बॉलीवुड और तमिल की फिल्मों में अपने अभिनय का लोहा मनवा चुके रंगनाथन माधवन ने अब बतौर निर्देशक अपनी पारी शुरू की है। उनकी अगली फिल्म ‘रॉकेट्री – द नम्बि इफ़ेक्ट’ का ट्रेलर आ गया है और इसे सोशल मीडिया पर अच्छी प्रतिक्रिया भी मिल रही है। असल में ये फिल्म ISRO के वैज्ञानिक रहे एस नम्बि नारायणन की बायोपिक है। पद्म भूषण से सम्मानित नम्बि नारायणन के करियर में एक ऐसा समय भी आया था, जब उन पर झूठे आरोप लगे और उन्हें गिरफ्तार किया गया।
ISRO के पूर्व वैज्ञानिक नम्बि नारायणन की बायोपिक है फिल्म ‘रॉकेट्री’
फिल्म के ट्रेलर में शाहरुख़ खान भी नज़र आते हैं। नम्बि नारायणन के किरदार में ढल चुके आर माधवन कहते हैं, “मैं यहाँ इसलिए आया हूँ ताकि जो इस देश में मेरे साथ हुआ, वो किसी और के साथ न हो।” फिल्म में नम्बि नारायणन पुराने दिनों में भारत में रॉकेट्री को बढ़ावा देने के लिए योजना बनाते दिखते हैं, ताकि देश इस ट्रिलियन डॉलर इंडस्ट्री का हिस्सा बने और रॉकेट्स बनाए, ‘खिलौने’ नहीं। इसके बाद उनके खिलाफ साजिश की बातें आती हैं।
उनकी देशभक्ति पर सवाल उठाए गए। उनकी कामयाबी के बावजूद उन्हें अलग-थलग कर दिया गया। फिल्म में एक डायलॉग है – “किसी कुत्ते को मारना हो तो अफवाह फैला दो कि वो पागल है। ठीक उसी तरह, किसी इंसान को मारना हो तो दिखा दो कि वो देशद्रोही है।” उन पर गुजरे पारिवारिक संकट और गिरफ़्तारी के दौरान मिली प्रताड़ना को भी फिल्म में उकेरा जाएगा। कैसे उन्होंने न्यायिक लड़ाई जीती, फिल्म में ये भी दिखाया जाएगा।
इस फिल्म को हिंदी, तमिल और अंग्रेजी में बनाया गया है। फिल्म का प्री-प्रोडक्शन कार्य 2017 की शुरुआत में ही शुरू हो गया था। अक्टूबर 2018 में इसका टीजर जारी कर दिया गया था। आर माधवन और शाहरुख़ खान के अलावा फिल्म में कभी तमिल सिनेमा की सेंसेशन रहीं सिमरन और वहाँ के एक और बड़े स्टार सूर्या भी नज़र आएँगे। भारत के अलावा जॉर्जिया, रूस, फ़्रांस और सर्बिया में इस फिल्म की शूटिंग हुई है।
जब एक प्रतिभावान ISRO वैज्ञानिक अचानक कर लिया गया था गिरफ्तार
वो नवंबर 30, 1994 की बात थी, जब कुछ पुलिस वाले नम्बि नारायणन के घर पर आ धमके। उन्होंने कहा कि DIG आपसे बात करना चाहते हैं। जब नम्बि ने पूछा कि क्या उन्हें गिरफ्तार किया जा रहा है तो पुलिसकर्मियों ने ना में जवाब दिया। उन्हें पुलिस की गाड़ी में आगे बिठा कर ले जाया गया (अपराधियों को अक्सर पीछे बिठाया जाता है)। असल में उससे पहले 20 अक्टूबर को मरियम रशीदा नामक मालदीव्स की एक महिला को गिरफ्तार किया गया था।
बताया गया था कि वो एक जासूस है और ISRO में कुछ संपर्कों के जरिए वो पाकिस्तान को भारतीय रॉकेट तकनीक की बारीकियाँ सप्लाई कर रही है। 13 नवंबर को उसी साल फौजिया हुसैन नामक मालदीव की एक और महिला को गिरफ्तार किया गया, जो मरियम की दोस्त थी। नम्बि नारायणन तब क्रायोजेनिक इंजन प्रोजेक्ट के मुखिया और लिक्विड प्रोपल्शन सिस्टम्स के डायरेक्टर इन चार्ज हुआ करते थे।
प्रोजेक्ट में उनके नीचे थे डी शशिकुमारन, जिनका नाम इस जासूसी केस में आया था। नम्बि नारायणन कहते हैं कि तब ISRO के वैज्ञानिक इस केस पर बातें करते थे और शशिकुमारन इसमें शामिल हैं या नहीं, इस पर भी। लेकिन, जासूसी वाली बात पर उनकी हँसी छूट जाती थी क्योंकि उनके अनुसार, तब भारत को पता ही नहीं था कि क्रायोजेनिक इंजन बनाते कैसे हैं। तब फ्रांस के साथ मिल कर बनाए गए ‘विकास इंजन’ का सिर्फ खाका ही था देश के पास।
ISRO के वैज्ञानिक इस पर चर्चाएँ करते थे और इस मामले की खबरें अख़बारों में आती रहती थीं, इसीलिए वो लोग फोन पर भी इससे जुड़ी बातें कर लिया करते थे। इसी दौरान एक बार नम्बि नारायणन को एहसास हुआ कि उनका फोन टैप किया जा रहा है। उन्होंने अपने एक दोस्त को ये आशंका जाहिर भी की, लेकिन फिर कहा कि जब उन्होंने कुछ गलत किया ही नहीं है तो फिर डरना किस बात से, जो टैप कर रहा है, उसे मस्ती करने दिया जाए।
पुलिस थाने में एक वैज्ञानिक को ले जाकर बिठा दिया गया, जिससे वो इतने तनावपूर्ण हो गए कि जब पुलिस वालों ने पूछा कि उन्हें खाना-पानी वगैरह में क्या चाहिए तो उन्होंने एक डब्बा Wills सिगरेट माँगा। वो 3 साल पहले ही स्मोक करना छोड़ चुके थे लेकिन एक ऐसा समय था, जब वो दिन भर में 40 सिगरेट पी जाया करते थे। रात को उन्हें वहीं बेंच पर सोना पड़ा। इससे पहले नम्बि नारायणन के परिवार की बात कर लेते हैं।
नम्बि नारायणन, उनके पिता और परिवार
उनके पिता और चाचा ने मिल कर एक कारोबार किया था लेकिन उनके चाचा की मौत के बाद उनके परिवार ने नम्बि के पिता से साझी सम्पत्तियों पर से सारे अधिकार छीन लिए, जिससे उन्हें 11 सालों के लिए मुक़दमे लड़ने पड़े थे। दिसंबर 12, 1941 को नम्बि का जन्म हुआ। वो तीन बेटियों के बाद जन्मे थे। उनका जन्म परिवार में भाग्यशाली माना गया, क्योंकि उसी महीन मुक़दमे का झंझट भी ख़त्म हुआ और कोर्ट ने उनके पिता के हक़ में फैसला दिया।
नम्बि की चाची आत्महत्या कर ली। उनके आहत पिता फिर नागरकोइल में बस गए और वहाँ तेल का एक व्यापार खोल लिया। उनके पिता ने संघर्ष कर के परिवार को उच्च-मध्यम वर्ग का बना दिया, उस जमाने में उनके घर में पानी और बिजली की सप्लाई थी। 40 के दशक में ये बड़ी बात थी। स्कूल यूनिफॉर्म, किताबें या किसी चीज के लिए उन्हें कहना नहीं पड़ता। घर में सब मिला। उन्हें बचपन से गणित पसंद था।
उस वक़्त तमिलनाडु में मात्र 6 इंजीनियरिंग कॉलेज थे, जिनमें 4 प्राइवेट थे। उनमें से मदुरै स्थित थ्यागराजा कॉलेज में उन्हें एडमिशन मिला। नम्बि नारायणन के अनुसार, उन्हें कॉलेज छोड़ कर जाते हुए अपने पिता को उन्होंने मात्र दूसरी बार रोते देखा था। पहली बार वो अपनी माँ (नम्बि की दादी) के निधन पर रोए थे। इसके ठीक 5 महीने बाद नम्बि के पिता की मौत हो गई और तब उन्हें पता चला कि कम आय के बावजूद 5 बच्चों का परिवार उनके पिता कैसे चला रहे थे।
अब घर में कोई कमाने वाला न था। 19 वर्ष की उम्र में उन पर कठिन जिम्मेदारियाँ आ गईं लेकिन उनकी दो बहनों ने साफ़ कर दिया कि भाई की पढ़ाई नहीं रुकनी चाहिए। छात्र जीवन में सक्रियता और कुछ अच्छे प्रोफेसर्स के विश्वास ने उन्हें एक सुयोग्य इंजीनियर बनाया। अब लौटते हैं वापस जासूसी कांड पर। जब नम्बि को एडिशनल मजिस्ट्रेट के सामने ले जाया गया था तो उन्हें पता ही नहीं था कि उन पर आरोप क्या है।
वहाँ उनसे सीधा पूछा गया कि क्या वो अपना जुर्म कबूल करते हैं? कटघरे में खड़े नम्बि नारायणन का एक ही सवाल था – “आरोप क्या है?” इसके बाद कोर्ट के ही एक कर्मचारी ने एक ब्लैक पेपर पर उनसे हस्ताक्षर कराया। उन्हें 11 दिनों के लिए पुलिस कस्टडी में भेज दिया गया और इस तरह से इस केस में वो आरोपित बन गए। फिर इस मामले को CBI ने अपने हाथों में ले लिया। 1995 में नम्बि मानवाधिकार आयोग के समक्ष पहुँचे।
आरोपमुक्त होने के बावजूद वैज्ञानिक नम्बि नारायणन ने जारी रखी सम्मान की लड़ाई
सितंबर 1996 में NHRC ने इस मामले में केरल के पुलिस अधिकारियों और IB के अधिकारियों के खिलाफ फैसला देते हुए मानवाधिकार के घोर उल्लंघन का मामला माना और 10 लाख रुपए तत्काल मुआवजा देने का निर्देश दिया। केरल सरकार NHRC के आदेश के खिलाफ हाईकोर्ट गई, लेकिन 2012 में उसके खिलाफ फैसला आया। तत्कालीन सरकार ने NHRC के आदेश पर रोक लगाने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा दिया था।
1996-97 में ही CBI ने पाया था कि इस मामले की जाँच करने वाले केरल पुलिस के अधिकारियों ने ही सारी गड़बड़ी की है। CBI ने उन अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई के लिए भी केरल सरकार को लिखा था। CPI (M) के ईके नायनार तब केरल के मुख्यमंत्री थे। वामपंथी सरकार ने उन अधिकारियों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की और सुप्रीम कोर्ट के आदेश का इंतजार का बहाना बनाया। सुप्रीम कोर्ट का जजमेंट आने के बाद भी एक दशक तक कोई कार्रवाई नहीं हुई।
इसके बाद आई ओमान चंडी की सरकार, जिसे इस जासूसी कांड के कारण जनता के बीच पूरा फायदा मिला था। लेकिन उसने भी केरल के उन अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई न करने का फैसला लिया। उसने 15 साल बीतने का बहाना बनाया। 2012 में नम्बि नारायणन हाईकोर्ट गए, जहाँ से केरल सरकार को फटकार मिली। मजबूरन सरकार को कार्रवाई के लिए कमिटी बनानी पड़ी। फिर वो सारे अधिकारी भी हाईकोर्ट पहुँचे।
केरल हाईकोर्ट ने एकल पीठ के फैसले को पलटते हुए कहा कि CBI की रिपोर्ट एक ओपिनियन भर है और ये सरकार के ऊपर है कि वो उसे माने या ना माने। आप सोचिए, बिना सबूतों के भारत के कई वैज्ञानिकों को गद्दार घोषित किए जाने से किसका फायदा हुआ होगा, क्योंकि इससे भारत की रॉकेट्री तकनीक कई वर्ष पीछे चली गई थी। CBI ने पाया कि भारतीय स्पेस प्रोग्राम को पटरी से उतारने के लिए ये पूरी साजिश रची गई थी।
विदेशी हाथों बिके हुए वामपंथियों की थी पूरी साजिश: नम्बि नारायणन के बिना पिछड़ा ISRO
सारा दोष केरल की तत्कालीन CPI(M) सरकार का था, जिसने अमेरिका के इशारे पर भारतीय वैज्ञानिकों का करियर बर्बाद कर दिया और भारतीय स्पेस व रॉकेट्री विभाग का काम ठप्प कर दिया। भारत तब स्पेस की दुनिया में आत्मनिर्भर नहीं था और वो अमेरिका व रूस जैसे देशों पर निर्भर था, जहाँ से करोड़ों के आयात हुआ करते थे। इन देशों को ज़रूर लगा होगा कि भारत आत्मनिर्भर बना तो उनकी कमाई बंद हो जाएगी।
कई मीडिया रिपोर्ट्स में ये बात भी सामने आती है कि अमेरिकी खुफिया एजेंसी CIA ने इसके लिए केरल की तत्कालीन कम्युनिस्ट सरकार में शामिल बड़े नेताओं और अफसरों को मोटी रकम मुहैया कराई थी। अब आप बताइए। गद्दार कौन? नम्बि नारायणन जैसे ISRO के वैज्ञानिक या भ्रष्ट नेता-अधिकारी?
मई 1996 में कोर्ट ने CBI की रिपोर्ट को मानते हुए आरोपित वैज्ञानिकों को बरी कर दिया लेकिन CPI(M) सरकार को उनका करियर बर्बाद करने की इतनी चुल्ल मची थी कि उसने मई 1998 में फिर से जाँच के आदेश दे दिए। 1996 में आरोपमुक्त होने के बावजूद सम्मान की लड़ाई 24 वर्षों तक चली। आखिरकार सितम्बर 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने उनके हक़ में फैसला दिया और केरल सरकार से कहा कि उन्हें 75 लाख रुपए बतौर मुआवजा दिया जाए।
When I was writing #NambiNarayanan‘s life story 5 years ago, many who saw the manuscript said it was unbelievable, almost filmy. Today, @ActorMadhavan is ready with the movie #RocketryTheNambiEffect that takes you to a different orbit altogether. https://t.co/kcdDCiZgCc pic.twitter.com/ciPMzFOMjZ
— Arun Ram (@toi_Arunram) April 2, 2021
जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ ने आदेश दिया कि नम्बि नारायणन को सारे लाभ दिए जाएँ और रकम की भरपाई गड़बड़ी करने वाले अधिकारियों से हो। सोचिए, अगर नम्बि नारायणन ने अपने वादे के मुताबिक क्रायोजेनिक इंजन तभी बना लिया होता तो भारत स्पेस की दुनिया में 2 दशक आगे होता। 2019 में मोदी सरकार ने उन्हें ‘पद्म भूषण’ से नवाजा। उन्होंने ‘Ready To Fire: How India and I Survived the ISRO Spy Case’ पुस्तक में अपने इस संघर्ष का जिक्र किया है।
लड़ाई अब भी जारी है। सुप्रीम कोर्ट ने 3 सदस्यीय कमिटी बनाई है, जो जाँच करेगी कि ISRO वैज्ञानिक रहे नम्बि नारायणन को एक साजिश के तहत फँसाया गया था या नहीं। उनकी गिरफ़्तारी को सर्वोच्च न्यायालय पहले ही गैर-जरूरी बता चुका है और प्रताड़ना के एवज में मुआवजे का आदेश दिया जा चुका है। दिसंबर 2020 में पूर्व सुप्रीम कोर्ट जज डीके जैन की अध्यक्षता में इस पैनल की पहली बैठक हुई। नारायणन को पैनल के समक्ष बुलाया गया। उनकी कहानी फिर सुनी गई।
पूर्व रॉ अधिकारी एनके सूद ने खुलासा किया था कि ये सब रतन सहगल नामक एक व्यक्ति ने किया। उन्होंने बताया था, “उसने ही नाम्बी नारायणन को फँसाने के लिए जासूसी के आरोपों का जाल बिछाया। ऐसा उसने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की छवि बिगाड़ने के लिए किया। रतन जब आईबी में था, तब उसे अमेरिकन एजेंसी सीआईए के लिए जासूसी करते हुए धरा जा चुका था। अब वह सुखपूर्वक अमेरिका में जीवन गुजार रहा है। वह पूर्व-राष्ट्रपति अंसारी का क़रीबी है।”