बचपन से अपने गाँव में एक कहावत ‘अधजल गगरी छलकत जाय’ को सुनते हुए बड़ा हुआ हूँ। इस कहावत का आशय यह है कि जब किसी घड़े में आधा पानी भरा होता है, तो घड़ा से छलक कर पानी बाहर आ ही जाता है।
शेखर गुप्ता की वेबसाइट ‘दि प्रिंट’ का मामला भी कुछ इसी तरह का लगता है। दरअसल दि प्रिंट को लॉन्च हुए अभी मुश्किल से दो साल भी नहीं हुआ है, लेकिन वेबसाइट अपने रिपोर्ट के ज़रिए दावा कुछ इस तरह करती है, जैसे उनके रिपोर्ट को पढ़ने के बाद ही सुप्रीम कोर्ट के जज किसी मामले में कोई फ़ैसला लेते हैं।
पिछले दिनों सीबीआई निदेशक पद से आलोक वर्मा को हटाए जाने के लिए केंद्र के पक्ष में वोट करने के बाद तथाकथित प्रगतिशील मीडिया का एक बड़ा गिरोह जस्टिस एके सीकरी के ईमानदारी पर सवाल खड़े कर रहा है। इस मामले में मार्कंडेय काटजू ने नई टिप्पणी करते हुए अपने ट्वीटर पर लिखा – “मीडिया में जरा सी भी शर्म बची है तो उसे जस्टिस सीकरी से माफ़ी माँगनी चाहिए।”
Has the Indian media no shame ?
— Markandey Katju (@mkatju) January 14, 2019
Our mostly rotten and shameless media has sought to tarnish Justice Sikri in mud and ruin his reputation.
Here is the truth:https://t.co/MlPPOKEKqC pic.twitter.com/kP3GogsmRG
पूर्व जस्टिस काटजू का यह बयान दि प्रिंट जैसे संस्थानों के लिए ही है। सीबीआई निदेशक मामले में जस्टिस सीकरी के फ़ैसले के बाद दि प्रिंट हिंदी ने वेबसाइट पर एक आर्टिकल पब्लिश किया। इस आर्टिकल को मनीष छिब्बर नाम के व्यक्ति ने 14 जनवरी को 10 बजकर 39 मिनट पर अपडेट किया है। इसे राहुल गाँधी ने अपने ट्वीटर अकाउंट से शेयर भी किया है। इस आर्टिकल में अप्रत्यक्ष रूप से एक न्यायाधीश की ईमानदारी पर सवाल उठाया गया है, मानो आलोक वर्मा को हटाने के पुरस्कार के रूप में सरकार उन्हें यह पद दे रही है।
When the scales of justice are tampered with, anarchy reigns.
— Rahul Gandhi (@RahulGandhi) January 13, 2019
This PM will stop at nothing, stoop to anything & destroy everything, to cover up the #RafaleScam. He’s driven by fear. It’s this fear that is making him corrupt & destroy key institutions.https://t.co/IfYHf2EMGd
पहले रिपोर्ट के ठीक 38 मिनट बाद 11 बजकर 17 मिनट पर दि प्रिंट हिंदी की तरफ से एक दूसरी स्टोरी ‘दि प्रिंट की रिपोर्ट के बाद न्यायमूर्ति सीकरी का अब सीसैट पद से इंकार’ की हेडिंग के साथ अपडेट की गई। जिस वेबसाइट को पैदा हुए अभी जुम्मा-जुम्मा आठ रोज़ नहीं हुए हैं, उस वेबसाइट के इस खोखले दावे को देखकर किसी को भी आश्चर्य होगा। हालाँकि, दि प्रिंट ने अंग्रेजी वेबसाइट पर मनीष छिब्बर की यह रिपोर्ट 13 जनवरी को अपडेट की है। लेकिन बावजूद इसके सोचने वाली बात यह है कि दि प्रिंट को किन सूत्रों से यह पता चला कि उनके रिपोर्ट को पढ़ने के बाद ही जस्टिस सीकरी ने अपने फ़ैसले को बदला है।
इस रिपोर्ट में किए गए दावे को देखकर शेखर गुप्ता और उनकी टीम के बड़बोलेपन का अंदाज़ा लगाया जा सकता है। दि प्रिंट को लगता है कि जस्टिस सीकरी मुख्यधारा के चैनल व अख़बारों को देखना-पढ़ना छोड़कर आजकल सिर्फ़ दि प्रिंट को पढ़ रहे हैं। यही वजह है कि उनके रिपोर्ट को अपडेट हुए आधा घंटा भी नहीं हुआ कि जस्टिस सीकरी का दिमाग एकदम से घूम गया और उन्होंने आधे घंटे के अंदर सीसैट पद ठुकराने का फ़ैसला ले लिया। दि प्रिंट को यह भ्रम हो गया है कि उनके रिपोर्ट को पढ़कर ही एक न्यायाधीश ने अपना फ़ैसला बदल लिया है।
जस्टिस एके सीकरी की छवि एक ईमानदार न्यायधीश की रही है। पिछले दिनों बेबाक राय रखने वाले पूर्व न्यायाधीश मार्कंडेय काटजू ने कहा, “एके सीकरी को मैं काफ़ी अच्छे से जानता हूँ, वो बेहद ईमानदार न्यायधीश हैं। उन्होंने जो भी फ़ैसला लिया है, कुछ सोचने के बाद ही लिया होगा।”
ऐसे में साफ़ है कि जस्टिस सीकरी को यह बात काफ़ी अच्छी तरह से मालूम था कि सीबीआई निदेशक आलोक वर्मा पर फ़ैसले के बाद कुछ लोगों और कथित प्रगतिशील मीडिया के एक धरे द्वारा उनके ऊपर सवाल उठाए जाएंगे। इस बात को समझते हुए एके सीकरी ने विवादों के गंदे छींटें से बचने के लिए सेवानिवृत होने के बाद सीसैट के पद से इनकार कर दिया।
लेकिन जस्टिस सीकरी के इस ईमानदार फ़ैसले पर शेखर गुप्ता के शेरों ने इसे अपनी जीत के रूप में देखना शुरू कर दिया। सीबीआई निदेशक आलोक वर्मा के मामले में जैसे ही जस्टिस सीकरी ने फ़ैसला लिया, राहुल गाँधी ने हर बार की तरह इस बार भी देश के सर्वोच्च संस्थान और वहाँ काम करने वाले ईमानदार न्यायाधीश को बदनाम करना शुरू कर दिया।
दि प्रिंट जैसे प्रोपेगेंडा फ़ैलाने वाले वेबसाइट के लिंक के ज़रिए जस्टिस सीकरी को बदनाम करने वाले राहुल ने एक बार भी नहीं सोचा कि कर्नाटक मामले में कॉन्ग्रेस की याचिका पर सीकरी ने दूसरे जजों के साथ मिलकर रात के एक बजे कोर्ट में सुनवाई की थी। यही नहीं अपने फ़ैसले में सीकरी ने राज्यपाल के फ़ैसले को पलटकर भाजपा को पंद्रह दिनों की बजाय तुरंत बहुमत साबित करने का आदेश सुनाया था। इसी आदेश के बाद भाजपा जल्दबाजी में बहुमत नहीं साबित कर पाई और कॉन्गेस-जेडीएस ने मिलकर सरकार बना लिया था।
कॉन्ग्रेस के लिए देश के सरकारी संस्थाओं पर सवाल उठाना कोई नई बात नहीं है। इससे पहले भी कॉन्ग्रेस पार्टी ने गुजरात में होने वाले राज्यसभा चुनाव के दौरान चुनाव आयोग पर सरकार के दवाब में काम करने का आरोप लगाया था, जबकि चुनाव आयोग ने दो विधायकों के सदस्यता को रद्द करके फ़ैसला कॉन्ग्रेस पार्टी के पक्ष में सुनाया।
इसी तरह जब अचल कुमार ज्योति देश के मुख्य निर्वाचन आयुक्त बने थे, तो कॉन्ग्रेस ने उन्हें भाजपा समर्थक बताकर घड़ियाली आँसू बहाना शुरू कर दिया। कॉन्ग्रेस और राहुल गाँधी के इन बयानों को प्रोपेगेंडा वेबसाइटों ने खूब आगे बढ़ाया था ।
शेखर गुप्ता अपने बेकार और बेबुनियाद ख़बरों को लीड में चलाकर देश की सेना पर पहले ही ‘मिलिट्री कू’ (सेना द्वारा तख़्तापलट) के मनगढंत आरोप लगाकर जलवे काटे हैं। गुप्ता जी जैसे पत्रकारों को कहानी लेखन में अप्रतिम योगदान के लिए साहित्य अकादमी अवार्ड दिया जाना चाहिए।