20 दिसंबर 2018 को, भारत सरकार ने भारत के राजपत्र ( Gazatte of India) में एक अधिसूचना जारी की थी, जो विभिन्न जाँच एजेंसियों को किसी भी कंप्यूटर डिवाइस पर स्नूप यानि जासूसी करने की शक्तियाँ प्रदान करने वाली लगती थी।
गृह मंत्रालय द्वारा जारी आदेश सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 के तहत किसी भी कंप्यूटर संसाधन में उत्पन्न, प्रेषित, प्राप्त या संग्रहीत किसी भी सूचना को इंटरसेप्ट करने, मॉनिटर करने और डिक्रिप्ट करने के लिए दस सूचीबद्ध सुरक्षा और ख़ुफ़िया एजेंसियों को अधिकार प्रदान करता है।
ज़ाहिर सी बात है कि यह मुद्दा सोशल मीडिया और यहाँ तक कि संसद में बड़े पैमाने पर नाराज़गी का कारण बना। सीधे तौर पर इसे मोदी सरकार द्वारा नागरिकों की निजता का उल्लंघन करार दिया गया।
कॉन्ग्रेस पार्टी ने आरोप लगाया कि पुलिस को, किसी भी फोन को टेप करने और किसी भी कंप्यूटर संचार को बाधित करने के लिए व्यापक शक्ति दी गई। उन्होंने कहा कि इस आदेश से भारत को पुलिस राज्य में बदल दिया जाएगा।
यदि हम गृह मंत्रालय के आदेश को ध्यान से देखें, तो हम यह जान पाएंगे कि इन आरोपों का कोई आधार नहीं है। सरकार ने कोई नया आदेश जारी नहीं किया है, बल्कि उन्होंने एक आदेश को दोहराया था जो पहले से ही क़ानून की किताबों में मौजूद था।
सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 के सेक्शन 69 की सब-सेक्शन (1) और सूचना प्रौद्योगिकी (प्रक्रिया और सुरक्षा, अवरोधन, निगरानी और सूचना के डिक्रिप्शन) के नियम, 2009 के तहत जारी किया गया।
यह नोट करने वाली महत्वपूर्ण बात है कि सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 संसद में किसी भी चर्चा या विरोध के बिना पारित किया गया था। नीचे दी गई इमेज पर अगर आप क्लिक करेंगे तो आपको उक्त अधिनियम के सेक्शन 69 के बारे में जान सकेंगे:
सेक्शन 69 के सब-सेक्शन (1) इस बात को स्पष्ट करती है कि अधिकारियों को किसी भी कंप्यूटर डिवाइस के माध्यम से प्रेषित किसी भी सूचना को केवल देश की अखंडता और सुरक्षा के लिए ख़तरा, क़ानून और व्यवस्था के लिए ख़तरा और किसी भी संज्ञेय अपराध के लिए ख़तरा होने की अनुमति दी जाएगी। यह सभी नागरिकों पर सामान्य जासूसी नहीं है, जिसपर कॉन्ग्रेस पार्टी और अन्य पार्टियों ने बेवजह के आरोप लगाए।
राज्यसभा में बोलते हुए, वित्तमंत्री अरुण जेटली ने यह भी कहा था कि यह शक्ति केवल विशेष मामलों के लिए दी गई है, जो आईटी अधिनियम में उल्लेखित है। यह भी नोट करने वाली बात है कि यह आदेश आईटी एक्ट के तहत जाँच एजेंसियों की शक्तियों को स्पष्ट करता है, यह अधिनियम में संशोधन नहीं करता। इसका अर्थ यह है कि सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम के सेक्शन 69 (1) के प्रावधान लागू रहेंगे।
अब यदि हम तत्कालीन कॉन्ग्रेस सरकार द्वारा जारी सूचना प्रौद्योगिकी नियम, 2009 देखें, जिसे गृह मंत्रालय के आदेश में भी उल्लेख किया गया, तो हम समझ सकेंगे कि वर्तमान आदेश में कोई नई बात नहीं है। आदेश में प्रावधान पिछले एक दशक से पहले से मौजूद है। सेक्शन 4 (1) का नियम के अनुसार:
(1) सक्षम अधिकारी किसी भी कंप्यूटर संसाधन में उत्पन्न, प्रसारित, प्राप्त या संग्रहीत ट्रैफ़िक डेटा या सूचना की निग़रानी और संग्रह के लिए सरकार की किसी भी एजेंसी को अधिकृत कर सकता है।
आपको बता दें कि आदेश में उल्लेखित 10 एजेंसियाँ सामान्य एजेंसियाँ हैं जो देश में जाँच करती हैं। अब सरकार ने यह निर्दिष्ट करके नियम को स्पष्ट कर दिया है कि कौन-सी एजेंसियाँ राष्ट्रीय सुरक्षा और क़ानून व्यवस्था के लिए ख़तरों की विशिष्ट घटनाओं पर कंप्यूटर आधारित संचार को बाधित कर सकती है।
मीडिया से बातचीत के दौरान, क़ानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने स्पष्ट किया कि यह आदेश पूरी तरह से संवैधानिक है, और कहा कि यह आम जनता पर जासूसी की अनुमति नहीं देता। उन्होंने यह भी कहा कि आईटी एक्ट के प्रावधानों के तहत, किसी भी अवरोधन के पूरा होने से पहले गृह सचिव से आवश्यक अनुमोदन प्राप्त करना होगा।
उन्होंने यह भी कहा कि जैसा कि आदेश में दस एजेंसियों का उल्लेख किया गया है, अन्य एजेंसियाँ अब कंप्यूटर-आधारित संचार को बाधित करने के लिए अधिकृत नहीं हैं, जब तक कि वे मामले के आधार पर ऐसा करने के लिए अधिकृत न हों।