ऐसा लगता है कि आदरणीय प्राइम कुमार उर्फ रवीश कुमार ने प्रोपेगेंडा फैलाने का ठेका ले रखा है। दैनिक जागरण में रुपए की जिस ख़बर का हवाला देते हुए उन्होंने एक लंबा फर्जी लेख ”मीडिया विजिल” में लिख मारा है, वह पूरी स्टोरी विशेषज्ञों के हवाले से लिखी गई है। लेकिन उन्हें न तो विशेषज्ञ नजर आ रहे हैं, और नहीं स्टोरी समझ में आ रही है।
बात करते हैं स्टोरी पर। मूल स्टोरी ब्लूमबर्ग में प्रकाशित हुई है और उसे देश के सभी महत्वपूर्ण अखबारों ने प्रकाशित किया है। बिजनेस स्टैंडर्ड में ”Rupee could weaken past 75 if Modi fails to win second term: Expert”, हेडलाइन के साथ।
फाइनैंशियल एक्सप्रेस में ”Rupee vs Rupiah: Indonesian currency holds edge as polls near”, हेडलाइन के साथ। इसके अलावा ब्लूमबर्ग क्विंट में यह खबर छपी।
ऐसे में रवीश के हिंदी विरोध की ग्रंथि फट पड़ी और उन्होंने प्रवचन दे मारा, ”हिन्दी अख़बारों से सावधान रहें। इस पर विचार करें कि या तो हिन्दी के अखबार बंद कर दें या हर महीने अख़बार बदल दें। आख़िर झूठ पढ़ने के लिए आप क्यों पैसा देना चाहते हैं? किसी दिन हॉकर के आने से पहले उठ जाइए और मना कर दीजिए। एक दिन जाग जाइए बाकी दिनों के लिए अंधेरे से बच जाएँगे। हिन्दी के अख़बार हिन्दी के पाठकों की हत्या कर रहे हैं। सावधान!”
लेकिन पूरी स्टोरी को देखने के बाद लगता है कि रवीश कुमार अंधे हो गए हैं, ज्ञान के गुमान में। उनका कई दफे बर्ताव ट्रोल से बुरा होता है, उन्हें इस बात भ्रम हो गया है कि जो मैं कह रहा हूँ, वही सही है, जो और जहाँ से मैं देख रहा हूं, वह सही है, बाकी सब कुएं में पड़े हैं।
हिंदी खबर में दो विशेषज्ञों के जरिए बात रखी गई है, जिसे हूबहू अंग्रेजी की मूल खबर में पढ़ा जा सकता है। लेकिन रवीश कुमार ने फिर भी फर्जीवाड़ा फैलाया।
पहला, सिंगापुर स्थित टॉरस वेल्थ एडवाइजर्स के कार्यकारी निदेशक रेनर माइकल प्रीस ने कहा, ‘रुपए के मुकाबले रुपया निवेशकों के लिए बेहतर रिस्क-रिवॉर्ड ऑफर कर रहा है। इंडोनेशिया के मामले में हमारी राय है कि वहां यदि यथास्थिति बनी रहती है, तो यह अच्छी बात होगी। दूसरी तरफ यदि मोदी दोबारा प्रधानमंत्री बनने में सफल नहीं हो पाते हैं तो लोग इसे नकारात्मक परिघटना मानेंगे, नतीजतन रुपए में भारी गिरावट आ सकती है।’
अगला पैरा, जिसमें रुपए के एक तय स्तर से नीचे जाने का जिक्र है, उसे भी विशेषज्ञ के हवाले से लिखा गया है।
आइएनजी का आकलन: सिंगापुर स्थित आईएनजी ग्रुप एनवी के अर्थशास्त्री प्रकाश सकपाल का कहना है कि यदि मोदी एक बार फिर भारत के प्रधानमंत्री नहीं चुने जाते हैं तो ऐसी स्थिति में रुपया कमजोर होकर 75 प्रति यूएस डॉलर से भी नीचे आ सकता है।
ब्लूमबर्ग की मूल स्टोरी और हिंदी की खबर में साफ लिखे जाने के बाद प्राइम कुमार को यह नजर नहीं आया, और उन्होंने यह फर्जीवाड़ा कर डाला। वह लिखते हैं, ”कहीं इन बातों की आड़ में भ्रम फैला कर माहौल तो नहीं बना रहे हैं? इनका कहना है कि मोदी दोबारा नहीं चुने गए तो इंडोनेशिया की मुद्रा भारत के रुपए से आगे निकल जाएगी। ये नहीं बताया कि भारत का रुपया किन मुद्राओं से पीछे है? क्यों इंडोनेशिया के रुपैया से ही अचानक तुलना करने लगे हैं? डॉलर छोड़ अब हमें इंडोनेशिया के रुपए से होड़ करनी है क्या?”
लेकिन अगर श्रीमान ने एक बार खबर के मूल सोर्स को पढ़ने की कोशिश की होती है, तो उन्हें यह भान होता कि खबर अंग्रेजी में लिखी गई थी और यह उसका अनुवाद था। दूसरी सबसे अहम बात उनके इस प्वाइंट को लेकर है,
”क्यों इंडोनेशिया के रुपैया से ही अचानक तुलना करने लगे हैं? डॉलर छोड़ अब हमें इंडोनेशिया के रुपैया से होड़ करनी है क्या?”
स्टोरी का पहला पैरा (सबसे ऊपर लगाई गई इमेज) ही इसका जवाब देता है, जिसमें साफ कहा गया है कि ”Two of Asia’s biggest emerging economies will soon elect leaders, and wagers are already being placed on their currencies। The consensus: Indonesia’s rupiah will trump India’s rupee।”
मतलब ”एशिया की दो बड़ी उभरती अर्थव्यवस्थाएं जल्द ही चुनाव का सामना करने जा रहे हैं और सबसे बड़ा दांव इन दोनों देशों की मुद्राओं पर लगा हुआ है।” जिन्होंने स्टोरी लिखी, उन्हें यह एंगल दिलचस्प लगा होगा क्योंकि इस साल भारतीय रुपया जहां 2 फीसद तक लुढ़क चुका है, वहीं इंडोनेशियाई रुपैया 2 फीसद से अधिक मजबूत हो चुका है। इंडोनेशियाई रुपैया थाई करेंसी के बाद सबसे शानदार प्रदर्शन वाली करेंसी है जबकि रुपए की चाल बेहद खराब रही है।
इसका यह मतलब नहीं होता कि रुपया की तुलना डॉलर के बदले इंडोनेशियाई रुपैया से होगी। लेकिन प्राइम कुमार आज कल जज की भूमिका में हैं। उन्हें जजमेंट देने की पुरानी आदत हैं। वह भावुक होते हैं तो कोई बात नहीं होती है, दूसरा भावुक होता है तो उन्हें दुनिया में अंधेरा छाता दिखने लगता है।
अब रही बात हिंदी की तो प्राइम कुमार अक्सर अपील करते रहते हैं। लेकिन प्राइम कुमार यह भूल जाते हैं कि हिंदी जगत की अधिकांश खबरें अनुवादित होती हैं और उनका सोर्स एजेंसियां होती हैं। बिजनेस के मामले में यह प्रतिशत और भी ज्यादा होता है। लेकिन लगता है रवीश खुद कभी अनुवाद नहीं किए हैं… हेहेहे!