Tuesday, October 8, 2024
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बस्तर के राजा प्रवीर चंद्र भंजदेव आदिवासियों के भगवान, वनवासियों के हक में जिन्होंने खाई पुलिस की गोली: पढ़ें कहानी, देखें Exclusive फिल्म

"यदि पुलिस की गोलीबारी में राजा प्रवीर चंद्र की मौत न हुई होती तो बस्तर में नक्सली संघर्ष की शुरुआत भी नहीं होती" - बस्तर की आदिवासी जनता अपने राजा को याद करते हुए बताती है कि वो आज के नेताओं से अधिक समझते थे अपनी जनता को।

भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र है, लेकिन यहाँ के कुछ राजा-महाराजाओं का भी जनता से ऐसा जुड़ाव रहा कि आज भी लोग उन्हें याद करते हैं। आज हम हम बात कर रहे हैं छत्तीसगढ़ के बस्तर जिले के लोगों के बारे में, जहाँ के लोग आज भी अपने राजा प्रवीर चंद्र भंज देव को भूले नहीं है और उन्हें भगवान के समान पूजते भी हैं।

बस्तर के राजा रहे प्रवीर चंद्र भंज देव पर विवेक कुमार द्वारा निमित-निर्देशित एक शॉर्ट फिल्म भी ऑपइंडिया के यूट्यूब चैनल पर रिलीज हुई है, जिसे देखने के बाद आपको पता चलेगा कि उनके बारे में लोग आज भी क्या-क्या सोचते हैं और उन्हें क्यों महान माना जाता है। इस फिल्म में उनके बारे में आपको और भी बहुत कुछ जानने को मिलेगा। यह एक शॉर्ट फिल्म हैं, जिसका नाम ‘आइ प्रवीर द आदिवासी गॉड (I Pravir the Adivasi God)’ है। इस फिल्म को अब आप ऑपइंडिया पर एक्सक्लूसिव देख सकते हैं।

राजा प्रवीर चंद्र भंज देव की हत्या साल 1966 में कर दी गई थी। तब वो अपनी प्रजा के लिए तत्कालीन सरकार से लड़ रहे थे। बस्तर के आदिवासी लोगों के लिए वो आज भी भगवान हैं और उनको लोग इसी रूप में पूजते भी हैं।

इस फिल्म में बस्तर की आदिवासी जनता अपने राजा प्रवीर चंद्र भंजदेव को याद करते हुए बताती है कि आज बेशक भारत में लोकतांत्रिक व्यवस्था है, लेकिन राजा अपने लोगों और उनकी आकांक्षाओं को आज के नेताओं से अधिक समझते थे। आदिवासी समाज के लोगों ने कहा कि इस लोकतांत्रिक व्यवस्था में जरूर विकास हुआ होगा, लेकिन इस विकास का जितना लाभ आदिवासियों को होना चाहिए उतना नहीं हो सका।

लोगों का यहाँ तक कहना है कि राजा आदिवासियों के हितों और जरूरतों के बारे में ज्यादा सोचते और समझते थे। आज भी बस्तर के लोगों के घरों में राजा प्रवीर चंद्र भंज देव फोटो लगी हुई मिलती है। फिल्म में आप देख सकते हैं कि कैसे आदिवासी समाज के स्थानीय व्यक्ति ने बताया कि यदि पुलिस की गोलीबारी में राजा प्रवीर चंद्र की मौत न हुई होती तो बस्तर में नक्सली संघर्ष की शुरुआत भी नहीं होती।

एक अन्य आदिवासी समाज के व्यक्ति ने बताया कि उनकी गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। उनका पार्थिव शरीर तक भी यहाँ के लोगों को नहीं मिला था, सिर्फ उनके कपड़े मिले थे। बाद में उसी वस्त्र को रख कर उनकी समाधि बनाई गई। एक व्यक्ति ने बताया कि लोहा खदान के संघर्ष के कारण उनकी हत्या की गई थी। राजा का मानना था कि बस्तर के प्राकृतिक संसाधनों पर स्थानीय आदिवासियों का सबसे ज्यादा हक बनता है।

राजा प्रवीर चंद्र भंज देव अविभाजित मध्य प्रदेश में जगदलपुर विधानसभा सीट से विधायक भी थे। वे आदिवासियों के हितों को लेकर मुखर भी थे और उनका यह मानना था कि जिले के प्राकृतिक संसाधनों पर स्थानीय आदिवासियों का हक़ सबसे अधिक है। आदिवासियों के इन्हीं हितों के लिए वे तत्कालीन कॉन्ग्रेस सरकार के विरुद्ध खड़े हुए थे। तत्कालीन सरकार के साथ अपनी लड़ाई के दौरान ही 25 मार्च 1966 की रात पुलिस फायरिंग में उनके ही महल में उनकी मृत्य हो गई थी।

इस फिल्म के शुरुआती दृश्यों में बस्तर जिले के शानदार प्राकृतिक नजारों को दिखाया गया है, जिसमें स्वच्छ नदी और झरनों के रूप में आप बस्तर की खूबसूरती का आनंद लेते हुए इतिहास को देख-समझ सकते हैं। फिल्म में बस्तर के आदिवासी संस्कृति को भी दिखाया गया है, जिसमें नृत्य और अन्य कला प्रदर्शन को भी शामिल किया गया है।

हालाँकि, फिल्म में ये कड़वी सच्चाई भी है कि कुछ लोग ऐसे भी हैं, जो आज राजा को पूरी तरह से भूल गए हैं और उनकी तस्वीर तक को नहीं पहचानते। इसके विपरीत कुछ स्थानीय लोगों का तो यहाँ तक कहना है कि आज बस्तर जो कुछ भी है, वो राजा की ही बदौलत है। लोगों का यह भी कहना है कि राजा प्रवीर चंद्र भंज देव ने हमेशा लोगों को दिया ही है। फिल्म में बस्तर के आधुनिक विकास कार्यों के बारे में भी दिखाया गया है।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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