सिंघु बॉर्डर पर किसान क्यों हैं अभी भी? एक भी अरेस्ट क्यों नहीं? मीटिंग तो एक रूटीन प्रक्रिया है, लेकिन असामान्य परिस्थिति में रूटीन से बाहर क्यों नहीं है सरकार? टिकैत, योगेन्द्र यादव समेत वो चालीस किसान नेता क्यों नहीं हैं कस्टडी में? सरकार जवाबदेही तक क्यों नहीं तय कर पाई है?
शायद अब सुप्रीम कोर्ट को लगेगा कि औरों के भी संवैधानिक अधिकार हैं, लिब्रांडू मीडिया गिरोह इसे सफल आंदोलन करार देगा, जबकि पुलिस पर तलवारों से हमले हुए हैं!
राम मंदिर की अहमियत नए मंदिर से नहीं, बल्कि पाँच सौ साल पहले टूटे मंदिर से समझिए, जब हमारे पूर्वज ग्लानि से डूबे होंगे। आपका सहयोग, उनको तर्पण देने जैसा है।
न सिर्फ अराजकतावादी लोगों को अब ये कहने का मौका मिल गया है कि संसद द्वारा पारित कानून गलत है, बल्कि आगे अब किसी के पास 2000 की भीड़ हो तो वो सरकारों को झुका सकते हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने संसद से बनाए कानून पर रोक लगाने की बात कही है, ऐसे में यह देखना है कि क्या यह न्यायपालिका द्वारा विधायिका के कार्यक्षेत्र का अतिक्रमण नहीं है?