भीमा कोरेगाँव हिंसा मामले में सुनवाई करते हुए बॉम्बे हाईकोर्ट ने अर्बन नक्सल वर्नोन गोंजाल्विस से पूछा कि उनके घर में पुस्तक ‘वॉर एंड पीस इन जंगल महल- पीपल, स्टेट एंड माओइस्ट्स‘ क्या कर रही थी? दरअसल, अदालत ने केवल इसी पुस्तक को लेकर उनसे सवाल नहीं पूछे बल्कि उनके पास कई अन्य आपत्तिजनक पुस्तकें और सीडी पड़ी हुई थीं, जिसे लेकर कोर्ट ने आपत्ति जताई। इनमें से एक सीडी तो ‘सरकार द्वारा किए जा रहे दमन का विरोध’ के बारे में था।
इसके बाद सोशल मीडिया पर दरबारी पत्रकारों व वामपंथी ठेकेदारों ने जज का ही मज़ाक बनाना शुरू कर दिया। न सिर्फ़ जज का मज़ाक बनाया गया बल्कि भीमा कोरेगाँव हिंसा जैसी गंभीर घटना के मामले में असंवेदनशीलता दिखाई गई। इतना ही नहीं, ठेकेदारों, दरबारियों और वामपंथियों ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का एक वीडिओ निकाल कर लाया, जिसमें दावा किया गया कि वह भी ‘वॉर एंड पीस‘ पुस्तक पढ़ते दिख रहे हैं। सवाल पूछे जाने लगे कि क्या नरेन्द्र मोदी भी अर्बन नक्सल हैं? क्या उनसे भी अदालत सवाल पूछेगी?
इसे लेकर भ्रामक चीजें फैलाई गई। आगे आपको हम ऐसी सच्चाई बताएँगे, जिसे जान कर आप इनके प्रोपेगंडा को समझ कर इन्हें लताड़ेंगे लेकिन उससे पहले जरा देख लीजिए कि किस तरह से झूठ फैलाया गया और कौन-कौन लोग इसमें शामिल हैं।
#WarAndPeace objectionable? You know what, its translation in Marathi is published by Maharashtra government itself!!
— amey tirodkar (@ameytirodkar) August 29, 2019
Read here #MyStory. #Tolstoy
https://t.co/1e7UCoLOBZ
So a court in India says holding a copy of #WarAndPeace is objectionable? Just waiting for Chetan Bhagat’s ‘2 States’ to be described as seditious on the grounds that it advocates separatism.
— Madhavan Narayanan (@madversity) August 29, 2019
A person accused of lynching a police officer on duty in public with 18FIRs is granted bail!
— Tehseen Poonawalla (@tehseenp) August 29, 2019
A former HM/FM with NO name in a FIR & an alleged offence of 10lakhs by CHEQUE- is refused Anticipatory Bail!
A person with a book titled #WarAndPeace at home is in Jail & Not given bail!
Astounding! HC judge asks an activist alleged to be a Maoist, “Why have you kept (Tolstoy’s classic novel) War & Peace in your house?”! What kind of HC judge would ask such a question?! What have we done to the judiciary?!https://t.co/X6qfcT35fC
— Prashant Bhushan (@pbhushan1) August 29, 2019
The judge should leave his Pride and Prejudice aside, and try use his Sense and Sensibility, and then he’d realise that the matter of reading War and Peace is not about Crime and Punishment, but about Power and Glory, lest his tenure will be a time for Laughter and Forgetting. https://t.co/LUkvxpez5P
— Salil Tripathi سلیل تریپاٹھی સલિલ ત્રિપાઠી (@saliltripathi) August 29, 2019
GANDHI JI was inspired by Leo Tolstoy who wrote the greatest novel ever written. The name was – WAR and PEACE, unfortunately. Gandhi ji named his form in South Africa-TOLSTOY Form. Gandhi ji is lucky he is not alive otherwise he would have been charged for sedition.
— ashutosh (@ashutosh83B) August 29, 2019
‘War and Peace’: Even Prime Minister Narendra Modi has flipped through Leo Tolstoy’s classic 🙂 https://t.co/M6nl2DI9UQ via @scroll_in
— naresh fernandes (@tajmahalfoxtrot) August 29, 2019
ऊपर आपने देखा कि कुछ लोग जहाँ जज के विवेक पर सवाल खड़े कर रहे हैं, वहीं कुछ अन्य लोग नरेन्द्र मोदी वाला विडियो शेयर कर पूछ रहे हैं कि क्या वह भी अर्बन नक्सल हैं? अब आपको सच्चाई बताते हैं।
कोर्ट ने जिस पुस्तक को लेकर आपत्ति जताई, उसका नाम है- “वॉर एंड पीस इन जंगलमहल- पीपल, स्टेट्स एंड माओइस्ट्स” और यही पुस्तक अर्बन नक्सल गोंजाल्विस के पास मिली थी।
और नरेन्द्र मोदी जो ‘वॉर एंड पीस’ पुस्तक पढ़ रहे हैं, वह लियो टॉलस्टॉय की क्लासिक कृति है। दिमाग के अभाव में वामपंथियों ने समझ लिया कि अर्बन नक्सल गोंजाल्विस भी यही क्लासिक कृति अपने घर में रखे हुआ था और कोर्ट ने इसी को लेकर आपत्ति जताई है। लेकिन अफ़सोस, वह पुस्तक विश्वजीत रॉय द्वारा एडिटेड है। देखिए सच्चाई:
#Exclusive | The ‘Khan Market’ gang exposed. They faked ‘War & Peace’ story in a bid to malign India’s image.
— TIMES NOW (@TimesNow) August 29, 2019
TIMES NOW’s Padmaja and Kajal with details. | #WarAndPeaceFakery pic.twitter.com/SCQQ3JfNI3
अब आप समझ गए होंगे कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जो पुस्तक पढ़ रहे थे और अर्बन नक्सल गोंजाल्विस के घर में जो पुस्तक पड़ी थी, दोनों अलग-अलग हैं लेकिन दोनों के नाम कमोबेश समान हैं, जिसका फ़ायदा सोशल मीडिया के ठेकेदारों ने उठाया।