सोशल मीडिया में कुछ तत्व जगन्नाथ मंदिर में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के साथ जातीय भेदभाव का आरोप लगा रहे हैं। अब राजधानी नई दिल्ली के हौज खास स्थित जगन्नाथ मंदिर के ‘श्री नीलाचल सेवा संघ’ के सेक्रेटरी रवींद्र नाथ प्रधान ने इन आरोपों को नकारते हुए तथ्य बताए हैं। उन्होंने बताया कि उन्हें सोशल मीडिया पर ये झूठ फैलाए जाने की सूचना मिली है कि जनजातीय समाज से होने के कारण राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को जगन्नाथ मंदिर के गर्भगृह में प्रवेश करने की अनुमति नहीं दी गई।
जगन्नाथ मंदिर में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के साथ भेदभाव? – जानें सच
ऑपइंडिया से बात करते हुए उन्होंने कहा कि भगवान के सामने भेदभाव के लिए कोई जगह ही नहीं है। उन्होंने कहा कि जिस तरह का ऑनलाइन प्रोपेगंडा चलाया जा रहा है, उससे वो व्यथित महसूस कर रहे हैं। उन्हें एक दिन पहले ही इस मामले की जानकारी मिली। उन्होंने कहा कि इस तरह का झूठ फैला कर राष्ट्रपति द्वारा भविष्य में मंदिरों के किए जाने वाले दौरों को बाधित करने की कोशिश की जा रही है। उन्होंने बताया कि राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने अपने जन्मदिन के अवसर पर मंदिर में दर्शन किया था।
उसी दिन जगन्नाथ यात्रा भी थी। उन्होंने बताया कि राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू यात्रा के समय भी आ सकती थीं, लेकिन उन्होंने इससे बहुत पहले आने का निर्णय लिया ताकि यात्रा के समय उनकी उपस्थिति के कारण श्रद्धालुओं को कोई परेशानी न हो। राष्ट्रपति के साथ कड़ी सुरक्षा व्यवस्था होती है। उनका कार्यक्रम 5-10 मिनट का ही प्रस्तावित था, लेकिन वो वहाँ 45 मिनट तक रहीं। रवींद्र नाथ प्रधान ने कहा कि राष्ट्रपति द्वारा मंदिर में आकर भगवान जगन्नाथ का आशीर्वाद लेना वहाँ मौजूद लोगों के लिए भी गौरव का क्षण था।
उन्होंने कहा, “ये झूठ है कि मंदिर में राष्ट्रपति के साथ भेदभाव हुआ। प्रतिवर्ष गर्भगृह को मात्र 30 मिनट के लिए ही खोला जाता है, जब रथयात्रा के मौके पर भगवान जगन्नाथ का आवाहन किया जाता है। आवाहन में मुख्य अतिथि के भाग लेने की परंपरा रही है। उस समय केवल पुजारी और मुख्य अतिथि को ही गर्भगृह में जाने की अनुमति होती है। जब राष्ट्रपति आईं, तब तड़के सुबह था। हमने मंदिर परिसर में नियमों के पालन के साथ-साथ प्रोटोकॉल्स भी मेंटेन किया।”
उन्होंने बताया कि राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने लकड़ी की बाउंड्री के पास खड़े होकर पूजा करने का निर्णय लिया। उनके लिए कुर्सी की व्यवस्था की गई, लेकिन भगवान जगन्नाथ की भक्त होने के कारण उन्होंने कुर्सी पर बैठने से इनकार करते हुए कहा कि वो या तो खड़े होकर या फर्श पर बैठ कर पूजा करेंगी। 6 पंडितों में से 2 को उनके नजदीक जाने की अनुमति थी, जबकि सुरक्षा गार्ड्स ने बाकी 4 को दूर से पूजा कराने को कहा था। रवींद्र नाथ प्रधान ने कहा कि अगर द्रौपदी मुर्मू चाहतीं तो हम उन्हें गर्भगृह में ले जा सकते थे।
उन्होंने कहा कि आखिर वो राष्ट्रपति हैं, उनके कहने पर ये सब किया जा सकता था। लेकिन, उन्होंने ऐसा कुछ करने को कहा ही नहीं जो मंदिर के नियमों के अनुरूप नहीं हो। पूजा के दौरान रवींद्र नाथ प्रधान भी राष्ट्रपति के करीब नहीं गए। उन्होंने बताया कि राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू प्याज-लहसुन को छूती भी नहीं हैं। ये भगवान जगन्नाथ के प्रति उनकी श्रद्धा को बताता है। उन्होंने द्रौपदी मुर्मू को ओडिशा की शान बताते हुए कहा कि भेदभाव का सवाल कहाँ से आया उन्हें पता ही नहीं था।
रवींद्र नाथ प्रधान ने कहा, “दिल्ली के LG या अन्य की तस्वीरों का सवाल है तो ये लोग यात्रा के मुख्य अतिथि थे। पुरी में राजा हर साल ये परंपरा निभाते रहे हैं। किसी भी मंत्री की तस्वीर अगर गर्भगृह के भीतर की है, तो बतौर यात्रा के मुख्य अतिथि के रूप में। गर्भगृह में मंदिर प्रशासन के परिवार वाले तक नहीं आते हैं। भगवान की प्रतिमाओं के नीचे शालिग्राम पत्थर होते हैं, जिन्हें पाँव से छुआ नहीं जा सकता। पुरी में पुजारी पैसे लेकर गर्भगृह में एंट्री कराते थे, लेकिन ये नियम कब का खत्म हो गया है।”
खुद को दलितों का ठेकेदार बताने वाले हैंडल्स न फैलाया झूठ
‘द दलित वॉइस’ नामक ट्वटर हैंडल ने लिखा, “अनुमति मिली – अश्विनी वैष्णव (केंद्रीय रेल मंत्री)। अनुमति नहीं मिली – द्रौपदी मुर्मू (भारत की राष्ट्रपति।”।
इसी तरह प्रोपेगंडाबाज दिलीप मंडल ने पुजारियों पर कार्रवाई करने की माँग तक कर दी। उसने तस्वीरें शेयर करते हुए लिखा कि केंद्रीय पेट्रोलियम मंत्री धर्मेंद्र प्रधान को गर्भगृह में जाने की अनुमति दी गई, जबकि भारत की प्रथम नागरिक को नहीं।
वैभव कुमार नामक यूजर ने तो लिख दिया कि लकड़ी का बैरियर सिर्फ राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के लिए ही लगा दिया गया। उसने लिखा कि भारत में जाति के आधार पर सम्मान मिलता है, भले ही राष्ट्रपति ही क्यों न हों।
जैसा कि ऑपइंडिया को मंदिर के सेक्रेटरी ने ही बताया, केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव हों या धर्मेंद्र प्रधान, दोनों ही यात्रा के मुख्य अतिथि के रूप में गर्भगृह में गए थे। जबकि राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के मामले में ऐसा नहीं था। उन्होंने बैठने के लिए कुर्सी तक ठुकरा दी थी और मंदिर के नियमों के हिसाब से पूजन-दर्शन का निर्णय लिया। मंदिर के सेक्रेटरी खुद कह रहे हैं कि नियम के बावजूद अगर वो कहतीं तो गर्भगृह में वो जा सकती थीं, लेकिन उन्होंने ऐसा कुछ नहीं कहा।