इमरान खान ने किसी का नाम नहीं तो लिया, लेकिन साफ है कि वे किसकी तरफ इशारा कर रहे थे। 2013 में तत्कालीन केंद्रीय गृह मंत्री सुशील कुमार शिंदे ने BJP और RSS पर हिंदू आतंकवाद को बढ़ावा देने का आरोप लगाया था। पी चिदंबरम ने भी भगवा आतंकवाद पर विवादित बयान दिए थे। ये दोनों UPA सरकार में गृह मंत्री रह चुके हैं।
"सरकार पारम्परिक तरीके से माता त्रिपुरेश्वरी मंदिर में पूजा करती आ रही है। पशु बलि का अनुसरण स्वतंत्रता से पहले, महाराजा के शासनकाल से चली आ रही है। घरेलू तौर पर दी गई पशु बलि पूजा करने का एक अभिन्न अंग रहा है, तो इसे रोका कैसे जा सकता है?"
न्यूयॉर्क टाइम्स ने अपने विज्ञापन में लिखा कि कश्मीर में अब तक सुरक्षाबलों के हाथों 60000 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है, जबकि दस लाख से ज्यादा लोग घायल हो चुके हैं। पत्रकारिता की खातिर न्यूयॉर्क टाइम्स को ये बताना चाहिए कि आखिर जो आँकड़े छापे हैं, वो कहाँ से आए?
यह प्रश्नवाचक चिह्न रह जाता है कि भगत सिंह का नव-जागृत हिन्दू धर्म के साथ कैसा रिश्ता होता। शायद वे तब भी नास्तिक रहते, लेकिन ऐसा भी हो सकता है कि न भी रहते!
ईशा फाउंडेशन ने यह भी बताया कि सद्गुरु को United Nations Convention to Combat Desertification (UNCCD) के COP14 शिखर सम्मेलन में Cauvery Calling अभियान के बारे में बोलने के लिए निमंत्रित किया गया था। वे भारत में इस अभियान की सफलता से प्रभावित हो इसे दुनिया-भर में करने के बारे में जानना चाहते थे।
रतलाम का सेंट जोसेफ कॉन्वेंट स्कूल। यहीं 10वीं में पढ़ती है - गायत्री। एक दिन गायत्री का रेप होता है और रतलाम सुलग उठता है, प्रशासन हिल जाता है। वो इसलिए क्योंकि गायत्री का जिस जुबैर खान ने रेप किया, वो उसका क्लासमेट है। क्योंकि इस रेप ने स्कूली छात्र-छात्राओं के भरोसे को तोड़ा है।
एक ही तरह के पोस्ट पर दो नीति अपनाने का अर्थ यह हुआ कि किसी खास संस्था पर इनका काँटा ज्यादा संवेदनशील हो जाता है, और वो भी शायद तब जब किसी खास पहचान वाले लोग एक साथ ऐसी खबरों को रिपोर्ट करते हैं।
कॉन्ग्रेस नेता मानक अग्रवाल के इस बयान को घटिया करार देते हुए यूजर्स सवाल कर रहे हैं कि यदि संघ के लोगों को शादी करनी चाहिए तो फिर कॉन्ग्रेस के राहुल गाँधी कौन सी दुल्हनिया का इंतजार कर रहे हैं?
"दुनिया को इस्लामी इतिहास से अवगत कराने के लिए टीवी चैनल पर मुस्लिमों से जुड़े कार्यक्रम और फ़िल्में दिखाई जाएँगी। मुस्लिमों के ख़िलाफ़ ग़लतफ़हमी को दूर किया जाएगा, ईशनिंदा से जुड़ी बातों को सही अर्थों में प्रस्तुत किया जाएगा।"
इस मामले में मीडियाकर्मी हनी ट्रैप रैकेट के शिकार नहीं थे, बल्कि दलाल थे। मीडियाकर्मियों ने कथित तौर पर पीड़ित नौकरशाहों, मंत्रियों और रैकेट की सरगना श्वेता जैन के बीच सौदा करवाने में दलाल के तौर पर मदद की थी।