झुनझुनवाला ने कहा कि मोदी के वोटर जो चाहते थे, वह सब उन्होंने किया। उनके वोटर 370 हटाना चाहते थे। उनके वोटर राम मन्दिर चाहते हैं। उन्होंने इन वादों पर काम किया है।" झुनझुनवाला ने मोदी सरकार की जनकल्याणकारी योजनाओं का भी ज़िक्र किया।
मात्रा बड़ी महत्वपूर्ण चीज़ होती है। सिर्फ खाने में ही नहीं, भाषा में भी इसका अपना महत्व है। इसके होने या न होने से कई बार शब्दों के अर्थ बदल जाते हैं। हिन्दी भाषा में मात्रा उच्चारण के हिसाब से लगती है- जो आप बोलते हैं, पक्का-पक्का वही लिखा जाता है।
28 मार्च 2019 को जारी इस नोटिस से पता चलता है कि 14 संदिग्ध कंपनियों और खातों में से एक का लाभार्थी आयकर विभाग अंबानी परिवार के सदस्यों को मानता है। हालाँकि कंपनी के प्रवक्ता ने आरोपों को खारिज करते हुए नोटिस मिलने से इनकार किया है।
वीडियो में अभिसार शर्मा सरकार के कथित 'दोहरे मापदंड को एक्सपोज' करते हुए नजर आ रहे हैं। उनका कहना है कि एक ओर यह सरकार गाय की बात करती है जबकि दूसरी ओर बीफ एक्सपोर्ट का यह आँकड़ा हमारे सामने है। इसके बाद अभिसार शर्मा एक सूची के जरिए ये बताते नजर आ रहे हैं कि बीफ एक्सपोर्ट में भारत का विश्व में दूसरा स्थान है।
सलमान फ्लाइट से मेट्रो शहरों में जाकर स्नैंचिंग की घटनाओं को अंजाम देता था और अपनी गर्लफ्रेंड के लिए कुछ भी कर गुजरने को तैयार रहता था। उसके ख़िलाफ़ दिल्ली में 29 केस, यूपी में 1 केस और हैदराबाद में 4 मामले चल रहे हैं।
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने रशिया टुडे को दिए इंटरव्यू में स्वीकारा है कि 1980 में अफगानिस्तान में जिहाद की आग फ़ैलाने वाले मुजाहिदीनों को पैसा भले CIA से मिला हो, लेकिन उन्हें खाद-पानी देकर सींचने का काम इस्लामाबाद ने ही किया था।
केंद्रीय लोक निर्माण विभाग ने राष्ट्रपति भवन से इंडिया गेट तक के 2.5 किलोमीटर लम्बे राजपथ के दोनों ओर के 4 वर्ग किलोमीटर में आमूलचूल बदलाव लाने के लिए निविदा आमंत्रित की है।
"अगर इमरान खान को समर्थन मिला होता तो अब तक ये सबको पता चल चुका होता, क्योंकि वो UNHRC की कोई गुप्त बैठक नहीं थी। पाकिस्तान का समर्थन करने वाले देशों के जॉइंट स्टेटमेंट की जो सूची वो जारी करने वाले हैं, वैसी कोई सूची अभी तक हमें नहीं मिली है।"
उन्होंने इस्लाम के नाम पाकिस्तान का समर्थन किया। जिन्ना पर भरोसा किया। कुरान की कसम खाने वाले सैन्य कमांडर पर यकीन किया। बदले में मिला नरसंहार, जो जारी है 72 साल से। अभिव्यक्ति की आजादी, मानवाधिकारों और मजहब के पैरोकारों के होठ फिर भी सिले।
वकील रहे पी चिदंबरम का यह मामला भारतीय कानून के इतिहास में संभवत चुनिंदा मामलों में से एक होगा, जहाँ खुद आरोपित ही न्यायिक हिरासत के बजाय संस्थागत हिरासत (CBI/ED) में जाना चाहते हैं। जानकारों की मानें तो तिहाड़ जेल में चिदंबरम को वो सुख-सुविधाएँ नहीं मिल पा रही हैं, जो...