हाल ही में पांच राज्यों में हुए चुनावों में नोटा ने अहम किरदार अदा किया है। कल आये राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, तेलंगाना और मिजोरम के चुनाव परिणामों को देख कर ये कहा जा सकता है कि प्रमुख पार्टियों की हार-जीत में नोटा ने मुख्य भूमिका निभाई है। अगर पाँचों राज्यों के आंकड़ों को मिला कर देखें तो कुल पंद्रह लाख लोगों ने किसी उम्मीदवार को वोट देने कि बजाय नोटा यानी “उपर्युक्त में से कोई नहीं” का विकल्प चुनना ज्यादा बेहतर समझा। पाँचों राज्यों में नोटा का वोट शेयर 6.3% के आसपास रहा।
सबसे पहले बात मध्य प्रदेश की जहां भाजपा और कांग्रेस में दिन भर कांटे की टक्कर रही। यहाँ नोटा को कुल 1.4 प्रतिशत मत पड़े. ये सपा को पड़े 1.2% और आम आदमी पार्टी को पड़े 0.7% मतों से ज्यादा है। यानी कुल 542000 से ज्यादा लोगों ने यहाँ नोटा का विकल्प दबाया। आंकड़ों से साफ़ है कि मध्य प्रदेश में नोटा को अरविन्द केजरीवाल की आप से दोगुने मत प्राप्त हुए। 2013 में हुए पीछे चुनाव में पांच ऐसे बड़े नेता थे जिनकी हार-जीत का अंतर नोटा वोटों से कम था। इस बार ऐसे नेताओं की संख्या बढ़ कर नौ हो गई है। कुल मिलाकर अठारह सीटों पर नोटा ने इस बार अपना असर दिखा कर चौंकाया है।
वहीं छत्तीसगढ़ एकलौता ऐसा राज्य रहा जहां कांग्रेस ने अपने दम पर बहुमत हासिल किया। यहाँ करीब दो प्रतिशत लोगों ने नोटा का विकल्प चुना। राज्य में नोटा दबाने वाले लोगों की संख्या दो लाख अस्सी हजार के पार रही। वहीं आप को कुल 0.9% मत मिले। इस हिसाब से देखें तो आप से दोगुने से भी ज्यादा मत नोटा को प्राप्त हुए। सपा यहाँ भी नोटा से काफी पीछे रहीं और उसे नोट से दस गुने कम मत मिले। छत्तीसगढ़ में सपा का वोट शेयर 0.2% रहा।
अब राजस्थान के आंकड़ों पर नजर डालते हैं। यहाँ कांग्रेस और भाजपा के बीच मतों का अंतर 0.5% रहा। इसका मतलब यह कि कांग्रेस को भाजपा से भले ही 26 सीटें ज्यादा मिली लेकिन पार्टी वोट शेयर के मामले में भाजपा से आधे प्रतिशत ज्यादा वोट ही बटोर पाई। यहाँ नोटा को 1.3% वोट मिले यानी 467000 से ज्यादा मतदाताओं ने नोटा दबाया। यहाँ भी नोटा को मिले वोटों की संख्या आम आदमी पार्टी को मिले मतों से तीन गुने से भी अधिक रही। आप को महज 0.4% मतों से संतोष करना पड़ा। सपा 0.2% वोट शेयर के साथ सपा छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश की तरह राजस्थान में भी नोटा से काफी पीछे रही।
दक्षिण भारतीय राज्य तेलंगाना में केसीआर की पार्टी टीआरएस ने एकतरफा जीत दर्ज किया। यहाँ नोटा को हिंदी बेल्ट के तीनो राज्यों से कम यानी 1.1% मत पड़े। सीपीआई औए सीपीएम- ये दोनों ही वामपंथी वामपंथी दल नोटा से काफी पीछे रहे। हलांकि तेलंगाना के नतीजो को देख कर लगता है कि यहाँ पर नोटा का कोई ख़ास रोल नहीं रहा।
अब बात करते हैं उत्तर-पूर्वी राज्य मिजोरम की। यहाँ एमएनएफ ने कांग्रेस को सत्ता से बेदखल कर दिया जिस से अब उत्तर-पूर्व के आठो राज्यों में भाजपा या राजग के घटक दलों की ही सरकार है। यहाँ नोटा को पांचो राज्यों में सबसे कम वोट पड़े। यहाँ एमएनएफ और कांग्रेस के बीच मतों का अंतर लगभग साढ़े सात प्रतिशत के आसपास रहा जबकि नोटा को सिर्फ आधे प्रतिशत मत ही मिले।
दिल्ली के विधायक और आप सरकार में मंत्री रहे कपिल मिश्रा ने इन चुनावों में आम आदमी पार्टी का प्रदर्शन नोटा से भी ख़राब रहने को लेकर केजरीवाल पर तंज कसा। उन्होंने ट्वीट कर मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में आप के मुख्यमंत्री उम्मीदवारों तक के भी जमानत जब्त होने को लेकर केजरीवाल को आड़े हाथों लिया।
AAP ने छत्तीसगढ़ और MP में CM उम्मीदवार घोषित किये थे – सबकी जमानत ज़ब्त
जहां जहां केजरीवाल ने टिकट बेचते वक्त रैली की थी – सब जगह जमानत ज़ब्त
NOTA के आधे से भी आधे वोट
दिल्ली में केजरीवाल का काम दिखाकर वोट मांगे थे
अखबारों में दिल्ली के कामों के विज्ञापन छपवाए थे pic.twitter.com/1VVbW0X0FI
— Kapil Mishra (@KapilMishra_IND) December 11, 2018
कुल मिलाकर देखें तो कल आये पांच राज्यों के चुनावी नतीजों से यही पता चलता है कि कम से कम राजस्थान और मध्य प्रदेश में नोटा के कारण कई उम्मीदवारों की हार-जीत पर असर पड़ा है। बता दें कि चुनावों से पहले संघ प्रमुख मोहन भागवत ने नोटा को लेकर लोगों को चेताया था। उन्होंने कहा था “नोटा का इस्तेमाल बिल्कुल नहीं होना चाहिए। हमें जो सबसे बेहतर उपलब्ध हो उसे ही चुनना चाहिए। नोटा दबाने से तो कई बार खराब उम्मीदवारों को लाभ हो जाता है।”
सभी आंकड़ों का सोर्स: चुनाव आयोग की आधिकारिक वेबसाइट