यह तो सर्वविदित है कि वामपंथियों, इस्लामियों और पत्रकारिता के समुदाय विशेष के लोगों को हिन्दू धर्म से सख्त नफ़रत है। अब ऐसे में अगर कोई इन तीनों विशेषताओं से लैस हो, जैसे ‘द वायर’ की आरफ़ा खानम शेरवानी, तो ज़ाहिर है हिन्दुओं को नीचा दिखाने के लिए किसी भी हद तक खुद नीचे जाया जा सकता है- फ़ेक न्यूज़ भी फैलाई जा सकती है। शेरवानी जी ने भी यही किया- यह बात और है कि सोशल मीडिया पर पकड़ीं गईं।
हिन्दू मंदिर को बताया मुगल शासक के ‘अहसानों’ की ज़मीं पर बना
आरफ़ा खानम शेरवानी ने ट्वीट कर बताया कि वह गोरखपुर में हैं- इमामबाड़े में। साथ में उन्होंने यह बताया कि योगी आदित्यनाथ का मठ, जिसके वह मठाधीश हैं, एक मुस्लिम नवाब आसिफ़-उद्-दौला के ‘अहसान’ से उनके द्वारा दान की गई जमीन पर बना है। यानि एक तरह से, अव्यक्त तौर पर, हिन्दुओं को उनके ‘शासित’ स्टेटस की याद दिला दी।
In Yogi’s Gorakhpur,at the Imambada.
— Arfa Khanum Sherwani (@khanumarfa) April 27, 2019
Land on which Gorakhnath temple(Adityanath is its ’Mahant’ or head-priest)stands was granted by a Muslim ruler,Nawab Asaf-ud-Daula of Awadh.
He granted land to this Imambada too.India is far more diverse than wht our hateful leaders project it pic.twitter.com/bmx6NqDwAu
ट्रू इंडोलॉजी ने दिखाया आईना
भारत के इतिहास के बारे में वामपंथी इतिहासकारों द्वारा फैलाए जा रहे भ्रम को दूर करने के लिए जाने जाने वाले ट्विटर हैंडल ट्रू इंडोलॉजी ने आरफ़ा खानम के ट्वीट पर एक के बाद एक ट्वीट कर फैक्ट-चेक करना शुरू किया। उन्होंने यह दिखाया कि कैसे यह मंदिर कम-से-कम 800 साल पुराना है, जबकि शेरवानी जी के प्रिय नवाब आसिफ़-उद्-दौला केवल सवा दो सौ साल पहले के।
उन्होंने अलग-अलग किताबी और आर्कियोलोजिकल सर्वे ऑफ़ इंडिया आदि का सन्दर्भ देकर आरफा खानम के झूठ के गुब्बारे को पंचर कर दिया। साथ ही यह भी बताया कि इस अफ़वाह की शुरुआत कहाँ से हुई।
Gorakhnath temple has a recorded history of at least 800 years.
— True Indology (@TrueIndology) April 27, 2019
The temple existed even before Nawab Asaf-Ud-Daulah was born in 18th century.
How could the Nawab grant land for construction of a temple that existed for hundreds of years before his own birth?
Fake news! https://t.co/xXa3UUAQ0e
Gorakhnath temple is much older than the Nawab. It was believed to be established by Gorakhnath himself.
— True Indology (@TrueIndology) April 27, 2019
Whatever the case, the temple was already destroyed by Khilji in 13th century,meaning it already existed by then
From “Gorakhnath and the Kanphata Yogis” by George W Briggs pic.twitter.com/XJfytohNtX
Far from being built on the land donated by Nawab Asaf-Ud-Daulah, the Gorakhpur Imambada itself was built on a former temple site.
— True Indology (@TrueIndology) April 27, 2019
Following Cunnigham’s Archaeological survey of India, Sita Ram Goel lists the Imambada among former temple sites in his book “Hindu temples” pic.twitter.com/8bPFzx3FRy
Although the Shia Nawab Asaf Ud Daulah ruled Awadh, he had his heart beating for Iraq.
— True Indology (@TrueIndology) April 27, 2019
He siphoned off millions of local taxpayer money to develop Iraq.Used taxpayer money to make Iraq deserts bloom for convenience of Shia Pilgrims.This is a large sum amounting to 40% of revenue pic.twitter.com/fpCkJQH0g7
Screenshots of the above tweet have been excerpted from the book “Roots of North Indian Shiism in Iran and Iraq” by JRI Cole (University of California Press 1988)
— True Indology (@TrueIndology) April 27, 2019
There is not a single record or inscription which indicates that Nawab donated land for Gorakhpur temple. The only “source”of this claim is a recently fabricated spurious local myth that Nawab met Gorakhnath. This is false since Gorakhnath lived hundreds of years before Nawab
— True Indology (@TrueIndology) April 27, 2019
हिन्दूफोबिया से निकला है यह झूठ
सवाल केवल एक ऐतिहासिक तथ्य का नहीं है- उसमें गलती किसी से भी हो सकती है। पर आरफ़ा खानम के ट्वीट एक नैरेटिव बुनने के लिए था- हिन्दुओं को मानसिक रूप से दबाने और इस्लामी संप्रभुता को अपने ऊपर स्वीकार कर लेने का नैरेटिव। यह एक अकेली या विशेष घटना नहीं, एक श्रृंखला का हिस्सा है, जिसका अंतिम ध्येय पिछले हज़ार वर्षों से अधिक समय से यही रहा है कि किसी तरह हिन्दू अपनी संस्कृति, सभ्यता, अपने धर्म को आक्रान्ताओं से निम्न कोटि का मान लें, जिससे उन्हें ‘इकलौते सच’ का मुरीद बनाया जा सके। और पत्रकारिता का समुदाय विशेष इस पाक जंग की पहली पंक्ति की टुकड़ी है।