांग्लादेशी क्रिकेटरों का स्वागत सम्मानित मेहमानों की तरह कर रहे हैं? इनमें से ज्यादातर हिंदुओं के नरसंहार के मूक समर्थक हैं।”

पत्रकार अजीत भारती ने लिखा, “बेशर्म BCCI! पैसे के लिए पाकिस्तानी टीम के आगे नाचने से लेकर अब यहाँ तक, यह एक नई नीचता है।”

हिंदू आध्यात्मिक नेता राधारमण दास ने ट्वीट किया, “BCCI ने विश्वभर के हिंदुओं के विरोध की पूरी तरह अनदेखी की है। बस देखिए कि BCCI और ICC ने आज कैसे बांग्लादेशी क्रिकेटरों का स्वागत किया, जबकि बांग्लादेश में हिंदुओं का जातीय सफाया हो रहा है। आप पर शर्म आती है।”

उद्यमी और लेखक अरुण कृष्णन ने बताया कि वह बांग्लादेश में हो रहे हिंदुओं के उत्पीड़न को देखते हुए भारत बनाम बांग्लादेश सीरीज नहीं देखेंगे। उन्होंने ट्वीट किया, “शर्म की बात है BCCI! मैं, और मेरे जैसे लाखों आत्म-सम्मानित हिंदू, इस सीरीज को नहीं देखेंगे। और हमारे क्रिकेट जगत पर भी शर्म आती है कि वे BLM के लिए घुटने टेक सकते हैं, लेकिन अपने धर्म के लोगों के लिए आवाज नहीं उठा सकते, जो बांग्लादेश में मारे जा रहे हैं।”

राष्ट्रवादी ट्विटर हैंडल ‘Kreately’ ने लिखा, “आप शर्मसार हैं। उम्मीद है कि कोई आत्म-सम्मानित हिंदू टिकट नहीं खरीदेगा।”

लोकप्रिय यूजर कनिष्का दधीच ने हिंदू समुदाय के जल्द सबकुछ भूल जाने की प्रवृत्ति पर सवाल उठाते हुए लिखा, “भारत में क्रिकेट मैच के लिए एक आतंकवादी राष्ट्र ‘बांग्लादेश’ का स्वागत करना शर्मनाक है। हमने अपने इतिहास से क्या सीखा?”

मीडिया पोर्टल ‘हिंदू पोस्ट’ ने कहा, “जब तक हिंदू आत्म-सम्मान और रीढ़ की हड्डी नहीं विकसित करते, तब तक भारत की अर्थव्यवस्था का आकार बेमानी है। हम बांग्लादेशी हिंदुओं के उत्पीड़न और पीड़ा के साथ एकजुटता में बांग्लादेश के साथ क्रिकेट सीरीज भी रद्द नहीं कर सके? इतना ही नहीं – हम बांग्लादेशी टीम के लिए लाल कालीन बिछाते हैं, जिससे हिंदुओं के जख्मों पर नमक छिड़कते हैं!”

हिंदू पोस्ट ने भारतीय क्रिकेटरों की चुप्पी पर भी सवाल उठाए और कहा, “क्यों भारत का एक भी हिंदू क्रिकेटर हिंदुओं के समर्थन में आवाज नहीं उठाता? वास्तव में, केवल दानिश कनेरिया ने हिम्मत दिखाई और भारत से पाकिस्तान का दौरा न करने की स्पष्ट माँग की, खासकर पाकिस्तान में हिंदू अल्पसंख्यकों के भयानक हालातों को देखते हुए।”

‘द जयपुर डायलॉग्स’ ने लिखा, “हमें शर्म आनी चाहिए! बीसीसीआई को शर्म आनी चाहिए। हम उन लोगों का हमारे साथ क्रिकेट खेलने के लिए स्वागत कर रहे हैं, जो हमारे हिंदू भाइयों और बहनों को रोजाना मार रहे हैं। इनमें से 50% खिलाड़ी भारत में हिंदू नरसंहार के समर्थक हैं।”

बांग्लादेश में हिंदुओं पर हमलों की लंबी फेहरिस्त

बांग्लादेश में हालिया तख्तापलट के बाद से हिंदुओं पर हमले बढ़े हैं। बांग्लादेश की तत्कालीन प्रधानमंत्री शेख हसीना के पद से हटने के बाद से 205 से अधिक हिंदू मंदिरों, दुकानों और व्यवसायों पर हमले हो चुके हैं।

OpIndia पहले बता चुका है कि कैसे खुलना शहर के सोनाडांगा आवासीय क्षेत्र में ‘ईशनिंदा’ के आरोप में एक हिंदू लड़के उत्सव मंडल को मुस्लिम भीड़ द्वारा लगभग मार दिया गया था। इसी तरह, 60 हिंदू शिक्षकों, प्रोफेसरों और सरकारी अधिकारियों को मुस्लिम छात्रों द्वारा अपने पदों से इस्तीफा देने के लिए मजबूर किया गया।

मानवाधिकार कार्यकर्ता और निर्वासित बांग्लादेशी ब्लॉगर असद नूर ने हाल ही में खुलासा किया कि अल्पसंख्यक समुदाय को कैसे ‘जमात-ए-इस्लामी’ इस्लामी मजहब में शामिल होने के लिए मजबूर कर रहा है।

6 सितंबर को, चटगांव शहर के कादम मुबारक इलाके में भगवान गणेश की मूर्ति लेकर जा रहे हिंदू भक्तों के जुलूस पर हमला किया गया था।

इस पूरे घटनाक्रम ने बांग्लादेश में हिंदुओं के खिलाफ हो रहे हमलों पर भारतीय क्रिकेट बोर्ड के रवैये को लेकर गहरा सवाल खड़ा किया है। सोशल मीडिया पर गुस्से की लहर इस बात की ओर इशारा करती है कि BCCI और भारतीय क्रिकेटरों से अपेक्षा की जा रही है कि वे सिर्फ खेल तक सीमित न रहें, बल्कि ऐसे सामाजिक मुद्दों पर भी आवाज उठाएँ, जो उनके धर्म और देश से जुड़े हों।

मूल रूप से यह रिपोर्ट अंग्रेजी में प्रकाशित की गई है। मूल रिपोर्ट को पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें

’50 साल में बनी प्रतिष्ठा बर्बाद हो रही है’: सुप्रीम कोर्ट में RG Kar रेप-हत्या मामले की सुनवाई की लाइव स्ट्रीमिंग से भड़के कपिल सिब्बल, कहा – मिल रही धमकी

वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल RG Kar मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल में महिला डॉक्टर के बलात्कार और हत्या के मामले में पश्चिम बंगाल सरकार का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। उन्होंने आरजी कर अस्पताल बलात्कार और हत्या मामले में सुप्रीम कोर्ट की कार्यवाही की लाइव स्ट्रीमिंग का विरोध किया। सिब्बल ने कहा कि 5 दशकों में बनाई गई प्रतिष्ठा लाइव स्ट्रीमिंग से नष्ट हो जाएगी।

कपिल सिब्बल ने सुप्रीम कोर्ट से लाइव फीड को रोकने का आग्रह किया और शिकायत की कि इससे वकीलों की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुँचा है और उन्हें धमकियाँ मिल रही हैं।

समाजवादी पार्टी के समर्थन से राज्यसभा सांसद बने वकील ने कहा कि भले ही वे आरोपितों का प्रतिनिधित्व नहीं कर रहे हैं, फिर भी उन्हें धमकियाँ मिल रही हैं। उन्होंने कोर्ट को सूचित किया कि उनकी चेंबर में महिला वकीलों को बलात्कार की धमकियाँ दी गई हैं।

कपिल सिब्बल ने सुप्रीम कोर्ट से कहा, “ऐसे भावनात्मक प्रभाव वाले मामलों की लाइवस्ट्रीमिंग गंभीर परिणाम उत्पन्न कर सकती है। हमारे पास 50 साल की प्रतिष्ठा दाँव पर है! हम आरोपितों का प्रतिनिधित्व नहीं कर रहे हैं। मैंने कहाँ हँसी-मजाक किया? यह अन्याय है! ये धमकियाँ अब मेरी चेंबर की महिलाओं को प्रभावित कर रही हैं।”

इसके जवाब में, CJI डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली बेंच ने जनहित के पहलू को महत्व देते हुए कहा कि कोर्ट खुली तरीके से काम करता है। मुख्य न्यायाधीश ने आश्वस्त किया कि कोर्ट किसी भी धमकी का समाधान करेगा लेकिन मामले की लाइवस्ट्रीमिंग को बंद करने से इनकार कर दिया।

इससे पहले, सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई को कोलकाता बलात्कार-मर्डर मामले में एक नई रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश दिया, क्योंकि एजेंसी ने फॉरेंसिक रिपोर्ट पर संदेह जताया था। CBI ने सुप्रीम कोर्ट को जाँच की प्रगति पर एक गोपनीय अपडेट प्रदान किया। बलात्कार और हत्या की जाँच के अलावा, सीबीआई RG Kar के पूर्व प्रिंसिपल संदीप घोष और अन्य लोगों के खिलाफ अपराध और अस्पताल में उनके कार्यकाल के दौरान वित्तीय अनियमितताओं की जाँच भी कर रही है।

पिछली सुनवाई में CBI का प्रतिनिधित्व कर रहे सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने AIIMS दिल्ली और अन्य फॉरेंसिक लैब्स को सैंपल भेजने की योजना का उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि सैंपल की चेन ऑफ कस्टडी एक महत्वपूर्ण प्रश्न बन गई है।

उन्होंने कहा था, “हमें एक फॉरेंसिक रिपोर्ट मिली है, और यह स्वीकार किया गया है कि जब लड़की को 9:30 AM पर पाया गया, तो उसकी जींस और अंडरगामेंट्स पास में पड़ी थी। वह सेमी-न्यूड थी और उसके शरीर पर जख्म के कई निशान दिख रहे थे। सैंपल लिए गए और CFSL पश्चिम बंगाल को भेजे गए, लेकिन अंततः सीबीआई को इन्हें एम्स और अन्य लैब्स में भेजने के लिए मजबूर होना पड़ा।”

CBI ने कोलकाता के सेंट्रल फॉरेंसिक साइंस लैब (CFSL) रिपोर्ट के निष्कर्षों के बारे में भी बताया किया लेकिन फ़िलहाल इसकी कोई डिटेल नहीं दी। पहले की सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने पोस्टमार्टम चालान की अनुपस्थिति पर सवाल उठाया था।

सीबीआई की नवीनतम रिपोर्ट की समीक्षा के बाद कोर्ट ने चल रही जाँच पर टिप्पणी करने से परहेज किया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि विवरण प्रकट करने से प्रक्रिया में बाधा उत्पन्न हो सकती है। कोर्ट ने पुष्टि की कि सीबीआई के प्रयास सच्चाई को उजागर करने के लिए हैं।

शराब घोटाले में जिसका ED के सामने लिया नाम, उसे ही बना दिया दिल्ली का CM: वामपंथन आतिशी के माता-पिता रहे हैं आतंकी अफजल गुरु के ‘फैन’

दिल्ली में बदलते राजनीतिक घटनाक्रम का अंत हो गया है। मंगलवार (17 सितम्बर, 2024) को AAP विधायक आतिशी को दिल्ली का नया मुख्यमंत्री चुना गया है। यह फैसला दिल्ली CM अरविन्द केजरीवाल के इस्तीफे के ऐलान के बाद सामने आया है। आतिशी के नाम का ऐलान AAP सरकार में मंत्री गोपाल राय ने किया है।

मंगलवार को गोपाल राय ने बताया, “विधायक दल की बैठक में सर्वसम्मति से यह निर्णय हुआ है कि जब तक अगला चुनाव नहीं होता तब तक आतिशी जी को दिल्ली के मुख्यमंत्री की जिम्मेदारी निभानी होगी।” गोपाल राय ने यह भी कहा कि वह दिल्ली में अक्टूबर-नवम्बर तक चुनाव की माँग कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि जब तक अगले चुनाव में AAP को प्रचंड बहुमत नहीं मिलता और केजरीवाल CM नहीं बनते तब तक आतिशी मुख्यमंत्री बनी रहेंगी।

आतिशी के दिल्ली CM बनने के बाद उनकी ही पार्टी से काफी कड़ी प्रतिक्रिया आई है। AAP की राज्यसभा सांसद स्वाति मालीवाल ने इसे दिल्ली के लिए दुखद बताया है। उन्होंने एक्स (पहले ट्विटर) पर लिखा, “दिल्ली के लिए आज बहुत दुखद दिन है। आज दिल्ली की मुख्यमंत्री एक ऐसी महिला को बनाया जा रहा है जिनके परिवार ने आतंकवादी अफ़ज़ल गुरु को फाँसी से बचाने की लंबी लड़ाई लड़ी। उनके माता पिता ने आतंकी अफ़ज़ल गुरु को बचाने के लिए माननीय राष्ट्रपति को दया याचिकाऐं लिखी।

स्वाति मालीवाल ने आगे लिखा, “उनके हिसाब से अफ़ज़ल गुरु निर्दोष था और उसको राजनीतिक साज़िश के तहत फँसाया गया था। वैसे तो आतिशी मार्लेना सिर्फ़ ‘Dummy CM’ है, फिर भी ये मुद्दा देश की सुरक्षा से जुड़ा हुआ है। भगवान दिल्ली की रक्षा करे!”

आतिशी अभी तक केजरीवाल सरकार में शिक्षा, महिला और बाल कल्याण, PWD, टूरिज्म समेत पाँच मंत्रालय संभालती थीं। वह 2020 में पहली बार विधायक बनी थीं। उनके माता-पिता दोनों कम्युनिस्ट हैं। आतिशी CM केजरीवाल के गिरफ्तार होने के बाद फ्रंट पर थीं। अब उन्हें दिल्ली का CM अरविन्द केजरीवाल ने बनाया है। हालाँकि, ऐसा नहीं है कि आतिशी का विवादों से कोई लेनादेना ना हो। उन पर शराब घोटाले में शामिल होने से लेकर दिल्ली की शिक्षा व्यवस्था बर्बाद करने और विदेशी धरती पर भारत को बदनाम करने के आरोप लगे हैं।

शराब घोटाले में केजरीवाल ने ही लिया नाम

दिल्ली शराब घोटाला मामले में प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने अप्रैल, 2024 में कोर्ट को बताया था कि CM केजरीवाल ने आतिशी का नाम लिया है। ED ने बताया था कि मामले में पहले आरोपित और बाद में सरकारी गवाह बना विजय नायर केजरीवाल नहीं बल्कि आतिशी और सौरभ भारद्वाज को रिपोर्ट करता था। नायर पर इस मामले में पैसे की लेनदेन मुख्य तौर पर शामिल होने के आरोप हैं। आतिशी ने खुद एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा था कि ED उन्हें और बाकी तीन लोगों को गिरफ्तार करना चाहती है।

घोटाले के दौरान गोवा की इंचार्ज थीं आतिशी: रिपोर्ट

टाइम्स नाउ की एक रिपोर्ट में यह भी बताया गया था आतिशी उस दौरान गोवा की आम आदमी पार्टी प्रभारी थीं जब यहाँ शराब घोटाले से उगाही किया गया पैसा उपयोग में लाया गया था। टाइम्स नाउ ने यह दावा ED की कार्रवाई के आधार पर किया था। टाइम्स नाउ को मिले पत्र के अनुसार, 13 फरवरी 2022 को आतिशी मार्लेना ने चुनाव आयोग को एक पत्र लिखा था, जिसमें उन्होंने खुद को गोवा चुनावों के लिए पार्टी का प्रभारी बताया था।

गोवा में चुनाव 14 फरवरी 2022 को समाप्त हो गए थे, इसका मतलब है कि तब भी वही प्रभारी थीं। टाइम्स नाउ के पत्रकार प्रियांक त्रिपाठी ने कहा था कि अगर अरविंद केजरीवाल को दक्षिण भारतीय शराब लॉबी से रिश्वत की रकम लेने और उसका दुरुपयोग करने के आरोप में गिरफ्तार किया जा सकता है, तो निश्चित रूप से आतिशी मार्लेना के लिए मुश्किलें बढ़ रही हैं।

विदेशों में भारत की छवि की धूमिल

आतिशी पर शराब घोटाले में शामिल होने के ही नहीं बल्कि यह भी तोहमत है कि उन्होंने विदेशी धरती पर भारत की छवि को धूमिल किया। आतिशी कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी द्वारा भारत विरोधी ‘100 पर भारत: टुवर्ड्स बीइंग ए ग्लोबल लीडर’ आयोजन में गुरुवार (15 जून 2023) को शामिल हुईं थी।

यहाँ उन्होंने कहा था, “हमें अक्सर बताया जाता है कि भारत की जीडीपी अब 3 ट्रिलियन डॉलर के आँकड़े को पार कर गई है। हमें बताया गया है कि भारत सबसे तेज़ G20 अर्थव्यवस्था है और ऐसी कई अन्य जानकारी दी गईं। हालाँकि, वास्तविकता उससे कहीं अधिक चिंताजनक और कमतर है।”

उन्होंने आगे कहा था, “मुझे लगता है कि एक बेहतर संकेतक, जो वास्तव में आपको देश की स्थिति के बारे में बताता है, वह मानव विकास सूचकांक है… कुछ संकेतक हैं जिनमें 190 देश भाग लेते हैं। भारत 191 में से 132वें स्थान पर है। यह 75वें साल का भारत है।” उन्होंने यहाँ प्रोपेगेंडा के आधार पर बनाई गई ग्लोबल हंगर इंडेक्स का जिक्र भी किया था।

दिल्ली की शिक्षा को बर्बाद करने के भी आरोप

आतिशी दिल्ली सरकार में शिक्षा मंत्री और विधायक बनने से पहले सलाहकार थीं। वह सलाहकार के तौर पर शिक्षा विभाग ही देखती थीं। उनको लेकर यह प्रोपेगेंडा चलाया गया कि उनके कार्यकाल में दिल्ली में शिक्षा में क्रांतिकारी बदलाव हुए हैं। सच्चाई इससे कोसों दूर है।

दक्षिण दिल्ली नगर निगम की शिक्षा समिति के की सदस्य नंदिनी शर्मा के अनुसार, “सरकारी स्कूलों के आधुनिकीकरण के बारे में तमाम शोर-शराबे के बावजूद मनीष सिसोदिया और उनकी सलाहकार आतिशी मार्लेना की AAP सरकार ने ना केवल दिल्ली में सरकारी शिक्षा व्यवस्था को बदलने का मौका गंवा दिया, बल्कि इन दोनों ने राष्ट्रीय राजधानी में पहले से ही बदहाल शिक्षा व्यवस्था को और भी बदतर बना दिया।”

इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट में बताया गया था कि AAP के ‘मॉडल स्कूल’ प्रोजेक्ट में गंभीर अनियमितताओं के कारण 250 करोड़ रुपये बरबाद हो गए। आप ने 54 सरकारी स्कूलों को मॉडल स्कूल में बदलने की शुरुआत की थी और इन स्कूलों के सौंदर्यीकरण का काम दिल्ली पर्यटन एवं परिवहन विकास निगम (DTDC) को सौंपा था। हालाँकि, महज 3 साल बाद ही हाल ही में बनकर तैयार हुए कुछ स्कूलों की दीवारों में दरारें आ गईं। आतिशी के कार्यकाल में दिल्ली किताबों और शिक्षकों की भी कमी हो गई थी।

माता-पिता ने किया था अफजल गुरु को बचाने का प्रयास

दिलचस्प बात यह है कि आतिशी के माता-पिता विजय कुमार सिंह और तृप्ता वाही कट्टर कम्युनिस्ट हैं। आतिशी के माता-पिता उन ‘प्रतिष्ठित’ हस्तियों के समूह से हैं, जिन्होंने जैश-ए-मोहम्मद के आतंकवादी अफजल गुरु की मौत की सजा के खिलाफ भारत के राष्ट्रपति को दया याचिका लिखी थी। तृप्ता वाही भारत विरोधी और आतंकवादियों के हमदर्द के कुख्यात चेहरों में से एक एसएआर गिलानी से भी जुड़ी हुई हैं। हालाँकि, आतिशी ने कहा था कि वह अपने माँ-बाप की राजनीति के लिए जिम्मेदार नहीं हैं।