हाल ही में बलिदानी कैप्टन अंशुमान सिंह को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने ‘कीर्ति चक्र’ से सम्मानित किया। उनकी पत्नी स्मृति ने उनकी तरफ से ये सम्मान ग्रहण किया, साथ में कैप्टन अंशुमान सिंह की माँ मंजू सिंह भी थीं। देवरिया के रहने वाले अंशुमान सिंह ने सियाचिन स्थित आर्मी कैम्प में आग लगने के बाद अपने जान की परवाह किए बिना 4 साथियों को बचाया था। ‘कीर्ति चक्र’ ग्रहण करने के बाद स्मृति सिंह ने जो कहा था, उसके वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुए थे और लोगों ने बलिदानी कैप्टन को श्रद्धांजलि देते हुए परिवार के प्रति संवेदना जताई थी।
स्मृति सिंह ने बताया था कि कैसे अंशुमान सिंह कहते थे कि वो साधारण मृत्यु नहीं मरेंगे, वो छाती पर गोली खाएँगे। स्मृति ने बताया था कि अंशुमान से उनकी मुलाकात कॉलेज के पहले ही दिन हुई थी, पहली नज़र में ही दोनों में प्यार हो गया था और 8 वर्षों तक लॉन्ग डिस्टेंस रिलेशनशिप में रहने के बाद दोनों ने शादी कर ली थी। अंशुमान सिंह के बलिदान से 1 दिन पहले ही दोनों में खूब बातें हुई थीं, वो प्लानिंग कर रहे थे कि उनकी आगे की ज़िंदगी कैसी होगी – बच्चों के जन्म से लेकर घर बनवाने तक की बातें हुईं।
अगले ही दिन उनके निधन का समाचार मिला। पूरे देश ने उनकी कहानी सुन कर उनकी वीरता को नमन किया। अब वीरगति को प्राप्त सैन्य अधिकारी के माता-पिता मीडिया के सामने आए हैं और उन्होंने जो कहा है वो चर्चा के साथ-साथ विवाद का भी विषय बन रहा है। एक पारिवारिक व निजी मामला सतह पर आ गया है। ध्यान देने वाली बात है कि कुछ दिनों पहले कॉन्ग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गाँधी भी इन दोनों से मिले थे। मंजू सिंह ने ‘अग्निवीर’ योजना का विरोध भी किया था।
बलिदानी कैप्टन के पिता ने कहा कि राहुल गाँधी से बात करने के पीछे उनका जो उद्देश्य था, उस बारे में वो केंद्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह को भी बता चुके हैं। उन्होंने कहा, “NOK को लेकर जो भारतीय सेना के निर्धारित मापदंड हैं, वो ठीक नहीं हैं। 5 महीने की शादी थी, उनका कोई बच्चा नहीं है। माँ-बाप के पास सिर्फ उनकी तस्वीर है जो पीछे लटकी हुई है। वो (स्मृति सिंह) अपना पता भी बदलवा चुकी हैं, हमारे पास क्या है? NOK के नियमों में बदलाव होना चाहिए।”
उन्होंने 1999 के कारगिल युद्ध की बात करते हुए कहा कि उसके बाद 67-33% वाला बदलाव हुआ था, इसमें होना चाहिए कि इसकी ठीक से परिभाषा हो – पत्नी परिवार में रहेंगी तो क्या होगा, बच्चे होंगे या नहीं होंगे तो क्या होगा, वो चली जाएँगी तो क्या होगा। उन्होंने कहा कि ये न हो कि पुरानी प्रथा चलती रहे। उन्होंने कहा कि अंशुमान सिंह की माँ ‘कीर्ति चक्र’ की सह-प्राप्तकर्ता हैं, लेकिन उनके पास बेटे की प्रतिमा पर लगाने के लिए वो चक्र नहीं है।
उन्होंने बताया कि राहुल गाँधी ने राजनाथ सिंह से इस संबंध में बात करने का आश्वासन दिया है। वहीं मंजू सिंह ने कहा, “बहुएँ भाग जाती हैं। बहुत से ऐसे मामले आ रहे हैं जहाँ बहुएँ माँ-बाप को छोड़ कर भाग जा रही हैं। मेरा तो हो गया, लेकिन आगे किसी माँ-बाप को हमलोगों की तरह दुःख न हो।” बता दें कि NOK का अर्थ होता है ‘नेक्स्ट ऑफ किन’, सैनिक के वीरगति को प्राप्त होने के बाद जो NOK होता है उसे ही मुआवजे की धनराशि व अन्य फायदे प्राप्त होते हैं।
शहीद कैप्टन अंशुमान सिंह के माता-पिता का कहना है कि बेटा मेरा शहीद हुआ, लेकिन हमें कुछ न मिला… सबकुछ लेकर बहू चली गई जबकि शादी को सिर्फ़ 5 महीने हुए थे, न बेटा मिला न बहु… राहुल गांधी से इस मुद्दे पर अंशुमान के माता पिता से बात भी हुई है, राहुल ने रक्षा मंत्री से बात करूँगा.. pic.twitter.com/8IDKUk8TPR
— Pankaj Chaturvedi (@pankajjilive) July 11, 2024
इस मामले को समझने के लिए हमें सेना में काम कर रहे एक अधिकारी से बातचीत की, जिन्होंने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि जब कोई शख्स सेना में शामिल होता है तो उस प्रक्रिया के दौरान उससे विल भी भरवाया जाता है। इनमें से अधिकतर युवा व अविवाहित होते हैं, ऐसे में इसमें उनके अभिभावक ही सामान्यतः नॉमिनी होते हैं। सेना में एक ‘पार्ट 2’ नाम का दस्तावेज होता है, जिसमें सैनिक को अपने जीवन के घटनाक्रम के बारे में बताना होता है।
इसमें लंबी छुट्टियाँ इत्यादि की भी जानकारी देनी होती है। जब जवान की शादी होती है, तो इसी ‘पार्ट 2’ में उसे सूचित करना होता है कि उसका विवाह हो गया है और इससे संबंधित जानकारियाँ वो वहाँ भरते हैं। सेना में कार्यरत उक्त अधिकारी ने बताया कि अब एक नया ट्रेंड आ गया है कि जब जवान की शादी होती है तो सामान्यतः वह ‘पार्ट 2’ में सूचनाएँ भरने के बाद अपने विल में भी बदलाव करता है। सामान्यतः अपनी पत्नी को शत-प्रतिशत नॉमिनी बना दिया जाता है।
ऐसा कोई बाध्यकारी नियम नहीं है, सामान्यतः ऐसा होता है। कुछ जवान ऐसे भी आते हैं जो 70:30 का फॉर्मूला रखते हैं, यानी 70% नॉमिनी पत्नी होती हैं और 30% माता-पिता। ये सैनिक के विवेकाधिकार पर निर्भर करता है, ये सरकार नहीं बल्कि वही तय करते हैं। नियम के तहत तो 50:50 फॉर्मूले की व्यवस्था भी है, लेकिन कुछ ही जवान इसे चुनते हैं। इसके लिए उन्हें CO से अनुमति लेनी होती है। अतः, ये जवान पर ही होता है कि उसके वीरगति को प्राप्त होने के बाद मुआवजे में से परिवार में किसे क्या मिलेगा।
कैप्टन अंशुमान सिंह के मामले में उनके पिता खुद एक पूर्व-सैनिक हैं, ऐसे में उन्हें कैंटीन व मेडिकल सुविधाएँ नियम के तहत प्राप्त हो रही हैं। बता दें कि ‘पार्ट 2’ में ही प्रमोशन, ट्रांसफर-पोस्टिंग, अनुशासनात्मक कार्यवाही व अन्य सूचनाएँ भी होती हैं। कमांडिंग ऑफिसर द्वारा इसे मैनेज किया जाता है। वहीं ग्रीटिंग्स, सम्मान व बधाई सन्देश जैसी अन्य चीजें ‘पार्ट 1’ का हिस्सा होती हैं, जिससे जवानों का उत्साह बढ़ा रहे। ‘पार्ट 2’ के बारे में कहा जाता है कि सेना में अनुशासन बनाए रखने के लिए इसे ज़रूरी माना जाता है।