Saturday, November 9, 2024
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विवेक डोभाल ने दायर किया कारवाँ पत्रिका और जयराम रमेश के ख़िलाफ़ मानहानि का केस

इससे पहले भी कारवाँ ने जस्टिस लोया को लेकर एक फ़र्ज़ी इन्वेस्टिगेटिव स्टोरी करते हुए बवाल काटा था। अपने वित्तीय अज्ञान के आधार पर अमित शाह के बेटे पर इसी पत्रिका ने इसी तरह भ्रष्टाचार के आरोप लगाए थे। फिर मानहानि मुक़दमे पर प्रेस फ़्रीडम और आपातकाल चिल्लाने लगे।

NDTV के पत्रकार रवीश कुमार के शब्दों में कहें तो एक बार फिर इस देश में मीडिया का गला घोंटा जाने वाला है। मामला यह है कि राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (NSA) अजीत डोभाल के बेटे विवेक डोभाल ने कारवाँ पत्रिका और जयराम रमेश के ख़िलाफ़ पटियाला हाईकोर्ट में आपराधिक मानहानि की शिकायत दर्ज़ करा ली है। इस मामले की मंगलवार (जनवरी 21,2019) को सुनवाई हो सकती है। विवेक डोभाल ने यह कहते हुए मानहानि का मुकदमा दायर किया है कि सभी आरोप झूठे हैं और उनका व्यवसाय वैध है, न कि ब्लैकमनी से जुड़ा हुआ।

कुछ दिन पहले ही अपने वामपंथी तर्कों की आड़ में अंग्रेज़ी की कारवाँ पत्रिका की एक जाँच का ज़िक्र करते हुए NDTV पत्रकार रवीश कुमार, जो कि समय-समय पर वर्तमान सरकार और उनके पदाधिकारियों के क्रियाकलापों पर आपत्ति जताते रहते हैं, ने एक लेख जारी किया था, जिसमें दावा किया गया था कि राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (NSA) अजीत डोभाल के बेटे विवेक डोभाल केमैन आइलैंड, जो कि टैक्स-हेवन के रूप में जाना जाता है, में हेज फंड (निवेश निधि) चलाते हैं। रवीश कुमार ने यहाँ तक लिखा था कि “डी-कंपनी का अभी तक दाऊद का गैंग ही होता था और भारत में एक और डी कंपनी आ गई है”। इस पत्रिका के अनुसार यह हेज फंड 2016 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नोटबंदी की घोषणा के 13 दिन बाद रजिस्टर्ड किया गया था।

पत्रिका के इस ‘खुलासे’ को आधार बनाते हुए कॉन्ग्रेस नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री ने कॉन्ग्रेस मुख्यालय से प्रेस को सम्बोधित करते हुए आरोप लगाया था कि अजीत डोभाल के दोनों बेटे जीएनवाई एशिया के जाल में फँसे हैं, जो बिल्कुल ‘डी-कंपनी’ की तरह है। जयराम रमेश ने कहा था कि टैक्स-हैवन केमैन आईलैंड से इतने बड़े पैमाने पर विदेशी निवेश के आने और नोटबंदी के निर्णय के बीच सम्बन्ध हैं।

विवेक डोभाल ने कॉन्ग्रेस नेता जयराम रमेश, कारवाँ पत्रिका के प्रधान सम्पादक और कौशल श्राफ (रिपोर्टर) के ख़िलाफ़ आपराधिक मानहानि की शिकायत के लिए दिल्ली की पटियाला हाईकोर्ट की मदद माँगी है। कोर्ट कल यानी मंगलवार को इस मामले की सुनवाई करेगा।

सवाल एकबार फिर वही है कि वामपंथी गिरोह अपने राजनैतिक और वैचारिक मनमुटावों के कारण पहले भी वर्तमान सरकार और इसके अधिकारियों पर इस तरह के बिना सिर-पैर के आरोप लगाता आया है, जिसके बाद कोर्ट प्रेस से किसी के ऊपर बेवजह और बेबुनियाद आरोप लगाकर कोर्ट का कीमती समय बर्बाद ना करवाने की प्रार्थना कर चुका है, साथ ही यह भी कह चुका है कि पत्रकारिता को अधिक ज़िम्मेदार होना चाहिए।

इस मानहानि के मुकदमे के बाद यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या वामपंथ की प्रासंगिकता इस देश में महज़ हँगामा खड़ा करने तक ही तो सीमित नहीं रह गई है? इससे पहले भी कारवाँ ने एक फ़र्ज़ी इन्वेस्टिगेटिव स्टोरी करते हुए बवाल काटा था कि जस्टिस लोया की हत्या की गई। इस केस को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज़ कर दिया था। ऐसे ही, गुजरात चुनावों के समय अमित शाह के बेटे पर इसी पत्रिका ने इसी तरह भ्रष्टाचार के आरोप लगाए थे। हालाँकि, जब इन पर मानहानि का मुक़दमा किया गया तो वो प्रेस फ़्रीडम और आपातकाल की बात करने लगे थे।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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