वर्ष 2014 से ही हम देखते आए हैं कि विषय चाहे जो भी रहा हो, ऐसा सम्भव ही नहीं है कि देश का वामपंथी और स्वघोषित उदारवादी वर्ग उसमें ‘अम्बानी-अडानी’ का जिक्र करने से चूक जाए। भ्रामक तथ्यों के जरिए लोगों को गुमराह करने की कला में माहिर वाम-उदारवादी वर्ग के ध्वजवाहक और सीरियल फेक न्यूज़ प्रकाशित करने वाले टीवी चैनल एनडीटीवी के पत्रकार रवीश कुमार ने कथित किसान आन्दोलन के बीच एक बार फिरसे अम्बानी-अडानी का जिक्र लाकर बहस को नई दिशा दी है। मजे की बात यह है कि उनके दावे ‘व्हाट्सऐप यूनिवर्सिटी’ पर किए जाने वाले आम दावों से भिन्न नहीं हैं।
रवीश कुमार का नया दावा है कि भारत सरकार ने अडानी को फायदा पहुँचाने के लिए कृषि कानून बनने से ठीक पहले ही अन्न भण्डारण करने के साइलोस गोदाम बना लिए थे। रवीश कुमार ने सिर्फ अपने प्राइम टाइम ही नहीं बल्कि अपने फेसबुक पोस्ट के माध्यम से भी यह भ्रामक दावे बेचे और लोगों को गुमराह करने का प्रयास किया। इन दावों का निष्कर्ष यह निकलता है कि नए कृषि कानून इसीलिए बनाए गए हैं ताकि सरकार के इशारे पर अडानी-अम्बानी किसानों का सारा अनाज खरीद के स्टोर कर लेंगे और फिर मनमाने दाम पे बेचेंगे।
गत 07 दिसंबर को अपने प्राइम टाइम में रवीश कुमार ने इस बात का जिक्र किया कि कटिहार के माईलबासा में एक स्टोरेज वर्ष 2019 में बनाया गया है, जिसे अडानी ग्रुप की तरफ से बनाए जा रहे हैं। रवीश कुमार यह कहना नहीं भूले कि उन्हें इसके बारे में ‘इकाॅनॉमिक टाइम्स’ में वर्ष 2019 में प्रकाशित एक खबर से इस बारे में पता चला।
रवीश कुमार के इस प्राइम टाइम वीडियो के फर्जी दावे को आप यहाँ पर दी गए वीडियो में 19.04 से 20.00 तक देख सकते हैं –
रवीश अपने वीडियो में बताते हैं कि इस खबर के अनुसार फ़ूड कॉर्पोरेशन ऑफ़ इंडिया ने अडानी ग्रुप से करार किया है। 80 करोड़ की लागत से पंजाब और हरियाणा में दो साइलोस बनाने का जिक्र है, जिसमें 75 हजार टन गेंहू का भण्डारण किया जाएगा। इसके साथ ही रवीश अपनी इस रिपोर्ट में बताते हैं कि इसी रिपोर्ट में यह भी जिक्र है कि इसका स्वामित्व एफसीआई के पास रहेगा।
अब रवीश की वास्तविक चिंता यहाँ से शुरू होती है। उनकी चिंता का विषय यह है कि इन साइलोस को चलाने, संभालने और रखरखाव का जिम्मा अडानी ग्रुप का है और बदले में सरकार 30 साल तक किराए की गारंटी देगी। रवीश ने तुरंत अपने वीडियो में कहा कि भंडारण का लाभ किसानों को कैसे मिलेगा जब वहाँ के किसानों को MSP नहीं मिल रहा है?
यहाँ पर रवीश द्वारा फैलाई गई सबसे पहली फेक न्यूज़ और भ्रामक तथ्य तो यही है कि केंद्र सरकार MSP नहीं देने वाली। जबकि सरकार निरंतर ही आन्दोलनरत किसानों यह आश्वासन दे रही है कि एमएसपी पर खरीद बंद नहीं होगी। बुधवार (दिसंबर 09, 2020) को ही केंद्र सरकार ने किसानों को इसका लिखित आश्वासन तक देने की बात कही जिसे कि किसान नेताओं द्वारा आंदोलन जारी रखने के लिए ठुकरा दिया गया।
दूसरा भ्रम रवीश कुमार द्वारा जो फैलाया गया है वह अडानी के साइलोस गोदामों को लेकर है।
प्राइम टाइम की खराफ़ात को रवीश कुमार ने अपने फेसबुक पेज पर और व्यापक रूप देते हुए लिखा- “…इस बात की जानकारी सामने आनी चाहिए कि भंडारण के लिए पहले प्राइवेट पार्टी को प्रवेश दिया जाता है और फिर एक साल बाद क़ानून बदल कर प्राइवेट कंपनियों को स्टॉक लिमिट से छूट दी जाती है। ऐसा क्यों किया गया? क्या इसलिए कि पहले अडानी ग्रुप को किरायेदार बना कर लाओ और फिर मकान ही दे दो!”
हिंदी पत्रकारिता में जिस कूड़े की बात रवीश करते हैं, वह कूड़ा खुद रवीश ने फैलाया है
रवीश कुमार की धूर्तता का पता इसी बात से चलता है कि उसने बेहद सावधानी से 2019 की एक रिपोर्ट का जिक्र करते हुए कहा कि हमें इस खबर से पता चला। जबकि अडानी द्वारा सितम्बर माह में नए कृषि कानूनों से ठीक पहले (इन्टरनेट पर किए गए दावों के अनुसार- कानून बनाने के तुरंत बाद) में साइलोस बनाने की फर्जी ख़बरों का फैक्ट चेक 25 सितम्बर को ही कई समाचार पोर्टल्स कर चुके हैं। यहाँ पर रवीश कुमार की मक्कारी यह है कि उन्होंने जानबूझकर अपनी रिपोर्ट में इस तथ्य का जिक्र नहीं किया कि कानून बनने से पहले या बाद में अडानी समूह को यह साइलोस बनाने की मंजूरी दे दी गई। फेसबुक पोस्ट में भी इसकी आधी जानकारी ही दी गई और अपने वीडियो में रवीश ने इसका जिक्र भ्रामक तरीके से कर के छोड़ दिया।
कृषि बिलों के आते ही सोशल मीडिया पर यह दावे काफी प्रचलित रहे कि अडानी लॉजिस्टिक लिमिटेड ने संसद में तीन कृषि संबंधी बिल पास होने के ठीक बाद एक फूड साइलोस की स्थापना की है।
उल्लेखनीय है कि तीसरे फार्म बिल को सितंबर 22, 2020 को मंजूरी दे दी गई जबकि रवीश कुमार के दावे के विपरीत अडानी समूह वर्ष 2007 से ही साइलोस तैयार करता आ रहा है। ‘फाइनेंसियल एक्सप्रेस’ की 2008 की एक खबर में इसका जिक्र देखा जा सकता है।
इस पायलट प्रोजेक्ट में, एफसीआई ने वर्ष 2005 में पंजाब के मोगा और हरियाणा के कैथल में दो साइलोस स्थापित करने के लिए AAL के साथ 20 साल के लिए एक ‘BOO समझौता – Build, Own and Operate’ किया था।
कृषि सुधार बिलों के खिलाफ किसान विरोध प्रदर्शनों में नाम उठाए जाने के बाद खुद अडानी समूह ने कहा है कि वो न तो किसानों से खाद्यान्न खरीदता है और न ही खाद्यान्न का मूल्य तय करता है। अडानी समूह ने कहा कि यह केवल फूड कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया (FCI) के लिए अनाज साइलोस तैयार करता है और उनका रखरखाव करता है।
अडानी समूह ने अपने ट्विटर हैंडल पर पोस्ट किए गए एक बयान में कहा, “कंपनी की भंडारण की मात्रा तय करने के साथ-साथ अनाज के मूल्य निर्धारण में भी इसकी कोई भूमिका नहीं है क्योंकि यह केवल FCI के लिए एक सेवा/बुनियादी ढाँचा प्रदाता है।”
#FakeNewsAlert
— Adani Group (@AdaniOnline) December 8, 2020
Our statement in response to the misleading video posted by the Loktantra TV YouTube channel that is leveraging the ongoing farmer crisis in order to malign our reputation and misguide public opinion. #FakeNews pic.twitter.com/k4eeEGTpHa
ऐसे में सवाल यह उठता है कि क्या रवीश कुमार अब तथ्यों के बजाए खुद ही उस ‘व्हाट्सऐप यूनिवर्सिटी’ के आधार पर प्राइम टाइम करने लगे हैं? क्या वह किसान आन्दोलन, जिसमें कि खालिस्तानी समर्थकों के हस्तक्षेप की आशंका भी लगाईं जा रही है, को फेक न्यूज़ के माध्यम से भड़काने का प्रयास कर रहे हैं? अगर वर्ष 2007 से ही अडानी समूह के वेयरहाउस उन जगहों पर थे तो क्या उसी तर्क एक आधार पर रवीश यह कह सकेंगे कि UPA सरकार किसानों का अनाज बेचकर अडानी समूह को फायदा पहुँचाना चाहती थी?
अडानी के गोदामों का महत्व
सामान्य भाषा में देखें तो अडानी समूह ने स्पष्ट कहा है कि हम अपने गोदाम और साइलोस FCI को किराए पर देते हैं और FCI हमारे साइलोस में अपना अनाज रखती है, जिसके बदले उन्हें किराया अदा किया जाता है।
अडानी समूह के अनुसार, उन्होंने गोदाम और अनाज के रखरखाव का काम 2005 में ही शुरू कर दिया था और बाकायदा भारत सरकार से पारदर्शी कंपीटिटिव बिडिंग टेंडर प्रक्रिया से ये ठेके हासिल किए।
इसके अलावा, जहाँ भी ये गोदाम बनाए गए हैं, वहाँ तक अनाज पहुँचाने और उठाने के लिए सड़कें और रेल लाइन भी बनाई गई हैं। सिर्फ इतना ही नहीं, FCI के इस अनाज को ढोने और देश के कोने कोने में सुरक्षित और तीव्र गति से पहुँचाने के लिए अडानी समूह के पास अपनी निजी मालगाड़ियाँ और आधुनिक वेगंस भी हैं।
भारत मे अन्न की बर्बादी का रोना हम हमेशा रोते आए हैं। इन आधुनिक अन्न भण्डारण के साइलोस गोदामों में अन्न को आधुनिक ऑटोमेटिक मशीनों से सुखाया, साफ किया जाता है और हवा-पानी, नमी, कीड़े-मकोड़ों से सुरक्षित रखा जाता है। अन्न भंडारण के लिए बोरी या गनी बैग्स की ज़रूरत नही होती। ऐसे में, अन्न न सड़ता है न खराब होता न ही उसमें घुन या कीड़े लगते ।
इन साइलोस से अन्न चोरी नहीं हो सकता क्योंकि FCI आधुनिक तकनीक से इसकी रियल टाइम मोनिटरिंग करती है और अन्नदाताओं के दाने-दाने का हिसाब रखती है। ये ‘अडानी के साइलोस’ पुराने गोदामों की तुलना में सिर्फ 1/3 जमीन घेरते हैं और जहाँ पुराने सिस्टम में अनाज भंडारण व्यवस्था के जिस काम मे 2 -3 दिन लग जाते थे वो काम अब सिर्फ 2 घंटे में हो जाता है। क्या ये व्यवस्था FCI और किसान, दोनों के लिए लाभकारी नहीं है?
क्या रवीश कुमार ‘अडानी के साइलोस’ पर अपनी ही भ्रामक शैली में आँखें बड़ी कर के लोगों को इन तथ्यों को बता सकते हैं? इसका जवाब हम सब जानते हैं। इसका जवाब फर्जी और भ्रामक तथ्यों के जरिए सत्ता के खिलाफ प्रपंच स्थापित करना मात्र होता है।
‘फैक्ट चेकर फेसबुक’ का मौन
रवीश के झूठ पर एक और बड़ी बात यह है कि जहाँ सोशल मीडिया और खासकर फेसबुक दक्षिणपंथी समाचार चैनल्स या विचारों को फेक साबित करने, उन्हें छुपाने, दबाने में कोई कसर नहीं छोड़ता, वहीं रवीश कुमार के अडानी समूह को लेकर किए गए भ्रामक और फर्जी दावे तीन दिन बाद भी ‘तथ्य’ बनकर जस के तस मौजूद हैं। यह पूरी लॉबी है, जो किसानों के साथ खड़े होने का दावा तो करती है लेकिन इसके मूल में क्या होता है, यह शाहीनबाग़ जैसे शर्मनाक अध्यायों के जरिए समय-समय पर बाहर आता रहा है।